-सुभाष मिश्र
सरकारी कर्मचारी दुविधा में हैं कि उसे कौन सी पेंशन स्कीम का लाभ लेना चाहिए? सरकार की तीन पेंशन स्कीम है- एक ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस), दूसरी नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) और तीसरी और नई यूनीफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) है। कांग्रेस ने चुनाव के समय पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा किया था, लेकिन यह स्कीम लागू नहीं हो पाई, क्योंकि केंद्र और राज्य के बीच पैसों को लेकर विवाद था। छत्तीसगढ़ में 96 प्रतिशत लोगों ने ओपीएस के तहत पेंशन का आवेदन किया था, जबकि 4 प्रतिशत ने एनपीएस के तहत ही पेंशन मांगा था। इसी तरह चुनावी राज्यों में पुरानी पेंशन बड़ा मुद्दा रहा। सरकारी कर्मचारियों का पुरानी पेंशन स्कीम के प्रति आकर्षण है, क्योंकि उनको लगता है कि नेशनल पेंशन स्कीम (एनपीएस) का पैसा सरकार शेयर बाजार में लगाती है। शेयर बाजार में पैसा डूबने का जोखिम है। उनके मन में आशंका रही कि अगर पैसा डूब गया तो सरकार पेंशन देगी या नहीं? इस बीच सरकार ने काफी मंथन किया और अंतत: सरकार पेंशन के मामले में यूटर्न लेते हुए नई पेंशन स्कीम ले आई। मोदी की गारंटी के तहत अब एनपीएस की जगह यूपीएस पेंशन स्कीम लाई गई है। अब इस पेंशन स्कीम का हर जगह स्वागत हो रहा है। अब सवाल यह है कि एनपीएस और यूपीएस पेंशन स्कीम में अंतर क्या है? एनपीएस में कर्मचारियों का अंशदान 10 प्रतिशत और सरकार भी 10 फीसदी अंशदान देती थी। बाद में सरकार ने अपना अंशदान 14 फीसदी कर दिया और इसका पैसा शेयर बाजार में लगा दिया। इस योजना में दस साल नौकरी के बाद पेंशन की गारंटी नहीं थी, मगर यूपीएस में सरकार पेंशन की गारंटी दे रही है। यूपीएस में कर्मचारियों का अंशदान 10 प्रतिशत रहेगा, जबकि सरकार 18.5 प्रतिशत योगदान देगी। इसके लिए सरकार फंड बनाएगी, और इसकी व्यवस्था करेगी। ओपीएस, एनपीएस, यूपीएस को आसन तरीके से ऐसे समझ सकते हैं कि ओपीएस में कर्मचारियों को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद 12 प्रतिशत चक्रवृध्दि ब्याज की दर से एक साथ मिलता था। इसके अलावा कर्मचारी के अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन थी। इसके बाद 2004 में सरकार एनपीएस लेकर आई और अब सरकार यूपीएस लेकर आई है। यूपीएस में अब कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद 50 प्रतिशत निश्चित पेंशन मिलेगी, किन्तु उसकी मृत्यु के बाद इस पेंशन का 60 प्रतिशत परिवार के आश्रित को मिलेगा, जबकि पुरानी पेंशन में परिवार के आश्रित को 7 साल तक 50 प्रतिशत और इसके बाद 30 प्रतिशत पेंशन की व्यवस्था थी। इसमें महंगाई भत्ते का लाभ शामिल है। नई पेंशन व्यवस्था यूपीएस में निजी क्षेत्र का कोई उल्लेख नहीं है। सरकार निजी क्षेत्र की बात तो करती है, लेकिन यूपीएस निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के हितों की कोई चिंता नहीं की गई है। हालांकि यूपीएस से केन्द्रीय कर्मचारी खुश हैं। यूपीएस की घोषणा सरकार का चुनावी लाभ के लिए पेंशन के मामले में यूटर्न माना जा रहा है। यूपीएस की बड़ी बातें पर ध्यान दें तो इसमें 50 प्रतिशत निश्चित पेंशन-रिटायमेंट के पहले 12 माह के मूल वेतन का पचास प्रतिशत और मृत्यु होने पर आश्रित को पेंशन का 60 फीसदी, 10 साल की सेवा पर न्यूनतम 10 हजार की पेंशन की गारंटी, कर्मचारियों और उसके फेमिली पेंशन को महंगाई से जोड़कर सभी तरह का लाभ मिलेगा और नौकरी छोडऩे पर ग्रेच्युटी के अलावा एक मुश्त राशि दी जाएगी, जिसकी गणना कर्मचारी की हर छह माह की सेवा पर मूल वेतन और महंगाई भत्ते का दसवां हिस्सा होगा।
केंद्र की मोदी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) का ऐलान किया है। यूपीएस को सरकारी कर्मचारियों के लिए लाभप्रद बताया जा रहा है। यह स्कीम 1 अप्रैल 2025 से लागू होगी। इससे केंद्र पर वर्ष 2025-26 के दौरान ही 6250 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। यूपीएस सरकारी कर्मचारियों के बीच उठ रही शिकायत का एक राजनीतिक जवाब है। चुनावी माहौल में इसे सरकार की ओर से बड़ा राजनीतिक कदम भी माना जा रहा है। यूक्रेन से यात्रा के बाद नई दिल्ली पहुंचे पीएम नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केबिनेट की बैठक में यूनीफाइड पेंशन स्कीम के बारे में फैसला किया गया। सरकार का आंकलन है कि अभी कार्यरत 99 फीसदी से ज्यादा केंद्रीय कर्मियों के लिए एनपीएस से ज्यादा यूपीएस आर्थिक लाभ होगा। अगर राज्य सरकारें चाहें तो इसी आधार पर अपने कर्मचारियों के लिए भी पेंशन स्कीम लागू कर सकती हैं। प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद सबसे पहले महाराष्ट्र सरकार ने इसे लागू करने की घोषणा कर दी है। इसके बाद सभी भाजपा शासित और उसके सहयोगी राज्य सरकारें अपने यहाँ लागू कर देंगी। भाजपा नहीं चाहती है कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव है, वहां पेंशन मुद्दा ना बने। हरियाणा और जम्मू कश्मीर में चुनाव की घोषणा हो चुकी है और अगले एक-दो महीने में महाराष्ट्र और झारखंड में भी घोषणा होनी है। ऐसे में राजनीतिक दलों पर यह दबाव रहेगा कि वह अपने मेनिफेस्टो में राज्य में इसे लागू करने की घोषणा करे। केंद्र सरकार ने दावा किया है कि इस नई स्कीम के लिए केंद्रीय कर्मचारियों पर कोई बोझ नहीं डाला जाएगा। ओपीएस जहां बिना किसी वित्तीय योगदान की सुनिश्चित भुगतान योजना थी। वहीं यूपीएस के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिए केंद्र का योगदान बढ़ाया गया है। पहले योगदान की राशि 10 प्रतिशत थी, जिसे वर्ष 2019 में बढ़ा कर 14 फीसदी किया था। अब 18.5 फीसदी करने का फैसला किया गया है। यूपीएस को लेकर विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर हैं और वह ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग कर रहा है।
केंद्र सरकार ने यूपीएस को अचानक लागू नहीं किया है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 में पूर्व वित्त सचिव टीवी स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था, ताकि एनपीएस की समीक्षा की जा सके। इस समिति ने केंद्रीय कर्मचारियों के संघों और दूसरे प्रतिनिधियों, राज्य सरकारों, आरबीआई, विश्व बैंक, राजनीतिक दलों समेत दूसरे श्रम संगठनों के साथ विस्तार से विमर्श के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी। इसी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना यूनिफाइड पेंशन स्कीम लाई है। मोदी 3.0 सरकार की यह नई योजना है। इस योजना को अप्रैल 2025 से लागू किया जाएगा। अब सरकारी कर्मचारियों को पेंशन का लाभ लेने के लिए यूपीएस और न्यू पेंशन स्कीम में से किसी एक विकल्प को चुनना होगा। यूनिफाइड पेंशन स्कीम को पुरानी और नई पेंशन स्कीम की जगह पर लाया गया है। न्यू पेंशन स्कीम के तहत अगर कोई सरकारी कर्मचारी 25 साल नौकरी करने पर रिटायर होता है तो उसे उसकी पिछली 12 महीने की बेसिक सैलरी का 50 फीसदी पेंशन के रूप दिया जाएगा। अगर कोई कर्मचारी अगर 10 साल काम करता है तो उसे करीब 10 हजार रुपये पेंशन दी जाएगी। यूपीएस अब उन कर्मचारियों के लिए एक विकल्प होगा जो 2004 या उसके बाद सेवा में शामिल हुए थे। नई स्कीम से केंद्र सरकार के 23 लाख कर्मचारियों को फ़ायदा मिलेगा। दरअसल, एनपीएस में बदलाव की सरकार की योजना कई गैर-बीजेपी राज्यों द्वारा डीए से जुड़ी पुरानी पेंशन योजना को वापस लागू करने के फैसले और कुछ अन्य राज्यों में कर्मचारी संगठनों द्वारा इसकी मांग उठाए जाने के बाद आई है। एकीकृत पेंशन योजना यानी यूनिफाइड पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट से पहले पिछले 12 महीनों में एवरेज बेसिक पे का 50 फीसदी होगा। कम से कम 25 साल तक नौकरी करने वाले कर्मचारियों को ही इसका फायदा मिलेगा। साथ ही सुनिश्चित पारिवारिक पेंशन की व्यवस्था की गई है। इसके तहत कर्मचारी की मृत्यु से ठीक पहले की पेंशन का 60 फीसदी हिस्सा परिवार को मिलेगा। सरकारी कर्मचारी अब तीनों पेंशन योजनाओं का अध्ययन कर रहे हैं। कर्मचारी तीनों स्कीम में से जिसमें अपना लाभ देखेंगे उस विकल्प को चुनेंगे।
अगर पुरानी पेंशन की बात करें तो उसमें रिटायरमेंट के बाद सरकारी कर्मचारियों को उनके अंतिम वेतन का 50 प्रतिशत मासिक पेंशन के रूप में मिलता था। अगर किसी सरकारी कर्मचारी का निधन रिटायरमेंट के 7 साल के भीतर हो जाता है तो भी उसके आश्रित को भी 7 साल पूरे होने तक 50 प्रतिशत मासिक पेंशन मिलता रहेगा और 7 साल बाद 50 प्रतिशत मासिक पेंशन का 30 प्रतिशत मिलेगा। पुरानी पेंशन में कर्मचारियों को कोई अंशदान नहीं देना होता था। सेवाकाल के दौरान कटने वाला जीपीएस की राशि भी 12 प्रतिशत चक्रवृद्घि ब्याज की दर से एक साथ मिलता था। एनपीएस में कर्मचारियों और सरकार के कंट्रीब्यूशन के आधार पर पेंशन का वादा किया था। इसके लिए केंद्र सरकार के कर्मचारी के मूल वेतन से 10 प्रतिशत और सरकार से 14 प्रतिशत कंट्रीब्यूशन था। यूपीएस में कर्मचारी का कंट्रीब्यूशन 10 प्रतिशत ही रहेगा, जबकि सरकार का कंट्रीब्यूशन बढ़कर 18.5 प्रतिशत हो जाएगा। सरकार इसी कंट्रीब्यूशन से प्राप्त राशि की व्यवस्था कर पेंशन देगी। मगर अब कर्मचारियों के सामने दुविधा है। उसे समझना होगा कि वह कौन की स्कीम का चयन करे? छत्तीसगढ़ में 96 प्रतिशत लोगों ने ओपीएस के तहत पेंशन का आवेदन किया था, जबकि 4 प्रतिशत ने एनपीएस के तहत ही पेंशन मांगा था। अब यूपीएस आ गई है। छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है। यहाँ के कर्मचारियों के सामने भी दुविधा है, लेकिन सरकार काफी मंथन के बाद कर्मचारियों के लिए योजना लाई है तो प्रथम दृष्टया यह उनके फायदे की दिख रही है। आशा है कि कर्मचारी नई स्कीम का विकल्प चुने और सरकार का भी प्रयास होगा कि वह कर्मचारियों के लिए इस स्कीम को लागू करने का प्रयास करेगी। एनपीएस में कर्मचारियों के कंट्रीब्यूशन को लेकर कर्मचारी संगठनों का विरोध रहा है। यूपीएस में सरकार ने सभी बातों का ध्यान रखा है और पेंशन व्यवस्था में सुधार किया है। ऐसे में समझा जा रहा है कि देशभर के कर्मचारी नई पेंशन यूपीएस को स्वीकार करेंगे। अब देखना होगा कि सरकार की नई पेंशन योजना का हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में क्या असर होता है? अब विपक्ष इसे मुद्दा बना पाता है या नहीं?