Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – जनसंख्या मामले में देशहित पर भारी राजनीतिक हित

Editor-in-Chief

-सुभाष मिश्र

देश की सरकार लाख कहे कि दो या तीन बच्चे होते हैं अच्छे, मगर हकीकत कुछ और ही है। आज पूरी दुनिया में हम सबसे बड़ी आबादी हैं। दो या तीन बच्चे के बाद नारा आया हम दो-हमारे दो, इसके बाद फिर नारा बदला हम दो हमारे एक, अब धीरे-धीरे लोग कहने लगे हम हमारे-तुम तुम्हारे। दरअसल, लोगों को बच्चा पालना बहुत मुश्किल हो रहा है। एक बच्चे को अच्छी शिक्षा देना, उनका अच्छा स्वास्थ्य देना, वह अच्छे से रहे, उनको स्कूल में पढ़ाना आज के समय में मुश्किल है। जिनके घरों में दो लोग काम नहीं करते हैं और उनके पास आय के कोई स्रोत नहीं है तो उनके लिए यह और भी मुश्किल काम है। हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी हो गए हैं, इसके बावजूद अगर हमारे देश के जिम्मेदार नेता कहें कि हमको अपनी आबादी बढ़ाना है तो यह समझना पड़ेगा कि वह कि वह इस तरह की बात क्यों कर रहे हैं? दुष्यंत कुमार का एक शेर है-
‘भूख है तो सब्र करो रोटी नहीं तो क्या
आजकल दिल्ली में जेरे बहस है मुद्दा।।

सवाल यह है कि जब हमारे पास 2 जून की रोटी नहीं है। हम 80 करोड़ लोगों को मुफ्त या सस्ता अनाज दे रहे हैं। पूरी दुनिया में अकेले हैं जहां सबसे ज्यादा आबादी है, ट्रेनों में भीड़ है, अस्पताल में भीड़ है। हर जगह भीड़ ही भीड़ है। ऐसी भीड़ में भी यदि दो प्रदेश के मुख्यमंत्री का यह कहें कि हमको अपनी आबादी बढ़ाना है या कोई यह कहे कि देश में मुसलमान की आबादी बढ़ रही है, इसीलिए हिंदुओं को भी आबादी बढ़ानी चाहिए, उनको ज्यादा बच्चा पैदा करना चाहिए, तब लगता है कि यह क्या कुछ हो रहा है? यह मामला पूरी तरह से राजनीतिक दिखाई दे रहा है। चंद्रबाबू नायडू ने 20 साल पहले स्लोगन दिया था-एक बच्चा होना चाहिए। अब वही चंद्रबाबू नायडू कह रहे हैं कि आपको अधिक बच्चे पैदा करना चाहिए, लेकिन सवाल यह है कि अगर आबादी बढ़ेगी तो उसको हैंडल कैसे करेंगे? ना जॉब है, न फूड गारंटी है, ना हमारे पास भूमि है और ना रोजगार है। हमारे देश में आबादी का घनत्व दुनिया से सबसे ज्यादा है। अधिक बच्चे पैदा करने की बात करना एक तरह से लोगों को मूल मुद्दे से भटकाने की बात है। अगर आंध्र प्रदेश की बात की जाए तो उसे पर 14 लाख करोड़ का कर्ज है और वहां के मुख्यमंत्री लोगों से कहते हैं कि आपको 16 बच्चे पैदा करना चाहिए। उनके पास शिक्षा की कोई गारंटी नहीं है। राशन और स्वच्छ पानी की गारंटी नहीं है। हमसे बड़े भूभाग ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका की है। वहां की आबादी का घनत्व उतना नहीं है जितना कि हमारे यहां है। अब ऐसे में कोई भूखा होगा तो उसकी कोई जाति नहीं होगी। अगर भाई-भाई भूखे होंगे तो उनमें रोटी को लेकर संघर्ष होगा। वह यह नहीं देखेंगे कि जो भूखा है वह मेरा भाई है। वह रोटी के लिए संघर्ष करेंगे। दोनों मुख्यमंत्री ने जो बात कही है वह अपने आपको सेक्युलर होने का दावा करते हैं। उनमें नायडू एनडीए घटक में हैं। उनके भरोसे केंद्र की सरकार चल रही है तो दूसरी ओर दूसरे मुख्यमंत्री एमके स्टालिन इंडिया गठबंधन के साथ हैं।

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आज शिक्षित परिवार अधिक बच्चों के पक्ष में नहीं है। इसके बावजूद हम पूरी दुनिया में सबसे बड़ी आबादी है। हमने चीन को पीछे छोड़ दिया है। आबादी बढऩे का तर्क देने वाले कुछ लोग बताते हैं कि अगर आबादी बढ़ गई तो हमारा देश पाकिस्तान बन जाएगा, क्योंकि यहां मुसलमान ज्यादा हो जाएंगे। मुस्लिम आबादी वाले 25 देश हैं, मगर मुसलमानों को पाकिस्तान जाने की सलाह दी जाती है। बांग्लादेश जाने की बात कोई नहीं करता तो हमें यह समझना पड़ेगा कि कभी हमें धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर और कभी परिसीमन के नाम पर आबादी बढ़ाने-घटाने की बात करते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार घनत्व 282 प्रति किलोमीटर है, जबकि विश्वव्यापी औसतन 15 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है। हम 145 करोड़ की आबादी वाले देश हैं और यह बढ़ती ही जाएगी। आबादी को लेकर अलग-अलग थ्योरी काम करती है। खासकर चुनाव के समय यह ज्यादा चर्चा में रहती है। जो लोग कहते हैं कि धीरे-धीरे मुसलमानों की संख्या बढ़ जाएगी और हिंदुओं की काम हो जाएगी। वे आबादी के बारे में जानते नहीं है। अगर हम आजादी के पहले की बात करें तब 20 करोड़ हिंदू थे। आज हम 100 करोड़ से ज्यादा हैं। अगर हम मुस्लिम बहुल राज्यों की बात करें तो जम्मू-कश्मीर, पंजाब, लक्षद्वीप और पूर्वोत्तर के पांच राज्यों को छोड़ दिया जाए तो बाकी राज्यों में हिंदु बाहुल्य है।

लेकिन यह बात लोगों का ध्यान मूल मुद्दों से भटकाने के लिए की जा रही है। 1951 से लेकर 2020 तक औसतन हर साल हिंदुओं की आबादी में 1.14 करोड़ बढ़ी है। मुस्लिमों की आबादी 25 लाख सालाना बढ़ी है। बीच-बीच में इस तरह के सर्वे आते रहते हैं कि मुसलमानों की संख्या के मुकाबले हिंदुओं की संख्या कम हो रही है। लंबे समय बाद इस देश में हिंदू नहीं रहेंगे। इस देश में अंग्रेजों के शासन से पहले मुगलिया शासन था। हां, यह ठीक है कि धर्मांतरण के जरिए कुछ जगह की डेमोग्राफी बदली हो, पर यह कैसे हो सकता है कि आप यह डर दिखाएं की हमारे से ज्यादा आबादी हो जाएगी। आंध्र प्रदेश को इस बात का डर है कि अगर आबादी नहीं बढ़ी तो हमसे ज्यादा लोकसभा की सीट उत्तर भारत में हो जाएगी। चुनाव में वह हमसे ज्यादा आगे बढ़ जाएंगे। इसलिए कभी हिंदू-मुसलमान, कभी क्षेत्रीयता का भय दिखाकर यह कहना कि आप आबादी को बढ़ाओ, एक तरह से मूर्खतापूर्ण बात है। इस तरह के गैरजिम्मेदाराना बात दो मुख्यमंत्री कर रहे हैं। इनकी देखा-देखी बाकी लोग भी इस तरह की बात कहने लगेंगे।

हम एक तरफ देखते हैं कि भारत को दुनिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश तमगा हासिल है। आज जनसंख्या नियंत्रण की आवश्यकता पूरी शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है पर दक्षिणी राज्यों के प्रमुख ऐसा नहीं सोचते। पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू घटती जनसंख्या का मुद्दा उठाते हैं। नायडू महिलाओं को कम से कम दो बच्चे पैदा करने का आह्वान करते हैं तो प्रदेश कांग्रेस ने उनकी इस टिप्पणी का स्वागत किया। हालांकि विरोधी वाईएसआरसीपी ने मुख्यमंत्री के दृष्टिकोण पर सवाल उठाते हैं। नायडू के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने लोगों से परिवार को बढ़ाने की बात कही। दोनों नेताओं की चिंता जनहीत की नहीं है, बल्कि वोट बैंक और लोकसभा के सीटों की संख्या है। दोनों नेताओं ने संसदीय परिसीमन के चलते लोगों से परिवार बढ़ाने की अपील कर रहे हैं। दूसरी ओर यूपी की बीजेपी सरकार 2021 में नई पॉपुलेशन पॉलिसी लेकर आई थी, जिसमें दो से अधिक बच्चे वाले लोगों को चुनाव लडऩे से रोकने, सरकारी योजनाओं में सब्सिडी का लाभ नहीं देने और सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन से रोकने की बात थी। ऐसे समय में जब देश की तमाम बीजेपी और एनडीए सरकारें जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए प्रावधान कड़े कर रही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री का ऐलान एक तरह से नीति के खिलाफ बात कर रहे हैं। नायडू के ऐलान और स्टालिन के आह्वान से फिर उत्तर बनाम दक्षिण की बहस छिड़ गई है। चंद्रबाबू नायडू ने जब नई जनसंख्या नीति की बात करते हुए आंध्र ही नहीं, पूरे साउथ में जनसंख्या बढ़ाने पर जोर देते हुए लोगों का आह्वान किया तो चर्चा लोकसभा सीटों और परिसीमन की होने लगी थी। स्टालिन ने खुलकर सीटों की संख्या का जिक्र कर इस बहस को और हवा दे दी।
अब सवाल है कि जनसंख्या का सीटों से क्या नाता है? दरअसल, इसके पीछे वह मानक है जिसके मुताबिक 10 लाख आबादी पर एक सांसद का प्रावधान है। जनसंख्या के अनुपात में सीटों का प्रावधान है और इसके लिए परिसीमन के जरिये सीटों की संख्या बढ़ाई जाती है।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि वर्ष 2047 तक हमारी जनसांख्यिकीय बेहतर होगी और ज्यादा युवा होंगे, लेकिन 2047 के बाद बूढ़े लोग अधिक हो जाएंगे। यदि प्रति महिला दो से कम बच्चे पैदा होंगे तो जनसंख्या कम हो जाएगी। अगर प्रत्येक महिला दो से अधिक बच्चों को जन्म देंगी तो जनसंख्या बढ़ जाएगी। अभी यह बात समझने की है कि पहले जन्म के समय बच्चे की मृत्यु दर अधिक हुआ करती थी, लेकिन विज्ञान ने तरक्की कर ली है। इलाज की व्यवस्था हो गई है और अब उतनी संख्या में बच्चों की मृत्यु नहीं होती, इसलिए जन्म दर के समक्ष मृत्यु दर कम हो चुकी है। उस समय बच्चे कमजोर भी होते थे और उनकी मौत हो जाती थी, इसलिए लोग अधिक से अधिक बच्चे पैदा करते थे।

धीरे-धीरे बड़े मुश्किल से हमने जनसंख्या नियंत्रण किया है। जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए बहुत सी योजनाएं चलाई गई। प्रोत्साहन दिए गए और लोगों को समझाया भी गया कि आप ज्यादा आबादी रखोगे तो घर में ज्यादा बच्चे होंगे। इससे आपको तकलीफ होगी। सरकार ने कई जगहों पर इस पर रोक भी लगाई कि निकाय का चुनाव नहीं लड़ सकते पर अब नेता फिर इन लोगों को जनसंख्या बढ़ाने के लिए बरगला रहे हैं। पहले अशिक्षा के कारण गरीब आदमी को लगता था कि जितने ज्यादा बच्चे होंगे उतने ज्यादा काम करेंगे और उससे उतनी ही ज्यादा आय होगी पर हमने देखा कि जिसके घर में ज्यादा बच्चे थे, उसके घर में गरीबी भी उतनी ज्यादा थी। खाने वाले लोग अधिक थे और कमाने वाले कम थे। उनके पास रहने के लिए कमरे नहीं थे। हालांकि अब तो प्रधानमंत्री आवास बन रहे हैं। इसके बावजूद उतने आवास नहीं बन रहे, जितनी की आबादी है। उसमें भी दो ही कमरा बन रहे हैं। अगर उस घर में दो से ज्यादा बच्चे हुए तो उनकी पढ़ाई-लिखाई के लिए कौन सा कमरा होगा? माता-पिता के लिए कौन सा कमरा होगा?

मजेदार बात यह है कि चंद्रबाबू नायडू का एक बच्चा है और स्टालिन का भी एक बच्चा है। मगर, वह लोगों से कह रहे हैं कि लोकसभा परिसीमन के लिए 16 बच्चे हर महिलाओं को पैदा करने चाहिए तो यह सोचने पर मजबूर करते हैं। उनको यह लगता है कि जनसंख्या बढ़ेगी तो हमारे यहां लोकसभा की सीट भी बढ़ जाएगी। अब तो नई लोकसभा बन गई है, उसमें सीट भी बढ़ गई है। फिर भी आप कितने सांसदों को बैठाएंगे? यह एक प्रकार से लोगों को भ्रमित करने और मूल मुद्दों से हटाने वाली बात है। यह समझने की बात है कि यदि कोई दो से अधिक बच्चे पैदा करता है या 16 बच्चे पैदा करता है तो क्या कुछ होगा? वहां संसाधनों की लड़ाई तेज हो जाएगी। संसाधनों की लड़ाई कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाती है। कोर्ट-कचहरी में जितने भी मामले चल रहे हैं, वह परिवार के चल रहे हैं। जमीन के लिए चल रहे हैं। जमीन के बंटवारे के लिए चल रहे हैं। घर के बंटवारे के लिए चल रहे हैं। वहां कोई पड़ोसी के साथ झगड़ा नहीं है। वहां भाई-भाई के बीच में झगड़ा चल रहा है। देखा जा रहा है कि तीन पीढ़ी पहले जितनी जमीन थी, वह बंटकर बहुत छोटी हो गई। कभी हमें हिंदू-मुस्लिम करके लड़ाया जा रहा है तो कभी लोकसभा में सीट कम हो जाएंगे और कभी हम किसी और मुद्दे की बात पर भ्रमित किया जा रहा है। हम बताया जाता है कि बच्चे ईश्वर की संताने हैं। हमको उनको पैदा होने देनी चाहिए तो हम एक प्रकार से अपने देश के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। पूरी दुनिया के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, क्योंकि इस समय हिंदुस्तान के लोग पूरी दुनिया में फैले हुए हैं। अब बाकी देश भी बात करने लगे हैं कि जो लोग आपके देश में घुस आए हैं। उनके लिए भी पॉलिसी बना रहे हैं, ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिले, बीच में बेंगलुरु में यह बात कही गई कि स्थानीय लोगों को ही काम मिलना चाहिए। वहां की मल्टीनेशनल कंपनियों ने इसका प्रतिवाद किया और कहा कि ठीक है हम कंपनी बंद कर देंगे और वर्क फ्रॉम होम की व्यवस्था कर देते हैं। जैसे ही यह बात सरकार तक पहुंची सरकार रातों-रात के फैसला वापस ले लिया।

उत्तर भारत में ही लोकसभा की कुल 225 सीटें हैं। हिंदी पट्टी में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश और पांच सीटों वाले उत्तराखंड के साथ ही 40 सीटों वाला बिहार, 14 सीटों वाला झारखंड, 29 सीटों वाला मध्य प्रदेश, 11 सीटों वाला छत्तीसगढ़, 25 सीटों वाला राजस्थान, 10 सीटों वाला हरियाणा, चार सीटों वाला हिमाचल प्रदेश और सात सीटों वाला केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल है। इसके विपरीत दक्षिण भारत में पांच राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी भी आता है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25, तेलंगाना में 17, कर्नाटक में 28, तमिलनाडु में 39, केरल में 20 और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में एक लोकसभा सीट है। लोकसभा की वर्तमान स्ट्रेंथ 545 सदस्यों की है जो 1971 की जनगणना पर आधारित है। 1951 की जनगणना के मुताबिक देश की आबादी 36 करोड़ थी जो 1971 की जनगणना में 50 के पार 55 करोड़ तक पहुंच गई। तब सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठाने शुरू किए। दक्षिण के राज्य जनसंख्या के आधार पर परिसीमन में सीटें बढ़ाने को अपने साथ अन्याय बताते हुए इसका विरोध करते हैं। दक्षिण के राज्यों का तर्क है कि हमने जनसंख्या नियंत्रण में योगदान दिया और अगर इस आधार पर सीटें बढ़ाई गईं तो यह हमारे साथ अन्याय होगा। इस समय उत्तर के राज्यों में कुल 225 सीटें हैं और दक्षिण में 130। उनको चिंता है कि संसद में दक्षिण भारत के मुकाबले उत्तर भारत की सीटें अधिक बढ़ जाएंगी। लोकसभा में दक्षिण का वर्चस्व बढ़े या ना बढ़े निश्चित रूप से देश पर भार पड़ेगा।

देश की अधोसंरचना और इंफ्रास्ट्रक्चर जिसमे चाहे स्वास्थ्य की बात करें, चाहे शिक्षा की बात करें, सड़क की बात करें, परिवहन की बात करें, हम किसी भी विकास की बात करें। मौजूद आबादी के कारण हमारे देश की बहुत सारी योजनाएं इसलिए फेल हो रही है, क्योंकि आबादी का दबाव बहुत ज्यादा है। हमारे आबादी बहुत ज्यादा है। दुनिया के कई देश हैं, जहां प्रत्येक नागरिक का सम्मान है। उनकी सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाता है, मनुष्य की हर चीज का ख्याल रखा जाता है। उनको बुढ़ापे में अच्छी पेंशन मिलती है और सुविधाएं मिलती है। पर, हमारे देश में संभव नहीं है, क्योंकि बड़ी आबादी है और हमारे पास उसने संसाधन नहीं है। ऐसे में परिसीमन के नाम पर आबादी बढऩे की बात करना एक प्रकार से देश को गर्त में ले जाने वाली की बात है। यही वजह है कि वहां के लोगों ने अपने मुख्यमंत्री की बात को बहुत गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि मुख्यमंत्री तो केवल अपील करेंगे। बच्चा तो मां-बाप को पैदा करना और पालना है। इससे अपील के बाद एनडीए में भी जनसंख्या की नीति को लेकर विवाद बढ़ सकता है। एनडीए में जनसंख्या नीति को लेकर बात चल रही है, उसमें चंद्रबाबू नायडू की बात कितनी रखी जाएगी या समझी जाएगी। मगर आंध्र के लोग ही चंद्रबाबू नायडू को खारिज कर देंगे।

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