Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – फिर आया मौसम चुनाव का 

Editor-in-Chief

-सुभाष मिश्र

एक बार फिर चुनाव का मौसम आ गया है। इस बार चुनाव दो राज्यों महाराष्ट्र और झारखंड की विधानसभाओं का हो रहा है। अभी थोड़े दिन पहले हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव हुए। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनाव में दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस के साथ दूसरी पार्टियां भी बहुत सक्रिय रही। चुनाव में मीडिया का भी अहम रोल है। आजकल प्रिंट मीडिया के अलावा सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भी खासी भूमिका है। जब किसी राज्य में चुनाव होते हैं तो उन चुनावी राज्यों में जाकर प्रधानमंत्री और विपक्ष के सारे नेता भाषण देते हैं। इन चुनावों में वे जो कुछ भी कहते हैं उसे पूरा देश सुनता है। चुनाव भले ही किसी एक राज्य में हो, लेकिन उसके बहाने पूरे देश में कई तरह की बात होती है। चुनावी भाषण में नेताओं के कई तरह के बोल-वचन होते हैं। ऐसी बहुत सारी बातें भी कही जाती है, जिससे कई बार मन में खटास पैदा होती है। लोगों को लगता है कि नेता क्या सोच रहे हैं? यह राजनीतिक दल चुनाव में किस स्तर तक जा रहे हैं? अब चुनाव महाराष्ट्र और झारखंड में है। महाराष्ट्र देश का सबसे विकसित राज्य है, जहां 288 सीटों के लिए चुनाव होना है। महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में शिवसेना और बीजेपी ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। बाद में मुख्यमंत्री के सवाल पर शिवसेना से मतभेद हो गया। शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। बाद में शिवसेना दो भागों में बट गई। एक भाग टूटकर बीजेपी के साथ चला गया और उसने सरकार बना ली। बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे की शिवसेना ठगे से खड़े रह गए, क्योंकि उनके विधायक बड़ी संख्या में टूटकर उनकी ही पार्टी के नेता एकनाथ शिंदे के साथ चले गए। ऐसे में शिवसेना का चुनाव चिन्ह भी चला गया। इससे बाद एनसीपी भी दो भाग में बंट गई। शरद पवार के भतीजे अजित पवार एनसीपी को तोड़कर अलग हो गए और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार में शामिल हो गए। जब लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता को यह बात अच्छी नहीं लगी थी। लोकसभा चुनाव के दौरान शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना और कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा तो उनको अच्छी सफलता मिली। बीजेपी के गठबंधन को बड़ा झटका लगा। इससे कांग्रेस और दूसरे दलों के साथ गठबंधन का मनोबल बढ़ा। महाराष्ट्र में बहुत सारी घटनाएं हुई। हाल में ही बाबा सिद्दीकी की जिस तरह से हत्या हुई, वह मामला गर्म है। महाराष्ट्र देश की राजनीति में बहुत प्रमुखता से बना रहता है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या भी बड़ा मुद्दा है। महाराष्ट्र राजनीतिक रूप से बहुत जागरुक है। वहां गठबंधन की सरकार चलती रही है। कभी बीजेपी गठबंधन की सरकार आती है तो कभी कांग्रेस गठबंधन की सरकार आ जाती है। अब देखना होगा कि इस बार विधानसभा का चुनाव किस तरह से होते हैं और उसका परिणाम क्या होता है।
महाराष्ट्र में इस बार बीजेपी की कोशिश रहेगी कि किसी प्रकार से सत्ता हासिल करें। अभी चर्चा इस बात है कि बीजेपी और शिवसेना शिंदे के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर अनबन चल रही है। इसी तरह की अनबन कांग्रेस और शिवसेना उद्भव गुट गठबंधन के साथ भी चल रही है। जहां गठबंधन होता है, वहां सीटों को लेकर दलों में आपस में पटती नहीं है। इसका उदाहरण हाल में ही हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। कांग्रेस को इस बार भरोसा था कि वह सरकार बना लेगी। हरियाणा में आम आदमी पार्टी भी हिस्सेदारी चाहती थी, क्योंकि इंडिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी भी हिस्सा है और हरियाणा में थोड़ा प्रभाव उसका भी है लेकिन कांग्रेस ने हरियाणा में आम आदमी पार्टी को किसी तरह की तवज्जो नहीं दी। यह अलग बात है कि चुनाव परिणाम में आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन आम आदमी पार्टी ने वोट काटा। महत्वपूर्ण बात यह है कि एक तरफ विपक्षी एकता की बात होती है तो दूसरी तरफ चुनाव में सीटों के बंटवारे की बात पर राजनीतिक दल आपस में लड़ पड़ते हैं। अब दूसरा चुनावी राज्य झारखंड है। झारखंड प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। यहां बड़ी मात्रा में कोयला निकाला जाता है। बड़े-बड़े उद्योगपतियों की नजर भी झारखंड पर रहती है। झारखंड की सीमा छत्तीसगढ़ से लगी हुई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा क्षेत्रीय दल है। झारखंड में शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन का परिवार सक्रिय है। इनका वर्चस्व भी है। यहां पर भाजपा के साथ उनकी सीधी लड़ाई है। पिछले दिनों हेमंत सोरेन को एक मामले में जेल भी जाना पड़ा, तब उन्होंने चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बना दिया था। लेकिन हेमंत सोरेन जैसे ही जेल से बाहर आए तो चंपई सोरेन से इस्तीफा देने के लिए कहा। तब चंपई सोरेन की महत्वाकांक्षा भी जाग गई और वह नाराज हो गए। अब वह बीजेपी के साथ हैं। निश्चित रूप से झारखंड चुनाव में इसका भी असर देखने को मिलेगा। झारखंड में बीजेपी ने भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बना रखा है। बीजेपी को लगता है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के बड़े नेता भ्रष्टाचार में लिप्त है। इन दो राज्यों में विधानसभा चुनाव के अलावा कुछ राज्यों में विधानसभा के उपचुनाव होने हैं तो दो लोकसभा के भी उपचुनाव होने हैं, जिसमें वायानाड और नांदेड़ शामिल है। इसी कड़ी में रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट भी खाली है, जो बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने और उनके इस्तीफे के कारण खाली हुई है। मध्य प्रदेश में दो विधानसभा विजयपुर और बुधनी में उपचुनाव होना है। झारखंड में पहले चरण में 13 नवंबर को चुनाव होना है, जबकि दूसरे चरण में झारखंड और महाराष्ट्र में 20 नवंबर को चुनाव होना है। इस विधानसभा और लोकसभा के उपचुनाव का परिणाम 23 नवंबर को आ जाएगा। देश में पूरी तरह से चुनाव का एक माहौल बन गया है, इसकी घोषणा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने की है।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि महाराष्ट्र में एक चरण में चुनाव होगा। 20 नवंबर को महाराष्ट्र में वोट डाले जाएंगे। वहीं झारखंड में दो चरणों में चुनाव होगा। पहले चरण पहले चरण में 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और दूसरे चरण में 20 नवंबर को डाले जाएंगे। इन दोनों राज्यों के नतीजे एक साथ 23 नवंबर को आएंगे। महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीट हैं और किसी भी पार्टी को बहुमत के लिए 145 सीट चाहिए। वहीं झारखंड की बात करें तो यहां भी विधानसभा में 81 सीट हैं और सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 41 सीट होनी चाहिए। इसके अलावा 48 विधानसभा और दो लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। 13 नवंबर को 47 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे। वहीं केदारनाथ विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 20 नवंबर को, इसके अलावा दो लोकसभा सीटों वायानाड और नांदेड़ में भी उपचुनाव होना है। केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर 13 नवंबर को मतदान होगा, जबकि महाराष्ट्र की नांदेड विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को मतदान को होगा और सभी उपचुनाव के नतीजे भी 23 नवंबर को जारी कर दिए जाएंगे।
अब देश में फिर नेताओं के तरह-तरह के भाषण सुनने को मिलेंगे और उन राज्यों के बारे में जानकारी भी मिलेगी, जहां चुनाव हो रहे हैं। चुनाव के बहाने राजनीतिक दल और उनके नेता एक-दूसरे पर हमला करेंगे। चुनावी भाषणों के तीर चलेंगे। महाराष्ट्र में गठबंधन की राजनीति है तो निश्चित रूप से गठबंधन को लेकर भी बात होगी। अभी हाल में ही देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी ने रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें वन नेशन-वन इलेक्शन की वकालत की गई थी। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक देश-एक चुनाव के लिए समिति बनी थी। समिति की रिपोर्ट सौंपने के बाद यह तय हुआ कि 2029 में एक देश-एक चुनाव का नियम लागू किया जाएगा। अभी हम देख रहे हैं कि अलग-अलग राज्यों में चुनाव हुए हैं, जहां की तारीख आ गई है, वहां चुनाव हो रहे हैं। यह सिलसिला चलता रहेगा। 2024 में जो चुनाव हुए हैं, वहां 2029 में 5 साल हो जाएंगे या थोड़ा आगे पीछे रहेगा, पर इसके बाद जिन राज्यों में चुनाव होंगे, वहां क्या स्थिति बनेगी यह देखना होगा? क्योंकि दिल्ली में चुनाव होना है। दिल्ली के चुनाव में किस तरह की स्थिति बनती है? बाकी राज्यों में जहां कहीं भी चुनाव होना बाकी है, वहां किस तरह की स्थिति बनती है? क्या देश गठबंधन की राजनीति में जाएगा? क्या बड़े दलों को अब गठबंधन के साथ ही सरकार बनानी पड़ेगी? बीजेपी या कांग्रेस कभी उठेगे और अपने बूते सरकार बना सकते हैं। अगर हम छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और यूपी की बात करें तो बहुत सारे राज्य ऐसे हैं, जहां भाजपा की अपनी सरकार है। वहां किसी से कोई गठबंधन नहीं है लेकिन, केंद्र में तीसरी बार मोदी सरकार बनी है तो वह गठबंधन की सरकार है। गठबंधन में बहुत सारी सीटों और मंत्री पद के साथ समझौते करने पड़ते हैं।
देश की राजनीति में इस समय चुनाव का माहौल है। इस चुनाव में बीजेपी की राह थोड़ी आसान भी है, क्योंकि हरियाणा में उसने तीसरी बार जीत दर्ज की है। सारे एग्जिट पोल को फेल करके जब परिणाम नाम आए तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी हरियाणा में तीसरी बार सता में लौटेगी मगर, चुनाव परिणाम ने बता दिया कि भाजपा तीसरी बार सरकार में आ गई है। भाजपा हर समय चुनाव प्रबंधन को लेकर सतर्क रहती है, उसके साथ आरएसएस जैसा कैडर है, जो लगातार जमीनी स्तर पर काम करता है। जबकि बाकी दल केवल चुनाव के समय सक्रिय होते हैं। कई बार उनके मतभेद सामने दिखाई देते हैं। हरियाणा की बात लोगों को समझ में आ गई। कांग्रेस जीतते-जीतते हार गई। इसका कारण शैलजा और हुड्डा के बीच के मतभेद थे। कांग्रेस नेताओं में आपसी मतभेद था। दूसरी तरफ भाजपा एकजुट होकर और केंद्रीय नेतृत्व के निर्देशन में चुनाव लड़ रही थी। उसके पास बहुत सारी ऐसी चीज थी, उसे हम चुनावी स्टडी कहते हैं। निश्चित रूप से महाराष्ट्र में भी यह बात होगी और झारखंड में होगी। यही बात विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव में भी देखने को मिलेगी। वायनाड की लोकसभा सीट पर सबकी नजर रहेगी, क्योंकि कांग्रेस नेता और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उस सीट से जीते थे। अब चर्चा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा वहां से चुनाव लड़ सकती है। वायनाड का चुनाव एक राष्ट्रीय चुनाव की तरह होगा, क्योंकि भाजपा चाहेगी कि गांधी परिवार को इस बार वायनाड में शिकस्त दी जाए और बताएं कि वायानाड कांग्रेस की परंपरागत सीट नहीं है। जिस तरह अमेठी में एक बार बीजेपी ने चुनाव जीत कर बताया था कि भले ही इस बार स्मृति ईरानी चुनाव हार गई और गांधी परिवार के

करीबी लोकसभा चुनाव जीत गए। इस समय कहने को तो दो राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही बाकी राज्यों के विधानसभाओं के उपचुनाव भी हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भले ही एक विधानसभा सीट पर चुनाव होना है। मध्य प्रदेश में दो विधानसभा सीट पर चुनाव होना है। उत्तर प्रदेश की कुछ विधानसभा सीटों पर चुनाव होना है या दूसरे राज्यों में विधानसभा उपचुनाव होना है। इसकी गूंज पूरे देश में सुनाई देगी। मीडिया बताएगा कि यह पूरे देश का चुनाव है और इस चुनाव के दौरान नेता अलग-अलग मंचों से बात करेंगे। इस दौरान निश्चित रूप से वह सारी बातें होंगी जो एक चुनाव में होती है। चाहे वह जातिगत जनगणना की बात हो, चाहे धार्मिक अस्मिता की बात हो, चाहे धर्म-संप्रदाय की बात हो। चुनाव के बहाने राजनीतिक दल के नेताओं द्वारा बहुत सारा जहर फिर उगलेगें। बहुत सारे आश्वासन दिए जाएंगे और यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि हम सरकार में आए तो यह करेंगे और हम आए तो वह करेंगे। यह भी बताएंगे कि हमने क्या-क्या किया? फिर ईवीएम पर भी सवाल उठेंगे जो बातें थोड़े दिन के लिए खत्म हो गए थे, वह फिर से उभरकर सामने आएंगे तो देश को एक बार फिर से बहुत सी चुनावी भाषणबाजी सुनने को मिलेगी। जुमले सुनने को मिलेंगे। बहुत सारे आश्वासन मिलेंगे और बहुत सारी गारंटी मिलेगी।

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