Editor-in-chief सुभाष मिश्र की कलम से – विचारधारा, संगठन और सत्ता की रणनीति

Editor-in-chief सुभाष मिश्र

भाजपा का चिंतन शिविर मैनपाट

-सुभाष मिश्र

भाजपा से जुड़े नेता अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि उनकी पार्टी बारहों महीने चौबीसों घंटे चुनाव के लिए तैयार रहती है। चुनाव बूथ पर्ची से लेकर मतदाता सूची तक पर उनकी पूरी पकड़ रहती है। बूथ कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष स्तर का नेतृत्व समर्पित भाव से काम करता है। यही वजह है कि भाजपा बाक़ी पार्टियों से अलग दिखती है। उसके अपने कार्यकर्ता, नेता तथा अनुषांगिक संगठन सब मिलकर एक ही लक्ष्य के लिए लामबंद दिखते हैं। भारतीय जनता पार्टी जिसकी उत्पत्ति भारतीय जनसंघ में है, जिसकी स्थापना 1951 में भारतीय राजनीतिज्ञ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की थी, तब से अब तक 1977 में बहुत सारे दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी के रूप में सत्ता से कांग्रेस को अलग करके फिर 1980 मे जनता पाटी के भंग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी के रूप में अपनी पहचान बनाकर 1984 के आम चुनाव में दो सीटों से अपनी नई राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाली भाजपा ने 1998 में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार बनाई । 2004 में एक बार फिर कांग्रेस के सत्ता में क़ाबिज़ होने के बाद 2014 से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी के साथ केन्द्र और बहुत से राज्यों में क़ाबिज़ है । 2047 तक विकसित भारत का विजन लेकर काम करने वाली भाजपा अपना परचम फहराये रखना चाहती है। भाजपा चिंतन शिविर, बौद्धिक और कार्यकर्ताओं के अलग-अलग प्रशिक्षण और सोशल मीडिया के ज़रिए लगातार अपनी उपस्थिति सब जगह दर्ज कराती है। इसी शृंखला में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का तीन दिवसीय चिंतन शिविर 7 से 9 जुलाई 2025 तक छत्तीसगढ़ के मैनपाट, अंबिकापुर में आयोजित हो रहा है। इस शिविर में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा, मुख्यमंत्री विष्णु देव साय, वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी, और अन्य वरिष्ठ नेता हिस्सा ले रहे हैं। चिंतन शिविर राजनीतिक दलों के लिए कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करने, संगठन को मजबूत करने और नीति निर्धारण का एक महत्वपूर्ण मंच होते हैं लेकिन आज के दौर में जब विचारधारा की जगह सत्ता की राजनीति और गठबंधन सरकारें हावी हैं, ऐसे शिविरों का वास्तविक उद्देश्य और प्रभाव क्या है? यह लेख मैनपाट चिंतन शिविर के उद्देश्यों, परिणामों और व्यापक राजनीतिक संदर्भ का तथ्यात्मक विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

मैनपाट, सरगुजा जिले में स्थित एक शांत और प्राकृतिक स्थल, को भाजपा ने अपने तीन दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के लिए चुना। इस शिविर में छत्तीसगढ़ के सांसद, विधायक और संगठन के प्रमुख पदाधिकारी हिस्सा ले रहे हैं। शिविर का आयोजन शैला रिसॉर्ट और करमा रिसॉर्ट में किया जा रहा है और स्थानीय प्रशासन ने व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक तैयारियाँ की है।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री पवन साय और वित्त मंत्री ओ.पी. चौधरी ने 2 जुलाई 2025 को मैनपाट पहुँचकर तैयारियों की समीक्षा की। शिविर के प्रमुख उद्देश्य कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों को पार्टी की विचारधारा, संगठनात्मक कार्यशैली और सेवा संकल्प को और प्रभावी बनाने के लिए प्रशिक्षण। आगामी स्थानीय निकाय चुनावों और 2028 विधानसभा चुनावों के लिए रणनीति तैयार करना। विचारधारा को केंद्र में रखते हुए कार्यकर्ताओं में अनुशासन और एकजुटता को बढ़ावा देना।हाल के नगर निकाय चुनावों में भाजपा की शानदार जीत (10 में से 10 नगर निगमों में जीत) को भुनाने और सत्ता में निरंतरता सुनिश्चित करने की योजना है।

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सांसदों और विधायकों को पत्र लिखकर इस शिविर में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रेरित किया। चिंतन शिविर या प्रशिक्षण वर्ग भारतीय राजनीति में नया नहीं है। भाजपा, कांग्रेस, और अन्य दल समय-समय पर ऐसे आयोजन करते हैं। भाजपा ने मध्य प्रदेश में जून 2025 में पचमढ़ी में अमित शाह ने एक प्रशिक्षण शिविर का उद्घाटन किया, जिसमें नेताओं के विवादास्पद बयानों को नियंत्रित करने पर जोर दिया गया।

ऐसे चिंतन शिविर बाक़ी राजनीतिक पार्टियां भी समय समय पर आयोजित करती रहती हैं। 2022 में उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर आयोजित हुआ, जिसमें संगठन सुधार और युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने की रणनीति बनी। आम आदमी पार्टी (आप) ने दिल्ली और पंजाब में आप ने कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविरों के जरिए अपनी नीतियों को जनता तक पहुँचाने पर ध्यान केंद्रित किया। ये शिविर न केवल संगठन को मजबूत करते हैं, बल्कि कार्यकर्ताओं में उत्साह और नेतृत्व में स्पष्टता लाने का भी प्रयास करते हैं।

आज के राजनीतिक परिदृश्य में विचारधारा की प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे हैं। गठबंधन सरकारें, जो कभी वैचारिक विरोधी दलों के बीच असंभव मानी जाती थीं, अब आम हो गई हैं। देश में अब गठबंधन की राजनीति स्वीकार है। सत्ता में बने रहने के लिए सबका साथ, सबका विकास ज़रूरी है। राजनीति विचारधारा अलग-अलग होते हुए भी वक़्त के अनुसार गठबंधन बनते हैं । इस पार्टी से उस पार्टी में आवाजाही बनी रहती है। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और कांग्रेस-एनसीपी का महाविकास अघाड़ी गठबंधन, जो वैचारिक रूप से विपरीत माने जाते थे।बिहार में जद(यू) और राजद का गठबंधन जो पहले एक-दूसरे के कट्टर विरोधी थे। संभव है कि आगामी बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल और फिर लोकसभा के चुनाव को देखते हुए मैनपाट का चिंतन शिविर केवल विचारधारा को मजबूत करने का मंच नहीं, बल्कि सत्ता को बनाए रखने और विस्तार करने की रणनीति का हिस्सा है। भाजपा ने 2025 के नगर निकाय चुनावों में अंबिकापुर सहित सभी 10 नगर निगमों में जीत हासिल की, जिसने पार्टी का मनोबल बढ़ाया है। यह शिविर इस जीत को और भुनाने और संगठन को आगामी चुनौतियों के लिए तैयार करने का प्रयास है।

मैनपाट चिंतन शिविर से जिन परिणामों की उम्मीद की जा रही है उनमें कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों के बीच बेहतर समन्वय और अनुशासन। स्थानीय निकाय चुनावों और 2028 विधानसभा चुनावों के लिए रोडमैप तैयार करना। भाजपा की हिंदुत्व, विकास, और राष्ट्रवाद की विचारधारा को जनता तक पहुँचाने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय सरकार की उपलब्धियों को उजागर करना और विपक्ष (मुख्य रूप से कांग्रेस) को कमजोर करने की रणनीति है।

हालाँकि, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह शिविर केवल प्रतीकात्मक है या वास्तव में संगठनात्मक और वैचारिक बदलाव ला पाता है।

कई विश्लेषकों का मानना है कि चिंतन शिविर अक्सर दिखावटी होते हैं और वास्तविक समस्याओं जैसे कार्यकर्ताओं की नाराजगी या नीतिगत असफलताओं को संबोधित नहीं करते। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने हाल ही में भाजपा पर हमला बोला, जिसमें उसने आरोप लगाया कि भाजपा केवल सत्ता के लिए काम कर रही है, न कि जनता के लिए। इसके अलावा गठबंधन की राजनीति और विचारधारा से समझौता करने की प्रवृत्ति ने भाजपा के कुछ कट्टर समर्थकों में असंतोष पैदा किया है। मैनपाट शिविर में इन आलोचनाओं को संबोधित करने की कोशिश हो सकती है।

मैनपाट चिंतन शिविर भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें वह अपनी संगठनात्मक ताकत को बढ़ाने, विचारधारा को मजबूत करने और सत्ता की रणनीति को और पुख्ता करने की कोशिश कर रही है लेकिन आज के दौर में, जब गठबंधन और सत्ता की राजनीति विचारधारा पर भारी पड़ रही है, यह शिविर कितना प्रभावी होगा, यह समय ही बताएगा। छत्तीसगढ़ में भाजपा की हालिया सफलताएँ निश्चित रूप से पार्टी को आत्मविश्वास दे रही है, लेकिन संगठन और जनता के बीच विश्वास बनाए रखना इस शिविर की असली चुनौती होगी।