Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सेना को खुली छूट, भारत की भावना का प्रकटीकरण

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

युद्ध का मैदान हो या फिर सीमा की सुरक्षा ये काम सेना का है पर हमारे देश में सेना को वैसी खुली छूट नहीं है जैसी पाकिस्तान में। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेना को छूट देते हुए पाकिस्तान और विशेषकर आतंकवादी गतिविधियों से कैसे निपटना है, यह तय करने कहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 अप्रैल 2025 को नई दिल्ली में एक बैठक के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, एनएसए अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह और सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी की मौजूदगी में कहा कि आतंकवाद को करारा झटका देना भारत का राष्ट्रीय संकल्प है। उन्होंने कहा कि पिछले सप्ताह पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारतीय सशस्त्र बलों को भारत की प्रतिक्रिया के तरीके, लक्ष्य और समय पर निर्णय लेने की पूरी स्वतंत्रता है। इस हमले में 26 लोग मारे गये जिनमें ज़्यादातर सैलानी थे। इस घटना के बाद भारत ने पॉकिस्तान के खिलाफ बहुत से प्रतिबंध लगाते हुए कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है। जवाब में पाकिस्तान की ओर से भी कुछ प्रतिबंध जिसमें वीज़ा रद्द करना, शिमला समझौता जोडऩे जैसे निर्णय शमिल हैं।
पहलगाम हमले के बाद से ही केन्द्र सरकार से लोग कड़े कदम उठाने की बात कह रहे हैं। दिल्ली में सीसीएस, सीसीपीए, सीसीईए और कैबिनेट सहित चार उच्च-स्तरीय बैठकों का दौर चला। प्रधानमंत्री मोदी ने रक्षा मंत्री, एनएसए, सीडीएस और तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आतंकवाद को करारा जवाब देना हमारा दृढ़ राष्ट्रीय संकल्प है। प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय सैन्य बलों की पेशेवर क्षमताओं में पूर्ण विश्वास व्यक्त किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी जवाबी कार्रवाई का तरीका क्या हो, इसके टारगेट्स कौन से हो और इसका समय क्या हो, इस प्रकार के ऑपरेशनल निर्णय लेने के लिए सैन्य बलों को खुली छूट है।
पाकिस्तान में तो सेना ने बहुत पहले से खुली छूट ले रखी है यही वजह है कि सेना प्रमुख जियाऊल हक, जनरल परवेज़ मुशर्रफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यानी वजीरे आज़म बने थे। अभी भी पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर भी ऐसे बयान दे रहे हैं जो भड़काऊ हैं। वहां सेना की खुफिय़ा एजेंसियों के साथ मिली भगत है कोई आश्चर्य नहीं किसी दिन कट्टरपंथी ताक़तों से मिलकर वो भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बन बैठें। हमारे देश में सेना प्रमुख कभी लाईम लाइट में नहीं रहते ना ही कोई बयानबाज़ी करते हैं। भारत की ओर से बयान रक्षामंत्री या प्रधानमंत्री की ओर से ही आयें यह लोकतंत्र की मर्यादा के अनुरूप है।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत हुई और 20 से अधिक लोग घायल हुए। यह 2008 के मुंबई हमलों के बाद भारत का सबसे घातक आतंकी हमला था। द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ), जो लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी है, ने शुरू में हमले की जिम्मेदारी ली, लेकिन बाद में इसे वापस ले लिया। पांच आतंकियों में से दो पाकिस्तानी नागरिक थे और बरामद हथियारों पर पाकिस्तानी निशान पाए गए। इस घटना ने भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया।
अधिकांश पीडि़त हिंदू पर्यटक थे जिनमें एक नवविवाहित नौसेना लेफ्टिनेंट और एक ईसाई नागरिक शामिल थे, जिन्हें उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर निशाना बनाया गया। 24 अप्रैल को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें सभी दलों ने एक स्वर में आतंकवाद की निंदा की। हालांकि, विपक्ष ने सरकार की कश्मीर नीति और खुफिया विफलता पर सवाल उठाए। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जांच शुरू की, और कश्मीर में आतंकवादियों के घरों को ध्वस्त किया गया। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के लिए कश्मीर का दौरा किया।

भारत ने इस हमले को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का स्पष्ट उदाहरण माना और इसे कश्मीर में शांति और पर्यटन को नष्ट करने की साजिश बताया। भारत ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को जिम्मेदार ठहराया, जिन्हें पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का समर्थन प्राप्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘कायरतापूर्णÓ बताया और दोषियों को कठोर सजा देने का वादा किया। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने 25 देशों के राजदूतों को पाकिस्तान की संलिप्तता के सबूत पेश किए, जिसमें पाकिस्तानी हथियार और आतंकियों की पहचान शामिल थी।
भारत ने कूटनीतिक और आर्थिक कदम उठाते हुए सिंधु जल संधि निलंबित कर दी जो पाकिस्तान की कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। अटारी-वाघा सीमा बंद कर व्यापार और आवागमन पर रोक लगा दी। पाकिस्तानी वीजा निलंबन करते हुए दीर्घकालिक वीजा (एलटीवी) वाले हिंदू शरणार्थियों को छूट दी गई। इस घटना के बाद भारत का लक्ष्य पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना है। सबूतों को अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों के सामने पेश कर भारत जवाबी कार्रवाई के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचना चाहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत 2019 के बालाकोट हवाई हमले जैसी लक्षित सैन्य कार्रवाई कर सकता है, ताकि बिना पूर्ण युद्ध के कड़ा संदेश दिया जाए। इस घटना के बाद सार्वजनिक और राजनीतिक भावना का जो प्रकटीकरण हो रहा है उसमें सभी भारतीय चाहते हैं की इस घटना को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अंजाम देने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो। पहलगाम हमले से भारत में व्यापक आक्रोश फैला, और सभी दलों ने एकजुटता दिखाई। राहुल गांधी और ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने हमले की निंदा की । हालांकि, समाजवादी पार्टी के विधायक जय प्रकाश जैसे कुछ नेताओं ने सुरक्षा चूक पर सवाल उठाए। शाहरुख खान जैसे बॉलीवुड हस्तियों ने राष्ट्रीय एकता की अपील की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की ताकि राष्ट्रीय एकता का प्रदर्शन हो। राहुल गांधी ने घायलों से मिलने कश्मीर का दौरा किया और सरकार की कश्मीर नीति को ‘खोखले दावोंÓ पर आधारित बताया, लेकिन आतंकवाद के खिलाफ सरकार को समर्थन भी दिया। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने पाकिस्तान की आलोचना की और इसे ‘आधी सदी पीछेÓ बताया। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने खुफिया विफलता पर सवाल उठाए, लेकिन सरकार के कदमों का समर्थन किया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हमले को ‘कश्मीरियत के खिलाफÓ बताया और कहा कि उनकी सरकार इस त्रासदी का इस्तेमाल राज्य का दर्जा मांगने के लिए नहीं करेगी। उन्होंने एक विशेष विधानसभा सत्र में आतंकवाद के खिलाफ जनता के सहयोग की अपील की।
इसके ठीक उल्ट पाकिस्तान ने हमले में किसी भी तरह की संलिप्तता से इनकार किया और इसे भारत द्वारा ‘फॉल्स फ्लैग ऑपरेशनÓ करार दिया। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया और भारत के आरोपों को ‘बेबुनियादÓ कहा। हालांकि, स्काई न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में आसिफ ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान का लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के साथ ऐतिहासिक संबंध रहा है, जिसे उन्होंने अमेरिका और पश्चिम के लिए ‘गंदा कामÓ बताया। पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने हमले के समय कश्मीर को पाकिस्तान की ‘जुगलर वेनÓ (जीवन रेखा) बताया, जो उकसावे वाला था, खासकर जब यह हमला अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वांस की भारत यात्रा के दौरान हुआ। पाकिस्तान ने जवाबी कदम उठाते हुए जो निर्णय लिए हैं उनमें शिमला समझौते को निलंबित किया, जिससे कूटनीतिक तनाव बढ़ा। भारतीय उड़ानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद कर दिया और सिंधु जल संधि के निलंबन को युद्ध का कारण बताते हुए चेतावनी भी दी। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने भारत पर हमले को आंतरिक मुद्दों से ध्यान भटकाने का आरोप लगाया और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भारत के दावों की जांच की मांग की। पाकिस्तान का लक्ष्य दोष से बचना, अपनी पीडि़त की छबि बनाए रखना और भारत को आक्रामक के रूप में चित्रित कर घरेलू समर्थन जुटाना है। वह भारत के वैश्विक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए चीन के कूटनीतिक समर्थन पर निर्भर है। भारत के पास पाकिस्तान की संलिप्तता के पर्याप्त सबूत हैं। बरामद हथियारों पर पाकिस्तानी निशान और दो पाकिस्तानी आतंकियों की पहचान प्रत्यक्ष संलिप्तता की ओर इशारा करती है। हमले का मास्टरमाइंड, लश्कर-ए-तैयबा का उपप्रमुख सैफुल्लाह खालिद, कथित तौर पर पाकिस्तान में है। पाकिस्तान की आईएसआई का लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों से संबंध रहा है जो 2008 के मुंबई हमलों और 2019 के पुलवामा हमले के लिए जिम्मेदार थे। आसिफ का पिछले आतंकी संबंधों का स्वीकार करना पाकिस्तान के इनकार को कमजोर करता है। पाकिस्तान का अपने विरोधाभास भी जगज़ाहिर हैं। टीआरएफ के दावे को वापस लेना और आसिफ के परस्पर विरोधी बयान जवाबदेही से बचने की कोशिश को उजागर करते है। जनरल मुनीर का हमले से पहले का उकसावे वाला बयान कश्मीर में पर्यटन और स्थिरता को बाधित करने की मंशा को दर्शाता है, खासकर अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद से। भारत के कूटनीतिक प्रयासों को सऊदी अरब, अमेरिका और यहां तक कि चीन जैसे देशों का समर्थन मिला है, जिन्होंने हमले की निंदा की। हालांकि, सिंधु जल संधि का निलंबन और सीमा व्यापार पर रोक सैन्य संघर्ष को बढ़ा सकता है जिसे पाकिस्तान ने ‘युद्ध का कार्यÓ बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि परमाणु निरोध और अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण पूर्ण युद्ध की संभावना कम है, लेकिन लक्षित हमले या आर्थिक प्रतिबंध पाकिस्तान को और अलग-थलग कर सकते हैं, जो पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
हमले ने भारत में कश्मीरी और मुस्लिम विरोधी भावनाओं को बढ़ाया है, उत्तराखंड जैसे राज्यों में कश्मीरी छात्रों पर हमले हुए हैं। कश्मीर का पर्यटन उद्योग ध्वस्त हो गया है, 80 फीसदी बुकिंग रद्द हुई है। स्थानीय कश्मीरियों, जिनमें मीरवाइज उमर फारूक जैसे नेता शामिल हैं, ने हमले को ‘कश्मीरियत पर हमलाÓ बताकर इसकी निंदा की।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय विशेष रूप से सऊदी अरब और चीन जैसे देशों को, पाकिस्तान पर अपनी आतंकी संरचना को खत्म करने का दबाव बनाना चाहिए। साथ ही, भारत को सांप्रदायिक तनाव और सुरक्षा चूक जैसे आंतरिक मुद्दों को संबोधित करना होगा ताकि कश्मीरियों का और अलगाव न हो। युद्ध कोई समाधान नहीं है—दोनों देशों को, कितना ही मुश्किल क्यों न हो, बातचीत को प्राथमिकता देनी होगी। पहलगाम की त्रासदी इस कड़वी सच्चाई की याद दिलाती है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को राज्य नीति के रूप में छोड़ नहीं देता और भारत अपनी आंतरिक एकता को मजबूत नहीं करता, कश्मीर में शांति एक सपना ही रहेगी। पहलगाम आतंकी हमला केवल एक सुरक्षा विफलता नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक और सामाजिक एकता के लिए एक गंभीर चुनौती है। केंद्र सरकार का पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख और विपक्ष का समर्थन राष्ट्रीय एकता को दर्शाता है, लेकिन खुफिया विफलता और कश्मीर नीति पर सवाल अनुत्तरित हैं। सांप्रदायिक तनाव और कश्मीरी नागरिकों पर हमले चिंताजनक हैं, जो राष्ट्रीय एकता को कमजोर कर सकते हैं। उमर अब्दुल्ला का संयमित रुख और स्थानीय कश्मीरियों का विरोध कश्मीरियत की भावना को मजबूत करता है। सरकार को आतंकवाद के खिलाफ कठोर कार्रवाई के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव और कश्मीर की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। यह समय सियासत से ऊपर उठकर एकजुटता दिखाने का है ताकि कश्मीर फिर से शांति और पर्यटन का स्वर्ग बन सके।

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