-सुभाष मिश्र
लंबे समय से छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच चला आ रहा इंद्रावती जल विवाद का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा हो गया है। भाजपा शासित दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री और अधिकारियों ने केंद्र सरकार की निगरानी में लंबे समय से चल रही कवायद को सार्थक नतीजे तक पहुंचाया है। इंद्रावती की धारा को दो भागों में विभक्त करने वाले जोरा नाला के जल वितरण को लेकर यह विवाद था। अब दोनों राज्यों को बराबरी के अनुपात में पानी मिलेगा।
इन्द्रावती नदी जल विवाद छत्तीसगढ़ और ओडिशा (उड़ीसा) के बीच वर्षो से एक जटिल मुद्दा है, जो मुख्य रूप से जल संसाधनों के उपयोग, बांध निर्माण और जल बंटवारे को लेकर उत्पन्न हुआ था। इन्द्रावती नदी, जो गोदावरी की प्रमुख सहायक नदी है, बस्तर (छत्तीसगढ़) की जीवनदायिनी मानी जाती है। इसका उद्गम ओडिशा के कालाहांडी जिले में होता है, लेकिन यह छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र से होकर बहती है और आंध्र प्रदेश में गोदावरी में मिलती है।
विवाद के प्रमुख बिंदु में दोनों राज्यों के बीच जल उपयोग और बांध निर्माण प्रमुख मुद्दा रहा है। ओडिशा ने इन्द्रावती नदी पर कई परियोजनाएं शुरू की है, जैसे ऊपरी इन्द्रावती परियोजना, जिसमें बांध और नहरें बनाई गई हैं। इन परियोजनाओं से ओडिशा अपने क्षेत्र में सिंचाई और जल प्रबंधन को बढ़ावा दे रहा था। छत्तीसगढ़ का दावा था कि इन परियोजनाओं के कारण बस्तर क्षेत्र में इन्द्रावती नदी का जल प्रवाह कम हो रहा है जिससे वहां के किसानों, आदिवासियों और स्थानीय समुदायों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। खासकर सूखे के मौसम में यह समस्या गंभीर हो जाती है। छत्तीसगढ़ का आरोप था कि ओडिशा ने बिना उसकी सहमति के जल परियोजनाएं शुरू कीं, जो अंतरराज्यीय जल समझौतों का उल्लंघन है।
इन्द्रावती नदी पर बांधों के निर्माण से नदी का प्राकृतिक प्रवाह प्रभावित हुआ है जिसका असर बस्तर के चित्रकोट जलप्रपात जैसे प्राकृतिक स्थलों और जैव विविधता पर भी पड़ा है। दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर कोई स्पष्ट समझौता नहीं हो पाया था। छत्तीसगढ़ का कहना है कि उसे नदी के जल का उचित हिस्सा नहीं मिल रहा, जबकि ओडिशा का तर्क है कि वह अपने क्षेत्र में जल का उपयोग अपनी जरूरतों के लिए कर रहा है।
केंद्र सरकार की मध्यस्थता में दोनों राज्यों के बीच वार्ता चल रही थी अब उसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे है। अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत इस तरह के विवादों को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार ने पहल की। केंद्र सरकार की इस पहल का नतीजा देर से ही सही दोनों राज्यों के बीच सकारात्मक संदेश के साथ आया।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच इंद्रावती नदी पर बना जोरा नाला विवाद कई वर्षों के बाद अब यह सुलझ गया है। नदी में साढ़े तीन करोड़ की लागत से इंद्रावती-जोरा नाला के अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम में जमा सिल्ट, लूज बोल्डर, पत्थर, रेत की बोरी, मिट्टी इत्यादि को स्थाई रूप से नदी से बाहर किया जायेगा। ताकि पानी का बहाव नैसर्गिक तरीके से होता रहेगा एवं छत्तीसगढ़ राज्य को अपने हिस्से का 50 प्रतिशत पानी मिलना प्रारंभ हो जाये। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए जून 2025 तक एजेंसी तय करके कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने अभी हाल ही में सार्वजनिक समारोह में इसकी जानकारी देते हुए बताया कि उनके उड़ीसा प्रवास के दौरान वहां के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी के साथ मुलाकात में इस मुद्दे पर ध्यान दिलाया। दोनों राज्यों के सिंचाई विभाग एवं प्रशासनिक अमले के द्वारा इसका संयुक्त अवलोकन किया। इसके बाद अस्थाई तौर पर छत्तीसगढ़ की ओर जल प्रवाह में रुकावट बन रही समस्याओं का निराकरण किया गया। छत्तीसगढ़ को यहां से 16 प्रतिशत पानी मिलता था, वह बढ़कर 49 प्रतिशत पहुंच गया है। समझौते के अनुसार दोनों राज्यों का 50-50 प्रतिशत पानी का करार है।
इंद्रावती नदी को दो अलग-अलग धाराओं में विभाजन करने वाला जोरा नाला की समस्या की जड़ ग्राम सूतपदर है, जहां उड़ीसा सीमा पर इन्द्रावती दो धाराओं में बंटा है। एक धारा इन्द्रावती नदी के रूप में पांच किलोमीटर जाती उड़ीसा में बहकर ग्राम भेजापदर से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करती है। यह आगे जगदलपुर और चित्रकोट होते हुए गोदावरी में मिलती है। दूसरी धारा जोरा नाला के रूप में 12 किलोमीटर बहकर शबरी नदी में मिलती है। पहले दोनों धाराओं में पानी बराबर बंटता था। समय के साथ जोरा नाला का बहाव बढ़ता गया और इन्द्रावती का बहाव घटता गया।
दोनों राज्यों के बीच हुए समझौते में यह शर्ते प्रस्तावित थी कि इन्द्रावती नदी के जल का बंटवारा दोनों राज्यों की जरूरतों और नदी के प्रवाह के आधार पर किया जाए। इसमें मौसमी जल प्रवाह और न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह को ध्यान में रखा जाये। संयुक्त निगरानी समिति की बैठकों के माध्यम से दोनों राज्यों के अधिकारी और केंद्रीय जल आयोग के प्रतिनिधि की अनेक बैठकें हुई। यह समिति बांधों से जल छोड़े जाने और नदी के प्रवाह की निगरानी करेगी। समिति यह सुनिश्चित कर सकती है कि ओडिशा द्वारा निर्मित बांधों से छत्तीसगढ़ को पर्याप्त पानी मिले।
इन्द्रावती नदी जल विवाद छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच जल संसाधनों के उपयोग और प्रबंधन को लेकर एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। जिसका समाधान आपसी सहमति, पारदर्शी जल बंटवारे और पर्यावरणीय संरक्षण की सहमति से ही संभव हो पाया। जिसमें केंद्र सरकार की मध्यस्थता और संयुक्त समिति में महत्वपूर्ण भूमिका रही। सबसे बड़ी बात यह रही कि केंद्र के साथ-साथ ओडिशा और छत्तीसगढ़ में एक ही पार्टी की सरकार रही जिसके कारण टकराव की स्थिति नहीं बनी।
जब हम नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर आपस में लड़ रहे हों तब हमें यह भी देखना होगा की पानी का अपव्यय न हो। अभी गर्मी की शुरुआत हुई है और बहुत सारी जगहों में गहरे पेयजल संकट की खबरें आने लगी तो भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। नदी, तालाब, कुएं, बावड़ी सूख रहे है। ऐसे में हमें जल है तो कल है की बात समझनी होगी।
प्रसंगवश दुष्यंत कुमार का शेर-
यहां तक आते-आते सूख जाती है सैकड़ों नदियां
मैं जानता हूं कि पानी कहां ठहरा हुआ होगा।।