Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- योग, फिटनेस और स्वास्थ्य सेवाओं का बदलता परिदृश्य

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

सुभाष मिश्र

0 स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती सजगता

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने लिखा है कि गरीब आदमी न तो ऐलोपैथी से अच्छा होता है, न होमियोपैथी से, उसे तो ‘सिम्पैथीÓ (सहानुभूति) चाहिए। अब ये सिम्पैथी उसे सरकार की बहुत सी स्वास्थ्य सेवाओं के ज़रिए मिल रही है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों की तमाम आलोचनाओं के बावजूद आज भी गरीबों के लिए सरकारी अस्पतालों का ही आसरा है। प्राइवेट अस्पताल अभी भी गरीबों की पहुंच से दूर है। जो फिटनेस सेंटर, जिम नहीं जा सकते उनके लिए योग स्वस्थ रहने का सबसे सस्ता विकल्प है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विशाखापत्तनम में तीन लाख लोगों के साथ योग कर उसके महत्व पर जोर देते हुए कहा कि दुर्भाग्य से आज पूरी दुनिया किसी न किसी तरह के तनाव से गुजर रही है। कई क्षेत्रों में अशांति और अस्थिरता बढ़ रही है। ऐसे में योग हमें शांति की दिशा देता है। बढ़ता मोटापा पूरी दुनिया के लिए एक चुनौती है। पीएम मोदी ने कहा कि योग न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि इस पर्यावरणीय और पारिस्थितिक संतुलन के बारे में जागरूकता भी बढ़ाता है। उन्होंने कहा कि योग हमें इस परस्पर जुड़ाव के प्रति जागरूक करता है और हमें सिखाता है कि हम अलग-थलग व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि प्रकृति का हिस्सा हैं। पीएम मोदी ने कहा कि आज 11वीं बार पूरा विश्व 21 जून को एक साथ योग कर रहा है। योग का सीधा-सादा अर्थ होता है-जुडऩा! ये देखना सुखद है कि कैसे योग ने पूरे विश्व को जोड़ा है। इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम थी ‘योग फॉर वन अर्थÓ यानी एक पृथ्वी के लिए योग, एक स्वास्थ्य के लिए योग।
सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की कविता एक डॉक्टर से अपेक्षा, उम्मीद के साथ गरीब आदमी की स्थिति का बयान है-
सबसे गऱीब आदमी की
सबसे कठिन बीमारी के लिए
सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्टर आए
जिसकी सबसे ज़्यादा फ़ीस हो
सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्टर
उस गऱीब की झोपड़ी में आकर
झाड़ू लगा दे

जिससे कुछ गंदगी दूर हो।
सामने की बदबूदार नाली को
साफ़ कर दे
जिससे बदबू कुछ कम हो।
उस गऱीब बीमार के घड़े में
शुद्ध जल दूर म्युनिसिपल की
नल से भरकर लाए।
बीमार के चीथड़ों को
पास के हरे गंदे पानी के डबरे
से न धोएं।
कहीं और धोए।
बीमार को सरकारी अस्पताल
जाने की सलाह न दे।
कृतज्ञ होकर
सबसे बड़ा डॉक्टर सबसे गऱीब आदमी का इलाज करे
और फ़ीस माँगने से डरे।
सबसे गऱीब बीमार आदमी के लिए
सबसे सस्ता डॉक्टर भी
बहुत महंगा है।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में स्वास्थ्य के प्रति लोगों की जागरूकता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। विशेष रूप से 2021-22 की कोरोना लहर ने इस बदलाव को और तेज किया। इस दौरान योग और फिटनेस के प्रति रुझान, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, बीमा योजनाओं की लोकप्रियता और सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य संबंधी जानकारी का प्रसार जैसे कई आयाम उभरकर सामने आए हैं। हालांकि, इस सजगता के साथ-साथ आधी-अधूरी जानकारी और व्यावसायिक अवसरों की बाढ़ ने भी कई सवाल खड़े किए हैं।

योग और फिटनेस के प्रति लोगों की रूचि में बहुत ज़्यादा इज़ाफ़ा हुआ है और लोगों का बढ़ते रुझान के कारण शहरों और क़स्बों जिम खुल रहे है। ऑन और ऑफलाइन व्यायाम करने वालों की संख्या में अच्छा ख़ासा इज़ाफ़ा हुआ है। जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में योग दिवस का प्रस्ताव रखा था तो 175 देशों ने इसका समर्थन किया था। आज योग करोड़ों लोगों के जीवन का हिस्सा बन चुका है।

कोरोना महामारी ने लोगों को अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत के प्रति अधिक सचेत किया। योग, जो भारत की प्राचीन परंपरा का हिस्सा है, इस दौरान एक वैश्विक आंदोलन बन गया। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) के अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों ने इसे और बढ़ावा दिया। प्रधानमंत्री मोदी से लेकर मोदी मंडल के सदस्य, पार्टी पदाधिकारी, राज्यों के मुख्यमंत्री सब योग करते नजऱ आये। योग ट्रेनर कहते कि योग से हमें अपने दिन की शुरुआत करनी चाहिए जिससे कि हमारा पूरा दिन स्फूर्ति से भरा रहे। लोग न केवल योग को शारीरिक स्वास्थ्य के लिए कर रहे हैं, बल्कि मानसिक तनाव को कम करने के लिए भी इसे अपनाया जा रहा है।

साथ ही, जिम और फिटनेस सेंटरों की लोकप्रियता में भी उछाल आया है। शहरी क्षेत्रों में जिम संस्कृति तेजी से बढ़ी, जहां लोग सुबह की शुरुआत वर्कआउट सेशन से करना पसंद करते हैं। फिटनेस ट्रेनर, डाइट प्लान और वियरेबल डिवाइस जैसे फिटनेस ट्रैकर की मांग बढ़ी है। एक अनुमान के अनुसार, भारत का फिटनेस उद्योग 2025 तक 1.2 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में योग अभी भी जिम की तुलना में अधिक लोकप्रिय है, क्योंकि यह कम खर्चीला और सुलभ है।

2021-22 की दूसरी कोरोना लहर ने भारत के स्वास्थ्य ढांचे की कमियों को उजागर किया। ऑक्सीजन की कमी, अस्पतालों में बेड की अनुपलब्धता और चिकित्सा उपकरणों की किल्लत ने सरकार और जनता दोनों को झकझोर दिया। इसके परिणामस्वरूप केंद्र और राज्य सरकारों ने स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर जोर दिया। कोरोना के बाद स्वास्थ्य सेवाओं में पूंजी निवेश बढ़ा है। अस्पतालों का विस्तार हुआ है। कई राज्यों में नए अस्पताल, आईसीयू बेड, और ऑक्सीजन प्लांट स्थापित किए गए। उदाहरण के लिए, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने अस्थायी कोविड केंद्र बनाए, जबकि उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) को मजबूत किया गया। सरकार द्वारा आयुष्मान भारत योजना जैसी बहुत ही लोकप्रिय योजनाएं लाकर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार की आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) ने गरीब और मध्यम वर्ग के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस योजना के तहत 5 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज प्रदान किया जाता है, जिसने 2024 तक करीब 50 करोड़ लोगों को लाभान्वित किया। इस योजना ने न केवल स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच बढ़ाई, बल्कि लोगों में बीमा के प्रति जागरूकता भी पैदा की। निजी अस्पतालों ने भी अपनी क्षमता बढ़ाई, लेकिन इलाज की ऊंची लागत ने मध्यम वर्ग को स्वास्थ्य बीमा की ओर प्रेरित किया।

इस बीच में सोशल मीडिया पर भी स्वास्थ्य को लेकर बहुत सारे चैनल, डॉक्टर और भय पैदा करके पैसा कमाने वाले लोग सक्रिय रहकर मदद करने की कोशिश कर रहे हैं या भ्रामक जानकारी फैला रहे हैं। कोरोना काल में सोशल मीडिया ने दोहरी भूमिका निभाई। एक ओर, इसने लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाइयां और अस्पताल बेड की जानकारी साझा करने में मदद की। ट्विटर (अब एक्स) और व्हाट्सएप ग्रुप जैसे प्लेटफॉर्म आपातकालीन सहायता के लिए महत्वपूर्ण बने। दूसरी ओर सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य टिप्स, घरेलू नुस्खों और उपचार के नाम पर आधी-अधूरी जानकारी की बाढ़ आ गई। कई अनियंत्रित यूट्यूब चैनलों और इंस्टाग्राम रील्स ने कोविड-19 के लिए चमत्कारी उपायों का दावा किया, जैसे ‘हल्दी वाला दूध या ‘कुछ खास जड़ी-बूटियां। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसी गलत सूचनाओं को ‘इन्फोडेमिकÓ करार दिया, जो महामारी जितना ही खतरनाक साबित हुआ।

योग और जिम का व्यवसाय बहुत तेज़ी से उभरा है। योग और जिम का बढ़ता चलन एक बड़े व्यावसायिक अवसर में बदल चुका है। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने बहुत पहले लिखा था कि धर्म को यदि धंधे से जोड़ दिया जाये तो उसे योग कहते हैं। कालांतर में बहुत तेज़ी से योग का व्यवसायीकरण हुआ। योग स्टूडियो, ऑनलाइन योग क्लासेस और योग रिट्रीट जैसे व्यवसाय तेजी से बढ़े हैं। पतंजलि जैसे ब्रांड्स ने योग को आयुर्वेदिक उत्पादों के साथ जोड़कर इसे और लोकप्रिय बनाया। वैश्विक स्तर पर योग उद्योग का मूल्य 2023 में 100 बिलियन डॉलर से अधिक हो चुका है। इसके साथ ही जिम और फिटनेस सेंटर का धंधा भी खूब बढ़ा है। भारत में जिम चेन जैसे कल्ट फिट, गोल्डोस जिम और फिटनेस फस्र्ट ने शहरी क्षेत्रों में तेजी से विस्तार किया। ऑनलाइन फिटनेस ऐप्स जैसे फिटर और हेल्थीफाईमी ने भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की। हालांकि, इस उद्योग में अनट्रेंड कोच और अनुचित डाइट प्लान की शिकायतें भी सामने आई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में फिटनेस सेंटरों की कमी और महंगे उपकरणों की लागत अभी भी एक बड़ी बाधा है। साथ ही योग और जिम को केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित रखने की प्रवृत्ति ने इनके समग्र लाभों को कम किया है।

स्वास्थ्य बीमा के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। कोरोना महामारी ने स्वास्थ्य बीमा के महत्व को रेखांकित किया। एक सर्वे के अनुसार, 2021-23 के बीच स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी खरीदने वालों की संख्या में 25 फीसदी की वृद्धि हुई। लोग अब अस्पताल के खर्चों से बचने के लिए निजी बीमा योजनाओं की ओर रुख कर रहे हैं। निजी बीमा का चलन भी तेजी से बढ़ा है। स्टार हेल्थ, एचडीएफसी एर्गो, और आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जैसी कंपनियों ने कोविड-19 कवरेज और ओपीडी योजनाओं को शामिल कर अपनी पॉलिसी को और आकर्षक बनाया। आयुष्मान भारत योजना गरीब और कमजोर वर्गों के लिए वरदान साबित हुई है। 2024 तक, इस योजना के तहत 3 करोड़ से अधिक अस्पताल में भर्ती मरीजों का इलाज हुआ। हालांकि, कुछ राज्यों में निजी अस्पतालों द्वारा योजना का दुरुपयोग और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी चुनौतियां बनी हुई हैं। जागरूकता की कमी की वजह से कई लोग अभी भी बीमा की बारीकियों से अनजान हैं, जिसके कारण वे अपर्याप्त कवरेज वाली पॉलिसी चुन लेते हैं।

स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती सजगता के बावजूद कई क्षेत्रों में सुधार की जरूरत है। सोशल मीडिया पर भ्रामक जानकारी को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम और जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। योग और जिम जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षित पेशेवरों की नियुक्ति और मानकीकरण जरूरी है। साथ ही सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं और बीमा योजनाओं की पहुंच बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।

कोरोना लहर ने भारत में स्वास्थ्य के प्रति एक नई चेतना जगाई है। योग और फिटनेस का बढ़ता चलन, स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, और बीमा योजनाओं की लोकप्रियता इस बदलाव के सकारात्मक पहलू हैं। हालांकि, सोशल मीडिया पर आधी-अधूरी जानकारी और व्यावसायिक हितों की बाढ़ ने कुछ जोखिम भी पैदा किए हैं। आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं इस दिशा में एक मजबूत कदम हैं, लेकिन इनका प्रभाव तभी पूर्ण होगा जब जागरूकता और गुणवत्ता पर समान ध्यान दिया जाए। स्वास्थ्य एक समग्र अवधारणा है और इसे केवल शारीरिक फिटनेस या चिकित्सा तक सीमित नहीं करना चाहिए। भारत को एक स्वस्थ भविष्य की ओर बढऩे के लिए शिक्षा, जागरूकता और समावेशी नीतियों की जरूरत है।