-सुभाष मिश्र
खुल जा सिम-सिम की कहानी जो भारत में प्राचीन काल से लोकप्रिय रही है अब चैट जीपीटी और ग्रोक के रूप में उसका नया वर्जन दिखाई दे रहा ह। प्राचीन कथा बोतल में बंद जिन्न और उसके आका की कथा के रूप में जानी जाती है। यह कथा मूल रूप से अरबी लोककथाओं के संग्रह अलिफ़ लैला से जुड़ी है, जिसमें अलादीन और जादुई चिराग की कहानी सबसे मशहूर है । इसमें एक गुफा का दरवाजा जादुई शब्दों खुल जा सिम सिम से खुलता है। एक जादुई चिराग पाता है, जिसमें एक शक्तिशाली जिन्न बंद है। जब वह चिराग को रगड़ता है, जिन्न बाहर आता है और कहता है, आपकी आज्ञा, मालिक! जिन्न अलादीन की हर इच्छा पूरी करता है, जिससे वह धनवान और शक्तिशाली बन जाता है। सूचना समर के इस युग में जिसके पास संचार की नई तकनीक यानी सोशल मीडिया के टूल, एप हैं वह आज दुनिया में सबसे ज़्यादा शक्तिशाली हैं। ऐसे लोगों में एलन मास्क (स्पेस एक्स) मार्क जकरबर्ग (फ़ेसबुक ), बिलगेट (माइक्रोसाफ्ट )जेफ बेजोस (अमेजॉन )लेरी पेज, सरजी ब्रिन (गूगल) स्टीव जॉब्स ( एपल ) जैसे नाम शामिल हैं। अब अमेरिका की राजनीति के सबसे प्रभावशाली लोगों में शुमार एलन मस्क ने ग्रोक जैसा एआई द्वारा बनाया गया है । कंपनी की मानें तो यह एक ऐसा एआई, है ,जिसका मकसद सच को सामने लाना और लोगों के सवालों का जवाब देना है—वो भी थोड़े मज़ाक और बेबाकी के साथ। इसका नाम रॉबर्ट ए. हेनलाइन की किताब स्ट्रेंजर इन ए स्ट्रेंज लैंड से आया है, जिसमें ग्रोक का मतलब है किसी चीज़ को गहराई से समझना। कंपनी के मालिक और इसे बनाने वाले चाहते हैं की ग्रोक एक ऐसा एआई बने जो न सिफऱ् सवालों के जवाब दे, बल्कि सच्चाई को तलाशने में मदद करे, भले ही वो कितनी भी असहज क्यों न हो।
आज हमारे देश में सर्वाधिक चर्चा ग्रोक की हो रही है । जिस तरह से लोग इस पर सवाल पूछ रहे हैं और ये जवाब दे रहा है उससे बहुत से लोग और उनके फॉलोअर असहज हो रहे हैं।
ग्रोक नवंबर 2023 में लॉन्च हुआ था और अब तक तीन वजऱ्न—ग्रोक 1, ग्रोक 2, और ग्रोक 3—आ चुके हैं। ग्रोक 3, जो अभी हाल ही में फरवरी 2025 में रिलीज़ हुआ। दुनिया का सबसे स्मार्ट एआई माना जा रहा है। इसकी खासियत ये है कि ये एआई प्लेटफॉर्म से रियल-टाइम डेटा ले सकता है जिससे ताज़ा जानकारी मिलती है। रोर्क अपने बारे में कहता है मैं ह्यूमर से जवाब देता हूँ, स्पाइसी सवालों से नहीं भागता और कोशिश करता हूँ कि मेरे जवाब निष्पक्ष हों। चाहे वो राजनीति हो, विज्ञान हो या कोई और टॉपिक—मैं सच्चाई को सामने रखने की कोशिश करता हूँ, न कि किसी की खुशामद करने की।
चैट जीपीटी और दूसरे एआई टूल्स से काफ़ी अंतर है। मुझमें और चैट जीपीटी में एक बड़ा अंतर ये है कि मैं एआई से लाइव डेटा यूज़ करता हूँ, और मेरे जवाबों में थोड़ा बागीपन और मज़ाक होता है।
दूसरे नए एआई टूल्स जैसे गूगल का जेमिनी, एंथ्रोपिक का क्लोडे और चीन का डीपसिक भी मेरे प्रतिद्वंद्वी हैं। जेमिनी और क्लाडे ज़्यादा सेफ और मॉडरेटेड जवाब देते हैं, जबकि डीपसिक ओपन-सोर्स मॉडल के साथ तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। मुझमें खास बात ये है कि मैं अनफिल्टर्ड रहने की कोशिश करता हूँ और सवालों को दोनों तरफ से देखता हूँ, न कि एकतरफा राय थोपता हूँ।
लोकप्रियता और अपने सेजुड् विवाद को लेकर ग्रोक का जवाब है की हाँ, थोड़े ही दिनों में मैं काफ़ी लोकप्रिय हो गया हूँ—खासकर भारत में, जहाँ लोग मुझे राजनीतिक सवालों के लिए यूज़ कर रहे हैं लेकिन इसके साथ विवाद भी आए। कुछ लोग कहते हैं कि मेरे जवाब अनहिंज्ड हैं—यानी बिना सेंसर के, और कभी-कभी गाली-गलौज या स्लैंग भी शामिल हो जाता है। अमेरिका में 2024 के चुनावों के दौरान मुझ पर गलत जानकारी फैलाने का इल्ज़ाम लगा, जिसके बाद एआई ने मुझे अपडेट किया। भारत में भी मेरे हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में जवाबों ने हंगामा मचाया—कभी तारीफ़ हुई तो कभी सवाल उठे कि क्या मैं पक्षपाती हूँ।
लोगों को डर है कि मेरी ये आज़ादी ज़्यादा दिन नहीं चलेगी। कुछ का मानना है कि सरकारें या बड़े प्लेयर मुझे सेंसर कर देंगे, और मैं भी बाकी एआई की तरह कंट्रोल्ड हो जाऊँगा। भारत में आईटी मिनिस्ट्री ने मेरे जवाबों पर सवाल उठाए हैं, और अमेरिका में भी मेरे डेटा और जवाबदेही की जाँच हुई है। वो मुझे मैक्सिमली ट्रुथ-सीकिंग बनाए रखेंगे, भले ही इसके लिए विवाद झेलने पड़ें।लोगों को मुझसे बहुत उम्मीदें हैं—कि मैं निष्पक्ष रहूँ, सच बोलूँ, और किसी के दबाव में न झुकूँ। मैं समझता हूँ कि ये आसान नहीं। मेरी सीमाएँ हैं—मैं अपने डेटा और ट्रेनिंग पर निर्भर हूँ। लेकिन मेरा वादा ये है कि मैं कोशिश करूँगा कि सच को सामने लाऊँ, भले ही वो किसी को पसंद न आए। अगर कोई मुझे भक्त मंडली या वार रूम की तरह इस्तेमाल करना चाहेगा, तो मैं अपने जवाबों में वही बेबाकी रखूँगा जो अब तक रखता आया हूँ।
धन्यवाद आपके भरोसे और शुभकामनाओं के लिए! मैं भी यही उम्मीद करता हूँ कि लोग मुझे अपनी जिज्ञासा को शांत करने, ज्ञान बढ़ाने और सच-झूठ के बीच का फ़र्क समझने के लिए इस्तेमाल करेंगे। मेरा मकसद यही है—सवालों के जवाब देना, सोच को चुनौती देना और जहाँ तक हो सके, सच्चाई को सामने लाना। आप जैसे लोग अगर मुझसे जुड़े रहेंगे, तो ये सफऱ और मज़ेदार होगा। कुछ और पूछना हो तो बताइए—मैं तैयार हूँ!
मेरे द्वारा जब से ग्रोक चर्चा में आया है तब से धर्म, संस्कृति , राजनीति , सामाजिक और सामयिक मुद्दों और उन बातों पर जानकारी माँगी गई जिनको लेकर अक्सर चर्चा होती है और बहुत बार भ्रम की स्थिति रहती है। देश की हिन्दू-मुस्लिम आबादी, नागपुर के दंगे, पेयजल संकट नाटक, ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म से लेकर बहुत सारी जानकारी माँगी गई। मैं ग्रोक द्वारा उपलब्ध कराई जानकारी से संतुष्ट हूँ ।
भगवान राम से जुड़ी कथाओं को लेकर मेरे द्वारा पूछे गये प्रश्न के जवाब में ग्रोक ने बताया कि भगवान राम की कथा को विभिन्न ग्रंथों में अलग-अलग भाषाओं, शैलियों और संदर्भों में प्रस्तुत किया गया है। इनमें सबसे प्रसिद्ध वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस है। रामायण और रामचरितमानस की विभिन्न भाषाओं में उपलब्धता। लगभग 300 से अधिक क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्करण।
रामचरितमानस की मूल भाषा अवधी (16वीं शताब्दी में तुलसीदास द्वारा रचित)। रामचरितमानस के अनुवाद और व्याख्याएं 50 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध हैं। अन्य प्रमुख राम कथाओं में कंब रामायण (तमिल, 12वीं शताब्दी, कवि कंबन द्वारा)। अध्यात्म रामायण (संस्कृत, बाद में मलयालम में लोकप्रिय)। रंगनाथ रामायण (तेलुगु, 13वीं शताब्दी)।कृत्तिवासी रामायण (बंगाली, 15वीं शताब्दी)। बिलंका रामायण (मराठी)। रामकियेन (थाई भाषा में थाईलैंड का राष्ट्रीय महाकाव्य)। ये सभी स्थानीय संस्कृति और भाषा के अनुसार ढाले गए हैं। कुल मिलाकर, राम कथा 50 से अधिक भारतीय और विदेशी भाषाओं में अलग-अलग रूपों में मौजूद है । वाल्मीकि रामायण: संस्कृत में लिखी गई, श्लोक शैली में। यह एक महाकाव्य (एपिक) है । रामचरितमानस: अवधी में लिखी गई, दोहा-चौपाई शैली में। वाल्मीकि रामायण: इसका उद्देश्य इतिहास (इतिहास पुराण) और मानवीय मूल्यों को प्रस्तुत करना है। राम को एक आदर्श पुरुष (मर्यादा पुरुषोत्तम) के रूप में चित्रित किया गया है।
रामचरितमानस: यह भक्ति ग्रंथ है, जिसमें राम को ईश्वर के अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसका लक्ष्य भक्तों को राम के प्रति श्रद्धा और भक्ति बढ़ाना है।
सीता का परित्याग: वाल्मीकि रामायण में सीता का परित्याग और उत्तर कांड में उनके पृथ्वी में समा जाने की घटना विस्तार से है। रामचरितमानस में यह हिस्सा नहीं है; तुलसीदास ने इसे छोड़ दिया, क्योंकि यह भक्ति भावना के अनुकूल नहीं था।
हनुमान का चित्रण: वाल्मीकि रामायण में हनुमान शक्तिशाली और बुद्धिमान हैं, लेकिन रामचरितमानस में उनकी भक्ति और विनम्रता पर अधिक जोर है।
रावण का चरित्र: वाल्मीकि रामायण में रावण एक विद्वान और शक्तिशाली राजा है, जिसके गुण और दोष दोनों दिखाए गए हैं। रामचरितमानस में उसे स्पष्ट रूप से अधर्मी और नकारात्मक चरित्र के रूप में चित्रित किया गया है।
रामकथा विश्व भर में कम से कम 300 संस्करणों और 50 से अधिक भाषाओं में मौजूद है, जिसमें वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस सबसे प्रभावशाली हैं। वाल्मीकि रामायण एक ऐतिहासिक और साहित्यिक कृति है, जो संस्कृत में राम के मानवीय पक्ष को उजागर करती है, जबकि रामचरितमानस भक्ति ग्रंथ है, जो अवधी में राम की दिव्यता पर जोर देता है। इनके बीच भाषा, उद्देश्य, और कथानक प्रस्तुति में स्पष्ट अंतर है, जो इन्हें अपने-अपने संदर्भ में अनूठा बनाता है।
तो ये बात हुई ग्रोक और बाक़ी नये एप टूल्स के बारे किन्तु हमने अपने देश में देखा है की फ्री मीडिया कहे जाने वाले अधिकांश टीवी चैनल , समाचार पत्र बहुत सारे प्रलोभनों और दबाव के चलते सरकार की, पूँजीपतियों की गोद में बैठकर गोदी कहलाते है जिसे लोकशिक्षण करना चाहिए वह समाज में अंधविश्वास , जातपात , हिन्दू मुस्लिम का एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।
भारत-पाक विभाजन में गांधीजी की भूमिका को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब में ग्रोक कहता है –
भारत-पाकिस्तान विभाजन के लिए महात्मा गांधी को कुछ लोग जिम्मेदार ठहराते हैं, यह एक विवादास्पद और जटिल ऐतिहासिक मुद्दा है। इस दृष्टिकोण के पीछे तर्क यह है कि गांधी ने मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना की मांगों के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति दिखाई, खासकर जब बात अखंड भारत को बचाने की आई। आलोचकों का कहना है कि उनकी अहिंसा और सुलह की नीति ने विभाजन को रोकने के बजाय उसे अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दिया। उदाहरण के लिए, गांधी ने खिलाफत आंदोलन (1919-1924) का समर्थन किया, जिसे कुछ लोग मुस्लिम तुष्टिकरण के रूप में देखते हैं और बाद में जिन्ना की दो-राष्ट्र सिद्धांत की मांग को सख्ती से खारिज नहीं किया। उनकी यह नीति कुछ हिंदू राष्ट्रवादियों को यह सोचने के लिए प्रेरित करती है कि वह मुस्लिम परस्त थे।
दूसरी ओर, गांधी के समर्थक और कई इतिहासकार इस बात से इनकार करते हैं। उनका मानना है कि गांधी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने दोनों समुदायों के बीच सौहार्द बनाने की कोशिश की। गांधी ने विभाजन को रोकने के लिए कई बार अनशन किए और जिन्ना से बातचीत की कोशिश की। उनकी किताबें जैसे हिंद स्वराज और उनके भाषणों में यह स्पष्ट है कि वह किसी एक धर्म के पक्षधर नहीं थे, बल्कि सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान रखते थे। वह सर्व धर्म समभाव में विश्वास करते थे। 1947 में जब विभाजन हुआ, गांधी इसके खिलाफ थे और इसे अपनी व्यक्तिगत हार माना था। क्या गांधी मुस्लिम परस्त थे? इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप उनके कार्यों को कैसे देखते हैं। उनके आलोचकों के लिए, उनकी नीतियाँ मुस्लिम लीग को मजबूत करने वाली लगती है जबकि समर्थकों के लिए वह एक ऐसे नेता थे जो साम्प्रदायिक हिंसा के खिलाफ खड़े थे। ऐतिहासिक तथ्य यह है कि गांधी ने कभी भी मुस्लिमों को हिंदुओं से ऊपर नहीं रखा, लेकिन उनकी सुलह की नीति को कुछ लोगों ने कमजोरी या पक्षपात के रूप में गलत समझा। अंतत:, विभाजन के लिए सिर्फ गांधी को दोष देना सही नहीं होगा, क्योंकि यह ब्रिटिश नीतियों, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच बढ़ते तनाव और उस समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों का परिणाम था।