फिल्म की शुरुआत में एक वकील नहीं, एक कवि बैठा दिखता है। उसकी मेज़ पर गजानन माधव मुक्तिबोध की तस्वीर रखी है—वही मुक्तिबोध जो कहा करते थे, कहीं कोई तो होगा, जो ...
सरकार चाहे डबल इंजन की हो या ट्रिपल, इंजन की आवाज़ ज़रूर गूंजती है—पर सरकारी गाड़ी फिर भी उसी गति से चलती है, जैसी फाइलें मंत्रालयों की अलमारियों में सरकती है...
इस देश में आस्था कभी मंदिर के दरवाज़े पर सिर झुकवाती है, कभी चुनावी मंच पर नेता की झलक दिखाने के लिए भीड़ को पसीना बहवाती है। लोग देवता हों या अभिनेता, बाबाओं...