Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – भारत के भविष्य पर छाया ध्रुवीकरण का साया

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

भारत आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता और कर्रेगुट्टा पहाड़ी पर नक्सलियों के खिलाफ जीत ने राष्ट्रीय गौरव को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है। लेकिन, इस गर्व के बीच कुछ घटनाएं जैसे विदेश सचिव विक्रम मिसरी और कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ सोशल मीडिया पर बदज़ुबानी, मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की आपत्तिजनक टिप्पणी और हर मुद्दे को हिंदू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश—यह सवाल उठाती हैं कि हम किस तरह का नया भारत बना रहे हैं? न्यायपालिका, सोशल मीडिया और ध्रुवीकरण की राजनीति इस समय देश के सामाजिक ताने-बाने को आकार दे रहे हैं। इनका विश्लेषण न केवल हमारी चुनौतियों को उजागर करता है बल्कि एक बेहतर भविष्य की राह भी दिखाता है।
न्यायपालिका भारत के लोकतांत्रिक ढांचे का सबसे मजबूत स्तंभ है। मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन कहने के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया और सुप्रीम कोर्ट ने इसे राष्ट्रीय शर्मिंदगी करार दिया। जो कि यह दर्शाता है कि न्यायपालिका न केवल व्यक्तिगत सम्मान, बल्कि सेना जैसे राष्ट्रीय संस्थानों की गरिमा की रक्षा के लिए तत्पर है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं और नफरती भाषणों को नियंत्रित करने के लिए सरकार से तंत्र विकसित करने को कहा, जो सामाजिक एकता को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
हालांकि, न्यायपालिका के सामने चुनौतियां भी हैं। राजनीतिक दबाव, कानूनी प्रक्रियाओं में देरी और सोशल मीडिया जैसे नए क्षेत्रों में प्रभावी कार्रवाई की कमी इसके प्रयासों को सीमित करती है। फिर भी इसका सख्त रुख नेताओं को जवाबदेह बनाने और अल्पसंख्यक समुदायों में विश्वास जगाने में अहम भूमिका निभा रहा है। एक ऐसे भारत के लिए जहां कानून का शासन सर्वोपरि हो, न्यायपालिका को और सशक्त करने की जरूरत है।
सोशल मीडिया आज भारत में सूचना और प्रचार का सबसे शक्तिशाली मंच है, लेकिन यह एक दोधारी तलवार बन चुका है। एक तरफ, यह जनता को एकजुट करता है जैसे जस्टिस फॉर सोफिया और स्टैंड विथ मिसरी जैसे अभियानों ने कर्नल सोफिया और विक्रम मिसरी के अपमान के खिलाफ जनाक्रोश को आवाज दी। दूसरी तरफ यह नफरत और ध्रुवीकरण का अड्डा बन गया है। मिसरी की बेटी को निशाना बनाना, कुरैशी की मुस्लिम पहचान पर हमले और ‘ऑपरेशन सिंदूरÓ जैसे राष्ट्रीय गौरव के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देना इसका सबूत है। संगठित ट्रोल आर्मी और फर्जी खातों के जरिए गलत सूचनाएं फैलाना सामाजिक एकता को कमजोर कर रहा है।
सोशल मीडिया की अनियंत्रित प्रकृति एक बड़ी चुनौती है। आईटी एक्ट, 2000 जैसे कानून मौजूद हैं, लेकिन इनका अमल कमजोर है। एक्स जैसे वैश्विक मंचों पर नफरती सामग्री को हटाने में देरी और अनाम खातों को पकडऩे की जटिलता समस्या को और गंभीर बनाती है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया तो सोशल मीडिया एक ऐसे भारत की ओर ले जाएगा, जहाँ अविश्वास और नफरत हावी हों। इसके लिए सरकार, प्लेटफॉम्र्स और नागरिक समाज को मिलकर डिजिटल साक्षरता बढ़ानी होगी और नफरती सामग्री पर तुरंत कार्रवाई करनी होगी।
ध्रुवीकरण की राजनीति खासकर हिंदू-मुस्लिम और सत्ताधारी विपक्ष के बीच—भारत की सामाजिक एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुकी है। विजय शाह की टिप्पणी, विपक्ष को राष्ट्रविरोधी बताना और तिरंगा यात्राओं का सांप्रदायिक दुरुपयोग इसकी मिसाल है। यह रणनीति वोट बैंक को मजबूत करने के लिए सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देती है लेकिन इसका दीर्घकालिक परिणाम विनाशकारी है। अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा, बहुसंख्यक समुदाय में नफरत, और असहमति को गद्दारी करार देना लोकतांत्रिक मूल्यों को कमजोर करता है।
हालांकि, कुछ आशाएं भी हैं। उमा भारती जैसे बीजेपी नेताओं का विजय शाह की निंदा करना और जनता का सोशल मीडिया पर प्रतिरोध दिखाता है कि ध्रुवीकरण की राजनीति को चुनौती दी जा सकती है। लेकिन, जब तक राजनीतिक दल इस रणनीति को नहीं छोड़ते और मीडिया सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ावा देना बंद नहीं करता, तब तक एक समावेशी भारत का सपना अधूरा रहेगा।
भारत दो रास्तों के चौराहे पर खड़ा है। एक रास्ता सामाजिक विभाजन, नफरत, और असहिष्णुता की ओर जाता है, जहाँ राष्ट्रीय संस्थानों का अपमान और धार्मिक ध्रुवीकरण आम हो जाएगा। दूसरा रास्ता एक समावेशी, एकजुट, और मजबूत भारत की ओर जाता है, जहाँ कानून का शासन, सामाजिक एकता और लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोपरि हों। इस दिशा में कुछ ठोस कदम जरूरी है। यह आवश्यक है कि सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वालों के खिलाफ तेज और प्रभावी कार्रवाई के लिए विशेष तंत्र बनाए जाए। नफरती सामग्री हटाने और ट्रोल खातों पर कार्रवाई के लिए प्लेटफॉम्र्स को जवाबदेह बनाया जाए। डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया जाए। राजनीतिक दलों को समावेशी नीतियों को अपनाने और सांप्रदायिक बयानबाजी से बचने के लिए प्रेरित किया जाए। मीडिया को भी जिम्मेदार पत्रकारिता की ओर लौटना होगा। जनता को ध्रुवीकरण की रणनीति को समझने और एकता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षित करना होगा।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और ‘कर्रेगुट्टा’ की जीत ने दिखाया है कि भारत में एकजुट होकर असंभव को संभव करने की ताकत है। लेकिन, अगर हम इस गौरव को नफरत और विभाजन के रंग में रंग देंगे तो यह हमारी सबसे बड़ी हार होगी। आइए, हम एक ऐसे नए भारत का निर्माण करें, जहां कर्नल सोफिया और विक्रम मिसरी जैसे नायकों का सम्मान हो और हर नागरिक की पहचान उसकी उपलब्धियों से हो, न कि धर्म या विचारधारा से। यह समय है कि हम नफरत के बादलों को हटाएं और एकता के सूरज को उगने दें।

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