गरियाबंद। गरियाबंद क्षेत्र में विराजमान बाबा भूतेश्वरनाथ के चरणों को प्रणाम कर निकुंज पथ से मुक्तिदायिनी भागवत कथा का रसपान कराने आए श्रद्धेय नारायण जी महराज ने कथा श्रवण करने आए सभी भक्तों को प्रणाम कर आज चौथे दिवस की कथा में प्रहलाद चरित्र , गजेंद्र मोक्ष के साथ कृष्ण जन्म की कथा के जन्मोंत्सव सबको झूमने मजबूर कर दिया ।
धर्म नगरी गरियाबंद के पवित्र स्थल गांधी मैदान में अपने पितरों के मोक्षार्थ मनकुपिया परिवार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि शास्त्रों में भगवान से अधिक भगवान के नाम को श्रेष्ठ बताया गया है , रामजी ने तो एक ही अहिल्या को तारा है लेकिन उनके नाम ने तो न जाने कितने अहिल्या को तार दिया , इसलिए नाम की निष्ठा होनी चाहिए।
न ऊपर वो है न नीचे वो है , न दूर में है , न पास में वो है , अगर प्रेम है तो मेरे प्रभु पास में है। जीवन में राग की आवश्यकता नहीं है भगवान को पाने के लिए अनुराग की आवश्यकता है और भगवान को पाने का सबसे सरल अगर कोई साधन है तो वह है प्रेम और दृढ़ विश्वास।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म पवित्र सुंदर नगरी मथुरा में होते ही बधाई भजन लाला जनम सुन आई यशोदा मईया ले ले बधाई , झुमका भी लूंगी मैय्या बिंदिया भी लूंगी में सभी श्रोता जमकर झूमे । जीवंत झांकी के साथ भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। सिन्हा परिवार के द्वारा खिलौने , टॉफी चॉकलेट लुटाए गए मंजरी का प्रसाद रखा गया था।
कथा में आगे नारायण जी महराज ने ने बताया कि इस संसार में जब तक आपके पास धन है , बल है , पद है तब तक लोग आपके पास जुड़े रहेंगे , लोग जुड़ते ही उनसे है जिनके पास कुछ होता है , अगर जेब में लाखों रुपए हो तो लाखों देने वाले कितनो मिल जाते हैं अगर जेब में फूटी कौड़ी ना हो तो कोई एक रुपए देने वाले नहीं होते। संसार में सब मतलबी होते हैं , सुर नर मुनि सबकी यही रीति है , स्वारथ लाभ करे सब प्रति, संतो ने कहा है पुत्र की परख उसके विवाह के बाद होता है , पुत्री की परख जवानी में होता है , पति की परख पत्नी की बीमारी में होती है , पत्नी की परख पति की गरीबी में होती है , मित्र की परख मुसीबत के समय होता है , भाई की परख लड़ाई में होती है , बहन की परख जायदाद बंटवारे के समय होती है और औलाद की परख बुढ़ापे में हो पाता है ।
सब मतलबी हो सकते है लेकिन मेरा गोविंद मेरा प्रभु मतलबी नहीं हो सकता।
जीवन में गृहस्थ होना अच्छी बात है कोई बुरी बात नहीं लेकिन गृह शक्त हो जाना बुरी बात है अपने अपने परिवार में ही हम लगे हुए हैं इसमें जीवन का कल्याण नहीं हो सकता , ध्रुव जी और प्रहलाद चरित्र बताते हुए उन्होंने कहा कि मात्र पांच वर्ष की आयु में ध्रुव जी ने और सात वर्ष की आयु में प्रहलाद जी ने भगवान को प्राप्त किया । प्रहलाद जी विश्वास के प्रतीक थे खंभे से भगवान को प्रकट कर दिया , भगवान ने ध्रुव जी और प्रहलाद जी महराज दोनों को अपने गोद पर बैठाया था। विश्वास में भगवान का वास होता है , अगर किसी कंकड़ में विश्वास है तो वहीं शंकर है , अगर भगवान के विग्रह स्वरूप में विश्वास है तो भी सर्वस्व है
लेकिन हम तो भगवान में भी कभी कभी भगवान नहीं देख पाते।