-सुभाष मिश्र
वन्यजीव और मानव के बीच आज टकराव देखने को मिल रहा है। इसका कारण यह है कि मनुष्य विकास के नाम पर जंगलों का अतिक्रमण कर रहा है। इससे दोनों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। यह टकराहट जब मीडिया की सुर्खियाँ बनती है तो समाज में भय का वातावरण बनता है।
उत्तर प्रदेश बहराइच में भेडिय़ों ने तबाही मचा रखी है। भेडिय़े की हमले में अब तक 10 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। भेडि़ए के हमलों में करीब 50 लोग घायल भी हैं। ऐसे समय में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता याद आती है-
भेडि़ए की आँखें सुर्ख़ हैं।
उसे तब तक घूरो
जब तक तुम्हारी आँखें
सुर्ख़ न हो जाएँ।
और तुम कर भी क्या सकते हो
जब वह तुम्हारे सामने हो?
यदि तुम मुँह छिपा भागोगे
तो भी तुम उसे
अपने भीतर इसी तरह खड़ा पाओगे
यदि बच रहे।
भेडि़ए की आँखें सुर्ख़ हैं।
और तुम्हारी आँखें?
भेडिय़ा ग़ुर्राता है
तुम मशाल जलाओ।
उसमें और तुममें
यही बुनियादी फ़कऱ् है
भेडिय़ा मशाल नहीं जला सकता।
अब तुम मशाल उठा
भेडि़ए के कऱीब जाओ
भेडिय़ा भागेगा।
Related News
करोड़ों हाथों में मशाल लेकर
एक-एक झाड़ी की ओर बढ़ो
सब भेडि़ए भागेंगे।
फिर उन्हें जंगल के बाहर निकाल
बफऱ् में छोड़ दो
भूखे भेडि़ए आपस में ग़ुर्राएँगे
एक-दूसरे को चीथ खाएंगे।
भेडि़ए मर चुके होंगे
और तुम?
भेडि़ए फिर आएँगे।
अचानक तुममें से ही कोई एक दिन
भेडिय़ा बन जाएगा
उसका वंश बढऩे लगेगा।
भेडि़ए का आना ज़रूरी है
तुम्हें ख़ुद को चहानने के लिए
निर्भय होने का सुख जानने के लिए
मशाल उठाना सीखने के लिए।
इतिहास के जंगल में
हर बार भेडिय़ा माँद से निकाला जाएगा।
आदमी साहस से, एक होकर,
मशाल लिए खड़ा होगा।
इतिहास जि़ंदा रहेगा
और तुम भी और भेडिय़ा?
इस कविता के सन्दर्भ अलग-अलग हैं। भेडिय़े कई प्रकार के हैं, एक भेडिय़ा जंगल में रहता है और एक भेडिय़ा प्रतीक के रूप में हमारे बीच होता है। हमारे समाज में अलग-अलग तरह के भेडिय़े हैं। ये भेडिय़े विकास के नाम पर जंगल का दोहन कर रहे हैं। खनिज का दोहन कर रहे हैं। वे जंगली जानवरों को मार रहे हैं। हाल यह है कि हमें शेरों और बाघों को बचाने के लिए भी अभियान चलाना पड़ता है। हमें जीव-जन्तुओं के इको सिस्टम को बचाने के लिए भी अभियान चलाना पड़ता है। मानव और वन्यजीव द्वंद सदियों से चला आ रहा है। यह क्रम सभ्यता के विकास के साथ अनवरत जारी है। मनुष्य आदिकाल से वन्यजीव के साथ रहा है, यही कारण है कि ‘हाथी मेरे साथीÓ जैसी फिल्म बनी। विदेश में तो लोग भेडिय़े को भी पालते हैं। छत्तीसगढ़ में भालुओं ने आतंक मचा रखा है, जबकि लोग भालु भी पालते हैं। अक्सर मदारी भालु का नाच दिखाते मिल जाते हैं। बहुत से जानवर हमारे साथ मित्रवत रहते हैं, बशर्ते हम भी उनके साथ मित्रवत रहें। मगर जब प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है तो मानव को लगता है कि जंगली जानवर हमारे लिए खतरा है। इस विषय पर वन्यजीव विशेषज्ञ संदीप पौराणिक कहते हैं कि लगभग 30 हजार साल पहले मनुष्य जब जंगल छोड़कर बस्तियां बसाने लगा और गाँवों में रहने लगा। तब भेडिय़ा मनुष्य के साथ रहने लगा। यही भेडिय़े धीरे-धीरे कुत्ते के रूप में हमारे सामने है और यह कुता मनुष्य का सबसे अच्छा दोस्त बन गया। आज हम जंगल के नजदीक जा रहे हैं। मानव और वन्यजीव के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। जिस तेजी से वनों का दोहन हो रहा है और वन कट रहे हैं, ऐसे में यह टकराहट और बढ़ती जाएगी। बहराइच का पूरा इलाका कभी जंगल हुआ करता था। मगर, वहां के किसानों, स्थानीय लोगों और भूमाफियाओं ने जंगल साफ़ कर दिया और गन्ने की खेती करने लगे। यह सीजन गन्ने का है। अब जंगल में गन्ना लगा रहे हैं जो खेत बन गया। भेडिय़ा जंगल में था। गन्ना का खेत उसे नया जंगल लगता है। जब खेती के लिए जंगल का सफाया किया तो वहां के शाकाहारी जीव हिरन, खरगोश खत्म हो गए। ये शाकाहारी जीव भेडिय़ा का आहार थे। अब भेडिय़ा जंगल काट कर बनाए गए मानव बस्ती में आ रहे हैं तो भेडिय़ा खाएगा क्या? यहाँ से संघर्ष की कहानी शुरू होती है। बहराइच में भेडिय़ों ने अब तक 10 से ज्यादा लोगों की जान ले ली है। भेडिय़ों के हमलों में 50 लोग घायल भी हैं। उत्तर प्रदेश प्रशासन भेडिय़े को पकडऩे के लिए ड्रोन, पिंजरा और जाल तीनों लगा रखे हैं लेकिन अभी तक वह वन विभाग की गिरफ्त से दूर है। वन्यजीव विशेषज्ञ संदीप पौराणिक कहते हैं कि अगर किसी गाँव में बाघ किसी को मार दे या भेडिय़ा किसी को मार दे तो इसकी चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर हो जाती है। सालभर के आंकड़े बताते हैं कि भेडिय़ा 20-25 लोगों को मार देता है। बाघ 100-150 लोगों की जान लेता है। इसके विपरीत सर्पदंश से लगभग 70 हजार लोगों की मौत होती है, लेकिन उसकी चर्चा नहीं होती। इस पर एक कविता है-
सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं
शहर में बसना तुम्हे आया नहीं
एक प्रश्न पूछू तुम उत्तर दोगे
कहाँ से सीखा डसना, विष कहाँ से पाया?
शहरी जन-जीवन में एक विष फ़ैल रहा है तो कवि इस तरह से देखता है कि कहाँ से सीखा डसना, विष कहाँ से पाया? समाज में जो जहर फ़ैल रहा है और हमारी टकराहट बढ़ रही है। यही कारण है कि जब हम जंगलों का काटेंगे तो जंगली जीव कहाँ जाएंगे? भारतीय भेडिय़ा दो प्रकार के है। एक हिमालयी क्षेत्र में है और दूसरा जंगलों में पाया जाता है जो ग्रे भेडिय़ा है। मगर, पुणे के पास एक नई प्रजाति देखने को मिली। वह गोल्डन भेडिय़ा है। एक अध्ययन में पता चला कि एक हाईब्रीड भेडिय़ा पैदा हो रहा है। भेडिय़ा जब गाँव में आ रहा है तो स्ट्रीट डॉग से उनके संबंध बन रहे हैं। इससे एक नई ब्रीड आ रही है। गाँव के लोग जंगल से भेडिय़ा के बच्चे को लाकर पालने लगते हैं, लेकिन भेडिय़ा आसानी से पालतू नहीं बनता है। जब यह आदमखोर बनने लगता है तो ग्रामीण उसको जंगल में छोड़ आते हैं। भेडिय़ा आदमी से डरता है, लेकिन जब उसे बचपन से पाल लिया है तो उसका डर खत्म हो जाता है।
छतीसगढ़ के धमतरी में तेंदुए ने आतंक मचा रखा है। तेंदुए ने एक माह में 2 लोगों की जान ले ली और दो लोग जख्मी हैं। अब उसे पकडऩे की कोशिश की जा रही है। छत्तीसगढ़ में भालुओं और हाथी के हमले आम बात है। मगर, हमारे देश में बाघ को बचाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन तेंदुए को बचाने की कोई योजना नहीं है। छतीसगढ़ में गरियाबंद से बस्तर तक के जंगलों में शाकाहारी पशु तेजी से खत्म हो रहे हैं। साथ ही ग्रॉस लैंड खत्म हो रहा है। इससे ना बाघ बचेगा और ना ही तेंदुआ, जब इनका भोजन और रहवास ख़त्म हो जाएगा तो ये गाँवों में आएँगे और आदमखोर बनेंगे।
अकेले 2019 में श्रीलंका में जंगली हाथियों के कारण 121 लोग मारे गए और मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणामस्वरूप 405 हाथी मारे गए। तंजानिया में हर साल शेरों के कारण 60 लोग मारे जाते हैं और मनुष्यों के कारण 150 शेर मारे जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में हर साल 80,000 से 138,000 लोग सांप के काटने से मारे जाते हैं। 2005 और 2012 के बीच, मांसाहारियों द्वारा पशुधन को पहुंचाई गई क्षति के लिए यूरोपीय किसानों को दिया जाने वाला औसत वार्षिक मुआवजा 41.38 मिलियन अमेरिकी डॉलर था। मानव-वन्यजीव संघर्ष का मुख्य कारण वन्यजीवों के लिए मानवीय हस्तक्षेप से दूर रहने के लिए उपलब्ध आवास में कमी है। पृथ्वी की सतह का केवल 26फीसदी हिस्सा ही मनुष्यों से रहित है, जिसमें 18 प्रतिशत पर मनुष्यों का प्रभुत्व है और 56फीसदी हिस्सा वन्यजीवों और लोगों द्वारा साझा किया जाता है। यह गिरावट मुख्य रूप से भूमि उपयोग पैटर्न में बदलाव के कारण है। क्योंकि अधिक भूमि का उपयोग शहरी विस्तार, औद्योगिक उद्देश्यों और कृषि के लिए किया जाता है। जैसे-जैसे हमारी दुनिया ओवरलैप होती जा रही हैं लोगों और वन्यजीवों के बीच मुठभेड़ें अधिक से अधिक आम होती जा रही है, जिससे संघर्ष उच्च स्तर पर आ गया है।
भारत में वन और वन्यजीवों को संविधान की समवर्ती सूची में रखा गया है। केंद्रीय मंत्रालय वन्यजीव संरक्षण संबंधी नीतियों और नियोजन के संबंध में दिशा-निर्देश देने का काम करता है। राज्य वन विभागों की जिम्मेदारी है कि वे राष्ट्रीय नीतियों को कार्यान्वित करें। वन्य जीवों के संरक्षण के लिए भारत के संविधान में 42वें संशोधन (1976) अधिनियम के द्वारा दो नए अनुच्छेद 48-। व 51 को जोड़कर वन्य जीवों से संबंधित विषय के समवर्ती सूची में शामिल किया है। भारत में संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क में वन राष्ट्रीय पार्क तथा 515 वन्यजीव अभयारण्य, 41 संरक्षित रिजर्व्स तथा चार सामुदायिक रिजर्व्स शामिल हैं। संरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन संबंधी जटिल कार्य को अनुभव करते हुए 2002 में राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना को अपनाया गया। जिसमें वन्यजीवों के संरक्षण के लिये लोगों की भागीदारी तथा उनकी सहायता पर बल दिया गया है। वन्यजीवों को विलुप्त होने से रोकने के लिए सर्वप्रथम 1879 में वाइल्ड एलीफेंट प्रिजर्वेशन एक्ट पारित हुआ था। 1927 में भारतीय वन अधिनियम अस्तित्व में आया। जिसके प्रावधानों के अनुसार वन्य जीवों के शिकार एवं वनों की अवैध कटाई को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। 1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। यह एक व्यापक केन्द्रीय कानून है। जिसमें विलुप्त होते वन्य जीवों तथा अन्य लुप्त प्राय प्राणियों के संरक्षण का प्रावधान है। वन्य जीवों की चिंतनीय स्थिति में सुधार एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिये राष्ट्रीय वन्यजीव योजना 1983 में प्रारंभ की गई। इसके बावजूद इनके पालन की मानिटरिंग नहीं होने से सारी व्यवस्था कागजों में रह गई है। मानव-वन्यजीव संघर्ष को हल करना एक चुनौतीपूर्ण समस्या हो सकती है। खासकर तब जब इसका लोगों की आजीविका पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है लेकिन वन्यजीवों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व संभव है। ऐसे में संघर्ष को टालने का सबसे बेहतर विकल्प है। पर्यावरण के अनुकूल विकास अर्थात् तुम भी रहो, हम भी रहें..चलती रहे जिंदगी..इस सबके मद्देनजऱ ऐसी नीतियां बनाने की ज़रूरत है, जिससे मनुष्य व वन्यजीव दोनों ही सुरक्षित रहें।