Politics of BJP: ‘सरप्राइज़ फ़ैक्टर’, नितिन नवीन और जेनरेशन शिफ्ट की रणनीति

बीजेपी की राजनीति: ‘सरप्राइज़ फ़ैक्टर’, नितिन नवीन और जेनरेशन शिफ्ट की रणनीति

भाजपा की कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नितिन नवीन की नियुक्ति ने सभी को चौंकाया है। अब सवाल यह है कि नितिन नवीन को जो की 45 साल के हैं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष क्यों बनाया गया। दरसअल पांच राज्यों में चुनाव होना है। नितिन नवीन की पारिवारिक पृष्ठभूमि संघ और भाजपा से आती है। अपने पिता की मृत्यु के बाद उपचुनाव में जीतने वाले नीति नवीन पांच बार के विधायक हैं और दो बार के मंत्री है। इसके अलावा उन्हें छत्तीसगढ़ में पहले सह प्रभारी और फिर प्रभारी बनाए गए तो उन्होंने छत्तीसगढ़ में और अभी बिहार के चुनाव में भी जीत दिलाने में एक रोल प्ले किया। विपक्ष यह आरोप लग रहा है कि जिस तरह से जेपी नड्डा अध्यक्ष थे और कमान अमित शाह के हाथ में थी, उसी तरह से अब नितिन नवीन के अध्यक्ष होंने पर कमान जो है वह अमित शाह और मोदी के पास होगी। इसको लेकर पूरे देश में काफी राजनीतिक सरगर्मी है। बातचीत हो रही है पर निश्चित रूप से नीति नवीन को नरेंद्र मोदी और अमित शाह का पूरा समर्थन है। आज जिस तरह से अमित शाह ने उनकी पार्टी कार्यालय में अगवाई कि वह यह बताता है कि वह और उनकी पूरी समिति ने मिलकर किस तरह से नितिन नवीन को चुना है। ऐसा नहीं है कि नितिन नवीन ही सबसे युवा प्रेसिडेंट रहे हो इसके पहले जब जनसंघ थी तो अटल बिहारी वाजपेई 44 साल में भी अध्यक्ष बने थे तब पार्टी इतनी बड़ी नहीं थी।

भारतीय राजनीति इस समय दो बिल्कुल अलग-अलग राजनीतिक संस्कृतियों के बीच स्पष्ट रूप से विभाजित दिखाई देती है। एक ओर कांग्रेस है, जहाँ नेतृत्व संकट आते ही पार्टी का पूरा विमर्श फिर से गांधी परिवार के इर्द-गिर्द सिमट जाता है। संगठनात्मक लोकतंत्र की बात होते हुए भी सत्ता और निर्णय प्रक्रिया एक ही परिवार की परिधि से बाहर निकलती नहीं दिखती। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी है, जो अपने फैसलों से बार-बार यह साबित करती रही है कि उसकी राजनीति व्यक्ति-केंद्रित नहीं, बल्कि संगठन और रणनीति-आधारित है, भले ही उसके निर्णय तत्काल समझ से परे क्यों न लगें।

जेपी नड्डा का राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल पूरा होने के बाद बीजेपी नेतृत्व को लेकर चर्चाएँ स्वाभाविक रूप से तेज़ हो गई थीं। राजनीतिक गलियारों में यह लगभग तय माना जा रहा था कि पार्टी किसी बड़े, अनुभवी और स्थापित चेहरे को आगे लाएगी। शिवराज सिंह चौहान, अनुराग ठाकुर, भूपेंद्र यादव, मनोहर लाल खट्टर जैसे नाम खुले तौर पर चर्चा में थे। लेकिन बीजेपी का राजनीतिक इतिहास यही बताता है कि जिन नामों पर सबसे ज़्यादा सहमति बनती दिखती है, अंतिम फैसला अक्सर उनके बिल्कुल विपरीत होता है।
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नितिन नवीन का चयन इसी ‘सरप्राइज़ फ़ैक्टर’ की अगली कड़ी है। यह केवल एक संगठनात्मक नियुक्ति नहीं, बल्कि एक सोची-समझी दीर्घकालिक राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है। बिहार जैसे निर्णायक राज्य से आने वाले नितिन नवीन का राजनीतिक सफर युवा मोर्चा से शुरू होकर पाँच बार विधायक, दो बार मंत्री और संगठन के भीतर लगातार सक्रिय भूमिका तक फैला हुआ है। पिता के निधन के बाद उपचुनाव जीतकर राजनीति में आगे बढऩा उनके संघर्ष और जमीनी पकड़—दोनों को रेखांकित करता है।

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 240 सीटों पर संतोष करना पड़ा। सत्ता तो बनी रही, लेकिन यह परिणाम पार्टी के लिए स्पष्ट संकेत था कि अब राजनीति केवल पुराने फार्मूलों के भरोसे नहीं चलाई जा सकती। संगठन में नए उत्साह, नए संवाद और नई पीढ़ी को प्रतिनिधित्व देने की ज़रूरत महसूस की जाने लगी। नितिन नवीन का उभार इसी आत्ममंथन का परिणाम माना जा रहा है, जहाँ वरिष्ठ नेतृत्व के अनुभव और युवा नेतृत्व की ऊर्जा के बीच संतुलन साधने की कोशिश साफ़ दिखाई देती है।
यह बदलाव केवल राष्ट्रीय स्तर तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्य राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति, अपेक्षाकृत युवा चेहरों को संगठन की कमान सौंपना—ये सभी कदम मिलकर बीजेपी के भीतर चल रहे ‘जेनरेशन शिफ्ट’ को रेखांकित करते हैं। पार्टी यह समझ चुकी है कि आने वाले चुनावों में वही दल प्रभावी रहेगा, जो पहली बार वोट देने वाले मतदाताओं और युवा आबादी से सीधा संवाद स्थापित कर सके।

बीजेपी की यह सोच मुख्यमंत्री चयन में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। मध्य प्रदेश में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय और राजस्थान में भजनलाल शर्मा जैसे फैसले यह संदेश देते हैं कि बीजेपी में चुनाव किसी एक चेहरे के भरोसे नहीं लड़े जाते। सत्ता में आने के बाद नेतृत्व बदल देना, बिना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए चुनाव जीतना—ये सभी निर्णय पार्टी की उस सोच को दर्शाते हैं जिसमें संगठन व्यक्ति से ऊपर रखा जाता है।
इसी रणनीति का विस्तार दो उपमुख्यमंत्री मॉडल में भी देखने को मिलता है। कई राज्यों में दो-दो उपमुख्यमंत्री नियुक्त कर बीजेपी ने यह स्पष्ट किया है कि सत्ता केवल पदों का वितरण नहीं, बल्कि सामाजिक, क्षेत्रीय और संगठनात्मक संतुलन साधने का माध्यम भी है। यह मॉडल गुटीय असंतोष को नियंत्रित करने और भविष्य के नेतृत्व को तैयार करने का राजनीतिक औज़ार बन चुका है।

नितिन नवीन की ताजपोशी का दृश्य भी अपने आप में एक राजनीतिक संदेश था। बीजेपी मुख्यालय में वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी, अमित शाह और धर्मेंद्र प्रधान की सक्रिय भूमिका और जेपी नड्डा का पृष्ठभूमि में खड़ा होना, यह सब संकेत देता है कि पार्टी एक क्रमिक सत्ता हस्तांतरण की दिशा में बढ़ रही है। भले ही नितिन नवीन अभी कार्यकारी अध्यक्ष हों, लेकिन संगठन के भीतर उन्हें भविष्य के पूर्ण अध्यक्ष के रूप में देखा जाने लगा है।
विपक्ष इस पूरे घटनाक्रम को ‘रबर स्टैंप अध्यक्ष’ की संज्ञा दे रहा है। उसका तर्क है कि सत्ता में रहते हुए पार्टी अध्यक्ष की भूमिका सीमित रहती है और वास्तविक नियंत्रण प्रधानमंत्री व गृह मंत्री के हाथ में ही होता है। यह तर्क पूरी तरह निराधार भी नहीं है, लेकिन राजनीति केवल शक्ति के यथार्थ से नहीं, बल्कि उसके प्रतीकों, संदेशों और भविष्य की दिशा से भी संचालित होती है। बीजेपी यह भली-भांति समझती है कि आधुनिक राजनीति में यह दिखाना उतना ही ज़रूरी है कि नेतृत्व किस दिशा में बढ़ रहा है, जितना यह तय करना कि सत्ता किसके पास है।
नितिन नवीन का उभार इसी प्रतीकात्मक राजनीति का हिस्सा है। सवाल यह नहीं है कि उनके पास अभी कितनी शक्ति है, बल्कि यह है कि पार्टी उन्हें किस भूमिका के लिए तैयार कर रही है। युवा नेतृत्व को आगे लाकर बीजेपी यह संकेत दे रही है कि संगठन केवल वर्तमान सत्ता का उपकरण नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के नेतृत्व को गढऩे का मंच है।
हालाँकि इस रणनीति के साथ जोखिम भी जुड़े हैं। युवा नेतृत्व को आगे लाने से वरिष्ठ नेताओं के असंतोष की संभावना बनी रहती है। यदि युवा चेहरों को केवल प्रतीक बनाकर रखा गया और निर्णय प्रक्रिया में उनकी वास्तविक भूमिका नहीं बढ़ी, तो ‘जेनरेशन शिफ्ट’ का नैरेटिव खोखला साबित हो सकता है। लेकिन बीजेपी का राजनीतिक इतिहास बताता है कि वह ऐसे जोखिम उठाने और प्रयोग करने से नहीं डरती।

आज विपक्षी दलों की स्थिति देखें तो अधिकांश राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व 70-80 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। कांग्रेस में राहुल गांधी के बावजूद नेतृत्व संकट और स्पष्ट राजनीतिक दिशा का अभाव बना हुआ है। ऐसे में बीजेपी का युवा नेतृत्व को आगे लाना केवल संगठनात्मक निर्णय नहीं, बल्कि विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की रणनीति भी है।
अंतत: नितिन नवीन का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनना केवल एक व्यक्ति का उभार नहीं, बल्कि बीजेपी की उस राजनीति का विस्तार है जो वर्तमान से अधिक भविष्य को ध्यान में रखकर फैसले लेती है। यह फैसला जेनरेशन गैप को पाटने की कोशिश भी है और आने वाले चुनावों की रणनीतिक तैयारी भी। आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि यह प्रयोग कितना सफल होता है, लेकिन फिलहाल इतना तय है कि बीजेपी ने एक बार फिर यह संदेश दे दिया है—भारतीय राजनीति में दिशा वही तय करता है, जो चौंकाने के साथ-साथ दूर की सोच रखता है।

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