वोट चोरी को लेकर विपक्ष का प्रदर्शन

वोट चोरी को लेकर विपक्ष का प्रदर्शन

समूचा विपक्ष चुनाव आयोग की भूमिका विशेष गहन पुनरीक्षण( एसआईआर) और वोट चोरी के मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए दिल्ली की सडक़ों पर प्रदर्शन कर गिरफ़्तारी देता रहा और चुनाव आयोग पर सत्ता पक्ष के साथ साठगांठ का आरोप लगाता रहा। यूँ तो चुनाव आयोग एक स्वायत्त संस्था है किन्तु इधर के सालों में वह अपनी निष्पक्षता को लेकर सवालों के घेरे में है।

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता हमेशा से एक महत्वपूर्ण विषय रही है। हाल ही में, विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया और कथित वोट चोरी को लेकर विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया ब्लॉक ने तीव्र विरोध प्रदर्शन किया है। यह मुद्दा 2024 लोकसभा चुनावों के बाद से उभरा है, जहां विपक्ष ने ईसीआई पर भाजपा के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है। राहुल गांधी ने इसे ‘संविधान बचाने की लड़ाई’ करार दिया है।

11 अगस्त 2025 की शुरुआत में, विपक्षी दलों ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किया। लगभग 300 सांसदों ने संसद से ईसीआई मुख्यालय तक मार्च निकाला, जहां गिरफ्तारियां हुईं और नारेबाजी की गई। मुख्य मुद्दा एसआईआर प्रक्रिया है, जो मतदाता सूचियों की गहन जांच और संशोधन के लिए होती है। विपक्ष का दावा है कि हरियाणा, बिहार, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में एशआईआर के दौरान मतदाता सूचियों में हेरफेर किया गया, जिसमें फर्जी मतदाताओं को जोड़ा गया या वैध मतदाताओं को हटाया गया, जिससे भाजपा को फायदा पहुंचा। राहुल गांधी ने 1 अगस्त 2025 को संसद के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उनके पास ‘ओपन एंड शट प्रूफ’ है कि ईएसआई वोट चोरी में शामिल है। उन्होंने ईएसआई अधिकारियों को चेतावनी दी कि ‘चाहे रिटायर्ड हों, हम आपको ढूंढेंगे और सजा देंगे, यह देशद्रोह है।’ इसके बाद, 7 अगस्त को एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने 2024 चुनावों में वोटर फ्रॉड का आरोप लगाया। विपक्ष ने ईएसआई से मशीन-रीडेबल डेटा और सीसीटीवी फुटेज की मांग की, जो नियमों के अनुसार 45 दिनों में नष्ट कर दिए जाते हैं।
सोशल मीडिया पर यह मुद्दा व्यापक रूप से चर्चित रहा। उदाहरण के लिए, एक्स (पूर्व ट्विटर) पर उपयोगकर्ताओं ने राहुल गांधी के वीडियो शेयर किए, जहां उन्होंने ईवीएम के बजाय मतदाता सूचियों में हेरफेर पर जोर दिया। एक पोस्ट में बिहार में फर्जी मतदाताओं को हटाने की प्रक्रिया का जिक्र किया गया, जो विपक्ष के दावों से मेल खाता है।

राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता जैसे तेजस्वी यादव ने ईएसआई पर जो आरोप लगाए हैं उनमें एसआईआर के दौरान हरियाणा और बिहार में लाखों फर्जी मतदाताओं को जोड़ा गया, जो भाजपा के पक्ष में वोट डालते हैं। उदाहरणस्वरूप, बिहार में एसआईआर के दौरान असामान्य रूप से अधिक मतदाता जोड़े गए। हालांकि राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि समस्या ईवीएम में नहीं, बल्कि मतदाता सूचियों में है, लेकिन उन्होंने कुल मिलाकर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ईएसआई ने डेटा छिपाया और नियम बदलकर सबूत नष्ट किए। राहुल गांधी ने इसे ‘संविधान बचाने की लड़ाई’ बताया, क्योंकि इससे लोकतंत्र की नींव हिल जाती है। उन्होंने 2024 चुनावों में कर्नाटक, मध्य प्रदेश और हरियाणा में असंगतियों का हवाला दिया। विपक्ष ने ईएसआई से मिलने की मांग की, लेकिन प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तारियां हुईं, जिससे नारेबाजी और तनाव बढ़ा।

ईएसआई ने आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने राहुल गांधी से एफिडेविट मांगते हुए कहा कि यदि सबूत हैं, तो कानूनी रूप से पेश करें। ईएसआई ने कर्नाटक के आरोपों का फैक्ट-चेक किया और कहा कि एसआईआर एक मानक प्रक्रिया है, जो पारदर्शी रूप से होती है। भाजपा नेताओं जैसे शिवराज सिंह चौहान और धर्मेंद्र प्रधान ने विपक्ष पर हमला बोला, कहा कि ‘जीतने पर सब ठीक, हारने पर आरोप।’ उन्होंने इसे विपक्ष की हताशा बताया। भाजपा ने यह भी कहा कि विपक्ष लोकतंत्र को बदनाम कर रहा है। ईएसआई ने स्पष्ट किया कि एसआईआर मतदाता सूचियों को अपडेट करने के लिए है, और इसमें राजनीतिक दलों की भागीदारी होती है। वे दावा करते हैं कि कोई हेरफेर नहीं हुआ।
ईएसआई की विश्वसनीयता पर सवाल उठना नया नहीं है। विपक्ष के आरोप गंभीर हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस सबूत सार्वजनिक नहीं किया गया। राहुल गांधी ने ‘100फीसदी प्रूफ’ का दावा किया, लेकिन ईएसआई ने इसे चुनौती दी है। स्वतंत्र स्रोतों से पता चलता है कि एसआईआर में असंगतियां हो सकती हैं, जैसे बिहार में मतदाता वृद्धि, लेकिन यह जरूरी नहीं कि साजिश हो। हालांकि, ईएसआई द्वारा डेटा न प्रदान करना और फुटेज नष्ट करने के नियमों से पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।

दूसरी ओर, भाजपा के दावे भी राजनीतिक लगते हैं। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो यह ईएसआई की साख पर बड़ा धब्बा होगा, लेकिन बिना सबूत के यह मात्र राजनीतिक शोर लगता है। सुप्रीम कोर्ट या स्वतंत्र जांच से ही सच्चाई सामने आ सकती है। यह मुद्दा लोकतंत्र की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे मतदाताओं का विश्वास प्रभावित होता है। यह विवाद भारतीय चुनावी प्रक्रिया की कमजोरियों को उजागर करता है। विपक्ष का प्रदर्शन और आरोप लोकतंत्र की रक्षा का प्रयास लगते हैं, लेकिन निष्पक्ष जांच जरूरी है। श्वष्टढ्ढ को अधिक पारदर्शी बनना चाहिए, जबकि विपक्ष को सबूत पेश करने चाहिए। अंतत:, यह ‘संविधान बचाने की लड़ाई’ तभी सार्थक होगी जब तथ्यों पर आधारित हो।

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