-सुभाष मिश्र
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए दिए गए इस इस्तीफे को विपक्ष ने ‘लिया गयाÓ बताते हुए खारिज कर दिया है, जबकि मीडिया रिपोर्ट्स में बीजेपी के आंतरिक मतभेदों की कहानियां उभर रही है। धनखड़ का इस्तीफा मानसून सत्र के पहले दिन आया, जब उन्होंने राज्यसभा में विपक्ष की एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को स्वीकार किया था।
धनखड़ का कार्यकाल और विवाद: जगदीप धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था। उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा, जिसमें राज्यसभा की कार्यवाही में विपक्ष के साथ टकराव, न्यायपालिका पर टिप्पणियां और किसानों के मुद्दों पर सरकार से मतभेद शामिल हैं। धनखड़ ने न्यायपालिका की ‘मूल संरचना सिद्धांत पर सवाल उठाए और भ्रष्टाचार के मामलों में जवाबदेही की मांग की। हाल ही में उन्होंने एक हाईकोर्ट जज के घर से नकदी बरामदगी पर चिंता जताई, लेकिन कोई एफआईआर न दर्ज होने पर केंद्र की असमर्थता का जिक्र किया। विपक्ष ने उन्हें पक्षपाती बताते हुए दिसंबर 2024 में अविश्वास प्रस्ताव लाया था।
घटनाक्रम की टाइमलाइन: 21 जुलाई 2025 (सुबह-दोपहर) धनखड़ ने राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता की। उन्होंने इंडिया गठबंधन के 63 सांसदों द्वारा हाईकोर्ट जज यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार किया। जज वर्मा के घर से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच की सिफारिश की थी। धनखड़ ने इसे स्वीकार कर सदन के महासचिव को कार्रवाई के निर्देश दिए। सूत्रों के अनुसार, यह कदम सरकार को नागवार गुजरा क्योंकि केंद्र खुद लोकसभा में इस पर प्रस्ताव लाना चाहता था। दोपहर में संसद के बिजनेस एडवाइजरी कमिटी की बैठक में केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू अनुपस्थित रहे, जिससे धनखड़ नाराज हुए।
21 जुलाई 2025 (शाम): धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से अनियोजित मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन पहुंचने का समय लगभग 9 बजे था। लगभग राच 9:25 बजे उपराष्ट्रपति के आधिकारिक एक्स हैंडल से इस्तीफा पत्र जारी किया गया। पत्र में लिखा: ‘स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।Ó इस्तीफा संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत दिया गया।
22 जुलाई 2025: राष्ट्रपति मुर्मू ने इस्तीफा स्वीकार किया। गृह मंत्रालय ने गजट अधिसूचना जारी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स पर पोस्ट किया: ‘जगदीप धनखड़ को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है।
मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं। बीजेपी की ओर से कोई अन्य बड़ा बयान नहीं आया, जो आंतरिक तनाव की ओर इशारा करता है।
23 जुलाई 2025: चुनाव आयोग ने उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया शुरू की। आयोग ने कहा कि चुनाव अनुच्छेद 324 और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति चुनाव अधिनियम, 1952 के तहत होगा। इलेक्टोरल कॉलेज की तैयारी और रिटर्निंग ऑफिसर की नियुक्ति चल रही है। चुनाव कार्यक्रम जल्द घोषित होगा। संभावित उत्तराधिकारी के रूप में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और यूपी गवर्नर आनंदीबेन पटेल के नाम उछले रहे है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ के इस्तीफे पर विपक्ष की ओर से कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ‘धनखड़ का इस्तीफा अप्रत्याशित है। स्वास्थ्य कारण सही हो सकते हैं, लेकिन इसमें गहरा कारण है जो आंखों से दिखाई नहीं देता। उन्होंने बैठक में मंत्रियों की अनुपस्थिति का जिक्र किया और कहा कि धनखड़ को अपमानित किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि ‘कुछ गड़बड़ है। स्वास्थ्य कारण बहाना है; यह राजनीतिक दबाव का नतीजा है। कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ‘पत्र में दिए कारण विश्वसनीय नहीं लगते। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि ‘संवैधानिक पद का अपमान किया गया है। अन्य विपक्षी नेता जैसे तेजस्वी यादव और गौरव पंधी ने इसे बीजेपी की आंतरिक साजिश बताया, बिहार चुनावों से जोड़ा।
बीजेपी और सरकार की ओर से हरियाणा मंत्री रणबीर सिंह गंगवा ने कहा कि ‘उन्होंने खुद स्वास्थ्य कारण बताए। विपक्ष हमेशा आलोचना करेगा। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने विपक्ष पर तंज कसा, लेकिन इस्तीफे पर चुप्पी साधी। सूत्रों के अनुसार, धनखड़ के न्यायपालिका पर हमलों और किसानों के मुद्दों पर सरकार से मतभेद थे। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि धनखड़ का महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार करना सरकार की योजना में बाधा बना, जिससे अविश्वास प्रस्ताव की अफवाहें उड़ी।
यह इस्तीफा संवैधानिक पद की गरिमा और राजनीतिक स्वायत्तता पर सवाल उठाता है। एक ओर धनखड़ के स्वास्थ्य कारण वैध लग सकते हैं, लेकिन टाइमिंग (मानसून सत्र का पहला दिन, महाभियोग प्रस्ताव के बाद) संदेह पैदा करती है। विपक्ष इसे बीजेपी की आंतरिक कलह से जोड़ रहा है, खासकर बिहार चुनावों के मद्देनजर, जहां जाट समुदाय प्रभावित हो सकता है। सरकार की चुप्पी और विपक्ष की प्रशंसा (जिसने पहले उन्हें हटाने की कोशिश की) विडंबना है। यह घटना न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन पर बहस को तेज कर सकती है। उपराष्ट्रपति चुनाव जल्द होने से राजनीतिक गतिविधियां बढ़ेंगी। क्या यह स्वास्थ्य का मसला है या सत्ता की साजिश? सच्चाई सामने आने में समय लगेगा, लेकिन यह लोकतंत्र की मजबूती पर सवाल जरूर खड़ा करता है।