सरकारें तीन, साल दो: मोदी की गारंटी और भाजपा शासित राज्यों का द्विवार्षिक मूल्यांकन

-सुभाष मिश्र

दिसंबर 2023 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा ने सत्ता में वापसी या नए सिरे से प्रवेश किया। तीनों राज्यों में इस बार पार्टी हाईकमान ने पारंपरिक चेहरों को दरकिनार करते हुए नए नेतृत्व पर दांव लगाया। मध्य प्रदेश में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय और राजस्थान में भजन लाल शर्मा। चुनावी मुहिम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी राजनीति प्रमुख थी और सरकारें भी उसी दिशा में काम करने के दावे के साथ आगे बढ़ीं। अब जब यह शासन दो वर्ष पूरे करने को है, तब इन सरकारों के प्रदर्शन का मूल्यांकन आवश्यक है।
मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने अपने दो वर्षों में आर्थिक मोर्चे पर बड़ी छलांग लगाने का दावा किया है। ग्लोबल इन्वेस्टर समिट 2025 में राज्य को 30.77 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड निवेश प्रस्ताव मिले, जिससे लगभग दो लाख रोजगार सृजित होने की उम्मीद जताई गई। कृषि क्षेत्र में भी किसान सम्मान निधि जैसी योजनाओं का विस्तार हुआ और उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया गया। छह क्षेत्रीय औद्योगिक सम्मेलनों के माध्यम से सरकार ने निवेश-अनुकूल माहौल तैयार करने की कोशिश की। लेकिन उपलब्धियों के समानांतर चुनौतियां भी सामने हैं। शिक्षा प्रणाली की जमीनी हालत अभी भी कमजोर है, बुनियादी सुविधाओं और शिक्षक उपलब्धता को लेकर सवाल बने हुए हैं। उद्योगों में निवेश प्रस्ताव तो हैं, पर वास्तविक क्रियान्वयन की गति संतोषजनक नहीं मानी जा रही। कैबिनेट समीक्षा और संभावित फेरबदल की चर्चाएं शासन की आंतरिक असहजता को भी संकेत देती है। कुल मिलाकर, मोहन यादव सरकार आर्थिक संभावनाओं को तो आगे बढ़ा रही है, परंतु स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में सुधार की रफ्तार अब भी अपेक्षित है। ‘गोल 47 का दीर्घकालिक लक्ष्य आकर्षक है, मगर असली कसौटी इसका क्रियान्वयन ही होगा।
छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार ने दो वर्षों में सुरक्षा और विकास को साथ लेकर चलने की कोशिश की है। लंबे समय से नक्सल प्रभावित इस राज्य में साय ने 2026 तक माओवाद को निर्णायक रूप से खत्म करने का लक्ष्य रखा है। केंद्र की सहायता से कई सफल ऑपरेशन हुए, जिनसे कई इलाकों में सुरक्षा स्थिति बेहतर हुई है। निवेश के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय उछाल देखने को मिला। केवल छह महीनों में 4.50 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव सरकार के दावे में शामिल हैं। नई औद्योगिक नीति (2024-30) ने आदिवासी, ग्रामीण और पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रोत्साहन पेश किए, जिससे राज्य के समावेशी विकास मॉडल को बल मिला। धान खरीद में भी रिकॉर्ड 145 लाख टन का आंकड़ा और किसानों को 3,716 करोड़ रुपये के बोनस ने कृषि अर्थव्यवस्था को राहत दी। शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल क्षेत्र में भी कुछ सुधार दर्ज हुए। राष्ट्रीय खेलों में विजेताओं को 1.95 करोड़ रुपये का सम्मान देकर युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया गया। इसके बावजूद, चुनौतियां बनी हुई है। नक्सलवाद पूरी तरह खत्म नहीं हुआ और कई दूरस्थ आदिवासी इलाकों में बुनियादी सेवाओं की कमी बरकरार है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाने के साथ-साथ साय सरकार को अब अपने कार्यों की ठोस जमीन तैयार करनी होगी। हालांकि आदिवासी नेतृत्व में विश्वास बहाल करने में सरकार को बढ़त मिली है, लेकिन बड़ी दूरी अभी भी तय करनी है।
राजस्थान में भजन लाल शर्मा सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत ही भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से की। पेपर लीक और भर्ती घोटालों पर कार्रवाई ने राज्य में नया संदेश दिया। सरकार का दावा है कि पहले वर्ष में ही चुनावी वादों का 55 प्रतिशत पूरा कर लिया गया, जिसमें महिलाओं की सुरक्षा, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन और गरीब कल्याण योजनाएं शामिल हैं। कई केंद्रीय योजनाओं में राजस्थान का शीर्ष पर रहना भी शासन के लिए सकारात्मक संकेत माना गया। शर्मा ने प्रशासनिक फेरबदल के जरिए राज्य मशीनरी पर अपनी पकड़ मजबूत की और पीएम मोदी से मुलाकात में विकास प्राथमिकताओं की समीक्षा की। उपचुनावों में जीत और परीक्षा घोटालों पर कार्रवाई से सरकार का नैरेटिव मजबूती से उभरता दिखा।
परंतु आलोचनाएं भी कम नहीं हैं। नए जिलों के गठन पर कोई निर्णायक कदम नहीं उठाया गया, ‘रेड डायरी जैसे मुद्दों को राजनीतिक शोर में छोड़ दिया गया और अनुभवहीन नेतृत्व पर विपक्ष लगातार सवाल उठाता रहा। प्रशासनिक कामकाज में स्थिरता लाने की चुनौती अब भी बनी हुई है। यानी, भ्रष्टाचार पर प्रहार के बावजूद व्यापक संरचनात्मक सुधारों की गति धीमी है
तीनों राज्य भाजपा के नए चेहरे, नई ऊर्जा मॉडल को प्रदर्शित करते हैं। शुरुआती दो वर्षों में निवेश, सुरक्षा, कृषि और कल्याण योजनाओं पर काम करने का प्रयास स्पष्ट दिखता है। साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और ग्रामीण विकास जैसे मूलभूत क्षेत्रों में कमियां भी बार-बार उभरकर सामने आई हैं।
विपक्ष लगातार पूर्व सरकारों की बातों पर चर्चा करता रहा, लेकिन अब जनता का ध्यान इन नई सरकारों के ठोस काम पर केंद्रित होगा। आने वाले तीन वर्ष—2028 के विधानसभा चुनावों से पहले—इन राज्यों की दिशा तय करेंगे। यदि ये सरकारें अपने घोषणा-पत्र और मोदी की गारंटी को जमीनी हकीकत में बदल सकीं तो भाजपा अपनी रणनीति में सफल मानी जाएगी, अन्यथा मतदाता नए विकल्पों की तलाश में भी पीछे नहीं हटेंगे।

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