Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – गैंगस्टरों ने बनाए ‘स्लीपर सेल

Editor-in-Chief

-सुभाष मिश्र

अब केवल आतंकवादी संगठन या सरकारी गुप्तचर, सुरक्षा संबंधी एजेंसियों के ही नहीं बल्कि देश के भीतर गैंग चलाने वाले गिरोह भी अब स्लीपर सेल बनाने लगे है। बांग्लादेश में हुई हालिया घटना में चीन और पाकिस्तान के स्टुड्ंट के बीच स्लीपर सेल के ज़रिए वहाँ के आंदोलन को हवा देने की बहुत सी जानकारी बाहर आ रही है। बांग्लादेश की घटना के बाद जिस तरह से सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों के लोग एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं तो कुछ लोग कहने लगे हैं की देखिए अब फ़लाँ पार्टी, विचार के स्लीपर सेल ऐक्टिव हो गये हैं। स्लीपर सेल को लेकर वेबसीरिज भी आ चुकी है और बहुत सी फि़ल्में भी बन चुकी हैं। अब देश के भीतर अपहरण, हत्या, सुपारी किलिंग,डकैती आदि की घटना को अंजाम देने वाले गैंगस्टर भी स्लीपर सेल के जरिए अपने कारनामों को अंजाम देने लगे है।
अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ की राजधानी में गोलीबारी की घटना हुई। उसकी पड़ताल में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए। झारखंड में सड़क बना रहे रायपुर के कारोबारी को डराने के लिए दो नकाबपोश शूटरों ने उनके दफ्तर के बाहर फायरिंग की और फरार हो गए। इस गोलीकांड की जिम्मेदारी गैंगस्टर लारेंस बिश्नोई और अमन साहू से जुड़े अमन सिंह ने ली है। गोलीकांड के आरोपियों की तलाश में पुलिस की 10 टीमें दिल्ली, पंजाब, झारखंड और उत्तरप्रदेश में छापामारी कर रही है। इस मामले में अब तक आठ आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है। पूछताछ में पता चला कि गैंगस्टरों के गुर्गे आम लोगों की तरह हमारे बीच ही रहते हैं। ये पेशेवर अपराधी भी नहीं हैं, लेकिन काम मिलते ही टारगेट किलिंग करने से नहीं हटते। दरअसल, ये गुर्गे गैंगस्टरों के ‘स्लीपर सेल के रूप में काम करते हैं। खतरनाक और चिंताजनक बात यह है कि गैंगस्टरों ने भी आतंकियों की तरह अपना ‘स्लीपर सेल तैयार कर लिया है। गैंगस्टर सोशल मीडिया के जरिए ‘स्लीपर सेल को हायर किया जाता है। इसी तरह का एक मामला जयपुर की जवाहर सर्किल थाना पुलिस क्षेत्र का है। जी-क्लब फायरिंग मामले में कुछ दिन पहले पुलिस ने अदालत में चार्जशीट पेश की थी। पहली बार अदालत में दाखिल चार्जशीट में ‘स्लीपर सेल शब्द का उल्लेख किया गया है। यह पहली बार है कि गैंग द्वारा ‘स्लीपर सेल बनाने की बात कही गई है।
लॉरेंस बिश्नोई गैंग ने सलमान खान के घर पर फायरिंग करने के लिए स्लीपर सेल का इस्तेमाल किया था। जांच में सामने आया है कि अलग-अलग राज्यों में मौजूद ‘स्लीपर सेल के जरिए शूटर सागर पाल और विक्की गुप्ता को बाइक, हथियार और फरारी काटने तक की मदद पहुंचाई गई। राजस्थान के नागौर से गिरफ्तार रफीक चौधरी ने इस मामले में शूटर्स को फाइनेंस किया था। वह मुंबई में रेस्टोरेंट चलाता था। उसने सलमान के घर की रेकी कर वीडियो बनाया और अनमोल बिश्नोई को भेजा था।
स्लीपल सेल वह शक्स होते हैं जो देश में अंदर रहकर साजि़श रचते हैं, मगर हमें दिखाई भी नहीं देते हैं। स्लीपर सेल यानी जासूसों का वो ग्रुप जो एक शहर में रहकर भी एक दूसरे को नहीं जानते, किसी देश या आतंकवादी गुट के वो आतंकी जो आम लोगों के साथ रहते हैं, मगर किसी को दिखाई नहीं देते। यहां तक कि इन्हें हमले की डेडलाइन भी नहीं दी जाती है। ये स्लीपिंग मोड में आम लोगों के साथ अपनी जि़ंदगी जीते हैं, ज़रूरत पडऩे पर ही इनका हैंडलर यानी वो इंसान जिसके पास इनकी जानकारी होती है, इन्हें एक्टीवेट करता है।
एक शेर है जो अक्सर आराम फऱमाने लोग कहते हैं –
किस-किस का गिला कीजिए, किस-किस को रोईये
आराम बड़ी चीज़ है मुँह ढक कर सोईये।
ज़रूरी नहीं है की जो आपको हमेशा सोता हुआ, निष्क्रिय या सीधा साधा, मासूम सा, निर्लिप्त सा दिखाई दे, असल जि़ंदगी में वह वैसा ही हो। स्लीपर सेल कुछ उसी तरह के होते हैं। बहुत से मासूम दिखने वाले स्कूल-कॉलेज के बच्चों का ब्रेनवाश करके उन्हें भी स्लीपर सेल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। कश्मीर की आतंकवादी गतिविधियों के बीच इस तरह का बड़ा खुलासा हुआ है।
स्लीपर सेल से जुड़े गुर्गे पुलिस और जांच एजेंसियों से बचने के लिए बॉक्स कॉल के जरिए संपर्क में रहते हैं। बॉक्स कॉल करने के लिए मोबाइल से सिग्नल ऐप कॉल करने के बाद स्पीकर ऑन- हैंड्स फ्री कर बात की जाती है। बॉक्स कॉल करने से कॉल इंटरसेप्ट नहीं की जा सकती है, और ना ही कॉल लोकेट हो पाती है।
एक मामले में कोर्ट में दाखिल चार्जशीट में उल्लेख है कि विदेश में बैठे गैंगस्टर रोहित गोदारा, गोल्डी बराड़, अनमोल बिश्नोई जेल में बैठे लारेंस बिश्नोई के संपर्क में थे। इसके अलावा लॉरेंस, रितिक हो या अन्य गैंगस्टर भारत में प्रतिबंधित विकर मी एप का वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क इस्तेमाल कर रहे थे। आईएसआईएस, जैश-ए-मोहम्मद, इंडियन मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन स्लीपर सेल के जरिए ही वारदात को अंजाम देते हैं। आतंकी संगठन स्लीपर सेल में आम लोगों को ब्रेन वॉश कर भर्ती करते हैं। उसके बाद उन्हें आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करते हैं। उसी तर्ज पर लॉरेंस बिश्नोई और उसके गुर्गे सोशल मीडिया व मोबाइल के जरिए अधिकतर नाबालिगों को स्लीपर सेल के रूप में भर्ती कर रहे हैं। नाबालिगों का ब्रेनवॉश कर उन्हें टारगेट करना आसान होता है। वहीं कानूनी दांव-पेंच के कारण नाबालिगों को सख्त सजा भी नहीं होती है। हाल तो यह है कि राजकीय संप्रेक्षण गृह एवं बाल सुधार गृह में लॉरेंस बिश्नोई के गुर्गे ने गैंग बना रखी थी। इसे बाहर से चायवाला और गार्ड सामान पहुंचाते थे। जब फरवरी में 22 बाल अपचारी भागे तो इसमें लॉरेंस का भी एक गुर्गा शामिल था। उसने जी क्लब पर फायरिंग की थी।
‘डोंगरी टू दुबई नामक पुस्तक में लिखा गया है कि बंबई के पास एक राजा था जिसने इस परंपरा की शुरुआत की थी। अगर वह किसी को मारना चाहता था, तो वह अपने दरबार में लोगों को बुलाता था, जो व्यक्ति इस काम को करने के लिए तैयार होता था, वह आगे आता था। फिर राजा उसे आधिकारिक हत्यारा बनाने के लिए पवित्र ‘सुपारीÓ देता था, इसलिए यह शब्द लोकप्रिय हो गया और इसलिए अंडरवर्ल्ड में इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
एनआईए के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक जम्मू कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकियों के बड़े पैमाने पर स्लीपर सेल मौजूद हैं। हालाँकि, लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जैश-ए-मोहम्मद और हरकत-उल-जिहाद अल-इस्लामी, जैसे आतंकी संगठनों व उनके स्लीपर सेल का अंदेशा तो जाँच एजेंसियों को पहले भी था, लेकिन स्कूली बच्चों का इस्तेमाल, यह एक राज ही बना हुआ था। सुरक्षा एवं जाँच एजेंसियों ने इस मामले में एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश किया है। जम्मू-कश्मीर के 178 हायर सेकेंडरी स्कूल और 41 हाईस्कूल ऐसे मिले हैं, जहाँ आतंकी संगठन अपने स्लीपर सेल के जरिए बच्चों को गुमराह कर आतंक के रास्ते पर ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। फोन टैपिंग के जरिए जो बातें सामने आई हैं, उसके मुताबिक इस नेक्सस में स्कूल के अध्यापक, चतुर्थ श्रेणी स्टाफ और 5 सरकारी विभाग, वन, लोक निर्माण, श्रम विभाग, मंडी और परिवहन शामिल हैं। आतंकी संगठनों ने सभी स्कूल में स्लीपर सेल के लिए अलग-अलग कोड जारी किए हैं। नाबालिगों को भारतीय सुरक्षाबलों के खिलाफ भड़का कर उन्हें पहली किश्त के तौर 1,500 भी देते हैं। एनआईए अफसरों की मानें तो अनंतनाग-25 स्कूल, बांदीपोरा-15 हाई और 8 हायर सेकेंडरी स्कूल, बारामुला में 34 हाई और 14 हायर सेकेंडरी स्कूल, बडग़ांव में 18 हायर सेकेंडरी स्कूल, डोडा में 11, कठुआ में 5, किश्तवाड़ में 13, कुलगांव में 8, कुपवाड़ा में 17 हाई व 21 हायर सेकेंडरी, शोपियां में 21 और पुलवामा में 11 हायर सेकेंडरी स्कूल शामिल हैं। इसके अलावा कई हाईस्कूलों में भी स्लीपर सेल अपनी गतिविधियाँ संचालित कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के खंडवा से गिरफ्तार किया गया इंडियन मुजाहिदीन का संदिग्ध आतंकी फैजान शेख मप्र एटीएस की पूछताछ में कई चौंकाने वाले खुलासे किये हैं। उसने बताया कि वह बच्चों का ब्रेनवॉश किया करता था। वह मजहबी कट्टरता के नाम पर अपने समुदाय के नाबालिग बच्चों का ब्रेनवॉश कर स्लीपर सेल बना रहा था।
आतंकियों की ही तर्ज़ पर झारखण्ड और छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों ने भी अपने स्लीपर सेल में बहुत से बच्चों को शामिल कर रखा है, जो उनको सुरक्षाबलों के मूवमेंट से लेकर तमाम जानकारियां उपलब्ध कराते हैं। जंगलों में रहने वाले ये सीधे-सादे बच्चे जल्दी ही नक्सलियों के बहकावे में आ जाते हैं। वहीं नाबालिग होने के कारण इनको जुबेनाइल होने का फायदा भी आसानी से मिल जाता है। कई मौकों पर सुरक्षा बालों के जवानों ने इनको पकड़ा भी है। इनका इस कदर ब्रेनवॉश किया जाता है कि ये अपने हैंडलर के एक इशारे पर मरने-मिटने पर आमादा हो जाते हैं। ये ख़ुफिय़ा जानकारियां नक्सलियों को पहुंचाते हैं। नक्सली क्षेत्र में चल रहे अभियान से पुलिस प्रशासन इस बात को भी देखा जा रहा है की बच्चे, बड़े इन लोगों के बहकावे में ना आये।हमारे देश की बड़ी आबादी में बहुत से युवा , तरूण बेरोज़गारी का दंश झेल रहे हैं , आर्थिक अभाव , आसपास की चकाचौंध और समाज में बुरे और अनैतिक तरीक़े से आगे बढ़ते लोगों के महिमामंडन और लाईफ़ स्टाइल को देखकर युवा वर्ग भी शार्टकट के रास्ते आगे जाने की , प्रसिद्धि पाने की सोचने लगता है । अपराधिक गतिविधियों को जिस तरह से ग्लैमराईज करके दिखाया , बताया जा रहा है , वह भी स्लीपर सेल जैसी चीजों को बढ़ावा दे रही है । समाज के जागरूक लोगों को , अभिभावकों और शासन प्रशासन के लोगों को बार-बार एक दूसरे से कहना होगा जागते रहो ।

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