Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – नए साल की दस्तक और हड़ताल की आहट

 नए साल की दस्तक और हड़ताल की आहट

-सुभाष मिश्र
नया साल आम तौर पर उम्मीदों, संकल्पों और नई शुरुआत का प्रतीक होता है। लेकिन छत्तीसगढ़ में 2026 का आग़ाज़ कर्मचारियों के लिए हड़ताल और टकराव के माहौल में हो रहा है। 29, 30 और 31 दिसंबर—तीन दिन, तीन संदेश और चार लाख पचास हज़ार से अधिक कर्मचारी-अधिकारी। राज्य के इतिहास में यह कोई सामान्य घटना नहीं है। यह केवल वेतन, भत्ते या पदोन्नति का सवाल नहीं, बल्कि भरोसे, वादों और शासन की संवेदनशीलता की भी परीक्षा है।

छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन के बैनर तले हो रही यह त्रिदिवसीय हड़ताल 11 सूत्रीय मांगों को लेकर है, लेकिन इसकी जड़ें कहीं गहरी हैं। नवा रायपुर अटल नगर स्थित मंत्रालय, इंद्रावती भवन, संचालनालयों से लेकर जिला, ब्लॉक, तहसील, स्कूल, अस्पताल, निगम-मंडल हर जगह कामकाज ठप पडऩे की आशंका है। पेंशनर्स भी इस आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। यह अपने आप में संकेत है कि असंतोष किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं रह गया है।
एक तरफ केंद्र सरकार 1 जनवरी से आठवें वेतन आयोग की घोषणा की तैयारी में है, दूसरी ओर छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कर्मचारी नए साल की पूर्वसंध्या पर ‘कलम बंद-काम बंद’ आंदोलन कर रहे हैं। यह विरोधाभास केवल आर्थिक नहीं, राजनीतिक और नैतिक भी है।

पिछले कुछ वर्षों में ‘मोदी की गारंटी’ एक राजनीतिक नारा भर नहीं रही, बल्कि चुनावी अभियानों का केंद्रीय बिंदु बन चुकी है। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भी इसे बड़े भरोसे के साथ रखा गया। कर्मचारियों का कहना है कि उन्हीं गारंटियों में महंगाई भत्ता, वेतन विसंगतियों का निराकरण, नियमितीकरण और सम्मानजनक सेवा शर्तों की बात कही गई थी। लेकिन सरकार बनने के 2 साल बाद भी कर्मचारी खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
फेडरेशन का आरोप है कि केंद्र के समान देय तिथि से महंगाई भत्ता और महंगाई राहत नहीं दी जा रही। 2019 से लंबित एरियर्स अब तक पीएफ खातों में समायोजित नहीं हुए। पिंगुआ कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। चार स्तरीय पदोन्नत समयमान वेतनमान और अनुकंपा नियुक्ति जैसे मुद्दे फाइलों में ही अटके हैं। सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष करने की मांग भी इसी असुरक्षा की अभिव्यक्ति है।

इसी परिदृश्य में अनियमित कर्मचारियों का 28 दिसंबर का ‘जंगी प्रदर्शन’ इस आंदोलन को और व्यापक बना देता है। पांच से तीस साल तक सेवा देने वाले ये कर्मचारी आज भी ‘अनियमित’ कहलाते हैं। न्यूनतम वेतन अधिनियम और संविदा नियमों के बावजूद आधे से भी कम वेतन, महीनों का बकाया, और ऊपर से छंटनी का डर—यह स्थिति किसी आधुनिक कल्याणकारी राज्य की नहीं लगती।

अनियमित कर्मचारी फेडरेशन का आरोप है कि ‘मोदी की गारंटी 2023’ में समिति गठन का वादा किया गया था, लेकिन आदेशों में उनका नाम तक नहीं है। यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं, भरोसे का संकट है। जब सरकार खुद को सुशासन की प्रतीक बताती है, तो ऐसे वर्ग की अनदेखी सवाल खड़े करती है।
यह भी सच है कि विष्णुदेव साय सरकार संवाद की बात करती है और कई मामलों में टकराव से बचने की कोशिश भी हुई है। राज्य की आर्थिक सीमाएं, राजस्व दबाव, केंद्र पर निर्भरता और नई योजनाओं का बोझ ये सभी सरकार की मजबूरियां हैं। सरकार यह तर्क दे सकती है कि एक साथ सभी मांगें मानना व्यावहारिक नहीं है, और चरणबद्ध समाधान ही संभव है।
लेकिन सवाल यह है कि क्या संवाद की गति और गंभीरता कर्मचारियों की अपेक्षाओं के अनुरूप है? क्या वादों और निर्णयों के बीच की दूरी कम की जा रही है? यदि सरकार सुशासन का दावा करती है, तो उसे यह भी समझना होगा कि सुशासन केवल योजनाओं के उद्घाटन से नहीं, बल्कि कर्मचारियों के भरोसे से चलता है।

देश में नए श्रम कानूनों के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि औद्योगिक शांति और लचीलापन बढ़ेगा। लेकिन सरकारी कर्मचारियों और संविदा-आउटसोर्स कर्मियों के लिए असुरक्षा और बढ़ी है। स्थायित्व के बजाय अस्थिरता, अधिकारों के बजाय अनुबंध—यही भावना आंदोलनों को जन्म दे रही है। छत्तीसगढ़ का यह आंदोलन केवल राज्य तक सीमित नहीं है। यह देशभर में उभर रहे कर्मचारी असंतोष की एक कड़ी है, जहां विकास, राजकोषीय अनुशासन और श्रम अधिकारों के बीच संतुलन तलाशा जा रहा है।
यह समय टकराव का नहीं, भरोसा बहाल करने का है। सरकार को चाहिए कि वह कर्मचारियों की मांगों को केवल दबाव की राजनीति के रूप में न देखे, बल्कि एक चेतावनी माने कि प्रशासनिक मशीनरी का मनोबल टूट रहा है। कर्मचारियों को भी यह समझना होगा कि जनजीवन पर असर डालने वाला आंदोलन अंतिम विकल्प होना चाहिए।
नया साल यदि सचमुच नई शुरुआत का प्रतीक बनना है, तो उसे हड़ताल की स्याही से नहीं, संवाद और समाधान की स्याही से लिखा जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ के लिए यह केवल एक कर्मचारी आंदोलन नहीं, बल्कि शासन की संवेदनशीलता और राजनीतिक विश्वसनीयता की कसौटी है।

प्रमुख 11 सूत्रीय मांगें

फेडरेशन द्वारा जारी मांगों में प्रमुख रूप से—
  • केंद्र के समान राज्य कर्मचारियों को महंगाई भत्ता (ष्ठ्र) दिया जाए।
  • डीए एरियर की राशि कर्मचारियों के जीपीएफ खाते में समायोजित की जाए।
  • सभी कर्मचारियों को चार स्तरीय समयमान वेतनमान दिया जाए।
  • विभिन्न विभागों में वेतन विसंगतियों को दूर किया जाए।
  • प्रथम नियुक्ति से सेवा गणना करते हुए पदोन्नति का लाभ दिया जाए।
  • नगर निकाय कर्मचारियों को नियमित वेतन एवं समयबद्ध पदोन्नति मिले।
  • अनुकंपा नियुक्ति नियमों में शिथिलता लाई जाए।
  • कैशलेस चिकित्सा सुविधा लागू की जाए।
  • 300 दिन का अर्जित अवकाश नकदीकरण किया जाए।
  • दैनिक वेतनभोगी एवं संविदा कर्मचारियों के नियमितीकरण की नीति बने।
  • सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष की जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *