-सुभाष मिश्र
सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर हम बहुत से लोगों को मित्र बना लेते हैं और हम उनको खुश देखते हैं। लोग अपने निजी पलों को शेयर करते हैं और यह बताने की कोशिश करते हैं कि वे बहुत खुश हैं। उनका दांपत्य जीवन बहुत सुखी है। अगर उनका विवाह हो रहा है तो उसका फोटो डालते हैं और सुखी परिवार होने का भ्रम पैदा करते हैं। लेकिन वास्तव में वह कितने सुखी है या किस तरह का जीवन बीता रहे हैं? यह प्रदर्शित नहीं करते, बल्कि केवल अपने सुखमय पलों को साझा करते हैं। उनकी सच्चाई का पता तब चलता है, जब कोई उनके संपर्क में आता है। वास्तविक दुनिया और आभासी दुनिया बहुत अधिक अंतर है। यह अंतर अब समाज में दिखने लगा है। डिजिटल युग में सोशल मीडिया और स्मार्टफोन किस तरह से चीजों को हमारे सामने ला रहा है। इसका प्रभाव रिश्तों पर भी पड़ रहा है। सोशल मीडिया रिश्तों को जोडऩे के बजाय दूरियां बढऩे का कारण बन रहा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म्स ने लोगों को वर्चुअल वर्ल्ड मिला है, जहां लोग दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर लोगों से संपर्क साध सकते हैं, लेकिन इस डिजिटल कनेक्शन में खोखलापन भी है। लोग भले ही हजारों ‘फ्रेंड्सÓ से घिरे हों, लेकिन असल जिंदगी में उनके पास बात करने के लिए कोई नहीं होता। जर्नल ऑफ सोशल एंड पर्सनल रिलेशनशिप्स की रिसर्च में पाया गया कि सोशल मीडिया का अधिक उपयोग रिश्तों में समस्याएं पैदा कर सकता है।
‘जर्नल ऑफ सोशल एंड पर्सनल रिलेशनशिप्सÓ के अनुसार सोशल मीडिया का बढ़ता उपयोग रिश्तों में असुरक्षा और भावनात्मक दूरी पैदा करता है। इस रिसर्च में 18 से 40 वर्ष के बीच की उम्र के 2000 कपल्स को शामिल किया गया था। रिसर्च में पाया गया कि जो लोग सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताते हैं, उनके रिश्तों में तनाव, अविश्वास और असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है। सोशल मीडिया पर हर छोटी-बड़ी बात शेयर करने का चलन बढ़ गया है। सच तो ये है कि हर किसी को रिश्ते की कहानी नहीं पता होनी चाहिए। रिश्तों में निजता बहुत जरूरी है, लेकिन आजकल लोग अपने पार्टनर के साथ बिताए हर पल को सोशल मीडिया पर डाल देते हैं, जिससे उनके बीच एक पर्सनल स्पेस की कमी हो जाती है। सोशल मीडिया पर अक्सर लोग अपने खुशियों के पल ही शेयर करते हैं। ऐसे में दूसरों के ‘परफेक्ट कपलÓ के पोस्ट देखकर मन में अपने रिश्ते को लेकर असंतोष का भाव आ सकता है। ऐसा लगता है कि हमारा रिश्ता उस स्तर का नहीं है और यह निराशा रिश्ते में दूरियां पैदा कर सकती है। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर घंटों बिताना आम हो गया है। कई बार लोग अपने पार्टनर के साथ होते हुए भी मोबाइल में खोए रहते हैं। आय दिन हम इसके मीम और रील भी देखते है कि सब लोग अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त हैं। ये छोटी-छोटी बातें रिश्तों में दरार डालने का काम करती हैं। व्यक्ति को ये समझना चाहिए कि समय किसी भी रिश्ते की मजबूती का स्तंभ है।
सोशल मीडिया पर पुराने दोस्त, एक्स पार्टनर से बातचीत या नए दोस्तों के साथ कनेक्शन बनाना सामान्य है, लेकिन इससे गलतफहमी पैदा हो सकती है। रिश्ते में पारदर्शिता का न होना संदेह का वातावरण तैयार करता है। सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव भी है, लेकिन इसे संतुलित रूप से उपयोग करके रिश्तों में सकारात्मकता लाई जा सकती है। हर व्यक्ति को सोशल मीडिया के लिए एक निर्धारित समय सीमा तय करनी चाहिए। दिन में 1-2 घंटे से ज्यादा सोशल मीडिया पर समय बिताना रिश्तों के लिए हानिकारक हो सकता है। कोशिश करें कि इस समय सीमा का पालन करें और अपने रिश्ते को समय दें। अब सवाल है कि क्या सोशल मीडिया सोशल नहीं है। लोगों के बीच तनाव पैदा हो रहा है। रिश्तों में खटास आ रही है। हिंसा हो रही है। अगर सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट या प्रतिक्रिया से असुरक्षा की भावना पैदा होती है तो अपने पार्टनर से इस बारे में खुलकर बात करनी चाहिए। संवाद में पारदर्शिता रिश्तों को मजबूत बनाती है। सोशल मीडिया पर दिखाई देने वाले परफेक्ट रिश्तों से अपने रिश्ते की तुलना न करें। बात यह है कि ‘ऐसा कुछ हो कि चुप्पी टूटे, सन्नाटे बोलें इसके पहले हम और तुम संग साथ हो लेंÓ।।
यानी हमको आपस में बात करनी चाहिए। अगर हम आपस में बातचीत नहीं करते हैं और सोशल मीडिया पर किसी अँधेरे कोने में बैठकर या मोबाइल की स्क्रीन पर या लैपटॉप में झांककर हमे लगता है कि हम दूसरों की जिन्दगी को देख रहे हैं। हमे दूसरों की दुनिया बहुत खुशहाल सी दिखती है। आजकल हमारे देश में पोर्न फिल्म देखने का चलन बढ़ा है। युवा और दूसरे लोग इसे देख रहे हैं। उसमें जिस तरह की परफेक्शन दिखाया जाता है। जिस प्रकार की टाइमिंग दिखती है, वह डिजिटल खेल है। इसमें बहुत सी चीजों को शामिल किया जाता है। इससे लोग समझते है कि अगर पोर्न फिल्म में इस तरह की चीजे हो सकती हैं तो हमारी निजी जिन्दगी में क्यों नहीं हो सकती है? इससे दांपत्य जीवन में कमी का अनुभव महसूस होता है, क्योंकि लोगों को लगता है कि हमें भी पोर्न फिल्म में दिखाए गए जैसा करना है, लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता है। पोर्न फिल्म में जो अंतरंगता दिखाई गई है या आनन्द की अनुभूति दिखाई गई है, वह कई टेक बाद होती है। मगर लोग इस बात को समझते नहीं है। लोग अपने पार्टनर से पोर्न फिल्म दिखाए गए दृश्यों के अनुरूप अपेक्षा करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अक्सर हम देखते हैं कि सक्सेस स्टोरी आती है। कौन सफल हुआ। किसने कितने समय में सफलता पाई। या अपराध की दुनिया में बड़ा नाम कमाया। लोगों को यह आकर्षित करता है। लोग अपने डीपी पर वैसी फोटो लगाते हैं, जैसे वह हैं नहीं। कई पुरुष डीपी में स्त्रियों की फोटो लगाते हैं, क्योकि उस पर लाइक बहुत मिलता है और दुसरे लोग उनके जाल में फंसते हैं। हाल में ही प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया को लेकर चेतावनी जारी किया है।
सोशल मीडिया पर हर रिश्ता आदर्श नहीं हो सकता है। दूसरों के रिश्तों से अपने रिश्ते की तुलना करना छोड़ें और अपने पार्टनर के साथ अपने छोटे-छोटे पलों को खास बनाने का प्रयास करना चाहिए। खुशियां हमारे आसपास ही होती हैं। हमारे रिश्तों की गर्माहट में होती है। हम जिन चीजो को महसूस करते हैं, वह पल ही सबसे सुंदर है। अगर हम बगीचे में जाते हैं और हमें फूल सुंदर दिखता है तो हमको वह महसूस होता है। हम वास्तविक दुनिया से कटते जा रहे हैं और आभाशी दुनिया में सब कुछ तलाश रहे हैं। अभी दिवाली बीती है। खुशियों के इस त्यौहार में हम एक-दूसरे मिलकर खुशियां बांटने की जगह वर्चुअल माध्यम से बधाईयाँ दी। अब लोग वीडियो काल से बात कर रहे हैं। जब हम किसी के साथ होते हैं तो माहौल कुछ और होता है। यह वर्चुअल बातचीत से अलग होता है। एक शेर है
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना कई बार देखना।।
आदमी जब हमसे सबसे बेहतर क्षणों में मिलता है और अपनी सबसे बेहतर बात करता है। इसके विपरीत जिससे हम मिले नहीं है वह स्क्रीन पर सबसे बेहतर दिखता है। मगर यह जरूरी नहीं हैं कि स्क्रीन पर दिखने वाला वास्तव में वैसा ही हो, उसका आचरण और व्यवहार वैसा ही हो, जिस तरह से वह बात करता है। सोशल मीडिया का कोई भी प्लेटफार्म आपके घर का आंगन नहीं है या आपका बेड रूम नहीं है, जहाँ आप अन्तरंग चीजों को बाहर लाएं। मगर सोशल मीडिया पर जब आप अपना निजी पल पोस्ट करते हैं तो वह तुरंत वायरल हो जाता है।
मेरे मित्र का एक शेर है-
खुदगर्ज था कमजर्द था कैसा भी था सूरज
अपनों से कोई बात छिपाता तो नहीं।।
अगर हम कई ऐसी चीजे छिपाते हैं तो जरुरी भी नहीं है तो जिस दिन वह बात सामने आ जाएगी, तब रिश्तों में दूरी बढ़ेगी। इस सोशल मीडिया बहुत सी दूरियाँ बढ़ा रहा है। हमें यह देखना चाहिए कि हम जिसके साथ हैं। उनके साथ ज्यादा रहें। बजाय स्क्रीन या मोबाइल पर रहने के या दूर जिनको हम जानते तक नहीं उनसे नजदीकी रखने के। कहा जाता है कि दूर के ढोल सुहाने लगते हैं, पर उतने सुहाने नहीं होते हैं।