-सुभाष मिश्र
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के समानांतर हिंदुत्व के शिविर से एक नई कि़स्म के इंटेलिजेंस, हिंदू इंटेलिजेंस की धमक सुनाई देने लगी है। रायपुर में मीडिया के एक कार्यक्रम में बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा कि हमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की नहीं, बल्कि एचआई यानी हिंदुत्व इंटेलिजेंस की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एआई का पूर्ण विकास मानव और सभ्यता के लिए खतरा है। अब आवश्यकता है एचआई यानी हिन्दुत्व इंटेलिजेंस की। उन्होंने सनातन धर्म को युगधर्म बनाने की बात कहते हुए कहा कि दूसरे मजहब वाले कहते हैं कि अपने मजहब के अलावा बाकी सब काफिर हों, सनातन धर्म कहता है हम सब एक हंै। कार्यक्रम में उपस्थित योगगुरु बाबा रामदेव ने भी कहा कि एआई के साथ-साथ एच आई, यानी हिंदू इंटेलिजेंस की भी आवश्यकता है।
सबसे पहले हम यह जान लें कि एआई और एच आई क्या है? एआई या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जिसमें मशीनों को मानव जैसी बुद्धिमत्ता प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। वर्तमान में एआई का उपयोग चिकित्सा, शिक्षा, वित्त और अन्य कई क्षेत्रों में हो रहा है। बागेश्वर धाम और बाबा रामदेव के इन बयानों ने समाज में तकनीकी विकास और सांस्कृतिक मूल्यों के संतुलन पर एक नई चर्चा को जन्म दिया है।
”हिंदू इंटेलिजेंस को फिलहाल एक धार्मिक या सांस्कृतिक विचारधारा के रूप में देखा जा सकता है जो एआई के बढ़ते प्रभाव के संदर्भ में संतुलन बनाने का प्रयास कर रही है। ”हिंदू इंटेलिजेंस अभी तक कोई मान्य वैज्ञानिक या तकनीकी अवधारणा नहीं है। यह मुख्य रूप से एक सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण है जिसका उद्देश्य भारतीय परंपराओं, नैतिकता और आध्यात्मिकता को आधुनिक तकनीकी युग के साथ जोडऩा है। यह एआई के बढ़ते प्रभाव के बीच भारतीयता और मानवता को संरक्षित करने का एक विचार हो सकता है। भारत आध्यात्मिक ज्ञान का केंद्र रहा है बल्कि विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और दर्शन जैसे क्षेत्रों में भी इसकी एक अमूल्य विरासत रही है। भारत की ज्ञान परंपरा प्राचीन काल से ही विश्व को मार्गदर्शन देती रही है। भारत को अध्यात्म और दर्शन का जन्मस्थान कहा जाता है। यहां की प्राचीन ज्ञान परंपरा ने न केवल भारतीय समाज के साथ-साथ दुनिया को भी मार्गदर्शन दिया। चार वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद) के जरिए से मानवता को जीवन, प्रकृति और ब्रह्मांड की गहरी समझ प्रदान करते हैं। उपनिषदों में आत्मा, ब्रह्म और मोक्ष पर गहरी विचारधारा दी गई है। भगवद गीता ने जीवन प्रबंधन, कर्म योग और आत्मा की अमरता पर आधारित दृष्टि दी। यह ग्रंथ पूरी दुनिया में प्रेरणा का स्रोत है। योग और ध्यान के जरिए भारत ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है। योग आज दुनिया भर में अपनाया जा रहा है और इसे योग दिवस के रूप में वैश्विक मान्यता मिली है। आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित अद्वैत वेदांत ने आत्मा और ब्रह्म की एकता पर जोर दिया। बौद्ध और जैन दर्शन ने पूरी दुनिया में अहिंसा, करुणा और ध्यान की शिक्षा ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। यदि हम अध्यात्म के साथ-साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बात करें तो गणित के क्षेत्र में शून्य का आविष्कार करने का श्रेय भारत को जाता है। महान भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शून्य का आविष्कार किया। बिना शून्य के गणित की कल्पना नहीं की जा सकती। भारतीय गणितज्ञों ने दशमलव प्रणाली की खोज की, जिसे आज पूरे विश्व में उपयोग किया जाता है। आर्यभट्ट ने पाई का सटीक मान निकालने में योगदान दिया। भास्कराचार्य और वराहमिहिर ने त्रिकोणमिति और ज्यामिति के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए।
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खगोल विज्ञान के क्षेत्र में भी भारत का योगदान उल्लेखनीय है। आर्यभट्ट ने बताया कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है। उन्होंने ग्रहणों की सटीक व्याख्या दी। खगोल विज्ञान और ज्योतिष में वराहमिहिर का योगदान अद्वितीय है। उन्होंने मौसम और ग्रहों की गति पर गहन अध्ययन किया। भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा को न्यूटन से लगभग 500 साल पहले प्रस्तुत किया था। आयुर्वेद और चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत का अमूल्य योगदान है। चरक और सुश्रुत ने आयुर्वेद को विकसित किया। सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान परंपरा में संस्कृत को ”कंप्यूटर फ्रेंडली भाषा कहा जाता है। इसका व्याकरण अत्यंत वैज्ञानिक है। संगीत और कला के क्षेत्र में नाट्यशास्त्र (भरतमुनि द्वारा) और शास्त्रीय संगीत की परंपरा विश्व को भारतीय सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराती है। स्थापत्य कला के क्षेत्र में भी भारत का झंडा बुलंद है।
आगरा का ताजमहल, कोणार्क का सूर्य मंदिर, खजुराहो के मंदिर, और अजंता-एलोरा की गुफाएं वास्तुकला और कला का अद्वितीय उदाहरण है। आधुनिक युग में भारत के योगदान की बात करें तो इसरो ने चंद्रयान-3 और मंगलयान जैसी परियोजनाओं ने भारत को अंतरिक्ष विज्ञान में अग्रणी बनाया। भारत ने सॉफ्टवेयर और तकनीकी सेवाओं में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। सी.वी. रमन (रमन प्रभाव), जगदीश चंद्र बोस (रेडियो विज्ञान) और होमी भाभा (परमाणु ऊर्जा) जैसे वैज्ञानिकों ने विश्व स्तर पर भारत का नाम रोशन किया है। अब बात करें पूरी दुनिया में चल रही वैज्ञानिक खोज की।
अमेरिका और चीन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी है। दोनों देश एआई तकनीक के विकास, अनुसंधान और उपयोग के मामले में एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
अमेरिका एआई अनुसंधान और विकास में अग्रणी है। यहाँ के टेक्नोलॉजी दिग्गज जैसे google (deepmind), Open AI, Microsoft, Meta औरAmazon AI तकनीक को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इस समय अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए चीन ने एआई को अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकता बना लिया है। उसने 2030 तक एआई में वैश्विक नेतृत्वकर्ता बनने का लक्ष्य रखा है। चीनी सरकार और टेक कंपनियाँ जैसे Alibaba, Tencent और Baidu AI के विकास में भारी निवेश कर रही है।
नेक्स्ट जनरेशन एआई प्लान के अंतर्गत चीन ने 2017 में यह योजना शुरू की, जिसका उद्देश्य 2030 तक एआई में दुनिया का प्रमुख केंद्र बनना है। चीन की सरकार एआई स्टार्टअप्स और कंपनियों में अरबों डॉलर का निवेश कर रही है। मल्टी-स्पेक्ट्रम एप्लीकेशन के जरिए चीन एआई का उपयोग निगरानी, सुरक्षा, स्मार्ट सिटी, और स्वास्थ्य सेवाओं में कर रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) का भविष्य अत्यधिक संभावनाओं से भरा हुआ है। यह तकनीक विभिन्न क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है और मानव जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित कर रही है। भविष्य और विभिन्न क्षेत्रों में एआई की संभावनाएं अपार है। स्वास्थ्य क्षेत्र में एआई का उपयोग कैंसर, हृदय रोग और अन्य बीमारियों का जल्दी और सटीक निदान करने के लिए किया जा रहा है। दवा निर्माण एआई नई दवाओं को विकसित करने और क्लिनिकल परीक्षण की प्रक्रिया को तेज करने में मदद कर रहा है। वर्चुअल हेल्थ असिस्टेंट एआई आधारित चैटबॉट्स और हेल्थ मॉनिटरिंग एप्स मरीजों को उनकी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान देने में सहायक है। सर्जरी में रोबोटिक्स एआई संचालित रोबोट सर्जरी को अधिक सटीक और सुरक्षित बना रहे हैं।
शिक्षा क्षेत्र एआई शिक्षा में व्यक्तिगत अनुभव और बेहतर पहुंच प्रदान कर रहा है। यदि हम एआई की बात करें तो पर्सनलाइज्ड लर्निंग एआई छात्रों की जरूरतों के अनुसार पाठ्यक्रम और अध्ययन सामग्री तैयार करता है। कृषि क्षेत्र में भी एआई की भूमिका अलग है। एआई कृषि में उत्पादन बढ़ाने और संसाधनों का बेहतर उपयोग करने में मदद कर रहा है। एआई सटीक खेती एआई मिट्टी की गुणवत्ता, मौसम और पानी की जरूरत का विश्लेषण करता है। एआई बिजनेस प्रक्रियाओं को अधिक कुशल और लाभकारी बना रहा है। भविष्य में कस्टमर सर्विस के क्षेत्र में एआई आधारित चैटबॉट्स ग्राहकों को 24×7 सहायता प्रदान करते हैं। एआई डेटा एनालिटिक्स एआई डेटा का विश्लेषण करके व्यापारिक निर्णय लेने में मदद करता है। ऑटोमेशन के क्षेत्र में एआई फैक्ट्रियों और औद्योगिक प्रक्रियाओं को स्वचालित कर रहा है। एआई परिवहन को सुरक्षित और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। स्वचालित वाहन एआई सेल्फ-ड्राइविंग कारों और ट्रकों को संचालित करने में उपयोग हो रहा है।
एआई सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र में नई क्षमताएं प्रदान कर रहा है। ड्रोन और रोबोटिक सोल्जर्स के जरिए एआई आधारित सैन्य ड्रोन और रोबोट का उपयोग बढ़ रहा है। साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में एआई साइबर हमलों का पता लगाकर उन्हें रोकने में सहायक है।
मनोरंजन और मीडिया के क्षेत्र में एआई नई क्रिएटिव संभावनाएं खोल रहा है। कंटेंट जनरेशन एआई फिल्म, म्यूजिक और आर्ट बनाने में मदद कर रहा है। पर्सनलाइज्ड स्ट्रीमिंग के जरिए एआई उपयोगकर्ता की रुचि के आधार पर कंटेंट सुझाव देता है। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र वातावरण की निगरानी में एआई वायु और जल प्रदूषण का विश्लेषण करता है। क्लाइमेट मॉडलिंग आई जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भविष्यवाणी करता है। पुरातन की दुहाई देने वाले बाबा साधु-संत और सनातन को श्रेय बताने वाले लोग क्या अमेरिका, चीन और बाकी देशों की तुलना में एआई छोड़कर एचआई के भरोसे भारत को आधुनिक तकनीक के क्षेत्र में अग्र ले जा पाएंगे। हमारे देश में बड़े-बड़े उद्योग सहित उद्योगपति नये अनुसंधान के लिए उस तरह से संसाधन धनराशि उपलब्ध नहीं कराते। जैसे कि अमेरिका यूरोप में हम यदि केवल अपने पुरातन पर गर्व करते हुए यही दोहराते रहेंगे कि गर्व से कहो हम हिन्दू हैं तो केवल इससे हम आत्ममुक्त ही हो सकते हैं। नया कुछ नहीं रच सकते।
वस्तुत: भारत की हिंदू प्रज्ञा या सनातन प्रज्ञा समन्वय और अभेद में विश्वास करती है। अपने पुरातन ज्ञान पर गर्व करने या उसकी महानता का बखान करने की जगह यदि उसका पालन करें तो जड़-चेतन में अभेद देखने वाली हमारी परंपरा में मनुष्य और प्रकृति के बीच, भौतिक और आध्यात्मिक के बीच, मनुष्य और पशुजगत के बीच या मनुष्य और मनुष्य के बीच भेद नहीं करती। यही हिन्दू प्रज्ञा है। यही हिन्दू इंटेलिजेंस है जो सदियों से हमारी सहज जीवनशैली में समाविष्ट रहा है। आज जिस एचआई की चर्चा उठाई जा रही है, वह मनुष्य और मनुष्य में हिंदू और ग़ैर हिंदू में भेद करती है। यह सनातन धर्म की व्यापक समन्वयपूर्ण दृष्टि के विपरीत है।