-सुभाष मिश्र
गांधीजी ने कहा था नेता जमीन से जुड़ें, आजादी के कुछ साल बाद ही गांधीजी के अनुयायी कथित नेता जमीन के कारोबार से जुड़ गये। जमीन का खेल भी अजीब है जो कल तक अपनी जमीन तलाश रहे थे, आज कई एकड़ जमीन के मालिक हैं। वास्तव में जिनका जीवन सही मायने में जमीन से जुड़ा था, जो अपने पुरखों की जमीन को अपनी मां की तरह समझते थे, वे अपने खेत-खलिहान गांव को छोड़कर प्रधानमंत्री आवास योजना में बने मकानों में रहने को विवश हैं। पहले किसान, फिर खेतिहर मजदूर और श्रमिक में तब्दील होते मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान के नायक होरी की तरह लाखों लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। जिनका किसी तरह से श्रम और उत्पादन से कोई वास्ता नहीं था। वे ट्रेडिंग, साहूकारी और बहुत सारी कानूनी और सरकारी चालाकियों व सांठगांठ के जरिये धन्ना सेठ बने बैठे हैं। जमीन का खेल ऐसा है कि कोई पास है तो बहुत सारे फेल हैं। जमीन के खेल में टॉप करने वाले जमीन से जुड़ी योजनाओं के भविष्य के पर्चे के ही पहले आउट हो जाते है और वे धड़ल्ले से आसपास की जमीन खरीदकर भारतमाला प्रोजेक्ट की तरह जमीन के सरकारी रिकार्ड में कई टुकड़े दिखाकर करोड़ों कमा लेते हैं। वहीं दूसरी ओर जो सदियों से जमीन के मालिक हैं वे जमीन औने-पौने दाम में बेचने को विवश हो जाते हैं। यह हमारे समय का सच है। इस मामले में कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है।
पहले हमारे देश में राजा रजवाड़े, सामंत, जमींदार मालगुजार और वैसे कहने को तो कुछ थोड़े से सेठ साहूकार थे, जिनके पास जमीनें थीं। किसानों ने अपनी जरूरत की जमीन को कृषि योग्य बनाकर उस पर खेती की। खेतिहार मजदूर, छोटे किसान दूसरों की जमीन जोत कर अपना गुजारा करते थे। धीरे-धीरे विकास योजनाएं आई, निर्माण होना शुरू हुआ, शहरीकरण बढ़ा और कुछ खास स्थानों की जमीनें महंगी हुई। छोटे-बड़े किसान अपनी जरूरतों के लिए जमीन बेचते या गिरवी रखते गये और सूदखोर, कानून के जानकार उनकी जमीनें औने-पौने दाम में खरीदते गये। इस बीच कुछ नये शब्द सुनाई देने लगे। जिनमें भूमाफिया, जंगल माफिया, शराब माफिया, रेत माफिया, दवा माफिया और न जाने कैसे-कैसे माफिया।
स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार छोटे राज्यों की पक्षधर थी, सो वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड राज्य बने तो यहां के कुछ इलाकों की जमीने धीरे-धीरे महंगी होने लगी और यहां भी संगठित भूमाफिया सक्रिय हो गया।
‘माफिया शब्द की उत्पत्ति और इनके इतिहास की बात की जाए तो ‘माफिया शब्द की उत्पत्ति 19वीं सदी में इटली के सिसिली द्वीप से हुई। इसका मूल शब्द संभवत: सिसिली भाषा का ‘माफियूसु है, जिसका अर्थ है ‘नन्हापन या ‘दबंगई। 1860 के दशक में, इटली के एकीकरण के बाद सिसिली में केंद्रीय शासन कमजोर था। इस दौरान कुछ समूहों ने स्थानीय लोगों को ‘सुरक्षा देने या विवाद सुलझाने के नाम पर अवैध गतिविधियां शुरू कीं। ये समूह ‘माफियाÓ कहलाए। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में इतालवी प्रवासियों के साथ यह शब्द और अवधारणा अमेरिका पहुँची, जहां कोसा नोस्ट्रा जैसे संगठनों ने इसे कुख्यात किया। धीरे-धीरे ‘माफिया किसी भी संगठित अपराधी समूह के लिए उपयोग होने लगा, चाहे वह किसी भी देश या समुदाय से हो। भारत में ‘माफिया शब्द 20वीं सदी में लोकप्रिय हुआ, शुरू में शहरी संगठित अपराध से जुड़ा, जैसे 1970-80 के दशक में मुंबई का अंडरवल्र्ड (दाऊद इब्राहिम, हाजी मस्तान)। 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद अवैध मुनाफे के नए अवसर उभरे और ‘माफिया शब्द विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट अवैध नेटवर्क के लिए इस्तेमाल होने लगा।
यदि हम बात करें तो छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड और अन्य क्षेत्रों में वर्ष 2000 के बाद जमीन हथियाना और मुनाफाखोरी का धंधा तेजी से फलने-फूलने लगा। नवंबर 2000 में छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड के गठन ने इस संसाधन-समृद्ध लेकिन अविकसित राज्यों में विकास की नई लहर शुरू की। भारत की आर्थिक वृद्धि, बुनियादी ढांचा विस्तार और औद्योगिक परियोजनाओं के साथ जमीन सट्टेबाजी और मुनाफाखोरी का प्रमुख लक्ष्य बनी। जमीन का व्यवसायीकरण तेजी से शुरू हुआ। वर्ष 2000 के बाद भारत में तेज शहरीकरण, औद्योगिक वृद्धि और बुनियादी ढांचा परियोजनाएं (जैसे राजमार्ग, से स्श्र्वं, स्मार्ट सिटी) शुरू हुईं। विकास क्षेत्रों में जमीन की कीमतें आसमान छूने लगीं, जिससे अवैध रुप से जमीन को हथियाने के मामले बढ़े। 1894 का भूमि अधिग्रहण अधिनियम (2013 में नए कानून से प्रतिस्थापित) सरकार को ‘सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जमीन लेने की अनुमति देता था। लेकिन अस्पष्ट परिभाषाएं और अपर्याप्त मुआवजा, निजी खिलाडिय़ों और बिचौलियों के लिए शोषण का रास्ता बना। राजनेता, नौकरशाह और व्यवसायी, जिन्हें विकास योजनाओं (जैसे राजमार्ग, हवाई अड्डे, या औद्योगिक गलियारों) की पहले से जानकारी होती थी, सस्ते में जमीन खरीदकर कीमतें बढऩे पर भारी मुनाफा कमा कर बेच देते थे। छत्तीसगढ़ के राजधानी क्षेत्र नया रायपुर (अब अटल नगर) के विकास ने जमीन की मांग बढ़ाई। किसानों को कम कीमत पर जमीन बेचने के लिए मजबूर किया गया और बिचौलियों ने इन्हें भारी मुनाफे पर बेचा। जाली दस्तावेजों और बेनामी लेन-देन की शिकायतें सामने आईं।
छत्तीसगढ़ की खनिज संपदा ने स्टील, बिजली और सीमेंट उद्योगों को आकर्षित किया। जिंदल स्टील प्लांट या अडानी की खनन परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में आदिवासियों और किसानों ने कम मुआवजे और जबरन बेदखली की शिकायत की।
इसी तरह देश की राजधानी दिल्ली के नजदीक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) गुडग़ाँव, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रियल एस्टेट बूम आया। 2000 के दशक में किसानों ने कम कीमत पर जमीन बेची, जो बाद में 50-100 गुना कीमत पर बिकी (जैसे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे के बाद)। दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा और गिफ्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट्स ने सट्टेबाजी को बढ़ावा दिया। स्थानीय राजनेताओं और रियल्टर्स ने परियोजना घोषणाओं से पहले जमीन खरीदी।
हरियाणा में रॉबर्ट वाड्रा पर डीएलएफ के साथ सौदों में अनुचित लाभ लेने का आरोप लगा, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कम कीमत में जमीन खरीदकर भारी मुनाफा कमाया। वाड्रा ने कथित तौर पर गुडग़ाँव में 3.5 एकड़ जमीन 7.5 करोड़ में खरीदी और इसे डीएलएफ को 58 करोड़ में बेचा, बिना कोई निर्माण किए। राजस्थान के बीकानेर में भी वाड्रा की कंपनी पर जाली दस्तावेजों से जमीन खरीदने का आरोप लगा।
जमीन माफिया की संरचना की बात की जाये तो यह एक जटिल नेटवर्क है, जिसमें स्थानीय गुंडे, रियल्टर्स, नौकरशाह, और राजनेता शामिल हैं। ये नेटवर्क अक्सर अन्य माफिया (जैसे रेत, शराब) से जुड़े होते हैं।
आंध्र प्रदेश/तेलंगाना में अमरावती और हैदराबाद के आईटी हब के विकास में अंदरूनी सौदों के आरोप लगे, जहाँ राजनेताओं ने परियोजना योजनाओं के सार्वजनिक होने से पहले जमीन खरीदी। जमीन के सौदागर, प्रापर्टी ब्रोकरो के माध्यम से छोटे किसानों की जरूरतों का फायदा उठाकर उनसे जमीन का सौदा करके उन्हे बयाने के रूप में कुछ राशि देकर लिखा-पढ़ी कर लेते हैं और उन्हें सालों साल पैसों के लिए घुमाते हंै। जरूरत पडऩे पर किसान मजबूरी में उसी व्यक्ति को औने-पौने दाम पर जमीन बेचने विवश होता है। यह किस्सा सभी जगह लगभग एक सा है। इससे जुड़े वाईट कॉलर भी एक से है।
भू-माफिया धमकियों, जाली दस्तावेजों या फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए जमीन हथियातें है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी जमीन बिना सहमति के हस्तांतरित होने के मामले सामने आए। कानूनी अपराध घोषित करने के बावजूद सूदखोरों द्वारा जरूरतमंद किसानों को ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज देकर उनकी जमीन हड़पी जाती है। इसका ताजा उदाहरण तोमर बंधुओं की कारगुजारियों के रूप में सामने आई है। रायपुर में करणी सेना, खारून आरती तथा अब धार्मिक आयोजनो के जरिए थोड़े समय में बड़ी पहचान बनाने वाले तोमर बंधुओं द्वारा जरूरतमंदों को सूद पर पैसा देकर करोड़ों रूपये की संपत्ति हड़पने, डराने-धमकाने के प्रकरणों का रोज खुलासा हो रहा है। पुलिस के छापे के दौरान उनके घर और उनके वसूली मैनेजर व दूसरे गुर्गो के पास से बहुत सारी जमीन की रजिस्ट्री मिली है। इसके अलावा वसूली की जानकारी देने वाली 150 से ज्यादा रिकार्डिंग मिली है। वसूली के लिए इन्होंने बकाया विस्टा फाइनेंस के नाम से ग्रुप बना रखा था।
रायपुर-विशाखपट्टनम इकोनॉमिक कारिडोर के अंतर्गत भारतमाला परियोजनाएं मुआवजा वितरण में हुआ घोटाले में जमीनों की अनाप-शनाप कीमतें लगाकर सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगाने का ताजा उदाहरण मिला। रायपुर, धमतरी, दुर्ग, राजनांदगांव, कोण्डागांव, कांकेर, कोरबा, बिलासपुर, जशपुर, बस्तर में भारतमाला प्रोजेक्ट में मुआवजा वितरण में गड़बड़ी की सैकड़ों शिकायते सामने आई है। जहां अधिकारियों ने भूमाफियाओं, बड़े किसानों, व्यापारियों के साथ सांठगांठ करके करोड़ों का मुआवजा पाया।
भारतमाला मुआवजा घोटाले में जेल में बंद हरमीत सिंह खनुजा उर्फ राजु सरदार का एक ओर बड़ा घोटाला सामने आया है जिसमें पंडरीतराई में ग्राम सेवा समिति को 25 करोड़ की बेशकीमती 1,79.467 वर्गफीट जमीन को 60 वर्ष पुरानी रजिस्ट्री व कूटरचित हक त्याग पत्र निर्मित कर उसे असल बताकर तत्कालीन तहसीलदार मनीष देव साहू से सांठगांठ कर हरमीत सिंह खनूजा द्वारा नामांतरण आदेश दिनांक 15.02.2023 को प्राप्त किया गया। कथित 60 वर्ष पुराने विक्रय पत्र दिनांक 20.01.1965 के आधार पर रविन्द्र अग्रवाल जितेन्द्र अग्रवाल सहित 10 लोगों के नाम खसरा नंबर 299/1क में चढ़ाने आदेश पारित करवा लिया गया। जबकि उक्त भूमि की रजिस्ट्री दिनांक 20.01.1965 के विक्रेता लखनलाल, शत्रुहन लाल, कभी भी खसरा नंबर 299/1क रकबा 4.12 एकड़ के मालिक नहीं रहे। और न ही राजस्व अभिलेख में उनका नाम दर्ज था। चूंकि राजस्व अभिलखों में अभिलिखित विक्रेता का नाम नहीं था, फिर भी हल्का पटवारी पंडरीतराई विरेन्द्र कुमार झा द्वारा ग्राम सेवा समिति की भूमि खसरा के परिवर्तित संधारण शीट प्लाट नंबर 1 एवं 2 के बीच कूटरचना कर प्लाट नंबर 1/2 रकबा अवैध रूप से दर्ज कर 12 लोगों का नाम चढ़वा दिया गया। नाम चढ़वाने के पश्चात हरमीत सिंह खनुजा द्वारा दिनांक 07.03.2023 को एक कूटरचित हक त्याग पत्र तैयार किया गया, जिससे पंजीकृत बताया गया। पटवारी झा ने तत्परता से आदेश का पालन बड़ी रकम लेकर कर दी। शेष बचे एक खातेदार को 20 प्रतिशत भूमि का पार्टनर बनाकर भूमाफिया हरमीत सिंह खनुजा 80 प्रतिशत जमीन अपनी फर्म दशमेश रियल इन्वेस्टर के पार्टनर बनकर अपने एवं भाईयों के नाम पर रजिस्टर्ड करवा नियम विरूद्ध एक ही दिन में तहसीलदार से दर्ज करवा ली। यह तो अभी एक मामला है और न जाने ऐसे कितने मामले होंगे जहां इस तरह की हेराफेरी हुई है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद शहरी और ग्रामीण क्षेत्र की निजी और सरकारी जमीन पर बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की शिकायतें सामने आई है। आपसी मिलीभगत से अभी तक हजारों एकड़ सरकारी जमीन निजी लोगों के हाथ में पहुंच गई है। भूमाफिया जंगल की जमीन को भी नहीं छोड़ रहे हैं। जमीन की हेराफेरी में पटवारी, आरआई और नायब तहसीलदार सीधे शामिल हैं। देंदुआ ग्राम पंचायत की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन बिक चुकी है। ग्रामीणों का आरोप है कि जमीन बेचने के मामले में गांव का पटवारी रेवती रमन पैकरा सीधे शामिल है। अभी 15 दिन पहले अनिल जांगड़े नाम के एक व्यक्ति ने रजिस्ट्री की है जबकि वह जमीन वन भूमि है। जमीन अनिल जांगड़े के नाम पर जैसे आई और नाम में चढ़ते ही उसे बेच भी दिया गया।
ऐसा ही प्रकरण नगचुआ का है। यहां भी पटवारी भूमाफियाओं के साथ मिलकर सैकड़ों एकड़ सरकारी और वनभूमि भूमाफियाओं के नाम पर चढ़ाया जा चुका है। नवा रायपुर में अवैध प्लाटिंग का नया रैकेट फूटा है। भूमाफियाओं ने यहां के 41 प्रतिबंधित गांव में छोटे-छोटे प्लॉट काटकर लोगों बेचे हैं। राज्य में रजिस्ट्री को लेकर छूट देने के बाद ही फर्जीवाड़ा शुरू हुआ। जालसाजों ने सरकारी स्कीम को गलत तरीके से लोगों के सामने पेश करते हुए उन्हें झांसा दिया कि नवा रायपुर में भी रजिस्ट्री का बैन हटा लिया गया है। इसी वजह से लोग झांसे में आ गए और जमीन खरीदी शुरू कर दी। नवा रायपुर अटल नगर विकास प्राधिकरण (एएनवीपी) के पास बड़ी संख्या में इसकी शिकायत हुई। 15 से अधिक अलग-अलग शिकायत के बाद आनन-फानन में नवा रायपुर प्रशासन ने जांच करवायी। उसके बाद ही फर्जीवाड़ा सामने आया।
नवा रायपुर के 41 गांवों में भूखण्ड की खरीद-बिक्री से पहले लोगों को एनएनवीपी, टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग या फिर कलेक्टर को जानकारी देनी होगी। प्रशासन की आम सूचना के तहत रायपुर तहसील के सेरीखेड़ी, नकटी, टेमरी, धरमपुरा, बनरसी और माना गांव में जमीन नहीं खरीद सकते। इसी तरह अभनपुर तहसील के झांकी, बेंद्री, परसट्टी, निमोरा, उपरवारा, तूता, केंद्री, खंडवा, भेलवाडीह, पचेड़ा, कुरू, तेंदुआ, पौता, चेरिया और बंजारी गांव में भी रोक है। इसके अलावा आरंग तहसील के तहत रमचंडी, छतौना, मंदिर हसौद, चीचा, बरौदा, कयाबांधा, झांझ, खपरी, नवागांव, राखी, कुहेरा, कोटराभांठा, कोटनी, तांदुल, रीको, सेंध, पलौद, नवागांव, उपरिया और परसदा ग्राम में किसी तरह की भूखण्ड की खरीद-बिक्री करना अवैध है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में छह महीने के भीतर एक ही जमीन की तीन लोगों को रजिस्ट्री कर दी गई। रायपुर के भाटागांव के पास रिंग रोड पर नीलम अग्रवाल ने 16 फरवरी 2018 को 7000 हजार वर्गफुट का प्लाट लखनउ के साइन सिटी ड्रीम रियेल्टर को बेचा था। उसके लिए 4.26 करोड़ जमीन का गाइडलाइन रेट तय कर रजिस्ट्री फीस ली गई। यही जमीन 20 मार्च 2021 को साइन सिटी कंपनी ने मुंबई के मनमोहन सिंह गाबा को बेच दिया। तब रजिस्ट्री रेट घटाकर 3.64 करोड़ कर दी गई। साइन सिटी ने मनमोहन सिंह गाबा को बेची गई जमीन फर्जीवाड़ा करते हुए फिर 18 मई 2021 को रुपेश चौबे को बेच दिया। रुपेश चौबे ने यह प्लॉट 26 जुलाई 2021 को अशोका बिरयानी को बेच दिया।
राजधानी के प्रमुख बाजारों में वक्फ बोर्ड की 500 करोड़ रुपए से अधिक कीमत की जमीन पर भू-माफिया ने कब्जा कर रखा है। कई जमीनों को फर्जी तरीके से खरीदकर रजिस्ट्री भी करा ली गई है। छत्तीसगढ़ राज्य वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. सलीम राज ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर वक्फ बोर्ड की जमीन पर किए गए कब्जों को हटाने और फर्जी रजिस्ट्री को रद्द करने की मांग की है।
जमीन में हेराफेरी का खेल बदस्तूर जारी है, इसमें सबसे ज्यादा ग्रामीण किसान और जरूरतमंद लोग ठगे जा रहे हैं। भूमाफिया राजनेताओं और अधिकारियों से सांठगांठ करके सरकारी जमीन के साथ-साथ निजी जमीन भी औने-पौने दाम में हथियाने में लगे हुए हैं। भूमाफियों को रोकने के लिए रेरा जैसी संस्था और जमीन के दस्तावेजों के संबंध में किये गये नवाचार ई-पोर्टल को और अधिक कारगर बनाने की जरूरत है।