-सुभाष मिश्र
ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना की एक कथित सैन्य कार्रवाई है, जिसे आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक कदम के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस ऑपरेशन को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने देशभर में तिरंगा यात्राएं आयोजित कीं, जिन्हें सेना के शौर्य को समर्पित बताया गया।
हालांकि, इस ऑपरेशन को लेकर विपक्षी गठबंधन ‘इंडियाÓ के 16 दलों ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है, जिसे सरकार ने ठुकरा दिया है। विपक्ष का तर्क है कि यदि सरकार वैश्विक मंचों पर डेलीगेशन भेजकर ऑपरेशन की सफलता का प्रचार कर रही है तो संसद में चर्चा से परहेज क्यों? इसके साथ ही ऑपरेशन को लेकर पब्लिक डोमेन में कई सवाल और संशय बने हुए हैं, जबकि भाजपा पर इसे राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लग रहा है।
भारत सरकार द्वारा हाल ही में किए गए ऑपरेशन सिंदूर को लेकर देशभर में चर्चा है। यह एक सैन्य ऑपरेशन था, जिसकी आड़ में सरकार अपनी राजनीतिक पूंजी को बढ़ाने में लगी है। लेकिन इंडिया गठबंधन के 16 दलों द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग के बावजूद सरकार का इससे परहेज करना कई सवाल खड़े करता है। यह मुद्दा केवल सैन्य रणनीति या विदेश नीति का नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक पारदर्शिता, जवाबदेही और राजनीतिक शुचिता का है।
सैन्य शौर्य पर राजनीति नहीं, पारदर्शिता चाहिए होनी चाहिए। संसद से परहेज नहीं करके संसद का सम्मान ज़रूरी है। यह समझना ज़रूरी है।
यदि हम ऑपरेशन सिंदूर की उपलब्धियां और सार्वजनिक विमर्श की बात करें तो पाते हैं कि ऑपरेशन सिंदूर को एक साहसी सैन्य कार्रवाई बताया जा रहा है, जिसमें भारतीय सैनिकों ने दुश्मन की स्थिति पर सटीक प्रहार किया। हालांकि आधिकारिक रूप से इस ऑपरेशन की संपूर्ण जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है, परंतु पब्लिक डोमेन में इसके कई पहलू सामने आ चुके हैं- जैसे सीमापार कार्रवाई, टारगेटेड स्ट्राइक और सीमित सैन्य उद्देश्यों की पूर्ति।
फिर भी, जनता और मीडिया के बीच इस ऑपरेशन को लेकर संशय और अधूरी जानकारी की स्थिति बनी हुई है। यदि यह इतनी बड़ी कूटनीतिक व सैन्य सफलता है, तो इसे लेकर सरकार को संसद में चर्चा से परहेज क्यों है?
विपक्ष द्वारा लगातार संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की जा रही है। इंडिया गठबंधन के 16 दलों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की। उनका तर्क स्पष्ट है-जब सरकार ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विदेशों में डेलिगेशन भेज रही है, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी जानकारी साझा कर रही है, तो फिर देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था संसद को अंधेरे में क्यों रखा जा रहा है? राष्ट्रपति को लिखे पत्र में इंडिया गठबंधन के 16 दलों ने पीएम नरेंद्र मोदी से संसद का विशेष सत्र बुलाकर ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा की मांग की है। इस बैठक में कांग्रेस के जयराम रमेश और दीपेंद्र हुड्डा, टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन, एसपी के रामगोपाल यादव, राजद के मनोज झा और शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत शामिल हुए।
डीएमके भी हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल है, लेकिन बैठक में करुणानिधि की जयंती होने के कारण वह इसमें शामिल नहीं हो सकी। विपक्षी नेताओं ने बताया कि नेशनल कॉन्फ्रेंस, सीपीआई (एम), आईयूएमएल, सीपीआई, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), विदुथलाई चिरुथैगल काची (वीसीके), केरल कांग्रेस, एमडीएमके, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन भी पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल हैं।
कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि हमें आतंकवाद को कैसे खत्म किया जाए और अपनी आगे की रणनीति पर भी संसद में चर्चा करनी चाहिए। अब जब भारत सरकार दुनिया के सामने अपने विचार रख रही है तो मुझे लगता है कि सरकार को संसद में भी ऐसा ही करना चाहिए। मीडिया से बात करते हुए दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि जब पहलगाम में हमला हुआ तो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने पूर्ण रूप से देश की सरकार को जवाबी एक्शन के लिए अपना समर्थन दिया। उसके बाद जो घटनाक्रम हुए वह भी आपके सामने हैं। जिस तरह से अमेरिका की ओर से युद्धविराम की घोषणा की गई। फिर उसके बाद सामने आए घटनाक्रम को देखते हुए हमने संसद के विशेष सत्र की मांग उठाई। हमने कहा कि महत्वपूर्ण है कि एक ओर सभी सांसद और सभी दल विशेष सत्र के माध्यम से अपनी सेना का धन्यवाद कर सकें और दूसरी ओर पूरी घटना पर सरकार बिंदुवार अपनी बात रखे। विपक्ष ने यह भी उठाया कि अब तक कोई भी प्रमुख देश भारत के इस ऑपरेशन के खुले समर्थन में नहीं आया। ऐसे में यह और ज़रूरी हो जाता है कि भारत सरकार विपक्ष को विश्वास में ले और पूरे मामले को संसदीय मंच पर रखें।
ऑपरेशन सिंदूर के ठीक बाद जिस प्रकार भाजपा ने तिरंगा रैली, आईपीएल मैच के दौरान सैन्य शौर्य का प्रदर्शन और सिंदूर यात्रा के नाम पर इसका राजनीतिकरण किया, उससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार इस सैन्य कार्रवाई को अपनी राजनीतिक छवि चमकाने के औजार के रूप में उपयोग कर रही है। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक प्रवृत्ति है। सेना का सम्मान पूरी देश की भावना है न कि किसी एक राजनीतिक दल की जागीर। ऐसे मुद्दों को प्रचार और राजनीति से दूर रखना चाहिए।
सवाल जो जवाब मांगते हैं, उनकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर ऑपरेशन सिंदूर इतनी बड़ी सफलता है, तो संसद में उस पर चर्चा क्यों नहीं? क्या सैन्य सफलता को राजनीतिक लाभ के लिए प्रचारित करना शहीदों और सेनाओं के साथ न्याय है? जब जनता में इतनी जानकारी पहले ही आ चुकी है, तो गोपनीयता की आड़ में संसद को अंधेरे में रखने का क्या औचित्य? क्या सरकार यह मानती है कि संसद केवल औपचारिक मंच है, जहां जनमत को कोई महत्व नहीं?
जब सरकार पक्ष-विपक्ष के नेताओं को अलग-अलग देश भेजकर भारत का पक्ष रख सकती तो उसे संसद का विशेष सत्र को भी बुलाना चाहिए। संसद लोकतंत्र का सर्वोच्च मंच है। वहां बहस होनी चाहिए-केवल इसलिए नहीं कि विपक्ष जानना चाहता है, बल्कि इसलिए कि जनता जानने का अधिकार रखती है। एक सैन्य ऑपरेशन, जो सीमापार कार्रवाई से जुड़ा है, अंतरराष्ट्रीय प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में राष्ट्रीय सहमति और सामूहिक राजनीतिक दृष्टिकोण बेहद ज़रूरी है।
ऑपरेशन सिंदूर पर संसद का विशेष सत्र न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली है, बल्कि यह यह भी सुनिश्चित करेगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों का दुरुपयोग राजनीतिक प्रचार के लिए न हो। यदि सरकार के पास छिपाने को कुछ नहीं है तो उसे संसद के सामने खुलकर आना चाहिए।