Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – महिलाओं से प्रताड़ित होते पुरूष

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

समान्यता हमारा मानना है और यह सच भी है कि पुरूष प्रधान समाज में स्त्रियों के साथ अन्याय अत्याचार हिंसा की घटनाएं ज्यादा होती है। किंतु अभी हाल की कुछ घटनाएं बताती है कि महिलाएं भी पुरूषों पर अत्याचार करने में कतई पीछे नहीं है।
बेंगलुरु में आत्महत्या करने वाले अतुल सुभाष के सुसाइड वीडियो और 24 पन्नों के नोट ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर महिलाओं के संरक्षण के उपाय पुरुषों की जान क्यों ले रहे हैं? पूरे के पूरे परिवार को दहेज के झूठे केस में फंसा देना, आपसी विवाद में दुष्कर्म का आरोप लगा देना, बायफ्रेंड से ब्रेकअप पर शादी का झांसा देकर शोषण का आरोप लगाना, लड़ाई हो जाए तो छेड़छाड़ बता देना, बॉस नौकरी से निकाल दे तो सेक्सुअल हैरेसमेंट बताना, टीचर प्रोफेसर को परीक्षा में अच्छे नंबर की लालच देकर दैहिक शोषण की शिकायत,बच्चे की कस्टडी हथियाने के लिए पिता पर ही पॉक्सो लगाना अब आम हो गया है।
एआई और सूचना क्रांति के इस बोल्ड समय में जब आपके हाथ में मोबाइल में सब कुछ है तो वह रील, जोक, चैटिंग चाहे उसका कंटेंट कितना ही बोल्ड, अश्लील क्यों न हो वह जेंडर समानता के इस दौर में सभी में बराबरी से साझा हो रहा है। आपसी संबंध के बेहतर दिनों में यह सब मजेदार होता है किंतु संबंधों में कड़वाहट आते ही यह चैट अश्लील हो जाती है। पुलिस में शिकायत होते ही आपके अच्छे दिनों की यह गुफ्तगु आपके लिए मुसीबत का सबब बन जाती है। बहुत सारी लड़कियां, महिलाएं इसे संभाल कर रखती है और जरूरत पडऩे पर पुलिस को सौंपती है। पुलिस को भी बैठे बिठाए सबूत मिल जाते है फिर शुरू होता है प्रताडऩा का नया खेल।
अभी कुछ समय से महिलाओं को मिले कानूनी संरक्षण, उसके दुरुपयोग और महिलाओं द्वारा पुरुषों पर हिंसा की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। जैसे सूचना का अधिकार कुछ छूट भैया नेताओं और चालू पत्रकारों के लिए अवैध कमाई का या ब्लैकमेल का साधन बन गया था। ठीक उसी तरह महिलाओं के लिए महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए और यौन उत्पीडऩ व बलात्कार से संबंधित प्रकरणों में सजा के प्रावधानों से समाज में ऐसे प्रकरण तेजी से बढ़े हैं। जहां झूठे घरेलू हिंसा, बलात्कार के प्रयास और यौन हिंसा के प्रकरणों में पुरुषों या परिवारों को उलझा कर, फंसा कर, ब्लैकमेल करने की अनेक घटनाएँ और प्रकरण सामने आए हैं। समाज के एक बड़े तबके का मानना है कि इस तरह से कानून का दुरुपयोग करके कुछ चरित्रहीन महिलाएं पुरुषों को ब्लैकमेल करती हैं और ब्लैकमेल से आपत्ति जताने पर पुलिस केस कर देती हैं। इस तरह के अधिकांश प्रकरण में पुलिस का रवैया भी एक ब्लैकमेलर तरह ही सामने आता है। पुलिस भी पुरुषों को धमकाती है। बहू प्रताडऩा प्रकरण में परिवार को धमकाती है और पैसा वसूलने के लिए अवैध और यहां तक की हिंसक तरीके भी आजमाती है। तीन चौथाई से ज्यादा केसों में पुलिस अच्छी तरह से जानती है की सच्चाई क्या है। लेकिन वह केस खत्म करने या न्याय का पक्ष लेने की अपेक्षा इन सारे प्रकरण में अवैध कमाई का जरिया खोजती है। ऐसे प्रकरणों में पुरुष ऐसी महिला ब्लैकमेलर और पुलिस, दोनों से प्रताडि़त होता है। पुलिस का चरित्र जिस तरह से भ्रष्ट और बर्बर हो चुका है, इसे लगभग हर कोई जानता है। लेकिन इस खामी को दूर करने के लिए किसी भी दल की राजनीति ने कोई पहल नहीं की है। कई बार तो पुलिस या प्रशासन अपने अहं या दम्भ के चलते या निजी झगड़े में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ पुराने प्रकरण खोज कर लाती है और केस बना देती है। इक्कीसवीं सदी में लिव इन रिलेशनशिप के आने से जहां पुरुष और स्त्री दोनों को रिश्तो की बाध्यता से बचने का रास्ता मिला है, वहीं इस तरह की झूठी शिकायतों के प्रकरण भी बढ़े हैं।
महिलाओं को मिले कानूनी संरक्षण के दुरुपयोग का सवाल एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर समाज, अदालतें और कानूनविद् लम्बे समय से बहस करते रहे हैं। इन कानूनों का उद्देश्य महिलाओं को शोषण और हिंसा से बचाना है, लेकिन कुछ मामलों में इनके दुरुपयोग के आरोप भी सामने आए हैं। अभी हाल ही में पन्ना में हुए ऐसे प्रकरण ने इस बहस को और प्रसांगिक बना दिया है। पन्ना में रेलवे में लोको पायलट लोकेश मांझी ने पत्नी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। पत्नी की प्रताडऩा से तंग आकर वो बीते दिनों पन्ना पुलिस अधीक्षक के ऑफिस पहुंचा था और न्याय की गुहार लगाई थी। युवक ने कहा कि साहब मुझे बचा लो, मेरी पत्नी मुझे मारती है। पीडि़त ने इस पूरे मामले को हिडन कैमरे से रिकॉर्ड किया था। फिलहाल पुलिस पूरे मामले की जांच कर रही है।
30 वर्षीय लोकेश की शादी साल 2023 में जून में हर्षिता रैकवार से हुई थी। आरोप है कि शादी के बाद से ही पत्नी और ससुराल वाले उसे प्रताडि़त करने लगे। उसने आरोप लगाया कि पत्नी अपनी मां और भाई के साथ मिलकर उससे पैसे और सोने-चांदी की मांग करती है और मारपीट करती है। इधर कुछ समय से खास करके बड़े शहरों में ऐसे प्रकरण तेजी से बढ़े हैं, जहां महिलाओं ने कानूनी संरक्षण और कानून का अपने पक्ष के लिए दुरुपयोग किया है।
लिव-इन रिलेशनशिप में आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाना कानूनी रूप से बलात्कार नहीं माना जाता, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में स्पष्ट किया है। उदाहरण के लिए, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर दो वयस्क सहमति से लिव-इन में रहते हैं और संबंध बनाते हैं, तो बाद में शादी से इनकार करने पर इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता, जब तक कि यह साबित न हो कि सहमति धोखे (शादी का झूठा वादा) से ली गई थी। हालांकि, कुछ मामलों में महिलाओं द्वारा लंबे समय तक लिव-इन में रहने के बाद शादी न होने पर बलात्कार की शिकायत दर्ज करने के उदाहरण सामने आए हैं। भारतीय कानून के तहत, अगर कोई पुरुष शादी का झूठा वादा करके महिला से शारीरिक संबंध बनाता है और शुरू से उसकी शादी की मंशा नहीं थी, तो यह बलात्कार माना जा सकता है। लेकिन कई बार लंबे प्रेम संबंधों में आपसी सहमति से संबंध बनने के बाद रिश्ता टूटने पर महिलाएं इसे कानूनी हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं। अदालतें ऐसे मामलों में सहमति की प्रकृति और परिस्थितियों को गहराई से जांचती हैं।
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक हिंसा से संरक्षण मिलता है। यह कानून लिव-इन रिलेशनशिप को भी कवर करता है। लेकिन कुछ उदाहरणों में इस कानून का इस्तेमाल व्यक्तिगत दुश्मनी या लाभ लेने के लिए किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट (2013, इंद्र शर्मा बनाम वीके शर्मा मामले में कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी और कहा कि लंबे समय तक साथ रहने वाले जोड़े को घरेलू हिंसा कानून के तहत संरक्षण मिल सकता है। लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि सहमति से बने संबंधों को बाद में बलात्कार नहीं कहा जा सकता, जब तक धोखाधड़ी साबित न हो। इलाहाबाद हाई कोर्ट (2023) के एक मामले में कहा कि लंबे समय तक सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के बाद झूठे बलात्कार के मामले दर्ज करना कानून का दुरुपयोग है। महिलाएं कभी-कभी ऐसे मामलों में अनुचित लाभ उठाती हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट (2023) ने घरेलू हिंसा कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताई और कहा कि यह कानून पुरुषों को संरक्षण नहीं देता।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2021 में आईपीसी धारा 498ए के तहत 1,03,848 मामले दर्ज हुए, जिनमें से अधिकांश की जांच में केस झूठे या अतिरंजित होने की बात सामने आई।
कानून का दुरुपयोग हो रहा है या नहीं, यह पूरी तरह से हर मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ मामलों में व्यक्तिगत लाभ, बदला, या पारिवारिक विवाद सुलझाने के लिए कानून का गलत इस्तेमाल होता है। झूठी शिकायतें पुरुषों के लिए मानसिक और सामाजिक परेशानी का कारण बनती हैं। दूसरी ओर, कई महिलाएं आज भी हिंसा और शोषण की शिकार हैं और शिकायत करने से डरती हैं। अनेक प्रकरणों में कानून का दुरुपयोग होता है, लेकिन यह कहना गलत होगा कि यह सामान्य स्थिति है।
महिलाओं को मिले कानूनी संरक्षण का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, लेकिन इसका दुरुपयोग एक वास्तविक चुनौती है। अदालतें इस संतुलन को बनाए रखने के लिए मामले-दर-मामले आधार पर फैसले लेती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता, त्वरित जांच, और झूठी शिकायतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है, ताकि सही पीडि़तों को न्याय मिले और निर्दोषों को परेशानी न हो।
इस तरह की बढ़ती घटनाओं ने यह बात तो प्रमुखता से वह बहस तलब बनाई है कि इस संदर्भ में कानून आज भी आधा-अधूरा है। हालांकि यह आज से नहीं बरसों से होता आया है कि कानून की पतली गलियों का ज्यादातर अपराधी ही लाभ उठाते आए हैं। ऐसे अपराधी चाहे पुरुष हों या महिला, कानून की ऐसी बारीकियों का अध्ययन करके उसे आर्थिक शोषण और ब्लैकमेल का जरिया बनाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे अधिकांश प्रकरणों में पुलिस की भूमिका सबसे ज्यादा संदिग्ध होती है। पुलिस न्याय का पक्ष नहीं लेती है वह, संपन्न व्यक्ति का पक्ष लेती है जो उसे रिश्वत दे सके। पुलिस की भ्रष्ट छवि की सुविधा से संगठित अपराधी गिरोह अपराधी प्रवृत्ति की महिलाओं के साथ इस अपराध में संलग्न हुए हैं। ये गिरोह बड़े उद्योगपतियों और बड़े अफसरों को अपना शिकार बनाते हैं। मामूली सी पढ़ी-लिखी और छोटे-मोटे अपराध करने वाली अपराधी प्रवृत्ति की महिलाओं को भी ऐसे अपराध आकर्षित करने लगे हैं। छोटे अफसर, छोटे-मोटे व्यापारियों और क्लर्क आदि को देह जाल में फांसकर ब्लैकमेल करती हैं। देश के अधिकांश राज्यों में ऐसे अपराध बढ़ गए हैं। सच्चाई जो भी हो लेकिन ऐसी घटनाओं ने उस बौद्धिक समाज में भी हलचल मचाई है जो स्त्री पक्षधर है।

Related News