Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- क्या हाऊसिंग बोर्ड को बंद कर देना चाहिए ?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आम आदमी को सस्ती, सुलभ और सुगम यात्रा सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बनाए गए मध्यप्रदेश/छत्तीसगढ़ राज्य परिवहन निगम को उसकी कार्यप्रणाली, घाटा और घपलों के चलते बंद करके प्रायवेट बस आपरेटरों के ज़रिए बेहतर परिवहन सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। इसी तजऱ् पर सरकार को छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड को भी बंद कर देना चाहिए। क्योंकि अब इस क्षेत्र में भी गुणवत्ता और कम लागत पर प्लाट, मकान उपलब्ध कराने वाले बहुत सारे बिल्डर आ गये हैं। निम्नवर्गीय और निम्न मध्यवर्गीय, नौकरी पेशा लोग जो हाउसिंग बोर्ड से मकान, प्लाट खरीद रहे थे, उनकी कार्यप्रणाली, खराब गुणवत्ता और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में दूसरे विकल्प देख रहे हैं। दरअसल, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार से मुफ़्त में या सस्ती दर पर जमीन हासिल करने वाला हाऊसिंग बोर्ड अपनी कार्यप्रणाली, भ्रष्टाचार और घटिया निर्माण के कारण उन ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है, जो इसको बनाते समय सोची गई थी। कमीशनखोरी के चक्कर में घटिया और अनुपयुक्त और कहीं भी कालोनी, कमर्शियल कॉम्पलेक्स, दुकानें, कम्युनिटी हॉल बनाने वाले हाऊसिंग बोर्ड के निर्माण के लेवाल नहीं मिल पा रहे हैं। जिन कॉलोनियों में लोगों ने मकान खऱीदकर रहना शुरू किया उसके हॉल भी बेहाल है। हाऊसिंग बोर्ड की कॉलोनियों में गंदगी, अतिक्रमण, अंधेरा और ख़स्ताहाल, आवारा पशुओं की मौजूदगी इसका हाले बयां खुद बता देती हैं।
सबके मन में एक ही सवाल आता है कि क्या वजह है कि छत्तीसगढ़ हाऊसिंग बोर्ड सहित आरडीए, नगर निगम और तमाम सरकारी अर्धसरकारी संस्थाओं द्वारा निर्मित मकान, दुकान, व्यवसायिक काम्पलेक्स को बेचने में कठिनाई होती है। दरअसल, सरकारी लेटलतीफी, भ्रष्टाचार, निर्माण के दौरान मानिटरिंग की कमी तथा निर्माण के पश्चात रखरखाव का संकट इसका एक बड़ा कारण है। न्यूनतम शुल्क देकर महंगी से महंगी और बड़ी-बड़ी जगहें अधिग्रहित करने वाली सरकार से पोषित ये संस्थाएं घाटे में हैं या फिर जैसे-तैसे सरवाईव कर रही है। हाऊसिंग बोर्ड के मकानों में 30 प्रतिशत छूट के ऑफर के बावजूद कोई लेवाल नहीं है। बिल्डर महंगे में जमीन खरीदकर बिल्डिंग, कैंपस कॉलोनी, मार्केट बनाते हैं और लाभ कमाकर दूसरे प्रोजेक्ट में लग जाते हैं किन्तु सरकारी एजेंसियों मुफ्त की जमीन के बावजूद घाटे में ही रहती है। ठेकेदार, नेता, अधिकारी फलते-फूलते हैं और इनके जर्जर मकान, गंदी कॉलोनियों मुंह चिढ़ाती दिखती है।
अपना सिरदर्द कभी नगर निगम कभी स्थानीय निकायों, कभी पीएब्ल्यूडी तो कभी नगर निवेश विभाग पर डालकर अपना पल्ला झाडऩे वाला हाऊसिंग बोर्ड अपनी आधी-अधूरी कॉलोनियों को नगर निगम को सौंप देता है। फिर निगम कॉलोनियों की सुध लिए बिना ही टैक्स वसूलने पहुंच जाता है। ऐसा ही एक मामला इन दिनों रायपुर की कचना स्थित हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी का है।
छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड की पॉश समझी जाने वाली कचना हाउसिंग बोर्ड कालोनी में संपत्तिकर को लेकर बड़ा विवाद है। हाउसिंग बोर्ड ने कचना कॉलोनी को फरवरी 2023 में निगम को हैंडओवर कर दिया गया है। इस वजह से कॉलोनी का अब कोई भी काम निगम वाले ही कराएंगे। कॉलोनी में रहने वाले लोग जब सफाई, सड़क और बिजली की परेशानी लेकर निगम पहुंचे तो अधिकारियों ने कहा कि पहले सभी को संपत्तिकर अदा करना होगा। लोगों का लगा कि कॉलोनी जब से हैंडओवर हुई है तब से संपत्ति कर देना होगा। लेकिन निगम ने कॉलोनी में रहने वाले लोगों से हैंडओवर की तारीख के बजाय जबसे कॉलोनी बनी है यानी 2009 से संपत्तिकर की मांग की। ऐसे में वहां रहने वाले प्रति व्यक्ति को 15 साल का औसतन एक लाख रुपए संपत्तिकर के रूप में देना होगा। अलग-अलग साइज मकानों का टैक्स 80 हजार से 1.50 लाख रुपए तक हो रहा है। निगम के इस फैसले का कड़ा विरोध शुरू हो गया है। कचना में एलआईजी, एमआईजी, एचआईजी मकानों के साथ ही फ्लैट भी बनाए हैं। कॉलोनी में एक हजार से ज्यादा मकान हैं। अब इन सभी मकान वालों को एक साथ संपत्तिकर देने के लिए बाध्य किया जा रहा है। इसकी शिकायत कॉलोनी वालों ने कलेक्टर से भी की है। कॉलोनी के निवासियों का कहना है कि ये नियमों के खिलाफ है। कॉलोनी हैंडओवर होने के पहले भूभाटक, जलकर समेत सभी तरह टैक्स दे चुके हैं।
कचना कॉलोनी में रहने वाले लोगों ने बताया कि पहले बोला गया कि सभी के मकान फ्री होल्ड हो जाएंगे। लेकिन जब लोगों ने आवेदन करना शुरू किया तो कई तरह की तकनीकी बातों को लेकर घुमाते रहे। यही वजह है कि कॉलोनी के सभी घर इतने साल बाद भी फ्री होल्ड नहीं हो पाए।
कचना कॉलोनी को निगम को हैंडओवर करने के बाद निगम के अफसरों ने आज तक कॉलोनी के लोगों के साथ एक बैठक नहीं तक नहीं की। जिससे पता चलता कि कॉलोनी का जिम्मा अब निगम के पास है। कॉलोनी में कौन-कौन सी समस्या कब से है, इसकी भी जानकारी नहीं ली गई है। कॉलोनी में अभी खराब सड़क, गंदा पानी, बदहाल गार्डन समेत कई तरह की समस्या विद्यमान है।
इस संबंध में हाऊसिंग बोर्ड कमिश्नर अवनीश कुमार शरण ने कहा कि कचना कॉलोनी निगम को हैंडओवर कर दी गई है। इस वजह से अब संपत्तिकर को लेकर जो भी फैसला करना है वो निगम वालों को ही करना है। वहीं दूसरी तरफ नगर निगम कमिश्नर विश्वदीप ने कहा कि कचना कॉलोनी के घरों के संपत्तिकर को लेकर क्या मामला है इसकी पूरी जानकारी मंगाई गई है। नियमानुसार जो होगा वही फैसला लिया जाएगा।
लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और अन्य चुनौतियां जैसे भूमि की कमी, निर्माण सामग्री की उच्च लागत और अनौपचारिक आवास विकल्पों की बढ़ती संख्या के कारण सरकारी एजेंसियां गुणवत्तापूर्ण घर नहीं बना पा रही है। यह विशेष रूप से छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के मामले में स्पष्ट है, जहां 2,651 घर बिक नहीं रहे, भले ही 10-30 फीसदी तक की छूट दी जा रही हो और इनकी कुल कीमत 380 करोड़ रुपये है। छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड ने पिछले 15 वर्षों में 100,000 से अधिक घर बनाए हैं, जिनमें से 85 फीसदी ईडब्ल्यूएस और एलआईजी परिवारों के लिए है और इसे कई राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले हैं। इन घरों पर 10-30 फीसदी तक की छूट दी जा रही है लेकिन फिर भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। मार्च 2025 तक भी 113 करोड़ रुपये के घर खाली पड़े हैं जो जर्जर हो रहे हैं। यह संभावना है कि इन घरों की गुणवत्ता, स्थान या अन्य कारक जैसे कि बाजार की मांग और ग्राहक वरीयताएं बिक्री में बाधा डाल रही हैं।
यह समस्या सिर्फ कचना के हाउसिंग बोर्ड तक सीमित नहीं है। रायपुर तथा पूरे प्रदेश में और भी कॉलोनी है जहां समस्याएं देखने को मिलती है। यदि हम रायपुर की ही बात करें तो सेजबहार कॉलोनी में मार्च 2025 में पेयजल आपूर्ति बंद हो गई थी जिसे निवासियों ने सड़क पर प्रदर्शन किया था। बिजली विभाग का लगभग 1 करोड रुपए का बकाया होने के कारण कनेक्शन कट गया था। सुबह-शाम सफाई व्यवस्था की अनुपस्थिति और कचरे की भरमार ने कॉलोनी को आपदा क्षेत्र बना दिया था। तेलीबांधा विस्थापन के बाद बोरिया कला में 2008 से 2011 में बनाए गए 1300 यूज फ्लैट बनाए गए। जो कि झुग्गीवासियों के लौट जाने से खाली रह गए, लूट-खसोट और नालियों की जाम जिंदगी को अस्त-व्यस्त बन चुकी है।
नया रायपुर में 2016 से 2017 में पंजीकरण लेकर पूरी रकम जमा करने के बावजूद अब तक परिवारों को फ्लैट नहीं मिला। कई लोगों को पैसा वापस तो मिला पर 10 फीसदी कटौती की गई और मकान अभी भी अधूरा है।
बोरियाकला, सिवनी, दलदल सिवनी कॉलोनियों समेत आरडीए/ हाउसिंग बोर्ड की ईडब्ल्यूएस कालोनी में मेंटेनेंस पूरी तरह बर्बाद है। दीवारों में दरारें, सीपेज, गंदगी का आलम है। लोग पानी और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। लोगों द्वारा रोजाना शिकायत करने के बावजूद कोई निराकरण नहीं हो रहा है।
‘हम मकान नहीं घर बनाते हैंÓ का स्लोगन रचने वाले हाऊसिंग बोर्ड को गुणवत्ता के साथ मांग और पूर्ति के सिद्धांत को याद रखना होगा। जो कॉलोनी बनी हुई है या बनाई जा रही है उनकी साफ-सफाई पेयजल, प्रकाश व्यवस्था और रखरखाव सही ढंग से हो, यह भी देखना होगा।

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