Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – हर जगह परचम लहराती महिलाएं

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

साक्षरता अभियान के दौरान एक गीत बहुत गाया जाता रहा है, ”ले मशालें चल पड़े हैं, लोग मेरे गांव के, अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के। इसी तरह एक सवाल पूछता गीत भी है ”मुल्क में गर बेटियां मायूस और नाशाद हैं, दिल पे रख के हाथ कहिये मुल्क क्या आजाद है?
अब स्थितियां बदलती है। यदि हम अपने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मानें तो उन्होंने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर गुजरात के नवसारी में आयोजित लखपति दीदी सम्मेलन में कहा कि राजनीति का मैदान हो या खेल का मैदान, न्यायपालिका हो या फिर पुलिस, देश के हर सेक्टर में महिलाओं का परचम लहरा रहा है। 2014 के बाद से देश के महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं की भागीदारी बहुत तेजी से बढ़ी है। 2014 के बाद ही केंद्र सरकार में सबसे ज्यादा महिला मंत्री बनीं। संसद में भी महिलाओं की मौजूदगी में बड़ा इजाफा हुआ। 18वीं लोकसभा में 74 महिला सांसद लोकसभा का हिस्सा है। न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी उतनी ही बढ़ी है। आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इको सिस्टम है। इनमें महिला निवेशकों की भूमिका है। पीएम मोदी ने कहा, गांधी जी कहते थे कि देश की आत्मा ग्रामीण भारत में बसती है। आज मैं उसमें एक पंक्ति और जोड़ता हूं कि ग्रामीण भारत की आत्मा ग्रामीण नारी के सशक्तिकरण में बसती है। इसलिए हमारी सरकार ने महिलाओं के अधिकारों को, महिलाओं के लिए नए अवसरों को बड़ी प्राथमिकता दी है।
अब बात थोड़ी घरेलू और सामाजिक स्थितियों में महिलाओं के श्रम और सम्मान से जुड़ी सच्चाई की करें तो पता चलता है कि घरेलू स्त्री के श्रम का कोई मूल्यांकन नहीं है। हाऊस वाईफ से हाऊस मेकर कहने से भी उसकी स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार नहीं है। भारत सरकार के सांख्यिकी महकमें की मानें तो 2019 से 2024 तक महिलाओं के अवैतनिक घरेलू काम में प्रतिदिन 10 मिनट की कमी आई है यानी प्रतिदिन एक घरेलू महिला 315 मिनट की बजाय 305 मिनट काम कर रही है। 15 से 59 वर्ष की महिलाएं प्रतिदिन 305 मिनट का घरेलू काम और 341 मिनट का बाहरी काम यानी लगभग सवा ग्यारह घंटे काम करती है। जहां तक न्यूनतम मजदूरी की बात है तो महिलाओं को पुरूषो की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।
प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के शब्दों में कहूं तो दिवस कमजोर का ही मनाया जाता है। जैसे कि ‘हिंदी दिवस, ‘महिला दिवस, ‘अध्यापक दिवस, ‘मजदूर दिवस, कभी ‘थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता। परसाई स्त्री की आज़ादी को आर्थिक कारणों से जोड़ते हुए कहते हैं कि ‘नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानी 8 मार्च महिलाओं के अधिकारों, समानता और सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इसका उद्देश्य लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना और महिलाओं को समाज में समान अवसर दिलाना है। अलग-अलग स्तर पर महिला दिवस को लेकर बहुत से कार्यक्रम हुए घोषणाएं हुई। महिलाओं को सरकारी योजनाओं के ज़रिए मिलने वाली राशि की किश्त जारी की गई। छत्तीसगढ़ में महतारी वंदन योजना के अंतर्गत 13 वीं किस्त के रूप में 8488 करोड़ राशि उनके खाते में हस्तांतरित की गई। दिल्ली में महिला समृद्धि योजना लागू की गई। अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतर काम करने वाली महिलाओं का सम्मान किया गया, उनकी सफलता की कहानियों को प्रचारित प्रसारित किया गया।

हमारे देश में महिला को नारी शक्ति देवी के रूप में पूजा जाता है। हमारे यहां कहा भी गया है कि-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवता ।
यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वस्त्रफला: क्रिया।
इसका अर्थ है जहां नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां पर ऐसा नहीं होता वहां पर सभी कार्य निष्फल हो जाते हैं। क्या वाक़ई में हमारे समाज में इसका पालन हो रहा है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार के आँकड़े कुछ और ही बयान करते हैं। यदि हम 2021 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की बात करें तो यह संख्या 4,28,278 थी, जबकि 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किए गए थे जो 15.3फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है।
अलग-अलग श्रेणियों में घटित प्रमुख अपराधों की बात करें तो महिलाओं के खिलाफ अपराधों में से 31.4 फीसदी मामले पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा की गई क्रूरता से संबंधित है। कुल अपराधों में से 19.2 फीसदी मामले महिलाओं के अपहरण से संबंधित है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 7.1 फीसदी मामले दुष्कर्म से संबंधित है। बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के उपरांत हत्या मामलों में दोषसिद्धि दर 69.4 फीसदी है, जबकि केवल बलात्कार के मामलों में यह दर 27.4 फीसदी है। भारत में हर घंटे लगभग 51 मामले महिलाओं के खिलाफ अपराध के दर्ज होते हैं। हर 16 मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार की घटना घटती है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हो रही है जो समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है। इन अपराधों को रोकने के लिए सख्त कानूनों के साथ-साथ समाज में जागरूकता और मानसिकता में परिवर्तन आवश्यक है।
यदि हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत 1909 में अमेरिका में हुई, जब सोशलिस्ट पार्टी ने महिलाओं के अधिकारों और समानता के समर्थन में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। 1910 में क्लारा ज़ेटकिन नामक जर्मन समाजसेविका ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव रखा।1917 में रूस की महिलाओं ने इस दिन एक बड़ा आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला।1977 में संयुक्त राष्ट्र ने इसे आधिकारिक रूप से मान्यता दी और इसे वैश्विक रूप से मनाने की घोषणा की।
सरकार बनाने बिगडऩे में अब हमारे देश में महिला वोटरों की अहम भूमिका हो गई है और सभी राजनीतिक पार्टियां इसे समझने भी लगी हैं। इस वजह से अब महिला सशक्तिकरण की बहुत बात होने लगी है। पुरुष सत्तात्मक समाज में अब आरक्षण के चलते या वोट बैंक की वजह से महिलाओं को भी नेतृत्व सौंपना पड़ रहा है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत रूप से सशक्त बनाना, ताकि वे अपनी स्वतंत्र पहचान बना सकें और समाज में समान अधिकार प्राप्त कर सकें।

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