केन्द्र सरकार द्वारा 130वां संविधान संशोधन के जरिए राजनीति में शुचिता और नैतिकता लाने की कोशिश की जा रही है। जिसका समूचा विपक्ष पुरजोर विरोध कर रहा है। संसद में पेश तीनों बिलों को लेकर उसी तरह का बवाल मचा है जैसा कृषि बिलों को लेकर था। संविधान में 130वें संशोधन, जिसके जरिए राजनीति में शुचिता और नैतिकता लाने की बात कही जा रही है, उसको लेकर समूचा विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल खड़ कर रहा है।
सरकार से जुड़े लोग कहते हैं कि देश नैतिकता चाहता है, भ्रष्टाचार नहीं। सरकार संविधान संशोधन के जरिए 1963 के कानून की धारा 45 में संशोधन करके 30 दिन से अधिक जेल में रहने वाले किसी भी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री से 31वें दिन स्वमेव इस्तीफे का प्रावधान कर रही है। सरकार नहीं चाहती है कि अरविंद केजरीवाल की तरह जेल में रहकर कोई सरकार चलाए। वहीं विपक्ष सरकार की मंशा और विधेयक के उद्देश्य को लेकर आशंकित है। उसे लगता है कि सरकार केन्द्र एजेंसी ईडी, सीबीआई का सहारा लेकर किसी भी नेता को जेल मेें डाल सकती है। ईडी को मिले अधिकारों के तहत किसी को भी लंबे समय तक जेल में रखा जा सकता है। दिल्ली की पूर्व सरकार के मंत्री सत्येन्द्र जैन को पीएमएलए के तहत जो साल तक जेल में निरुद्घ रखने के बाद सीबीआई, ईडी ने क्लोजर रिपोर्ट देकर मत दिया कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। झारखंज के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ। ईडी, सीबीआई बहुत सारे लोगों पर सरकार के इशारे पर कार्यवाही करती है। अभी हाल ही में 5 तथा 8 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इनकी कार्यप्रणाली को लेकर तीखी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए एक्ट के विभिन्न प्रावधानों को बरकरार रखने के मामले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ईडी बदमाश की तरह काम नहीं कर सकता, उसे कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुयान और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने शीर्ष अदालत के जुलाई 2022 के उस फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ईडी की गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को बरकरार रखा गया था। ईडी की छवि के बारे में भी चिंतित सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस उज्ज्वल भुयान ने कम दोषसिद्धि दरों की ओर इशारा किया। पूछा-5-6 साल की न्यायिक हिरासत के बाद अगर लोग बरी हो जाते हैं तो इसकी कीमत कौन चुकाएगा? मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में दोषसिद्धि दर 10 प्रतिशत से कम होने का जिक्र करते हुए जस्टिस उज्जल भुयान ने कहा कि अदालत न केवल लोगों की स्वतंत्रता के बारे में बल्कि ईडी की छवि के बारे में भी चिंतित है। दोषसिद्धि की दर 10 प्रतिशत से भी कम है इसलिए हम जोर देते हैं अपनी जांच और गवाहों में सुधार करें। हम लोगों की आजादी की बात कर रहे हैं हमें ईडी की छवि की भी चिंता है।
संसद में इस बिल की कापी फाड़ते हुए विपक्षी नेताओं के बहुत तीखे तेवर थे। उनका कहना है कि सरकार लोकतंत्र को खत्म करके तानाशाही पूर्वक शासन चलाना चाहती है। चुनी हुई सरकारों पर जांच एजेंसियों का खतरा बढ़ेगा। इस नये विधेयक के प्रावधान न्याय के नैसर्गिक नियम के विरुद्घ है। वह विपक्षी राज्यों में अपने पसंद के लोगों को सत्ता में बिठाना चाहती है। वहीं सत्ता पक्षा के लोगों का मानना है कि राजनीति शुचिता और लोकतंत्र के लिए ऐसे कानून जरुरी है।
लोकसभा में बुधवार को भारी हंगामे के बीच जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीन विवादास्पद विधेयक सदन में पेश किए। ये विधेयक प्रधानमंत्री या किसी मुख्यमंत्री को उनके पद से हटाने से जुड़े हैं, अगर वे किसी गंभीर अपराध में गिरफ्तार होकर 30 दिनों तक जेल में रहते हैं। शाह ने जैसे ही ये विधेयक पेश किए, विपक्षी सांसदों ने विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने विधेयकों की प्रतियां फाड़कर शाह की तरफ फेंकी। इसके साथ ही वे नारेबाजी करते हुए सदन के बीच में पहुंच गए। गृहमंत्री शाह ने स्पष्ट किया कि ये विधेयक जल्दबाजी में नहीं लाए गए हैं और इन्हें संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) को भेजा जाएगा, जिसमें सभी दलों के सांसद सुझाव दे सकेंगे। ये तीन विधेयक केंद्र शासित प्रदेश (संशोधन) विधेयक 2025 संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025 हैं। इनका मकसद यह है कि अगर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को किसी गंभीर अपराध में गिरफ्तार कर लगातार तीस दिनों तक जेल में रखा जाता है, तो 31वें दिन वे अपने पद से हटा दिए जाएंगे। दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी ने गिरफ्तारी के बावजूद अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया था।
जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 (2019 का 34) के तहत गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए मुख्यमंत्री या मंत्री को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 54 में संशोधन के बाद गंभीर आपराधिक केस में गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए मुख्यमंत्री या मंत्री को 30 दिन में हटाने का प्रावधान होगा।
सरकार ने 130वें संविधान संशोधन के जरिए भले ही राजनीतिक शुचिता की दुहाई दी हो किन्तु यह मामला तात्कालिक रुप से विपक्ष की घेराबंदी है। यह घेराबंदी हर उस नेता की हो सकती है, जो केन्द्र के इशारे पर काम नहीं करेगा फिर चाहे वह देश के उपराष्ट्रपति के मजबूरन इस्तीफा देेने का ही क्यों ना हो या दो साल से अधिक जेल में बंद रहे आप पार्टी के मंत्री सत्येंद्र जैन का, जिसका मामला बाद में सबूतों के अभाव में क्लोज कर दिया गया।
यदि एक आदमी नैतिकता के आधार पर इस्तीफा नहीं देगा तो वह कानूनन अपने आप 30 दिन बाद हट जाएगा। भले ही बाद में वह निर्दोष क्यों न निकले। उसकी कुर्सी पर तो हमेशा तलवार ही लटकी रहेगी।
सवाल यह है कि क्या कानूनी प्रावधानों से राजनीति में शुचिता और नैतिकता लाई जा सकती है? जब बहुत सारी मशीनरी का पूर्वाग्रह और अनैतिक तरीके से काम करे और संविधान की मंशा पर पानी फेरे तो ऐसे में क्या संविधान में 130वां संशोधन करके नैतिकता को बहाल किया जा सकता है।
क्या कानून से नैतिकता लाई जा सकती है

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