Bastar news- अंधा व्यक्ति का कल्याण संभव है,पर मोह में अंधा का कभी कल्याण नही हो सकता

श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिवस, आचार्य आशिष महाराज के श्रीमुख से

 

कांकेर/भानुप्रतापपुर। अंधा ब्यक्ति का कल्याण संभव है,जिस प्रकार सूरदास जी अंधा होते हुए भी ठाकुर जी को पा लिया लेकिन जो व्यक्ति मोह में अंधा हो उसका कभी कल्याण नही हो सकता है। जैसे धृतराष्ट्र पुत्र मोह में अंधा था। श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे स्कन्द में आचार्य आशीष कृष्ण महाराज ने बिदुर एवं धृतराष्ट्र की कथा बताई गई।

श्रीमद्भागवत महापुराण सप्ताह ज्ञान यज्ञ 5 से 13 दिसम्बर तक भवानी चौक आमापारा कांकेर में सोनी परिवार के द्वारा कराये जा रहे है। अंतराष्ट्रीय कथा प्रवक्ता आचार्य श्री आशीष कृष्ण के श्रीमुख से कथा श्रवण करने का सौभाग्य हम सभी को प्राप्त हो रहा है। कथा के तीसरे दिवस महाराज जी ने भक्ति, प्रेम व ठाकुर जी को पाने का मार्ग बतलाया गया।  राजा परीक्षित ने महाराज सुकदेव जी से प्रश्न किया कि जिसका मृत्यु निकट हो उसे क्या करना चाहिए, मुक्ति का उपाय क्या है, महाराज ने कहा हे राजन जीवन मे जो जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है, इससे कोई नही बच सकता। सिकंदर का उदाहरण देते हुए बतलाया कि मानव अपने जीवन काल मे धन संचय व पारिवारिक मोहमाया में गुजार देता है, जबकि अंतिम समय मे केवल भगवान के भक्ति कीर्तन व अच्छे कर्म ही उसके साथ जाते है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवनकाल में भजन कीर्तन के साथ ही अच्छा कर्म करना चाहिए।  स्वार्थ के लिए नही अपितु समाज कल्याण के इच्छा व कार्य होना चाहिए। एक बीज से वृक्ष के उदाहरण बताया गया। हे राजन आपका प्रश्न लोककल्याण का है अवश्य ही आपका कल्याण होगा। साधना क्या है इस पर गुरु देव ने कहा जो आसन, श्वास को जीता है व संग को महत्वपूर्ण बताया। चंदन के बगीचा में बबुल वृक्ष में भी चंदन के गुण आ जाते है। जो ठाकुर जी मे समर्पित हो जाते है वैसे हम आप हैं।

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वही सनातन धर्म मे तैतीस कोटि देवी देवताओं का वर्णन है। हम असमंजस में रहते है आखिर किसके पूजा अर्चना करे। निष्ठा व पुरुषातार्थ होने पर ही प्राथर्ना सफल होती है। इस पर विस्तार से चर्चा किया गया। श्री आशिष   महाराज ने कहा कि हमारे द्वारा बताए गए हर बात आप लोगो के समझ मे नही आती है। बीज के समान है, हर बीज वृक्ष का रूप ले ले यह सम्भव नही है क्योंकि कोई बीच चट्टानों में तो कई चिड़िया चुग जाती है लेकिन एकांत बीज है जो भुवन भास्कर के प्रकाश से धरती पर उग कर विशाल वृक्ष की आकार के लेती है वैसे ही आप लोग है प्रभु के सत्संग कीर्तन के बातों को सुनकर जीवन मे उतारकर ठाकुर जी को पाने में अहम होगा व जीवन को सार्थक कर लेते है।  दुर्योधन ने छपन भोग बनाकर ठाकुर जी भोजन लिए आमंत्रित किया लेकिन भगवान ने उसे ठुकराते हुए भक्त विदुर के यहा भोजन करना स्वीकार किया। महाराज जी ने कहा कि भोजन करने के तीन प्रमुख कारण बताया अभाव यदि कोई ब्यक्ति भूखा हो, या प्रभाव मित्रता या सम्बंध में या फिर भक्त के भाव होने पर है।

हमारे बच्चे नास्तिक नही है उनमें जिज्ञासा है, लेकिन उन्हें समझाने वाले नही मिल पाते है।  मरने के बात मुक्ति मिलेगी या नही यह तो ठाकुर जी ही जाने यदि जीते जी मुक्त होना चाहते हो तो जिस प्रकार भगवान के थाली में तुलसी दल अर्पण कर दिया जाता है। वैसे ही गुरुदेव के हाथों तुलसी माला पहन कर अपने आप को भगवान को अर्पण कर दीजिए,इस शरीर का मालिक आप हो,जिसका मालिक स्वयं ठाकुर जी है उसके जीवन मे कभी अभाव नही रहेगा।

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