-सुभाष मिश्र
दुनिया में सेक्स को स्वर्ग की तरह देखे जाने वाले थाईलैंड के बैंकॉक में हाल ही में एक ऐसा स्कैंडल उजागर हुआ है, जिसने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। बौद्ध भिक्षुओं, जो ब्रह्मचर्य और संयम के प्रतीक माने जाते हैं, सेक्सटॉर्शन के जाल में फंस गए। ‘मिस गोल्फÓ नाम की एक महिला ने नौ वरिष्ठ भिक्षुओं को प्रेमजाल में फंसाकर उनके अंतरंग पलों को रिकॉर्ड किया और करोड़ों रुपये की ठगी की। पुलिस ने 80 हजार से अधिक नग्न तस्वीरें और वीडियो जब्त किए, जिसके बाद कई भिक्षु फरार हो गए, एक को निष्कासित किया गया और थाईलैंड के राजा ने 81 भिक्षुओं के राजकीय सम्मान रद्द कर दिए। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत अपराध नहीं, बल्कि धार्मिक संस्थाओं में सेक्स के प्रति दमित इच्छाओं का एक विस्फोटक उदाहरण है। धार्मिक क्षेत्र में सेक्स को टैबू माना जाता है, लेकिन क्या यह टैबू वास्तव में मनुष्य की नैसर्गिक जरूरतों को दबाने की एक मजबूरी नहीं है?
धार्मिक संस्थाओं में सेक्स: एक अनंत टैबू
धार्मिक परंपराओं में सेक्स को अक्सर पाप या विकर्षण के रूप में देखा जाता है। बौद्ध धर्म में भिक्षु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, ईसाई चर्च में पादरी और नन सेलिबेसी (अविवाहित रहना और सेक्स से परहेज) की शपथ लेते हैं, हिंदू मठों में साधु-संन्यासी काम-वासना को जीतने की बात करते हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि यह टैबू बार-बार टूटता रहा है। थाईलैंड का यह स्कैंडल नया नहीं है। 2017 में विरापोल सुक्फोल नामक भिक्षु पर दुष्कर्म और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे थे, 2022 में ड्रग तस्करी में भिक्षु पकड़े गए। इसी तरह कैथोलिक चर्च में सेक्सुअल एब्यूज के हजारों मामले सामने आए हैं। अमेरिका में 1950 से अब तक 2.6 बिलियन डॉलर से अधिक का हर्जाना दिया गया है। प्रोटेस्टेंट चर्चों में भी सेक्स स्कैंडल की लंबी इतिहास है, जहां पावर और आस्था का दुरुपयोग होता रहा है।
हमारी मिथकों में भी यह संघर्ष साफ दिखता है। हिंदू पुराणों में मेनका, उर्वशी जैसी अप्सराएं ऋषि मुनियों की तपस्या भंग करने के लिए भेजी जाती हैं। विश्वामित्र, पराशर जैसे महान ऋषि काम-वासना के आगे झुक जाते हैं। ये कथाएं बताती हैं कि सेक्स मनुष्य की मूलभूत जरूरत है, जिसे दबाना आसान नहीं। लेकिन धार्मिक संस्थाएं इसे दबाने की कोशिश करती हैं जो अक्सर स्कैंडलों में तब्दील हो जाता है। थाईलैंड की घटना में भिक्षुओं ने महिला को मर्सिडीज कार, लाखों की ट्रांसफर और डेबिट कार्ड दिए—यह सिर्फ ठगी नहीं, बल्कि दमित इच्छाओं का फूटना है।
सेक्स सिर्फ प्रजनन नहीं, बल्कि मनुष्य की मूलभूत जरूरत है जैसे भोजन, नींद या सुरक्षा। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, सेक्स हार्मोनल बैलेंस, तनाव कम करने और भावनात्मक जुड़ाव के लिए जरूरी है। लेकिन धार्मिक संदर्भ में इसे दबाने से क्या होता है? मनोवैज्ञानिक कारणों में सबसे प्रमुख है ‘दमनÓ । जब कोई व्यक्ति अपनी सेक्सुअल इच्छाओं को दबाता है, वे अवचेतन में दब जाती है और असामान्य रूप से फूट पड़ती है। धार्मिक संस्थाओं में सेक्स स्कैंडल अक्सर पावर डायनामिक्स से जुड़े होते हैं—पादरी या भिक्षु की स्थिति उन्हें ‘अछूतÓ बनाती है, लेकिन यह पावर ही उन्हें दुरुपयोग की ओर धकेलती है। अध्ययनों से पता चलता है कि रोमन कैथोलिक पादरियों में सेक्सुअल एब्यूज के मामले जोखिम कारकों जैसे बचपन के ट्रॉमा, अलगाव और संस्थागत दबाव से जुड़े हैं।
एक अन्य कारण है ‘आध्यात्मिक ट्रॉमाÓ—जब पीडि़त धार्मिक नेता पर भरोसा करते हैं, तो एब्यूज उनके विश्वास को तोड़ देता है, जिससे लंबे समय तक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। गैर-धार्मिक संस्थाओं की तुलना में धार्मिक जगहों पर एब्यूज की दर अधिक होती है, क्योंकि यहां रिपोर्टिंग कम होती है—लोग आस्था के कारण चुप रहते हैं। थाईलैंड में 90 प्रतिशत आबादी बौद्ध है और 2 लाख भिक्षु सक्रिय हैं, लेकिन ऐसे स्कैंडल आस्था को ठेस पहुंचाते हैं। मनोवैज्ञानिक रूप से, सेलिबेसी की मजबूरी व्यक्ति को अलग-थलग कर देती है, जिससे अवसाद, चिंता और अंतत: विस्फोटक व्यवहार पैदा होता है।
फ्रायड के सिद्धांत: दमित सेक्सुअलिटी और न्यूरोसिस
सिग्मंड फ्रायड, मनोविश्लेषण के जनक, सेक्स को मानव व्यवहार का मूल आधार मानते थे। उनके अनुसार, मनुष्य का मन तीन भागों में बंटा है: इड जो मूलभूत इच्छाओं (सेक्स, भूख) का केंद्र है। इगो—जो वास्तविकता से सामंजस्य बिठाता है और सुपरइगो —जो नैतिकता और समाज के नियम थोपता है। फ्रायड का मानना था कि सेक्सुअल दमन आधुनिक मनुष्य की मुख्य मनोवैज्ञानिक समस्या है। उनके ‘थ्री एसेज ऑन द थ्योरी ऑफ सेक्सुअलिटीÓ में कहा गया है कि सेक्सुअल इच्छाएं बचपन से विकसित होती हैं, और उनका दमन न्यूरोसिस (मानसिक विकार) पैदा करता है।
धार्मिक सेलिबेसी में यह दमन स्पष्ट है। फ्रायड के अनुसार, सेक्स ड्राइव को दबाने से यह अवचेतन में जमा हो जाती है और असामान्य रूप से प्रकट होती है—जैसे एब्यूज या स्कैंडल में। वे ‘सब्लिमेशनÓ की बात करते हैं, जहां सेक्सुअल ऊर्जा को कला, कार्य या आध्यात्मिक गतिविधियों में मोड़ा जा सकता है। लेकिन अगर सब्लिमेशन असफल हो तो दमन विनाशकारी होता है। फ्रायड खुद सेलिबेट थे, और उनके जीवन में रोमांटिक अटैचमेंट्स का प्रभाव था, जो उनके सिद्धांतों में झलकता है। धार्मिक संस्थाओं में सेलिबेसी को फ्रायड ‘पॉलिमॉर्फस सेक्सुअलिटीÓ (बहुरूपी सेक्सुअलिटी) के दमन के रूप में देखते थे जो अंतत: विकृति पैदा करती है। थाईलैंड स्कैंडल में भिक्षुओं का व्यवहार इसी दमन का परिणाम लगता है वे ‘सच्चा प्यारÓ का दावा कर रहे हैं, लेकिन यह दमित इड का फूटना है।
आचार्य रजनीश की दृष्टि: संभोग से समाधि तक
आचार्य रजनीश (ओशो) ने इस मुद्दे को बेबाकी से उठाया। उनकी किताब ‘संभोग से समाधि तकÓ में कहा गया है कि सेक्स को दबाना समाधि नहीं दिलाता, बल्कि सेक्स की ऊर्जा को समझकर ट्रांसफॉर्म करना चाहिए। ओशो कहते हैं, सेक्स मनुष्य की सबसे जीवंत ऊर्जा है, लेकिन यह अंत नहीं होना चाहिए। सेक्स आत्मा की ओर ले जाए। वे तंत्र दर्शन से प्रेरित थे, जहां सेक्स को आध्यात्मिक अनुभव का माध्यम माना जाता है। दमन से मुक्ति नहीं मिलती। सेक्स को स्वीकार कर उससे ऊपर उठकर समाधि प्राप्त करो। ओशो के प्रवचनों में 1968 में ‘संभोग से समाधि की ओरÓ ने विवाद खड़ा किया, क्योंकि उन्होंने सेक्स को दबाने की बजाय इसे ब्रह्मचर्य का आधार बताया। थाईलैंड स्कैंडल में अगर भिक्षु सेक्स को दबाने की बजाय समझते, तो शायद यह विवशता न बनती। ओशो की दृष्टि फ्रायड से मेल खाती है दोनों दमन को समस्या मानते हैं, लेकिन ओशो समाधि की ओर ट्रांसफॉर्मेशन सुझाते हैं।
विवशता से मुक्ति की ओर
सेक्स से परहेज की विवशता धार्मिक संस्थाओं को खोखला कर रही है। थाईलैंड का स्कैंडल हमें सिखाता है कि दमन स्कैंडल पैदा करता है, न कि पवित्रता। फ्रायड के सिद्धांत बताते हैं कि सेक्स इड की मूल ड्राइव है, जिसका दमन न्यूरोसिस लाता है। मनोवैज्ञानिक कारण जैसे पावर एब्यूज और अलगाव इसे बढ़ावा देते हैं। रजनीश की तरह, सेक्स को टैबू बनाने की बजाय इसे समझें और ट्रांसफॉर्म करें। धार्मिक संस्थाओं को सेलिबेसी पर पुनर्विचार करना चाहिए—शायद सब्लिमेशन या खुले संवाद से समाधान निकले। अंतत:, मनुष्य की जरूरतों को नकारना नहीं, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक ऊंचाई तक ले जाना समाधान है। यह बेबाक चर्चा जरूरी है, ताकि आस्था स्कैंडलों की भेंट न चढ़े।