-सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में हाल के वर्षों में विकास की कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है, जिनमें बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना और इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना शामिल है। इन परियोजनाओं को हाल ही में राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया गया है, जिससे इनके लिए केंद्र सरकार की ओर से विशेष धनराशि और प्राथमिकता मिलेगी। ये परियोजनाएं न केवल क्षेत्र के आर्थिक विकास को बढ़ावा देंगी, बल्कि नक्सलवाद के प्रभाव को कम करने और बस्तर की तस्वीर बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। बोधघाट बांध परियोजना इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित है और पिछले 45 वर्षों से विभिन्न कारणों से अटकी हुई थी। हाल ही में इसे 49,000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ मंजूरी दी गई है। इस बांध का उद्देश्य सिंचाई, बिजली उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण करना है। अनुमान है कि यह परियोजना बस्तर सहित आधे छत्तीसगढ़ में लगभग 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करेगी और 125 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगी। इसी तरह इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना इंद्रावती और महानदी नदियों के जल को जोडऩे का प्रयास है, ताकि पानी के बेहतर प्रबंधन और वितरण के माध्यम से सूखा प्रभावित क्षेत्रों को लाभ मिले। इसकी मदद से बस्तर और आसपास के क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता बढ़ेगी जो खेती और पेयजल की समस्या को हल करने में सहायक होगी।
इन दोनों परियोजनाओं को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का मतलब है कि केंद्र सरकार इनके लिए विशेष आर्थिक सहायता और तकनीकी सहयोग प्रदान करेगी, साथ ही इनके निर्माण में तेजी लाने के लिए नीतिगत समर्थन भी मिलेगा।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना और इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना के राष्ट्रीय परियोजना के रूप में निर्माण के संबंध में हुई चर्चा से आने वाले समय में विशेष रूप से बस्तर के लिए बहुत ही सकारात्मक पहल होगी। जैसा कि मुख्यमंत्री साय ने एक्स पर एक पोस्ट के ज़रिए कहा है कि प्रधानमंत्री को जानकारी दी है कि बस्तर संभाग लंबे समय से माओवादी हिंसा से प्रभावित रहा है, जिससे सिंचाई साधनों के विकास में पिछड़ गया है। यहां कुल बोये गए क्षेत्र 8.15 लाख हेक्टेयर में से केवल 1.36 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई सुविधाएं विकसित हो पाई है। बस्तर शांति और विकास की ओर द्रुत गति से बढ़ रहा है। ऐसे में दोनों परियोजनाएं पूरे बस्तर में कृषि विकास और रोजगार को बढ़ाने में मदद करेंगी। प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से सुना और विचार करने की बात कही है।
बस्तर संभाग में सिंचाई साधनों की समस्या को दूर करने और चहुंमुखी विकास को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना और इंद्रावती-महानदी लिंक परियोजना पर काम कर रही है। परियोजनाओं से लगभग 7 लाख सेक्टेयर भूमि में हो सकेगी। बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना से दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा जिले के 269 गांवों को बड़ा लाभ होगा। जबकि इंदावती-महानदी इंटरलिंकिग परियोजना से कांकेर जिले के अनेकों गांवों में सिंचाई सुविधा का विस्तार हो सकेगा। बस्तर संभाग को विकसित, आत्मनिर्भर और सक्षम बनाने की दिशा में दोनों परियोजना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना, गोदावरी नदी की बड़ी सहायक इन्द्रावती नदी पर प्रस्तावित है। राज्य में इन्द्रावती नदी कुल 264 कि. मी. में प्रवाहित होती है।
बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना से संभाग में सिंचाई साधनों का दायरा बढऩे के साथ ही बस्तर के विकास को डबल रफ्तार मिलेगी। इस परियोजना से 125 मेगावाट का विद्युत उत्पादन, 4824 टन वार्षिक मत्स्य उत्पादन जैसे अतिरिक्त रोजगार, खरीफ एवं रबी मिलाकर 3,78,475 हेक्टेयर में सिंचाई विस्तार एवं 49 मिघमी पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकेगी। वहीं इंदावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजना से कांकेर जिले की भी 50,000 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई सहित कुल 3,00,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। बस्तर को विकसित और आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में दोनों परियोजना एक महत्वपूर्ण कदम होगा। दोनों परियोजनाओं की अनुमानित लागत 49000 करोड़ रूपए है। जिसमें इंदावती-महानदी लिंक परियोजना की लागत लगभग 20 हजार करोड़ एवं बहुउद्देशीय बोधघाट बांध परियोजना में लगभग 29 हजार करोड़ की लागत संभावित है। इस तरह दोनों परियोजनाओं की लागत 49,000 करोड़ होगी। इस परियोजना का शिलान्यास 21 जनवरी 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई किया था।
बस्तर अब तेज़ी से बदल रहा है। बदलते बस्तर की तस्वीर में अब परियोजना मील के पत्थर का काम करेगी। बस्तर, जो लंबे समय से नक्सलवाद और पिछड़ेपन से ग्रस्त रहा है इन परियोजनाओं से एक नई दिशा की ओर बढ़ सकता है।
परियोजना के पूरा होने से 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा से किसानों को दो फसली खेती करने का अवसर मिलेगा, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी। यह क्षेत्र जहां अभी तक बारिश पर निर्भर खेती होती है, स्थिर आय स्रोत की ओर बढ़ेगा। ऐसे ही बस्तर के औद्योगिक विकास को गति मिलेगी। बिजली उत्पादन और बेहतर जल प्रबंधन से औद्योगिक इकाइयों के लिए आधार तैयार होगा। बस्तर में खनिज संपदा जैसे लौह अयस्क और बॉक्साइट पहले से मौजूद हैं और इन परियोजनाओं से उद्योगों की स्थापना में तेजी आएगी।निर्माण कार्य और बाद में परियोजनाओं के संचालन से हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा जो बस्तर की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। बस्तर के कुछ क्षेत्रों में शहरीकरण और बुनियादी ढांचे का विस्तार होगा। इन परियोजनाओं के साथ सड़क, रेल और संचार सुविधाओं में सुधार होगा, जिससे बस्तर का दूरस्थपन कम होगा और यह मुख्यधारा से जुड़ेगा।
बस्तर लंबे समय से नक्सल प्रभावित क्षेत्र रहा है, जहां विकास कार्यों में बाधा डाली जाती रही है। हाल के वर्षों में सरकार की ओर से सुरक्षा और विकास पर समन्वित रणनीति अपनाई गई है: नक्सलवाद पर नियंत्रण में भी मदद मिलेगी। परियोजनाओं से क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी, जिससे स्थानीय लोगों का सरकार के प्रति भरोसा बढ़ेगा। यह नक्सलवाद के समर्थन आधार को कमजोर कर सकता है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, 2025 तक नक्सली घटनाओं में 30 प्रतिशत की कमी आई है और यह रुझान परियोजनाओं के साथ और मजबूत हो सकता है।
बस्तर में रेल लाइन और कनेक्टिविटी का विस्तार हो रहा है । जगदलपुर-किरंदुल रेल लाइन के उन्नयन ने क्षेत्र को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ा है। यह न केवल माल ढुलाई को आसान बनाएगा, बल्कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की पहुंच भी बढ़ाएगा।बस्तर में स्टील और एल्युमिनियम उद्योगों की स्थापना की योजना है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रोजगार और शिक्षा के अवसर पैदा करेगी। इससे युवाओं का नक्सल संगठनों की ओर रुझान कम होगा। रेल लाइन के विस्तार और औद्योगिक इकाइयों की स्थापना से बस्तर में आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही है। 2024 में बस्तर में 5 नए औद्योगिक क्लस्टर स्थापित करने की घोषणा हुई, जो 10,000 से अधिक लोगों को रोजगार दे सकते हैं। पर्यावरणीय प्रभाव और विस्थापन एक बड़ी चिंता है। बोधघाट बांध से लगभग 50 गांव प्रभावित हो सकते हैं, जिससे हजारों आदिवासियों का पुनर्वास करना होगा। इसके अलावा नक्सल विरोध के कारण निर्माण कार्य में देरी का जोखिम बना रहता है। वर्तमान में बस्तर में सड़क नेटवर्क 40 प्रतिशत बढ़ा है और रेल कनेक्टिविटी में भी सुधार हुआ है लेकिन इन परियोजनाओं के पूर्ण लाभ के लिए शांति और स्थानीय सहयोग जरूरी है।
बोधघाट बांध और इंद्रावती-महानदी इंटरलिंकिंग परियोजनाएं बस्तर के लिए एक बदलाव की संभावना लेकर आई है। ये परियोजनाएं न केवल आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में मदद करेंगी, बल्कि नक्सलवाद के सफाए और क्षेत्र की मुख्यधारा में वापसी में भी योगदान दे सकती हैं। हालांकि, नक्सलवाद के पूरी तरह सफाए को लेकर कुछ संदेह भी है, क्योंकि परियोजनाओं का विरोध स्थानीय आदिवासी समुदायों द्वारा भी देखा गया है जो अपनी जमीन और पर्यावरण की चिंता जता रहे हैं। इस विरोध को संबोधित करने के लिए संतुलित नीति अपनाना जरूरी होगा। इनके सफल होने के लिए पर्यावरणीय चिंताओं, विस्थापन और स्थानीय समुदायों की सहमति को प्राथमिकता देनी होगी। यदि सरकार इन चुनौतियों को संभाल लेती है तो बस्तर की तस्वीर निश्चित रूप से बदल सकती है, जहां शांति और समृद्धि के नए युग की शुरुआत हो सकती है।