कथा समाख्या 10- गोवा में प्रेमकथा और प्रेम कहानियां

Romance, and, love stories, in Goa

-सुभाष मिश्र

गोवा के संस्कृति भवन में कहानी पर केंद्रित कथा समाख्या में प्रेम की अवधारणा, उसके मनोविज्ञान, रचनात्मक परिणति और स्वरूप तथा साहित्य में प्रेम की उपस्थिति पर चर्चा की गई। 12 से 14 अक्टूबर को आयोजित कथा समाख्या 10 का दीप प्रज्जवलित कर शुभारंभ किया गया। इसमें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कोंकणी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार दामोदर माउजो, संचालक कला एवं संस्कृति गोवा सगुण वेलीप और साहित्यकार शामिल हुए। देश और छत्तीसगढ़ फि़ल्म एंड विज़ुअल आर्ट सोसाइटी रायपुर के इस आयोजन में गोवा का कला और संस्कृति विभाग सहयोगी रहा। गोवा इस देश का सबसे बड़ा पर्यटक स्थल है। यहाँ देश-विदेश से बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं और यहां आने वाले सैलानी निश्चित रूप से मौज-मस्ती के मुड में होते हैं। वे समुन्द्र किनारे जाते हैं, नहाते हैं और एंज्वाय करते हैं। इनमें कुछ लोग सपरिवार होते हैं तो कुछ अकेले भी होते हैं। कई बार तो सैलानी यहां 3-4 महीने तक रहते हैं, क्योंकि विदेश की तुलना में गोवा सस्ता है। सामान्यत: लोगों के मन में विचार आता है कि गोवा मौज-मस्ती की जगह है, जहां आकर लोग मौज-मस्ती करते हैं। शराब का सेवन करते हैं और बहुत सुखी हैं, पर जब लोग वहां ठहरते हैं तब पता चलता है कि गोवा के स्थानीय लोगों का जनजीवन वैसा नहीं है जैसा की जैसा कि गोवा के बारे में आमधारणा है। पिछले दिनों यहां आयोजित कथा समाख्या 10 के शुभारंभ में गोवा के बारे में नई बातें सामने आई। कथा समाख्या में साहित्य अकादमी ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कोकणी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार दामोदर माउजो ने जो जानकारी दी, वह बहुत चौंकाने वाली थी। उन्होंने कहा कि गोवा सिर्फ वह नहीं है, जो यहां आने वाले पर्यटक समझते हैं। दुख की बात है कि इसे हम केवल मौज-मस्ती की उन्मुक्त दुनिया के रूप में देखते हैं। गोवा को उसके पर्यटक छवि से अलग देखा जाना चाहिए। गोवा के आमलोगों का जीवन और उनका संघर्ष यूपी या बिहार के लोगों से भिन्न नहीं है। दामोदर माउजो जी ने इस दौरान साहित्य को लेकर कई गंभीर बातें कहीं और चर्चा की। इसी तरह की बात कला संस्कृति के संचालक सगुण वेलिप ने भी गोवा के बारे में कही। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि देशभर से बहुत से साहित्यकार गोवा आए हैं और वह यहां पर रहकर गोवा को देख रहे हैं. गोवा के बारे में जो आमधारणा है कि यहां केवल मौज-मस्ती है तो ऐसा नहीं है. यहां भी जीवन में संघर्ष है, जिसका सामना आमलोग कहते हैं। यहां का जीवन भी वैसा ही है जैसा बाकी जगह है, सामान्यत: लोग एक-दो दिन के लिए सैर-सपाटे के लिए एक-दो दिन के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में उनको स्थानीय लोगों के संघर्ष के बारे में नहीं जान पाएंगे। कथा समाख्या में साहित्यकारों ने अपनी-अपनी बातें कहीं हैं और यह माना है कि गोवा सामान्य जगह की तरह ही है. कथा समाख्या में साहित्यकारों ने ऐसी अपेक्षा की गई कि गोवा के लोगों बारे में वे जो कुछ कठोर यथार्थ को देखेंगे उसे अपनी लेखनी के जरिए व्यक्त करेंगे. निश्चित रूप से लेखक, साहित्यकार और आलोचक गोवा के बारे में अलग दृष्टि से समझेंगे और लिखेंगे। यहां तीन दिन की कथा समाख्या में देश के प्रख्यात लेखक कवि कथाकार और आलोचक शामिल हुए। उनमें पटना से कथाकार-नाट्य लेखक और आलोचक हृषीकेश सुलभ, जोधपुर से कथाकार सत्यनारायण, दिल्ली से योगेंद्र आहूजा, भालचंद्र जोशी और ओमा शर्मा, रायपुर से आनंद हर्षुल और रंगकर्मी-मीडियाकर्मी सुभाष मिश्र, बिलासपुर से कवि-कथाकार रामकुमार तिवारी, जयपुर से उषा दशोरा, भोपाल से आलोचक शम्पा शाह, बैतूल से युवा कथाकार अक्षत पाठक और गया से ट्विंकल रक्षिता, दुर्ग से जय प्रकाश और हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिका ‘कथादेशÓ के सम्पादक हरिनारायण भी चर्चा में उपस्थित रहे। इसके अलावा गोवा विश्वविद्यालय के लोग गोवा के साहित्यकार भी कार्यक्रम में आए।

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इस कहानी कार्यक्रम में चयनित कहानियों पर चर्चा हुई। इस दौरान निर्मल वर्मा की कहानी ‘पिता और प्रेमीÓ पर योगेन्द्र आहूजा ने शैलेश मटियानी की ‘अर्धागिनीÓ पर जयप्रकाश ने ,यून फोस्से की ‘कहानी मैं तुम्हे बता नहीं सकता थाÓ पर आनंद हर्षुल, चेखव की ‘कहानी डार्लिंगÓ पर रामकुमार तिवारी और जगदंबा प्रसाद दीक्षित की कहानी ‘मुहब्बतÓ पर सत्यनारायण शर्मा, जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘आकाशदीपÓ पर उषा दशोरा, इवान बुबिन की ‘इडाÓ पर ओमा शर्मा और सैयद मुस्तफा सिराज की कहानी ‘लाली के लिएÓ पर भालचन्द्र जोशी ने रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी हमारे शहर की भावी लोककथा पर ट्विंकल रक्षिता, मनोज रूपड़ा की ईश्वर का द्वन्द्व पर सुभाष मिश्र, इसाबेल अलेंदे की दो शब्द पर शम्पा शाह, शुभम सुमित की कहानी जादूगर पर अक्षत पाठक और फणिश्वर नाथ रेणु की रसप्रिया पर हृषिकेश सुलभ ने चर्चा की। इन कहानियों का चयन कहानीकारों ने किया और उसी पर अपनी बात रखें। यह पूरा कथा समाख्या प्रेम कथाओं और प्रेम की अवधारणा पर थी, इसलिए इन कहानियों में प्रेम की बात थी। उन अलग-अलग कहानियों को चुना गया, जो प्रेम पर ही आधारित रही।
कथा समीक्षा लगातार नौ बार पहले भी हो चुकी है। यह कथा समाख्याएं अलग-अलग जगह पर इसका आयोजन हुआ। छत्तीसगढ़ में सबसे पहले सरगुजा में इसका आयोजन हुआ। 2016 में यहां शुरुआत हुई। इसके बाद बडौदा गुजरात, महाराष्ट्र, नवापारा छत्तीसगढ़, सवाई माधोपुर राजस्थान, बरेली उत्तर प्रदेश, बस्तर छत्तीसगढ़, ओरछा मध्य प्रदेश, शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ और कोरबा में हुआ। यह कथा समाखया 2016 से लगातार जारी है, जिसमें कहानी के बहाने कहानी के स्वरूप और शिल्प तथागत विविधता पर बातचीत होती है. इस बार 3 दिन की बातचीत गोवा में हुई. इसमें गोवा सरकार के कला संस्कृति विभाग के सहयोग से उसी के परिसर में आयोजन किया गया. इसमें चर्चा हुई कि गोवा देखने का नजरिया कैसा होगा? गोवा में किस तरह का संघर्ष है? गोवा के स्थानीय लोगों को भी रोजगार की उतनी ही दिक्कत है, जितनी बाकी लोगों को है, जो लोग यहां मछलीपालन से परंपरागत रूप से जीवन-यापन कर रहे हैं, उनका दुख यह है कि मछलियां अब लोग मशीनों से ऐसे पकड़ लेते हैं, यह उनका संघर्ष है। पर्यटन के क्षेत्र में भी बड़ी-बड़ी कंपनियां आ गई है. यहां के टैक्सी वालों का अपना संघर्ष है, वह भी उसी तरह जूझ रहे हैं. अगर हम यह कहते हैं कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है तो हमें यह भी समझना पड़ेगा कि जो लोग पर्यटन के लिए आते हैं. जो लोग कान्हा जाते हैं और शेर देखते हैं तो शेर देखने से आह्ल्ल्दित और रोमांचित होता है। मगर वहां के संघर्ष को नहीं समझ पाए. इसी तरह जो लोग गोवा जाते हैं, उनको केवल वहां मौज-मस्ती दिखती है. गोवा के लोगों का संघर्ष नहीं दिखता है, क्योंकि लोग मौज-मस्ती करने आए हैं. उनको वहां की स्थिति के बारे में पता नहीं होती है। अगर टैक्सीवाला कहता है कि जब उसका नंबर आता है, तभी सवारी मिलती है तो आप समझ सकते हैं कि वह किस तरह से जूझ रहा है. बहुत सारी सरकारी योजना है, जिससे थोड़ा बहुत लाभ उनको मिलता है, पर उनको भी लगता है कि सरकारें तो आती-जाती रहती हैं चुनाव के समय लोग आश्वासन देते हैं, पर उसके बाद उसे तरह से चीज फलीभूत नहीं होती जैसाकि होना चाहिए तो निश्चित रूप से हम देखते हैं कि जब हम एक पर्यटक के रूप में जाते हैं तो हमारे देखने का अलग नजरिया होता है और जब हम एक कथाकार-कहानीकार के रूप में जाते हैं। वहां के लोगों से मिलते हैं. उनसे रूबरू होते हैं, वहां की आम जिंदगी से रूबरू होते हैं तो हमें बहुत सारी चीज ऐसी पता चलती है जो सामान्यत लोगों को मालूम नहीं होती. गोवा में बड़ी संख्या में पर्यटक आ रहे हैं। यहां नया एयरपोर्ट बनकर तैयार हो गया है और वह भी बड़े पैमाने पर काम करेगा। गोवा में बहुत कुछ बदलाव आया है, लेकिन संघर्ष अपनी जगह बरकरार है। यही वजह है कि दामोदर जी जैसे साहित्यकार को कहना पड़ता है कि जब यहां आए तो गोवा को इस तरह से देखें जैसे कि जैसे दूसरे जगह को देखते हैं। गोवा का संघर्ष भी दिल्ली और बिहार जैसा है, उनकी समस्याएं भी कम नहीं है। कथा समाख्या का गोवा में होना और गोवा के जनजीवन को समझने का मौका था। एक और बातचीत दामोदर जी ने कही थी कि जब आप कहीं जाएं तो वहां की कहानियों को चाहे वह कोकणी में कहानी लिखी जा रही है या अन्य भाषाओं में लिखी जा रही है. उसको भी उसे विमर्श में शामिल करें, ताकि वहां जो कुछ लिखा जा रहा है उसके बारे में भी लोगों को पता चल सके। उन्होंने कहा कि कहानी एक सिगरेट की तरह होनी चाहिए. जब सिगरेट को मुंह से लगते हैं और उसे जलाते हैं तो उसे पहली ही बार में जल जाना चाहिए। सिगरेट का आनंद तब तक है जब उसका कस आपको भीतर तक आह्ल्दित करें जब आप सिगरेट पी रहे हैं और सिगरेट अंगुली जलने तक पहुंच जाए, तब आपको सिगरेट पीनी चाहिए। इसलिए कहानी भी जब लगे कि अब यहां खत्म होनी चाहिए तो वहां खत्म होनी चाहिए। दामोदर और वेलीप जी ने जिस तरह से विषयों को जोड़कर बातों को रखा रखा, इससे काफी प्रेरणा मिली। अन्य कथाकारों और साहित्यकारों ने जिस प्रकार से चर्चा की है, उससे देशभर के साहित्यकारों की कहानी सामने आई है. गोवा में प्रेम कहानी के लिए सही जगह रही, क्योकि निश्चित रूप से जो लोग नए-नए विवाह करते हैं या प्रेमी होते हैं वह गोवा जाना जरूर पसंद करते हैं। ऐसे ही गोवा में प्रेम कहानी पर कथा सामग्री का आयोजन किया गया और प्रेम की अवधारणा पर या अपने आपमें बहुत ही महत्वपूर्ण था इसकी अनुगूंज पूरे देश में होगी।

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