छत्तीसगढ़ अपना रजत जयंती वर्ष मना रहा है। रजत जयंती वर्ष में राजधानी रायपुर को नया विधानसभा भवन, नया राजभवन और बहुत सारी नई नई सौगातें मिल रही है। इन्हीं सौगातों में एक सौगात राजधानी रायपुर में पुलिस कमिश्नरी बनाने की भी है। राज्य बनने के बाद राजधानी रायपुर में आबादी का दबाव बढ़ा। उद्योग-धंधे बढ़े और उसी अनुपात में अपराध भी बढ़े। इस समय पूरे देश के 75 से अधिक शहरों में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू है। दिल्ली, मुंबई, पुणे, नागपुर, भोपाल, इंदौर, जैसे बहुत से शहर पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में संचालित है। यदि हम पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश के इंदौर और भोपाल के पुलिस कमिश्नरी की व्यवस्था को देखें तो यह आधी-अधूरी और लंगड़ी व्यवस्था है। यहां अभी भी जिला दंडाधिकारी यानी कलेक्टर, डिप्टी कलेक्टरों और तहसीलदारों की मजिस्ट्रेट ड्यूटी लगाते हैं अभी भी बंदूक के लाइसेंस कलेक्टर ही जारी करते हैं। आधे-अधूरे तरीके से लागू किए गए पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में एडीजी स्तर के अधिकारी को कमिश्नर बनाकर बिठाया गया है जो काम दंडाधिकारी के रूप में एसडीएम, तहसीलदार करते थे अब पुलिस के असिस्टेंट कमिश्नर कर रहे हंै। पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में अब जिला दंडाधिकारी के पास जाने की ज़रूरत नहीं होगी। राजस्व विभाग को जिन कामों को राजस्व अधिकारियों को करना था, अब इसके लिए उन्हें समय मिलेगा बशर्ते कि वे वीआईपी ड्यूटी या दौरे के नाम पर अपनी सीटों से ग़ायब ना रहें। पुलिस कमिश्नर के मातहत बहुत सारे अधिकारी असिस्टेंट कमिश्नर के रूप में बैठते हैं। बहुत सारे अर्दली, अमला बढ़ेेंगे। कुछ लोग जो राजधानी में रहना चाहते हैं , पुलिस कमिश्नरी में जगह बना लेंगे। जहां तक इंदौर के ट्रैफिक के हालात पहले से भी बदतर हं। बहुत सारे देश में, शहरों में पुलिस कमिश्नरी भी प्रभारी है क्योंकि वहां पुलिस प्रशासन को बहुत सारे अधिकार मिले हुए हैं। यदि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कमिश्नरी सिस्टम लागू किया जाता है तो उसे साधन संपन्न और पर्याप्त अधिकार देने होंगे। सरकार के स्तर पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की घोषणा के बाद से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू करने की योजना पर अमल करते हुए कहा जा रहा है कि यह कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस प्रणाली को लागू करने की घोषणा की थी और अब इसके लिए सात आईपीएस अधिकारियों की एक समिति गठित की गई है। यह समिति मध्यप्रदेश, ओडिशा और महाराष्ट्र की पुलिस कमिश्नरी प्रणालियों का अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी। रिपोर्ट के आधार पर राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में अंतिम निर्णय लिया जाएगा और संभावना है कि 1 नवंबर, राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर यह व्यवस्था लागू हो सकती है।
भारत में पारंपरिक पुलिस व्यवस्था जिला पुलिस प्रणाली पर आधारित है, जिसमें जिले का प्रमुख जिला मजिस्ट्रेट (कलेक्टर) होता है और कानून-व्यवस्था से जुड़े अधिकार उसी के पास रहते हैं। पुलिस कमिश्नरी प्रणाली इस ढांचे को बदल देती है। इसमें बड़े शहरों या महानगरों में पुलिस कमिश्नर को ही मजिस्ट्रेटी शक्तियाँ (जैसे धारा 144 लगाना, तलाशी-बंदी के आदेश, हथियारों पर नियंत्रण, शांति भंग पर कार्रवाई आदि) दे दी जाती है। इससे प्रशासनिक दोहरी व्यवस्था (कलेक्टर-एसपी) समाप्त होकर पुलिस पर केंद्रित हो जाती है।
रायपुर तेजी से बढ़ती आबादी वाला शहर है, जहाँ ट्रैफिक, आर्थिक अपराध, साइबर क्राइम, नशाखोरी और संगठित अपराध जैसी चुनौतियां लगातार बढ़ रही हैं। पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने पर उम्मीद की जा रही है कि पुलिस कमिश्नर के पास मजिस्ट्रेटी शक्तियां होने से वह तत्काल निर्णय ले सकते हैं, जिससे कलेक्टर से अनुमति लेने में होने वाली देरी समाप्त होगी। मंत्रालय और बाक़ी कार्यालयों में ई फाईलिंग के बावजूद जिसे फ़ाईल या कम्प्यूटर के कर्सर को नहीं छुना है, वह नहीं छू रहा है। अभी हाल ही में एक बड़े विभाग के मंत्री और उसके स्टाफ़ ने सैकड़ों ई-फ़ाईल रोक रखी थी। मुख्यमंत्री सचिवालय की सक्रियता से आधे घंटे में सभी फ़ाईलें अप्रूव्ड होकर क्लीयर हुई।
पुलिस कमिश्नरी से भीड़ नियंत्रण, सांप्रदायिक तनाव, धरना-प्रदर्शन जैसी परिस्थितियों में पुलिस सीधे कार्रवाई कर सकेगी। ट्रैफिक, महिला सुरक्षा और साइबर अपराध जैसी समस्याओं पर अधिक प्रभावी नियंत्रण संभव होगा। पुलिस के पास पूर्ण अधिकार होने से अपराधियों में डर का माहौल बनेगा, जिससे अपराध दर में कमी आ सकती है।
इन महानगरों में बड़े आयोजनों, आतंकवाद रोधी कार्रवाई और ट्रैफिक प्रबंधन में कमिश्नरी व्यवस्था प्रभावी साबित हुई है। पुलिस कमिश्नरी व्यवस्था लागू होने के बाद डकैती में 71 फीसदी, चैन स्नैचिंग में 57 फीसदी, रात्रि चोरी में 41 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई। शुरुआती दिनों में असर तो दिखा, लेकिन पुलिस पर राजनीतिक दबाव और जवाबदेही की कमी की शिकायतें भी बढ़ीं। भोपाल में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने के बाद कुछ मामलों में आरोपी और फरियादी दोनों ही पुलिस की जांच से नाखुश पाए गए। अब देखना होगा कि कितनी जल्दी और कितने प्रभावी ढंग से यह व्यवस्था लागू होती है। समूचे सरकारी तंत्र में शीत युद्ध के रूप में बहुत बार वर्चस्व की लड़ाई जारी रहती है। जो कलेक्टर कभी एसपी, डीएफओ की सीआर यानी गोपनीय चरित्रावली लिखते थे, अब उनसे वह अधिकार भी जाता रहा। मौजूदा तंत्र वर्चस्व की इस लड़ाई में पुलिस को कितने अधिकार मिलने देगा, यह आने वाला समय बताएगा।
अपराध नियंत्रण में क्या प्रभावी होगी पुलिस कमिश्नरी?

11
Sep