भारत को अब डिजिटल महाशक्ति कहा जाने लगा है। मोबाइल ऐप से लेकर ऑनलाइन शिक्षा, डिजिटल भुगतान से लेकर मनोरंजन तक, जीवन का बड़ा हिस्सा इंटरनेट पर निर्भर हो चुका है। सरकार ने भी आने वाले शहरीकरण के लिए डिजिटल कनेक्टिविटी को बिजली और पानी जैसी मूलभूत सुविधा की श्रेणी में शामिल करने की कार्ययोजना तैयार कर ली है। इसका अर्थ है कि भविष्य में मकान या कॉलोनियां बिना डिजिटल इंफ्रा-कनेक्टिविटी के स्वीकृत नहीं होंगी। यह कदम निश्चय ही डिजिटल युग की दिशा में बड़ा बदलाव है, लेकिन इसके पीछे की जमीनी हकीकत कहीं अधिक जटिल है।
भारत में मोबाइल और इंटरनेट कनेक्शन की वृद्धि अभूतपूर्व रही है। मार्च 2014 में जहां 93.3 करोड़ मोबाइल कनेक्शन थे, वहीं अप्रैल 2025 तक यह 120 करोड़ से ऊपर पहुँच गए। इंटरनेट कनेक्शन भी 25 करोड़ से बढ़कर लगभग 97 करोड़ तक पहुँच गया है। ब्रॉडबैंड कनेक्शन में तो 1450 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई। आज देश में कुल 1114 करोड़ से अधिक मोबाइल कनेक्शन सक्रिय है और लगभग 80त्न इंटरनेट उपयोग घरों के भीतर से हो रहा है।
ऑनलाइन भुगतान के क्षेत्र में यूपीआई ने पूरी दुनिया में मिसाल कायम की है। जनवरी 2025 तक भारत में हर महीने लगभग 1200 करोड़ डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं। इसी तरह ई-कॉमर्स, ऑनलाइन ग्रॉसरी और फूड डिलीवरी प्लेटफ़ॉर्म के जरिए डिजिटल उपभोग की संस्कृति तेजी से मजबूत हुई है। तेजी से बढ़ते डिजिटल नेटवर्क के बावजूद भारत की वास्तविकता यह है कि अब भी हर घर तक साफ पानी या 24 घंटे बिजली नहीं पहुँच पाई है। डिजिटल सेवाएं भी असमान रूप से वितरित है। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुँच कम है। 2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 72.5 प्रतिशत पुरुष और 51.8 प्रतिशत महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा क्रमश: 48.7 प्रतिशत और 24.6 प्रतिशत है। अनुसूचित जनजाति समुदायों में यह पहुँच अन्य समुदायों से 27 प्रतिशत कम पाई गई।
एक और बड़ी समस्या नेटवर्क की गुणवत्ता है। ऊँची इमारतों में 4जी और 5जी सिग्नल कमजोर पड़ जाते हैं। गाँवों में रो-रो कर चलने वाले नेट की शिकायत आम है। बीएसएनएल जैसी सार्वजनिक कंपनी के कमजोर होने से सेवा पूरी तरह निजी कंपनियों के हाथ में चली गई है, जिससे कीमतें बढ़ी हैं और ग्रामीण-गरीब उपभोक्ताओं के लिए यह और कठिन हो गया है। सरकार ने भविष्य की जरूरतों को देखते हुए डिजिटल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर योजना और डिजिटल इंफ्रा कोड तैयार किया है। इसके तहत भवन निर्माण के डिजाइन और शुरुआत से ही वाई-फाई, फाइबर ऑप्टिक और इन-बिल्डिंग नेटवर्क जैसी सुविधाएं अनिवार्य की जाएंगी। आने वाले 4-5 महीनों में इस पर काम शुरू होने की संभावना है।
भारतनेट परियोजना के तहत फरवरी 2025 तक 2.14 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ा जा चुका है। इसका लक्ष्य ग्रामीण भारत को हाई-स्पीड इंटरनेट से लैस करना है। अभी तक 6.44 लाख गांवों में से 6.12 लाख गाँवों में मोबाइल कनेक्टिविटी पहुँची है, यानी करीब 95 प्रतिशत कवरेज।
यदि हम समूचे मौजूदा परिदृश्य को आंकड़ों की सच्चाई में देखें तो देश में 1114 करोड़ मोबाइल कनेक्शन देश में सक्रिय।
97 करोड़ इंटरनेट कनेक्शन (जून 2024 तक)। 1452 प्रतिशत वृद्धि ब्रॉडबैंड कनेक्शन में 2014 से 2024 के बीच। 2.14 लाख ग्राम पंचायतें भारतनेट से जुड़ीं। 95.15 प्रतिशत गाँवों में 3जी/4जी मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध है।
डिजिटलाइजेशन ने हमारे जीवन को सरल और सुविधाजनक बना दिया है, लेकिन इसके साथ ही नए प्रकार के खतरे भी उत्पन्न हुए हैं। हमें जहां डिजिटलाईज़ेशन से बहुत सारी सुविधा और गति मिली उसने हमारे जीवन में बहुत बड़ी तब्दीली ला दिया है । ऑनलाइन बैंकिंग, ई-शॉपिंग, डिजिटल भुगतान जैसी सेवाओं ने लेन-देन को त्वरित और सुविधाजनक बना दिया है।
हमारी सूचना की उपलब्धता बहुत बढ़ गई है। आज पूरी दुनिया सही मायनों में डिजिटल गॉंव बन गई है। इंटरनेट के माध्यम से हम किसी भी विषय पर त्वरित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जिससे शिक्षा और ज्ञान का प्रसार हुआ है।
डिजिटल प्लेटफ़ॉम्र्स ने छोटे व्यवसायों को वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बनाने का अवसर प्रदान किया है। यहीं इसके बहुत सारे ख़तरे भी हैं। डिजिटल होने से साइबर अपराधों में वृद्धि हुई है। डिजिटल लेन-देन के बढऩे से साइबर अपराधियों के लिए नए अवसर उत्पन्न हुए हैं। डिजिटल अरेस्ट नामक धोखाधड़ी में अपराधी खुद को पुलिस अधिकारी बताकर लोगों को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी देते हैं, जिससे लोग अपनी जमा-पूंजी गंवा देते हैं। डिजिटलीकरण के चलते व्यक्ति की निजता का उल्लंघन हो रहा है। ऑनलाइन गतिविधियों के दौरान हमारी व्यक्तिगत जानकारी चोरी होने का खतरा बढ़ गया है जिससे पहचान की चोरी और वित्तीय नुकसान हो सकता है।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट की पहुंच में असमानता बनी हुई है, जिससे सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ बढ़ रही हैं। डिजिटलाइजेशन के साथ साइबर अपराधों में भी वृद्धि हुई है। 2024 में, भारत में औसतन हर दिन 6 करोड़ रुपये की ठगी हुई, जिसमें डिजिटल अरेस्ट जैसे नए प्रकार के धोखाधड़ी शामिल हैं। डिजिटलाइजेशन ने हमारे जीवन को कई दृष्टियों से समृद्ध किया है, लेकिन इसके साथ ही नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत की हैं। इनसे निपटने के लिए साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना, मजबूत सुरक्षा उपायों को लागू करना और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
इन सारी सच्चाईयों के बीच सरकार 6जी नेटवर्क की तैयारी में जुटी है, ताकि 2030 तक भारत और अधिक डिजिटलाइज्ड अर्थव्यवस्था में बदल सके। एआई, स्मार्ट सिटी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसे क्षेत्र इस बदलाव को और तेज करेंगे। औसतन आज एक उपभोक्ता प्रति माह 32 जीबी डेटा खपत कर रहा है, जो 2030 तक बढ़कर 62 जीबी तक पहुँचने का अनुमान है।
हालाँकि, डिजिटल कनेक्टिविटी का फैलाव तेज है, लेकिन इसकी असमानता चिंताजनक है। डिजिटल विभाजन केवल नेटवर्क का नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का भी प्रतीक है। गरीब परिवारों में स्मार्टफोन और डेटा पैक तक की पहुँच कठिन है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में डिजिटल माध्यमों का पूरा लाभ उन्हीं को मिल पा रहा है जो पहले से ही अपेक्षाकृत सम्पन्न हैं।
इसलिए डिजिटल क्रांति तभी सफल होगी जब यह सभी के लिए सुलभ और किफ़ायती हो। सरकार को चाहिए कि वह निजी कंपनियों के साथ-साथ सार्वजनिक नेटवर्क प्रदाताओं को भी मजबूती दे। साथ ही डिजिटल साक्षरता अभियान, स्थानीय भाषाओं में ऐप्स और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए सब्सिडी वाले डेटा पैक जैसे उपाय लागू करें। भारत की डिजिटल कहानी प्रेरक है, लेकिन अधूरी भी। आँकड़े बताते हैं कि देश ने डिजिटल युग में जबरदस्त छलांग लगाई है, परंतु यह छलांग अब भी असमान है। बिजली और पानी की तरह डिजिटल कनेक्टिविटी को हर घर की बुनियादी सुविधा बनाना स्वागतयोग्य कदम है, बशर्ते इसके साथ-साथ समानता और वहनीयता पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए। तभी वास्तव में भारत डिजिटल महाशक्ति से आगे बढ़कर डिजिटल समावेशन वाला राष्ट्र बन पाएगा।
डिजिटल महाशक्ति बनते देश की क्या है सच्चाई

04
Sep