विनोद जी के कांधे पर दो दिवसीय साहित्य चौपाटी

रायपुर। देश के शीर्षस्थ कवि विनोद कुमार शुक्ल जो रायपुर में रहते हैं, उन्हें हाल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है। ज्ञानपीठ द्वारा उनका सम्मान समारोह शीघ्र ही रायपुर में आयोजित होने वाला है किंतु, इससे पहले ही प्रकाशन संस्थान हिन्दी युग्म दो दिवसीय उत्सव का आयोजन रायपुर में करने जा रही है। जिसकी शुरुआत आज से हो रही है। इस उत्सव में हिन्दवी भी शामिल है। पूर्व में साहित्य समारोह का आयोजन साहित्यिक संस्थाएं किया करती थीं। अब यह काम प्रकाशक कर रहे हैं।


इसी तरह का आयोजन भोपाल में राजकमल प्रकाशन, लखनऊ में वाणी प्रकाशन द्वारा किया गया है। धीरे-धीरे सरकार और साहित्यिक संस्थाएं हाशिए पर चली गई हैं लेकिन प्रकाशन संस्थाएं नई तकनीक और सोशल मीडिया में अपना प्रमोशन करने के लिए इस तरह के आयोजन करने लगे हैं कहने को यह आयोजन विनोद कुमार शुक्ल पर केंद्रित है, लेकिन उन्हें इस पूरे दो दिवसीय आयोजन में एक घंटा भी ठीक से नहीं मिला है। यह अच्छी बात है कि विनोद कुमार शुक्ल को प्रकाशन की 30 लाख रुपए की रायल्टी इस आयोजन में सौंप रही है। यह ऐसे समय हो रहा है जब अक्सर यह देखा गया है अधिकांश प्रकाशन संस्थाए लेखकों को रायल्टी या तो देती नहीं है या रायल्टी की रकम छुपा लेती है, कितनी पुस्तकें बिकी ये तक नहीं बताती। एक प्रकार से हिन्दी युग्म विनोद जी के बहाने लेखकों को रायल्टी का जादू भी दिखा रही है। यही वजह है कि उन्होंने इस आयोजन में 20 सितंबर को पहले दिन 15.30 से 16 बजे तक कुल 30 मिनट हिन्दी साहित्य का शुक्ल पक्ष छह महीनों में 30 लाख- हिंदी साहित्य में संभव हुआ असंभव पर बातचीत होगी। जिसमें विनोद कुमार शुक्ल और नरेश सक्सेना भाग लेंगे। हिन्दी युग्म उत्सव में यह भी एक तरह की मार्केटिंग स्टेटाजी है। इसके अलावा विनोद जी पर पहले दिन 12.40 से 12.50 तक कुल 10 मिनट विनोद कुमार शुक्ल का पुत्र होना पर उनके बेटे शाश्वत गोपाल अपनी बात कहेंगे। 12.50 से दोपहर 13.20 तक कुल 30 मिनट विनोद कुमार शुक्ल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित वृत्तचित्र एक अंश दिखाया जाएगा। इस तरह विनोदजी के खाते में कुल 1 घंटे 10 मिनट होंगे। जिसे आलोक पुतुल और देवेंद्र शुक्ल ने तैयार किया है।
इसी तरह के आयोजन जिन्हें प्रकाशन संस्थाओं द्वारा भोपाल, लखनऊ, पटना, कलकता आदि शहरों ऐसे आयोजन कर रही हैं। इसी तरह की प्रवृत्ति को देखकर सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने लिखा भी है कि पुस्तक लिखने वाले से पुस्तक बेचने वाला बड़ा होता है कथा लिखने वाले से कथावाचक बड़ा होता है सृष्टि निर्माता से सृष्टि को लूटने वाला बड़ा होता है।


इससे पहले राजधानी रायपुर में कोलकाता की नीलांबर संस्थान ने छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी के साथ मिलकर विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं पर बहुत ही स्तरीय आयोजन किया था। विनोदजी की कविताओं का संगीतमय गायन और नाट्यपाठ भी पूर्व के आयोजनों में किया गया है। इसके अलावा लगातार कई सालों सेमिनार आयोजित किया गया। छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी द्वारा हर वर्ष विनोद कुमार शुक्ल की रचनाओं पर कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते रहे हैं। ये आयोजन शुद्ध रुप से विनोद जी पर केंद्रित होते रहे हैं। इनमें किसी प्रकार की साहित्य की चौपाटी लगाने या बाजार या मार्केटिंग से जोडऩे की कोशिश नहीं की गई है। पूर्व में हुए इस तरह आयोजन में 21 अप्रैल को किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में उनके जीवन एवं रचनाकर्म पर आधारित ‘हम जैसा उन्हें जानते हैं शीर्षक से नीलांबर द्वारा निर्मित एक वीडियो फिल्म दिखाई गई।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि एवं आलोचक अशोक वाजपेयी ने की थी। उन्होंने कहा कि विनोद कुमार शुक्ल की कविता में ब्रह्माण बोध है । हिन्दी कविता में समयबोध समाज बोध रचने वाले तो बहुत से कवि हैं किन्तु ब्रम्हाण बोध रचने वाले बिरले कवियों में जयशंकर प्रसाद और मुक्तिबोध के बाद विनोद कुमार शुक्ल हैं । विनोदजी साधारण जीवन बोध की फैंटसी रचने वाले कवि हैं । बंधी बँधाई आलोचनात्मक भाषा में कहे तो विनोदजी यथार्थ के नही अतियथार्थ के कवि हैं । उनमें नाटकीयता का उधम नहीं है । अशोक वाजपेयी ने उनकी कविताओ मे आये छत्तीसगढ को लेकर उन्हे छत्तीसगढ का अपना सबसे बड़ा कवि बताया । उन्होने कहा कि विनोद कुमार शुक्ल की कविता में पहले की कविताओ की अंतरध्वनियां नही है ।


इस आयोजन में नरेश सक्सेना, बसंत त्रिपाठी, संजीव बख्शी, गीत चतुर्वेदी, आशीष मिश्र और योगेश तिवारी, सुभाष मिश्रा ने विनोद जी के रचना कर्म के विभिन्न पहलुओं पर सारगर्भित चर्चा की थी।
विनोद जी के नाम से जो चौथा हिन्दी युग्म उत्सव जिसे हिन्दी साहित्य का शुक्ल पक्ष नाम दिया गया है। दरअसल, यह विनोद जी पर केंद्रीत आयोजन नहीं है जिस तरह इसे प्रचारित किया जा रहा है। विनोद जी को केंद्र में रखकर नए लेखकों को प्रकाशन संस्थान अपनी ओर आकर्षित करने का उपक्रम कर रही है। जिसके तहत यह उत्सव साहित्य की चौपाटी के रूप में सजाया गया है।

हिंदी साहित्य में नई परिपाटी
प्रकाशकों द्वारा साहित्य-उत्सव का आयोजन हिंदी साहित्य में नई परिपाटी की शुरुआत है। लेकिन देखना यह है कि ऐसे आयोजनों की रचनात्मक उपलब्धि किस रूप में प्राप्त होगी और साहित्यिक संस्कृति के प्रसार में कितनी सहायक होगी। इन आयोजनों का स्वरूप प्राय: उत्सव का है। स्वाभाविक है कि रचनात्मकता की बजाय ये उत्सवधर्मिता से प्रेरित होते हैं। यह नई कि़स्म की उत्सवधर्मिता है जो साहित्यिक कृतियों को बाज़ार में उतारने की मार्केटिंग रणनीति का हिस्सा है। इन्हें गंभीर साहित्यिक आयोजन के रूप में देखना भूल होगी। दरअसल, हिन्द युग्म या कोई भी आयोजक अपने प्रकाशनों को बेचने के लिए सोशल मीडिया के ज़रिए आक्रामक प्रचार करने के बाद मेलानुमा आयोजन करता है। ज़ाहिर है, यह व्यापारिक उपक्रम है। विनोदकुमार शुक्ल को स्टार लेखक के रूप में स्थापित करना पिछले दिनों उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान के चलते निर्मित उनकी व्यापक साहित्यिक ख्याति के कारण सम्भव हुआ है। उत्सव का एक पहलू उनकी छवि का चालाकी से प्रकाशकीय दोहन है। अगर यह सम्भव हुआ तो उत्सव की सफलता के साथ एक लेखक के सेलिब्रिटी बनने का, बाज़ार में विज्ञापन के लिए साधन बनने का, अभिनव प्रयोग होगा।

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