मुंबई में हर साल होने वाली बरसात, जो कभी-कभी भयावह रूप धारण कर लेती है, हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है। हालिया हुई भीषण बरसात ने एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दिया है कि जल प्रबंधन की दिशा में हमारी तैयारी कितनी कमजोर है। भारत के कई हिस्से, विशेषकर उत्तर और पूर्वी राज्यों में, जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक वर्षा और बाढ़ की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बाढ़ की स्थिति अक्सर गंभीर होती है। इन क्षेत्रों में जल निकासी की कमी, अव्यवस्थित शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है।
मुंबई की बरसात के दौरान जल निकासी की समस्या एक प्रमुख कारण है। नगरीय निकाय और टाउन प्लानिंग संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि वे जल निकासी के लिए उचित योजनाएं बनाएं। लेकिन अक्सर देखा गया है कि विकास योजनाओं में जल निकासी को प्राथमिकता नहीं दी जाती। कालोनी बसाहट के समय जल निकासी की व्यवस्था को नजरअंदाज करना एक गंभीर चूक है जो भविष्य में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। मुंबई और अन्य इलाकों में बरसात की आफ़त और गर्मियों में भूजल स्तर का गिरना, दोनों ही समस्याएं गंभीर है। एक ओर हम भीषण बरसात से उत्पन्न स्थितियों से जूझते हैं वहीं थोड़े अरसे बाद पेयजल संकट से। इन दोनों स्थितियों के बीच संतुलन बनाने के लिए हमें दिन उपायों के बारे में गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है। बरसात के पानी को संचित करने के लिए वर्षा जल संचयन प्रणाली को अपनाना चाहिए। इससे बारिश के पानी को संग्रहित किया जा सकता है जो गर्मियों में उपयोगी होगा। अधिक वृक्षारोपण करने से मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है और भूजल स्तर में सुधार होता है। पेड़ बारिश के पानी को अवशोषित करते हैं और जलवायु को संतुलित रखते हैं। घरेलू और औद्योगिक जल का पुनर्चक्रण करने से पानी की बर्बादी कम होगी। इससे पेयजल संकट को कम करने में मदद मिलेगी। शहरी विकास योजनाओं में जल प्रबंधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। नए निर्माणों में जल संचयन और पुनर्चक्रण की सुविधाएँ अनिवार्य की जानी चाहिए। जल निकासी प्रणाली में सुधार की बहुत ज़रूरत है। शहरों में जल निकासी प्रणाली को मजबूत करना आवश्यक है। नालियों और नदियों की सफाई और पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए।
लोगों को जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। छोटे-छोटे प्रयास, जैसे नल बंद करना, पानी की बर्बादी को रोकने में मदद कर सकते हैं। इन सबमें सबसे महत्त्वपूर्ण है सरकार की नियत और नीति। सरकार को जल प्रबंधन के लिए ठोस नीतियाँ बनानी चाहिए, जिसमें जल संरक्षण, पुनर्चक्रण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखा जाए।
मुंबई की बरसात और अन्य क्षेत्रों में जल संकट एक गंभीर चेतावनी है। हमें जल प्रबंधन के प्रति गंभीरता से विचार करना होगा और ठोस कदम उठाने होंगे। नगरीय निकायों और टाउन प्लानिंग संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए जल निकासी और प्रबंधन की दिशा में कार्य करना चाहिए। तभी हम इस समस्या से निजात पा सकेंगे और भविष्य में ऐसी स्थितियों से बच सकेंगे।
मुंबई की बरसात और देशभर में जल प्रबंधन की चुनौतियाँ

20
Aug