पानी की खोज में किसानों की जद्दोजहद: भूजल संकट और सिंचाई के लिए पाइप की बढ़ती मांग…

हेडिंग- पानी ने पकड़ी पाताल की राह

प्वाइंटर- फसल बचाने की जुगत में किसान

राजकुमार मल, भाटापारा- अतिरिक्त दो या तीन पाइप डाले जाने लगे हैं बोरवेल्स में ताकि बचाई जा सके गेहूं, सरसों और धान की फसल। इसके बावजूद पानी की पतली हो रही धार जस-की-तस है।

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नदी नालों के तटीय गांवों में तो स्थिति फिलहाल ठीक है लेकिन मैदानी इलाकों के ग्रामीण क्षेत्र अब जल संकट के घेरे में आने लगे हैं। हर हाल में चाहिए पानी, यह सोच ग्रामीणों को सबमर्सिबल पंप और पाइप दुकानों तक पहुंचने के लिए विवश किए हुए हैं। इस स्थिति ने पाइप की मांग और मैकेनिकों की पूछताछ बढ़ा दी है।

यह क्षेत्र सबसे पहले

भाटापारा से निपनिया और अर्जुनी। राह में आने वाले करीब- करीब सभी गांव घटते भूजल से चिंता में आ चुके हैं। नालों का पानी सूख चुका है। ऐसे में घरेलू जरूरत तो किसी तरह पूरी की जा रही है लेकिन गेहूं और सरसों की फसल संकट में आ चुकी है क्योंकि अंतिम सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं दे पा रहे हैं बोरवेल्स। तालाबों का पानी सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने पर वैसे भी प्रतिबंध है।बढ़ा रहे पाइप

शहरी क्षेत्र में 200 फीट लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में 300 फीट की गहराई में जा चुका भूजल किसानों को पाइप दुकानों तक पहुंचाने लगा है, जहां से दो या तीन पाइप की खरीदी किसान कर रहें हैं। आपदा को अवसर मानकर मैकेनिकों ने भी प्रति पाईप डालने की दर बढ़ा दी है। करीब के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 200 से 300 रुपए, तो दूरस्थ क्षेत्रों के लिए 400 से 500 रुपए प्रति पाईप की दर पर काम कर रहे है मैकेनिक।समस्या समाधान का सही उपाय

फसलों और भूजल की स्थिति पर नजर रख रहे कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के दौर में किसानों को ऐसी फसल का चयन करना होगा, जो अल्प सिंचाई में तैयार हो जाती है। सिंचाई और तापमान नियंत्रित करने के लिए जरूरी सुझाव मानना होगा। मौसम आधारित फसलों का चयन बेहद आवश्यक है। साथ ही मौसम के पूर्वानुमान जो समय-समय पर जारी होते हैं, उन पर गंभीर नजर रखनी होगी।

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