– पुस्तक समीक्षा
Raipur छत्तीसगढ़ की धरती नैसर्गिक और अव्दितीय पारिस्थितिकी तंत्र (इको सिस्टम) से समृद्ध है। यहां की मिट्टी और पानी में इतनी असीम ऊर्जा है कि यहां विविध प्रकार की वनस्पतियां पनपी और विकसित हुईं। ये वनस्पतियां मानव समाज के लिए वरदान है। इन्हीं वनस्पतियों में हैं भाजियां। आमतौर पर लोग भाजी के नाम पर पालक भाजी, चेंच भाजी, अमारी भाजी जैसे कुछ नाम ही जानते हैं, परन्तु छत्तीसगढ़ में भाजियों की बहुत अधिक विशालता है। यहां 10-20 प्रकार की भाजियां नहीं, बल्कि सौ से अधिक प्रकार की भाजियां पाई जाती हैं। ये भाजियां यहां की धरती में केवल उगती ही नहीं है, बल्कि यहां के लोग उसे चाव से पकाते हैं और खाते भी हैं। उनमें पौष्टिक तत्वों की प्रचूरता होती है। इन भाजियों को पूरे छत्तीसगढ़ में अलग-अलग क्षेत्र में बड़े ही चाव से बनाया जाता है और खाया जाता है। किसी भाजी को चना दाल के साथ पकाते हैं तो किसी को दही के साथ। इन भाजियों के गुणों और नामों को एक पुस्तिका के रूप में सहेजा है धमधा के गोविन्द पटेल ने। उन्होंने एक किताब लिखी है, जिसका नाम है छत्तीसगढ़ तंदरूस्त बना सकती है भाजी।
वैसे तो यह किताब काफी पहले से प्रकाशित हो चुकी है, लेकिन इसे इतनी अधिक प्रसिद्धि मिली की लोग इस किताब को ढूंढते हैं। इस किताब के दो हजार से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। जो कोई भी इस किताब को देखता है, वह इसकी प्रति जरूर मांगता है। इस किताब में 100से अधिक प्रकार की भाजियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी गई है। जिसमें इन भाजियों के नाम, उसके वैज्ञानिक नाम, उसके प्रचलित नाम लिखे गए हैं। इन भाजियों में क्या क्या विटामिन और पोषक तत्व होते हैं, उनका भी उल्लेख किया गया है। इन भाजियों में क्या गुण हैं, कौन सी बीमारी में इनका सेवन करने से अधिक लाभ होता है, यह जानकारी भी पुस्तक में दी गई है। यह पुस्तक केवल 30 रुपए की है। इसकी पीडीएफ कापी मो. नं. 9893172336 पर मैसेज करके निशुल्क प्राप्त की जा सकती है। अभी तक देश के कई स्थानों से इस किताब की मांग आ चुकी है।
Related News
श्री पटेल दुर्ग जिले के निवासी हैं और छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी में पब्लिसिटी आफिसर के रूप में कार्यरत हैं। श्री पटेल ने कृषि, ग्रामीण विकास और पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 2003 से दैनिक भास्कर भिलाई और रायपुर में 12 साल तक पत्रकारिता करने वाले पटेल को कृषि पत्रकारिता में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए छत्तीसगढ़ शासन ने 2009 में ‘चंदूलाल चंद्राकर पत्रकारिता सम्मान’ से सम्मानित किया।
पटेल ने अपनी शिक्षा बीए और मास्टर आफ जर्नलिज्म में पूरी की है और विशेष रूप से कृषि, ग्रामीण विकास, इतिहास, पुरातत्व और पर्यटन पर गहरी रुचि रखते हैं। उनके माता-पिता, अमरीका पटेल और विश्राम सिंह पटेल, पेशे से किसान हैं, और पटेल का कृषि और उससे जुड़े मुद्दों पर गहरा जुड़ाव रहा है।
अपने कार्यक्षेत्र में निरंतर सक्रिय रहते हुए गोविन्द पटेल ने कृषि से संबंधित कई महत्वपूर्ण पुस्तिकाओं का प्रकाशन किया है। 2017 में ‘टमाटर की बंपर पैदावार’, 2018 में ‘बढ़ती लागत घटता मुनाफा’ और 2019 में ‘तकदीर बदल सकते हैं सुनहरे दाने’ जैसी पुस्तिकाएं उन्होंने प्रकाशित की, जो किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हुईं। 2022 में उन्होंने ‘तिरोहित तीतुरघाट’ नामक शोधपरक पुस्तिका का प्रकाशन किया, जिसमें उन्होंने क्षेत्रीय ऐतिहासिक और कृषि पहलुओं को प्रमुखता से उठाया है।
गोविन्द पटेल की लेखनी का उद्देश्य किसानों की समस्याओं और उनके समाधान की दिशा में न सिर्फ जागरूकता बढ़ाना है, बल्कि कृषि उत्पादन को बेहतर बनाने के उपायों पर भी प्रकाश डालना है। उनके लेखन और शोध कार्य ने छत्तीसगढ़ के किसानों के बीच एक नई सोच और दिशा को जन्म दिया है।