गणेशोत्सव : लोक आस्था और धार्मिकता पर बाजार का हमला

0 हडपक्या गणेश की गम्मत से लेकर रायपुर के विवाद तक — एक बदलते उत्सव की कहानी

हडपक्या गणेश: लोकगम्मत की परंपरा-महाराष्ट्र में, अनंत चतुर्दशी के बाद जब श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होता है तो रस्में शांत और मांगलिक होती है लेकिन लोकजीवन की ऊर्जा रुकी नहीं रह पाती। ऐसे में जन्मी हडपक्या (गम्मत) गणेश की परंपरा रात में किसी गुप्त स्थान पर गुपचुप गणेश प्रतिमा रखी जाती है और सुबह उसका मज़ाकिया और सामूहिक पूजन होता है। यह फेस्टिव गैप को भरने का लोकचालित तरीका है, जहां व्यंग्य, लोकगीत, नकल और सामूहिक हँसी के जरिए गांव की चिंताओं पर कटाक्ष भी होता है।
गणेशोत्सव तिलक से ग्लोबल तक विस्तारित है। लोकमान्य तिलक द्वारा 1893 में सार्वजनिक रूप देने के बाद गणेशोत्सव धार्मिक सीमाओं से निकलकर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आंदोलन बन गया।
आज यह पूरे भारत और प्रवासी समुदायों तक पहुंचा और 25,000 करोड़ से अधिक का आर्थिक अवसर बन चुका है । देश में लगभग 20 लाख पंडाल स्थापित किए जाते हैं।
रायपुर का गणेशोत्सव विवाद : आस्था बनाम आधुनिकता-राजधानी रायपुर में इस बार गणेशोत्सव उत्साह से मनाया गया, लेकिन इसी बीच विवाद भी खड़ा हो गया।
कार्टून, बेबी डॉल और ऑफ-शोल्डर जैसे आधुनिक रूप वाले गणेश प्रतिमाओं को लेकर हिंदू संगठन और संत समाज ने तीव्र आपत्ति जताई है। उन्होंने एसपी कार्यालय पहुंचकर और अशालीन मूर्तियों की तत्काल विसर्जन की मांग की। उनका कहना है—’गणपति राजा हैं, उन्हें ऐसे रूप देना सनातन धर्म और हिंदुत्व का अपमान है; यह समाज को कमजोर करने की साजिश है।Ó
प्रश्न उठता है क्या आधुनिकता को आस्था पर हावी होने की अनुमति होनी चाहिए? गणेशोत्सव भारतीय समाज में सामूहिकता और भक्ति का जीवंत उत्सव है। हडपक्या गणेश हमें दिखाता है कि उत्सव में हास्य और व्यंग्य का समावेश भी हो सकता है लेकिन यह हास्य और व्यंग्य मूर्तियों के निर्माण या उनके स्वरूप में नहीं होना चाहिए। आयोजन में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में साधारण हास्य व्यंग्य के कार्यक्रम होना चाहिए।
वर्तमान में गणेशोत्सव सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से शक्तिशाली बन गया है लेकिन रायपुर जैसा विवाद दर्शाता है कि हमें आस्था की गरिमा और सामाजिक संवेदनशीलता को नहीं खोना चाहिए। गणेशोत्सव में अब व्यापार दाखिल हो गया है। गणेश उत्सव की धार्मिक आस्था कायम रखकर ईश्वर को व्यापार का साधन बनाने से रोकना चाहिए। गणेशोत्सव का आर्थिक आंकड़ा 25,000 करोड़ से अधिक है। गणेश भगवान की मूर्तियों का व्यापार 500 करोड़ और देशभर में पंडालों की संख्या लगभग 20 लाख है। पंडाल सेटअप पर खर्च 10,000 करोड़ का है। मिठाई और कैटरिंग 5,000 करोड़ (मिठाई 2,000 करोड़ और कैटरिंग 3,000 करोड़) पर्यटन और आवागमन 2,000 करोड़। रिटेल शॉपिंग (साज-सज्जा आदि) 3,000 करोड़।
धार्मिक आस्था को धंधे के अभद्र लोभ से बचाना होगा
जब एक धार्मिक उत्सव इतने बड़े व्यापार में बदल जाना है तो फिर इस तरह के आयोजनों की मूल धारणा को व्यापारी संचालित करने लगते हैं। धार्मिक आयोजनों को और ईश्वर से जुड़ी आस्था को व्यापार का हिस्सा बनने से रोकना चाहिए। गणेश हमारे सभी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं। वे हमारी धार्मिक आस्था और परंपरा के आधार स्तंभ हैं। संत समाज और हिंदू संगठन आयोजनों के स्वरूप और गणेश भगवान की मूर्तियों के रूप परिवर्तन पर आपत्ति लेकर उसे रोकने की या मूर्तियों के विसर्जन की मांग कर रहे हैं, प्रशासन को इस पर गंभीरता से सोचना चाहिए। यदि इस तरह के अशालीन और अभद्र परिवर्तन को अभी नहीं रोका गया तो आगे नवरात्रि और दूसरे धार्मिक आयोजनों में धंधे में धुत लोग व्यापार के हिसाब से और बुरा बदलाव लाने के लिए दबाव बनाएंगे। हमारे देश में आस्था हर चीज से बड़ी है, वह व्यापार से भी बड़ी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *