Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- कर्मचारी की दिवाली, सरकार की गारंटी और जनता की अपेक्षा

-सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ में इस बार दीपावली सिर्फ रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि कर्मचारियों की रणनीति तय करने का भी अवसर बन गई। छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन के आह्वान पर 8 नवंबर को राजधानी रायपुर में दीपावली मिलन एवं पदाधिकारी सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें प्रदेशभर के कर्मचारी संगठनों के अध्यक्ष और पदाधिकारी बड़ी संख्या में शामिल हुए। इस मंच ने न केवल दीप जलाए, बल्कि भविष्य के आंदोलन की दिशा भी तय की।

फेडरेशन की 11 सूत्रीय मांगों में केंद्र के समान महंगाई भत्ता (DA), सेवा गणना में समानता, संविदा कर्मियों का नियमितीकरण, कैशलेस चिकित्सा सुविधा, 65 वर्ष सेवानिवृत्ति आयु, और पेंशनरों के लिए समान लाभ जैसी बातें शामिल हैं। अगस्त में हुए “काम बंद–कलम बंद आंदोलन” को व्यापक समर्थन मिला था, पर मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से चर्चा के बाद भी सरकार का रवैया सकारात्मक नहीं दिखा। यही कारण है कि कर्मचारी संगठन अब आंदोलन के अगले चरण की तैयारी कर रहे हैं।

दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा घोषित आठवें वेतनमान ने पूरे देश में नई हलचल पैदा कर दी है। चूंकि केंद्र की घोषणा के बाद राज्य सरकारें ही उसे “अपनाने” का निर्णय करती हैं, इसलिए छत्तीसगढ़ के कर्मचारियों की निगाहें अब राज्य सरकार पर हैं। वर्तमान में राज्य में सातवां वेतनमान लागू है, लेकिन कर्मचारी चाहते हैं कि आठवें वेतनमान की घोषणा के साथ ही उन्हें भी वही लाभ मिले जो केंद्र के कर्मचारियों को मिलता है।

पर प्रश्न यह भी है कि क्या राज्य सरकारें इतनी आर्थिक क्षमता रखती हैं कि केंद्र के समान वेतनमान लागू कर सकें? राज्य के बजट का बड़ा हिस्सा पहले से ही वेतन और पेंशन में खर्च होता है। ऐसे में जब राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों में तमाम वर्गों को लुभाने वाली “गारंटी योजनाओं” का वादा करते हैं, तो बाद में उसके लिए आवश्यक फंड नहीं जुटा पाते। यही हाल कर्मचारियों की मांगों का भी है — वादा तो हर सरकार करती है, पर अमल में देरी और अनिश्चितता रहती है।

कर्मचारी संगठनों को भी अब यह सोचना होगा कि केवल वेतन या भत्तों की मांग से आगे बढ़कर क्या वे जनता की अपेक्षाओं को समझ पा रहे हैं? आखिरकार, “गवर्नमेंट सर्वेंट” कहलाने वाले कर्मचारी जनता के सेवक हैं। जनता तभी उनका साथ देगी जब उसे लगे कि सरकारी सेवक उसकी सुविधा, पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति संवेदनशील हैं। यदि कर्मचारी केवल अपने हित के लिए एकजुट हों, पर जनता के बीच भरोसा न बनाएं, तो उनके आंदोलन को व्यापक सामाजिक समर्थन नहीं मिल पाएगा।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भी स्थिति जटिल है। 2028 में राज्य में विधानसभा चुनाव होंगे और केंद्र में “एक देश, एक चुनाव” की चर्चा चल रही है। ऐसे में किसी भी सरकार पर फिलहाल तत्काल दबाव नहीं है। पर अगर कर्मचारियों का धैर्य टूटता है, तो यह असंतोष प्रशासनिक ढांचे को प्रभावित कर सकता है — और यह सरकार के लिए भी शुभ संकेत नहीं होगा।

सवाल यह नहीं कि मांगें जायज़ हैं या नहीं — सवाल यह है कि उन्हें कैसे और कब पूरा किया जा सकेगा। सरकारें यदि कर्मचारियों को केवल खर्च समझेंगी और कर्मचारी यदि जनता की नब्ज से कटे रहेंगे, तो दोनों के बीच की खाई और गहरी होगी।

छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन का यह दीपावली सम्मेलन केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है — कि कर्मचारियों की एकता अगर ईमानदार और जनोन्मुखी होगी, तो सरकार को सुनना ही पड़ेगा। और सरकार के लिए भी यह अवसर है कि वह अपने “सेवकों” के विश्वास को फिर से रोशन करे।

दीपावली की यह रोशनी तभी स्थायी होगी, जब यह केवल दीपों में नहीं, कर्मचारी, सरकार और जनता — तीनों के संबंधों में भरोसे की लौ बनकर जले।

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