-सुभाष। मिश्र
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ने आज अपने इतिहास का वह क्षण देखा, जो केवल एक उद्घाटन समारोह नहीं बल्कि आत्मगौरव की अनुभूति थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रदेश के नये विधानसभा भवन का लोकार्पण करते हुए कहा कि आज का दिन स्वर्णिम शुरुआत का दिन है, यह आमजन के जुड़ाव का क्षण है। उनकी उपस्थिति ने इस आयोजन को राजनीतिक औपचारिकता से परे जाकर ऐतिहासिक बना दिया।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के उस दौर को याद किया जब स्वप्न और संघर्ष साथ-साथ चल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह राज्य अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदृष्टि का परिणाम है, जिन्होंने राज्यों की आकांक्षाओं को राष्ट्र की प्रगति से जोड़ा। अटल जी को नमन करते हुए उन्होंने कहा कि अटल जी ने केवल राज्य नहीं बनाए, उन्होंने भारत के संघीय ढांचे को सशक्त बनाया। यह वाक्य इस राज्य की जड़ों में बसी उस आत्मा का स्मरण था, जिसने अपने संसाधनों और परिश्रम को पहचान देने के लिए वर्षों तक आंदोलन किया।
नया विधानसभा भवन प्रधानमंत्री के शब्दों में 25 वर्ष के संघर्ष का प्रतीक है। यह भवन केवल लोकतंत्र का स्थापत्य नहीं बल्कि लोक की आवाज़ की मूर्त अभिव्यक्ति है। इसमें बस्तर की संस्कृति की झलक और मुरिया दरबार की छाया है, जहां परंपरा और प्रगति एक साथ खड़ी हैं। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में छत्तीसगढ़ के जननायकों—रविशंकर शुक्ल, छेदीलाल, किशोरी मोहन त्रिपाठी, रामप्रसाद पोटाय और रघुराज सिंह सहित संत गुरु घासीदास और अटल बिहारी वाजपेयी सभी को श्रद्धांजलि दी। यह स्मरण केवल सम्मान नहीं था, बल्कि इतिहास और वर्तमान के बीच संवाद था।
प्रधानमंत्री ने डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व की भी सराहना की और कहा कि उनके शासनकाल में राज्य ने स्थिरता, शांति और विकास का वह दौर देखा जिसने छत्तीसगढ़ की नई पहचान बनाई। यह कथन एक परिपक्व राजनीतिक दृष्टिकोण का प्रतीक था, जहां उपलब्धियों को दलगत सीमाओं से ऊपर रखकर देखा गया। रमन सिंह के दौर में जिस प्रकार जनधन योजनाओं, सड़क निर्माण, पीडीएस सुधार और ग्रामीण कनेक्टिविटी में कार्य हुए, उन्होंने राज्य को मज़बूत आधार दिया।
अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा कि 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य में छत्तीसगढ़ की भूमिका निर्णायक होगी। उन्होंने इसे गणराज्य के अमृत वर्ष से जोड़ा और कहा कि 75 वर्ष पहले जो संविधान हमने अपनाया था, उसी की भावना में आज यह राज्य नई ऊर्जा से आगे बढ़ रहा है। सच है, 25 वर्ष पहले जो राज्य पिछड़ा कहा जाता था, वही आज औद्योगिक, शैक्षिक और सामाजिक प्रगति के अग्रणी प्रदेशों में है। बस्तर, सरगुजा और कांकेर जैसे क्षेत्र अब हिंसा की छाया से निकलकर स्टार्टअप, खेल और हस्तशिल्प की पहचान बन रहे हैं। प्रधानमंत्री ने बस्तर ओलिंपिक जैसी पहल को पूरे देश के लिए प्रेरणा बताया।
राज्योत्सव के अवसर पर प्रधानमंत्री ने सत्य सांई अस्पताल जाकर बच्चों से संवाद किया, ब्रह्मकुमारी आश्रम में आंतरिक शांति के संदेश को आत्मसात किया और जनजातीय संग्रहालय में आदिवासी महिलाओं से मुलाकात की। यह यात्रा केवल कार्यक्रमों की श्रृंखला नहीं, बल्कि संवेदना की निरंतरता थी, जहां सेवा, संस्कृति और संवाद एक सूत्र में जुड़े दिखे। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ भगवान श्रीराम का ननिहाल है, वे इस भूमि के भांजे हैं। यह कथन धार्मिक भावना से अधिक सांस्कृतिक आत्मीयता का प्रतीक था। श्रीराम के आदर्शों को उन्होंने सुशासन और सेवा की प्रेरणा बताया, जिससे यह स्पष्ट संदेश गया कि आधुनिक शासन की जड़ें भी नैतिक मर्यादा और लोकसेवा में है।
प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि भारत ने नक्सलवाद और माओवाद के उन्मूलन की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। यह बयान छत्तीसगढ़ के बदलते सामाजिक परिदृश्य से सीधे जुड़ा है, जहाँ कभी भय और हिंसा का बोलबाला था, वहीं अब विश्वास और विकास की नई संस्कृति उभर रही है। आत्मसमर्पण की नीतियाँ, शिक्षा और रोजग़ार के अवसर तथा जनभागीदारी ने इस परिवर्तन को संभव बनाया है।
छत्तीसगढ़ की रजत जयंती केवल 25 वर्षों की गणना नहीं, बल्कि उस स्वप्न का उत्सव है जो लोकगीतों से लेकर विधान तक पहुँचा है। प्रधानमंत्री ने जब कहा कि यह स्वर्णिम शुरुआत का दिन है, तो यह वाक्य इस राज्य के आत्मविश्वास की उद्घोषणा था। आने वाले वर्षों में यह राज्य केवल खनिजों और उद्योगों का नहीं, बल्कि हरित ऊर्जा, जैविक खेती, शिक्षा सुधार और आदिवासी उद्यमिता का मॉडल बन सकता है। यह यात्रा संकेत देती है कि छत्तीसगढ़ अब संवेदना का राज्य से आगे बढ़कर सृजन का राज्य बनने की ओर अग्रसर है, जहां अटल की दृष्टि, रमन की नीति और आज के नवभारत का आत्मविश्वास एक साथ मिलकर नए युग की शुरुआत कर रहे हैं।