छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर इन दिनों एक अजीबोगरीब बहस का केंद्र बनी हुई है। वजह है एक न्यूड पार्टी का कथित आयोजन, जिसे लेकर सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक हलचल मच गई। पुलिस ने छह लोगों को हिरासत में लिया, दो एफआईआर दर्ज की गईं और मामला अचानक सुर्खियों में छा गया। यह सिर्फ एक पुलिस केस नहीं है, बल्कि हमारी बदलती सामाजिक मानसिकता, युवा पीढ़ी की कथित आज़ादी की चाह, पैसे और नशे के गठजोड़ तथा व्यवस्था की लीपा-पोती की कहानी भी है।
तकनीक और सोशल मीडिया ने दुनिया को सचमुच ‘ग्लोबल विलेजÓ बना दिया है। लेकिन इसके साथ वह सब भी आया है जिसे कभी पश्चिमी देशों का ‘डार्क साइडÓ कहा जाता था। न्यूड पार्टी, ड्रग्स, रेव और पूल पार्टी जैसी गतिविधियाँ अब केवल मुंबई, गोवा या बेंगलुरु तक सीमित नहीं रहीं। रायपुर, भोपाल, लखनऊ और पटना जैसे शहरों में भी इनकी गूँज सुनाई देने लगी है। वीआईपी रोड से लेकर नया रायपुर तक फार्म हाउस, क्लब और रिसॉर्ट इस नई अय्याशी के ठिकाने बन रहे हैं।
इस बार तो आयोजकों ने बाकायदा इंस्टाग्राम पेज बनाकर पोस्टर डाल दिया, जिससे मामला वायरल हुआ। यहीं से पूरे घटनाक्रम की शुरुआत हुई। सवाल उठता है क्या यह सब सिर्फ आधुनिकता का प्रतीक है या फिर अराजकता की ओर बढ़ता कदम?
कुछ ही दिन पहले ड्रग्स केस में गिरफ्तार हुई नव्या मलिक और विधि अग्रवाल की कहानी ने इस अंधेरे संसार की परतें खोल दीं। दोनों कथित तौर पर इवेंट मैनेजमेंट की आड़ में ड्रग्स नेटवर्क का हिस्सा बनीं। उनके मोबाइल फोन से मिले डाटा और चैट्स में कई रसूखदार नाम सामने आए नेताओं के बेटे, उद्योगपतियों के वारिस, नामी बिल्डरों के बच्चे। लेकिन पुलिस की कार्रवाई उन्हीं तक सीमित रही जिनके पास ताक़त या पहुँच नहीं थी। जिन पर असली उँगली उठनी चाहिए थी, वे बच निकले। यही वह ‘पैसे की ताक़तÓ है जो न्याय और अन्याय की रेखा मिटा देती है।
युवाओं की नई पीढ़ी, जिसे जेनरेशन-ज़ेड कहा जाता है, स्वतंत्रता के नाम पर हर सीमा तोड़ देना चाहती है। न्यूड पार्टी को कुछ लोग ‘बॉडी पॉजिटिविटीÓ और आत्मविश्वास का प्रतीक बताते हैं, तो कुछ इसे सिर्फ ‘साहसिकताÓ और ‘मस्तीÓ का नया रूप मानते हैं। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या यह स्वतंत्रता सामाजिक जिम्मेदारी से मुक्त है?
आजादी जब केवल शारीरिक या भोगवादी इच्छाओं तक सीमित रह जाए और उसमें समाज, परिवार और संस्कृति का संतुलन न रहे, तो वह आजादी नहीं बल्कि अराजकता कहलाती है।
इंस्टाग्राम, फेसबुक और स्नैपचैट पर पार्टी के पोस्टरों और वीडियोज़ ने न केवल पुलिस बल्कि आम लोगों को भी हिला दिया। मीडिया हाउसों ने इसे ‘न्यूड पार्टी कांडÓ का नाम दिया। पर यहाँ भी दो चेहरे सामने आए –
मीडिया और समाज का आक्रोश-ये रायपुर में क्या हो रहा है?, कुछ युवाओं की जिज्ञासा ये सब यहीं भी संभव है?
यानी सोशल मीडिया ने न सिर्फ विरोध को जन्म दिया बल्कि आकर्षण को भी बढ़ाया। यही वह दोधारी तलवार है जिसे हम लगातार देख रहे हैं।
राजधानी रायपुर का यह कोई पहला मामला नहीं है। हर बड़े शहर में ड्रग्स और अश्लील पार्टियों की खबरें आती रही हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार सोशल मीडिया ने इसे सार्वजनिक कर दिया। पुलिस ने क्लब मालिकों और आयोजकों पर कार्रवाई की, मगर रसूखदार घरानों तक उसकी पहुँच नहीं गई। राजनीतिक दलों ने एक-दूसरे पर आरोप मढ़े, जबकि सच्चाई यह है कि इस धंधे में दोनों तरफ के लोग बराबर शामिल हैं।
यही वह स्थिति है जिसे समाज ‘दोहरी व्यवस्थाÓ कहता है। गरीब और सामान्य तबके पर सख्ती, लेकिन ताक़तवरों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
रायपुर अब सिर्फ छत्तीसगढ़ की राजधानी नहीं रहा, बल्कि तेजी से विकसित हो रहा महानगर है। मॉल, क्लब, कैफे और फार्महाउस की बढ़ती संख्या इसका सबूत है लेकिन साथ ही यह भी स्वीकार करना होगा कि महानगरी जीवन के साथ अश्लीलता और नशे की यह संस्कृति भी प्रवेश कर चुकी है। युवा अब गोवा-मुंबई जाने के बजाय अपने ही शहर में सब कुछ चाहते हैं। फार्महाउस और क्लब मालिक इसे कारोबार का नया अवसर मानते हैं। राजनीति और अफसरशाही का संरक्षण इस संस्कृति को सुरक्षा कवच देता है।
पूरे मामले की जड़ में दो चीज़ें हैं पैसा और नशा। पैसा इन पार्टियों को संभव बनाता है। नशा इन्हें आकर्षक और खतरनाक दोनों बनाता है।
मध्यमवर्गीय युवा भी इन पार्टियों की ओर खींच रहे हैं, लेकिन वे अक्सर वही शिकार बनते हैं जिन पर पुलिस आसानी से शिकंजा कस सकती है। असली खेल वही लोग खेलते हैं जिनके पास धन, पहुँच और संरक्षण है।
रायपुर की न्यूड पार्टी का मामला केवल एक सनसनीखेज खबर नहीं है, बल्कि यह हमारे समय की गहरी बेचैनी का प्रतीक है। जब युवा ‘आजादीÓ को केवल नग्नता और नशे में तलाशने लगते हैं, जब पैसा कानून से बड़ा हो जाता है, जब पुलिस और राजनीति सच्चाई से आँख मूँद लेती है, तो यह लोकतंत्र और समाज दोनों के लिए खतरे की घंटी है।
आज हमें यह तय करना होगा कि हम किस तरह का महानगर बनाना चाहते हैं क्या केवल चमक-दमक और अश्लील पार्टियों वाला, या फिर संस्कृति, शिक्षा और रचनात्मकता से भरा हुआ? आजादी का असली अर्थ अराजकता नहीं, बल्कि जिम्मेदारी है। अगर यह पीढ़ी इसे समझ लें तो रायपुर और भारत दोनों एक बेहतर भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
आज़ादी, अश्लीलता और पैसों की अराजकता

15
Sep