-सुभाष मिश्र
भाजपा नेता, केन्द्रीय मंत्री अपने बेबाक़ बयानों और अपने काम नवाचार के लिए जाने जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रधानमंत्री सड़क योजना के ज़रिए गाँव-गाँव में सड़कों का संजाल खड़ा किया। नितिन गडकरी ने सड़कों के शहरीय नेटवर्क को मज़बूती दी। इस बार उन्होंने नागपुर में एक दीक्षांत समारोह के दौरान कहा, जो करेगा जात की बात, उसको मारूंगा कस के लात।
आज जब पूरे देश में धर्म, जाति, संप्रदाय हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति चरम पर है। होली के अवसर नेताओं ने जिस तरह की बयानबाज़ी की। मस्जिदों को जिस तरह से ढंका गया और संभल के बहाने गोदी मीडिया के ज़रिए हिन्दू-मुस्लिम के बीच दीवार खींचने की कोशिशें हुई। उस बीच में नितिन गडकरी का यह बयान तपती तेज धूप में पानी की ठंडी फुहार सा है।
कबीर बहुत पहले कह गये हैं-
जाति-पाति पूछे ना कोई, हरि को भजै, सो हरि का होई।
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नितिन गडकरी ने एक अल्पसंख्यक संस्थान के दीक्षांत समारोह के दौरान डॉ. कलाम की तारीफ करते हुए कहा, अब्दुल कलाम आजाद जब न्यूक्लियर साइंटिस्ट बने और उन्होंने ऐसा काम किया कि आज कलाम साहब का नाम हमारे देश में नहीं बल्कि विश्व में सभी लोगों के पास पहुंचा। आज उन्हें दुनियाभर में सभी लोग जानते हैं। गड़करी ने कहा, इसलिए मैं एक बात पर विश्वास करता हूं कि कोई भी व्यक्ति उसकी जात, पंथ, धर्म, भाषा और लिंग से बड़ा नहीं होता बल्कि उसे गुणों से बड़ा होता है और इसलिए हम किसी को भी इन चीजों के आधार पर प्रताडि़त नहीं करेंगे। गडकरी ने दीक्षांत समारोह में युवा वर्ग को संबोधित करते हुए कहा, मैं तो राजनीति में हूं यहां तो बहुत बातें चलती हैं इसलिए मैंने कहा मैं इन चीजों को लेकर कोई भेदभाव नहीं करूंगा। मैं अपने हिसाब से चलूंगा जिसको वोट देना होगा देगा, जिसको नहीं देना उसकी मर्जी। वे अपने संबोधन में बताते हैं कि मुझे बहुत जाति वाले लोग मिलने आते हैं, मैंने लगभग 50, 000 हजार लोगों के बीच कह दिया कि जो करेगा जात की बात उसको कसके मारूंगा लात। उन्होंने आगे कहा, इस बयान के बाद मुझे मेरे कई मित्रों ने कहा कि ऐसा बयान देकर आपने बहुत नुकसान किया है लेकिन मैंने कहा जो होगा सो होगा। चुनाव को लेकर नितिन गडकरी ने कहा, अगर कोई चुनाव नहीं जीतता तो कोई मरता थोड़ी है। मैं अपने उसूलों के साथ इस पर कायम रहूंगा और व्यक्तिगत जीवन में भी उसका आचरण करूंगा।
27 मई 1957 को नागपुर, महाराष्ट्र में जन्मे नितिन जयराम गडकरी मोदी सरकार में 2014 से केंद्रीय मंत्री, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय विभाग के मंत्री हैं। नागपुर विश्वविद्यालय से कानून एवं वाणिज्य की पढ़ाई की और छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे। बाद में वे भाजपा में सक्रिय हुए। वे 1995-1999 तक महाराष्ट्र सरकार में लोक निर्माण मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे का निर्माण करवायाा। 2009-2013 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और संगठन को मजबूत किया। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री के रूप में भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को नई दिशा दी।
नागपुर आज सड़क और ओवरब्रिज के रूप में बहुत ही मज़बूत अधोसंरचना वाला शहर है जिसका श्रेय नितिन गडकरी को जाता है। नितिन गडकरी की वजह से भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की गति को दोगुनी हो गई। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे और भारत माला परियोजना जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत की। उन्होंने ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे, एलिवेटेड कॉरिडोर और नए हाईवे प्रोजेक्ट्स को गति दी। नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा नदी की सफाई और पुनर्जीवन के लिए कई योजनाएं लागू कीं। भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए नीतियां बनाईं और हाइड्रोजन फ्यूल आधारित टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।
भारत में जाति और धर्म लंबे समय से राजनीति का एक प्रमुख हिस्सा रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद लोकतांत्रिक प्रणाली लागू हुई, लेकिन जातीय और धार्मिक समीकरण अभी भी राजनीति को गहराई से प्रभावित करते हैं। हमारे देश में भारत में जाति व्यवस्था प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसमें समाज को विभिन्न वर्गों में बांटा गया। ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना में जातियों को वर्गीकृत किया गया, जिससे जातिगत पहचान और मजबूत हुई। स्वतंत्रता के बाद संविधान ने समानता का अधिकार दिया, लेकिन आरक्षण और सामाजिक न्याय की जरूरत बनी रही।
इस समय जाति का राजनीतिकरण चरम पर है। पिछड़ा अतिपिछड़ा में वंचित वर्ग को बांटा जा रहा है। राजनीतिक दलों ने विभिन्न जातियों को मतदाता समूह की तरह देखना शुरू किया। उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु जैसे राज्यों में जातिगत समीकरण चुनावी सफलता का बड़ा आधार बने। आज भी राजनीतिक पार्टियां उम्मीदवारों का चयन जातिगत वोट बैंक के आधार पर करती हैं। यही वजह है कि हमारे यहां के बहुत सारे राजनीतिक दलों का प्रमुख आधार धार्मिक जातिगत है। भाजपा को अपने हिन्दू वोट बैंक पर भरोसा है यही वजह है की वह सनातन के साथ हिन्दूत्व की बात करती है। कांग्रेस के बहुत से लोगों को अपने सेकुलर होने पर अफ़सोस है। उसका कोई जातिगत वोट बैंक नहीं है। बहुजन समाज पार्टी दलित राजनीति पर केंद्रित। समाजवादी पार्टी यादव , मुस्लिम और अन्य पिछड़ा वर्ग पर प्रभाव राष्ट्रीय जनता दल, बिहार में यादव-मुस्लिम गठजोड़ पर केंद्रित है ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन-मुस्लिम राजनीति पर केंद्रित। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग- केरल में मुस्लिम वोट बैंक पर आधारित। द्रविड़ पार्टियाँ (डीएमके, एआईएडीएमके)-तमिलनाडु में ब्राह्मण-विरोधी राजनीति पर आधारित है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन धार्मिक पहचान राजनीति में अहम भूमिका निभाती है। देश के विभाजन (1947) के बाद हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण बढ़ा है यही वजह है कि बहुत सारे लोग मुसलमानों को पाकिस्तान परस्त समझकर उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह देने लगे हैं। जाति और धर्म की राजनीति भारत में गहरी जड़ें जमा चुकी है, लेकिन इसका हल शिक्षा, विकास और निष्पक्ष कानून से निकाला जा सकता है।
भाजपा जिसका स्लोगन सबका साथ सबका विकास है और जो पूरी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दंभ रखती है, उसे अपने बहुत सारे नेताओं को जाति, धर्म की संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकलने को कहना होगा। नितिन गडकरी जैसी सोच रखने वाले, रिज़ल्ट देने वाले नेताओं को आगे बढ़ाना होगा। बहुत सारे लोगों को नितिन गडकरी की साफग़ोई नहीं जमती। वे नफऱत की राजनीति करना चाहते हैं लेकिन यदि देश को सही मायने में आगे ले जाना है, विश्व गुरू बनना है तो जाति-धर्म से ऊपर उठकर असली मुद्दों जिनमें रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढाँचे के उपर ध्यान देना होगा।
प्रसंगवश कबीर दास का दोहा-
जात-पात सब झूठ है
भरम पड़ी मत कोई
जाति नहीं जगदीश की
औरन की क्या होई।।