-सुभाष मिश्र
हमारे देश में तीज त्यौहार अलग-अलग तिथियों में मनाये जाते हैं। कुछ समय के लिए हमारे देवता सोते हैं, उस समय किसी भी प्रकार के मंगल कार्य नहीं होते। किन्तु छत्तीसगढ़ के सुशासन तिहार को परंपरागत त्यौहारों के रीति-रिवाज से परे जाकर साल भर चलना चाहिए, क्योंकि देवताओं की तरह ही हमारी ब्यूरोक्रेसी लंबे समय तक सोती रहती है, जब कोई अभियान आता है, बड़े नेता या अधिकारी दौरे पर आते हैं तभी वह उठकर सक्रिय होते हंै। सारी लिपाई-पोताई, साफ-सफाई उसी समय होती है। यह सही है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आयोजित सुशासन तिहार-2025 न केवल एक प्रशासनिक पहल है, बल्कि यह एक ऐसा उत्सव है जो जनता और शासन के बीच संवाद का सेतु बनकर उभरा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में शुरू किया गया यह अभियान सुशासन की अवधारणा को धरातल पर उतारने का एक अनूठा प्रयास है। इसका मूल उद्देश्य आम जनता की समस्याओं का समयबद्ध निराकरण, जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की समीक्षा और विकास कार्यों में गति लाना है। यह तिहार, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, सुशासन को एक उत्सव के रूप में मनाने का प्रयास है, जिसमें जनता की भागीदारी और सरकार की जवाबदेही दोनों समान रूप से महत्वपूर्ण है।
छत्तीसगढ़ अपनी प्राकृतिक संपदा और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, लेकिन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासनिक पहुंच और सेवाओं की उपलब्धता हमेशा से एक चुनौती रही है। सुशासन तिहार का आयोजन इसी अंतर को पाटने के लिये किया गया है। यह अभियान तीन चरणों में संचालित किया जा रहा है, जिसमें पहला चरण 8 अप्रैल से 11 अप्रैल तक आयोजित हुआ, और दूसरा-तीसरा चरण मई 2025 में समाधान शिविरों के साथ जोर-शोर से संपन्न हुआ। इस दौरान, सभी विकासखंडों में समाधान शिविर आयोजित किए गए, जहां जनता ने अपनी समस्याएं और मांगें सीधे अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के समक्ष रखीं। 25 दिनों में 32 जिलों का सघन दौरा कर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बहुत सी महत्वपूर्ण घोषणाएं की।
इस अभियान का लक्ष्य केवल शिकायतों का निवारण करना ही नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं को समझकर विकास की नई दिशा तय करना भी है। मुख्यमंत्री स्वयं विभिन्न जिलों के इन शिविरों में शामिल हुए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि सरकार जनता की आवाज को न केवल सुनना चाहती है, बल्कि उसे त्वरित समाधान भी प्रदान करना चाहती है। उदाहरण के लिए सुकमा जिले के तोंगपाल में आयोजित समाधान शिविर में मुख्यमंत्री ने 500 करोड़ रुपये से अधिक के विकास कार्यों की घोषणा की जो इस अभियान की गंभीरता को दर्शाता है।
सुशासन तिहार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सरकार को जनता के करीब लाता है। मुख्यमंत्री का गांवों में आकस्मिक दौरा, ग्रामीणों के साथ चौपाल में बैठकर उनकी समस्याएं सुनना और तत्काल समाधान की दिशा में कदम उठाना, यह दर्शाता है कि शासन अब केवल कागजी नहीं, बल्कि जन-केंद्रित है। रायपुर जिले के भैंसा गांव में आयोजित समाधान शिविर में मुख्यमंत्री ने जन-भावनाओं के अनुरूप विभिन्न निर्माण कार्यों को स्वीकृति दी, जो इस बात का प्रमाण है कि सरकार जनता की मांगों के प्रति संवेदनशील है।
इसके अलावा सुशासन तिहार ने प्रशासनिक जवाबदेही को भी बढ़ाया है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि राजस्व विभाग जैसे महत्वपूर्ण विभागों को जनता की समस्याओं के निराकरण में सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी क्योंकि इनका सीधा प्रभाव शासन की छवि पर पड़ता है। हालांकि, कुछ चुनौतियां भी सामने आई हैं, जैसे राजस्व विभाग में लंबित फाइलों का अंबार जो सुशासन के दावों पर सवाल उठाता है। फिर भी सरकार ने इन कमियों को स्वीकार करते हुए सुधार की दिशा में कदम उठाने का वादा किया है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जिला सक्ती के करीगांव से 5 मई को अपने सुशासन तिहार के दौरे को प्रारंभ किया। फिर कोरबा के मदनपुर में 6 मई को बेमेतरा जिले के सहसपुर में और कबीरधाम जिले के ग्राम दलदली में जाकर ग्रामीणों से रूबरू हुए। 8 मई को मनेंद्रगढ़-चिरमिरी, भरतपुर जिले के माथमौर, कोरिया के ग्राम छिंदिया, सूरजपुर के ग्राम पटना को पहुंचकर बहुत सी घोषणाएं की। 9 मई को बलौदाबाजार के बलदाकछार, गरियाबंद जिले के मंडोली जाकर ग्रामीणों से बात की। 15 मई को दंतेवाड़ा के मुलेर तथा बीजापुर जिले के ग्राम गलगम में नक्सली मोर्चे पर डटे सीआरपीएफ के जवानों का हौसला बढ़ाया। 16 मई को मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने खैरागढ़, छुईखदान, गंडई जिले के ग्राम झुरानदी में बरगद के पेड़ के नीचे चौपाल लगाई। मुख्यमंत्री ने राजनांदगांव पहुंचकर जिला आदिवासियों की बैठक ली और राजनांदगांव के चिखली में बने 9 करोड़ रूपए के शासकीय क्षेत्रीय मुद्रणालय के भवन का लोकार्पण किया। इस अवसर पर पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह भी मौजूद थे।
19 मई को मुख्यमंत्री ने गौरेला-पेंड्रा, मरवाही जिले के बाहुल्य ग्राम चुकतीपानी और बिलासपुर जिले के आमागोहन तथा मुंगेली जिले के बिजरा कद्दार में ग्रामीणों को संबोधित किया। 20 मई को मुख्यमंत्री दुर्ग जिले के धमधा विकासखंड के ग्राम मुरमुंदा पहुंचते हैं। उन्होंने हाईस्कूल का हायर सेकेंडरी में उन्नयन की घोषणा की। 21 मई को मुख्यमंत्री जशपुर जिले के ग्राम दोकड़ा और बलरामपुर जिले के हरगवा ग्राम गये। 23 मई को मुख्यमंत्री नारायणपुर जिले के बासिंग ग्राम पहुंचे। मुख्यमंत्री 27 मई को सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के ग्राम कनकबीरा में सुशासन तिहार में पहुंचकर मंगलभवन, कन्या छात्रावास तथा गोडम में पंचायत भवन के निर्माण की घोषणा की। इसी दिन मुख्यमंत्री रायगढ़ भी गये जहां उन्होंने अधिकारियों के साथ बैठक की। 28 मई को कांकेर के मांदरी जाकर सुशासन तिहार में हिस्सा लिया। मुख्यमंत्री ने बालोद में अधिकारियों की बैठक ली। सुशासन तिहार के अंतिम पड़ाव में मुख्यमंत्री रायपुर जिले के आरंग तहसील के ग्राम भैंसा पहुंंचे। 30 मई को मुख्यमंत्री ने सुकमा जिले के ग्राम तोंगपाल में सुशासन तिहार में हिस्सा लिया।
इसके साथ ही सुशासन तिहार ने जनकल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर भी ध्यान केंद्रित किया है। समाधान शिविरों में लोगों ने न केवल अपनी व्यक्तिगत समस्याएं उठाईं, बल्कि सामुदायिक विकास से जुड़े मुद्दों जैसे सड़क निर्माण, पानी की उपलब्धता और शिक्षा-स्वास्थ्य सेवाओं की मांग भी की। कुछ असामान्य मांगें, जैसे शराब दुकान या व्यक्तिगत विवाह की व्यवस्था ने इस अभियान को सुर्खियों में भी लाया, लेकिन ये घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि जनता अब शासन के प्रति इतना विश्वास रखती है कि वे अपनी हर छोटी-बड़ी बात को बेझिझक उठा रहे हैं। सुशासन तिहार के तहत प्रथम चरण में कुल 41,21, 042 आवेदन मिले। इनमें ग्रामीण क्षेत्र से 38 लाख 44 हजार दौ सौ पचास और शहरी क्षेत्र से 2,76,792 आवेदन मिले। इसमें 40,40,147 मांगें और 80,895 शिकायतें थीं।
सुशासन तिहार ने जहां एक ओर जनता और सरकार के बीच विश्वास का निर्माण किया है वहीं कुछ कमियां भी उजागर हुई हैं। राजस्व विभाग में लंबित मामलों की संख्या और कुछ अधिकारियों की उदासीनता ने इस अभियान की चमक को थोड़ा फीका किया है। इसके अलावा कुछ स्थानों पर पूर्व विधायकों और स्थानीय नेताओं द्वारा हंगामा और असामान्य मांगों ने प्रशासन के लिए नई चुनौतियां खड़ी की है।
इन चुनौतियों के बावजूद सुशासन तिहार ने छत्तीसगढ़ में एक नए प्रशासनिक मॉडल की नींव रखी है। यह अभियान केवल एक बार का आयोजन नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए। भविष्य में सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि समाधान शिविरों में उठाई गई मांगों का न केवल त्वरित निराकरण हो, बल्कि उनकी दीर्घकालिक निगरानी भी की जाए। साथ ही प्रशासनिक अमले की जवाबदेही बढ़ाने के लिए और सख्त कदम उठाने होंगे।
छत्तीसगढ़ का सुशासन तिहार एक ऐसी पहल है जो सुशासन को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिए हुए है। यह न केवल समस्याओं के समाधान का मंच है, बल्कि विकास और विश्वास का उत्सव भी है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की यह पहल जनता के बीच एक नई उम्मीद जगा रही है और यह सिद्ध कर रही है कि जब शासन और जनता के बीच संवाद का सेतु मजबूत होता है तो सुशासन केवल एक नारा नहीं, बल्कि वास्तविकता बन जाता है।
सुशासन तिहार को और प्रभावी बनाने के लिए सरकार को जनता की भागीदारी को और बढ़ाना होगा, ताकि यह अभियान केवल प्रशासनिक औपचारिकता न रहकर एक जन-आंदोलन बन सके। छत्तीसगढ़ जो अपनी सादगी और समृद्धि के लिए जाना जाता है, इस तिहार के माध्यम से सुशासन की नई मिसाल कायम कर सकता है।