-सुभाष मिश्र
भारत में नदियों और जल संसाधनों की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। नदियों का पत्थरों की नदी में बदलना, बांधों के कारण प्रवाह में रुकावट, रेत के अवैध उत्खनन, रेत माफियाओं का वर्चस्व, भूजल स्तर का गिरना, जल स्त्रोतों का सूखना और जल संरक्षण के अपर्याप्त उपाय—ये सभी गंभीर पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियां हैं। नदियां जो कभी जीवनदायिनी और जल से लबालब हुआ करती थीं, अब कई जगहों पर सूख रही हैं या उनके प्रवाह में भारी कमी आई है। गर्मी आने के बहुत पहले से बहुत सी नदियां पानी की जगह पत्थर और रेत की सूखी नदी में तब्दील हो जाती है। रेत माफियाओं के लिए सूखी नदी किसी वरदान सी साबित होती है। बरसात आने से पहले वे नदी से रेत निकाल कर उसका पहाड़ खड़ा कर लेते हैं। ऐसे रेत के पहाड़ रायपुर जिले की आरंग तहसील के पारागांव से लेकर बिलासपुर, कोरबा, अंबिकापुर में भी देखे जा सकते हैं। जब बरसात में रेत की शार्टेज होती है तो फिर रेत माफिय़ा बहुत ज़्यादा क़ीमत पर रेत बेचते हैं, जो रेत के पहाड़ सबको दिखते हैं, वे सरकारी अमले, नेताओं के लिए अदृश्य सरीखे होते हैं। पैसा, पॉवर और पहचान के चलते सरकारी तंत्र की आंखों में रतौंधी हो जाती है।
नदियों से रेत का अवैध और बेतहाशा उत्खनन और उस पर गुंडागर्दी अब आम घटना हो गई है। भ्रष्ट नौकरशाहों और स्थानीय नेताओं का वरदहस्त इसमें रेत और खनन माफियाओं के हौसलों को बढ़ाता है।
हाल ही में मित्र कथाकार आनंद हर्षुल का उपन्यास आया रेतीला जिस पर हमने बातचीत की। यह उपन्यास रेत माफियाओं की क्रूरता का मार्मिक आख्यान है। उसका एक संक्षिप्त अंश-
एक माइनिंग इंस्पेक्टर, जब-तब खदान में आकर, अवैध खनन को रोकने की धमकी दे रहा था। साथ ही बातचीत में ओम महाराज का अपमान भी करता था तू-तड़ाक-गाली-गलौच। वह इतना पैसा माँग रहा था कि ओम को लगा कि सारी मेहनत इस चूतिये को घूस देने के लिए करेंगे तो हमारे पास बचेगा क्या ? ओम का दिमाग उस छोटी उम्र में भी चलता बहुत था। उसे आदमी की पूँछद्ब जल्दी दिख जाती थी। पूँछ दिख जाती थी, इसलिए वह उस पर अपना पैर भी जल्दी रख लेता था। ओम ने एक दिन रेत ठेके में, दूर से ही देख लिया कि माइनिंग इंस्पेक्टर अपनी मोटरसाइकिल पर ठेके की ओर ही चला आ रहा है। उसने उसी समय टेक्टर-ड्राइवर से ट्रेक्टर की चाभी माँगी। ट्रेक्टर स्टार्ट किया और माइनिंग इंस्पेक्टर की ओर ट्रेक्टर दौड़ता बढ़ चला। ट्रेक्टर के साथ भरी हुई रेत की ट्रॉली भी थी। ओम नदी के किनारे के उस ऊबड़-खाबड़ रास्ते में ट्रेक्टर इतनी तेज दौड़ा रहा थाद्ब कि ट्रॉली से रेत गिर रही थी: धड़धड़ाता शोर करता, तेज़ दौड़ता ट्रेक्टर। माइनिंग इंस्पेक्टर ने जब तेज़ी से अपनी ओर आते उस ट्रेक्टर को देखा। माइनिंग इंस्पेक्टर को लगा कि आज उसके जीवन का अंतिम दिन है। वह मोटरसाइकिल रोक कर खड़ा हो गया। मृत्यु के इंतजार में वह अपनी आँखें बंद किए खड़ा था। माइनिंग इंस्पेक्टर पसीने से नहा चुका था। उससे कुछ बोलते नहीं बना। उस माइनिंग इंस्पेक्टर ने इस घटना के बाद, ओम महाराज की साइट पर आना ही बंद कर दिया। पर ऐसा नहीं हुआ कि ओम ने उसे घूस देना बंद कर दिया हो। वह, जो वाजिब था, उसे पहुँचा रहा था।
रेत माफियाओं द्वारा अवैध रेत खनन रोकने गई टीमों पर हमले और ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या की घटनाएं भारत में एक गंभीर समस्या का हिस्सा हैं। ये घटनाएँ रेत माफियाओं के बुलंद हौसलों और प्रशासनिक कमजोरियों को दर्शाती हैं। कुछ प्रमुख घटनाओं की बात करें तो बलरामपुर, छत्तीसगढ़ (11 मई 2025) की हालिया घटना बताती हैं की रेत माफियाओं के हौसले कितने ख़ौफऩाक है ।बलरामपुर जिले के सनावल थाना क्षेत्र में लिब्रा गाँव के कनहर नदी घाट पर अवैध रेत खनन रोकने गई पुलिस और वन विभाग की संयुक्त टीम पर झारखंड के रेत माफियाओं ने हमला किया। आरक्षक शिव भजन सिंह (43) ने एक ट्रैक्टर को रोकने की कोशिश की, लेकिन ट्रैक्टर चालक ने उन्हें कुचल दिया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। इस प्रकरण में बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और खनिज सचिव, वन विभाग, और डीजीपी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। ग्रामीणों का कहना है कि झारखंड के तस्कर लंबे समय से इस क्षेत्र में अवैध रेत खनन कर रहे थे, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे।
सिंगरौली, मध्य प्रदेश (2025) की घटना में खनिज विभाग की टीम पर रेत माफियाओं के गुर्गों ने हमला किया। रात करीब 2 बजे खुटार चौकी के सामने माफियाओं ने टीम की गाडिय़ों को घेर लिया, मारपीट की और तीन गाडिय़ों में तोडफ़ोड़ की।
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राजस्थान के सवाई माधोपुर, (16 मई 2025) की हाल की घटना में चौथ का बरवाड़ा थाना क्षेत्र में बनास नदी के डिडायच रपट के पास अवैध बजरी खनन रोकने गई पुलिस टीम पर माफियाओं ने हमला किया। पुलिस उपाधीक्षक (ड़ीएसपी) लाभूराम विश्नोई की निजी बोलेरो गाड़ी को माफियाओं ने आग लगा दी। मुरैना, मध्य प्रदेश (8 मार्च 2012) में मुरैना में आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी। नरेंद्र कुमार अवैध रेत खनन के खिलाफ कार्रवाई करने गए थे, जब यह घटना हुई।
भिंड, मध्य प्रदेश (5 अप्रैल 2015) में सिपाही अतिबल सिंह को रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। मुरैना, मध्य प्रदेश (7 मई 2016) में फॉरेस्ट गार्ड नरेंद्र शर्मा को मुरैना में रेत माफियाओं ने ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला। वह चंबल नदी क्षेत्र में अवैध खनन रोकने गए थे।
यदि हमें रेत के अवैध उत्खनन को समझना है तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जिले का उदाहरण एक बानगी है, जिसमें रेत के अवैध उत्खनन के मामलों में ढाई करोड़ से ज्यादा का जुर्माना ठोका गया है। 876 प्रकरणों में कार्रवाई की गई है। जिले में स्वीकृत 13 रेत खदानों में से 8 खदानें ही पर्यावरणीय स्वीकृति के बाद संचालित की जा रही है जबकि शेष 5 खदानों के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया चल रही है।
रेत घाटों पर की गई कार्रवाई के दौरान वर्ष 2024-25 में कुल 32 चेन मशीनें जब्त की गई थीं। ये तो वे प्रकरण है जिन पर खनिज विभाग ने कार्रवाई की है किन्तु नदियों से बहुत बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन जारी है।
ये घटनाएं रेत माफियाओं की बेलगाम हिंसा और अवैध खनन के खिलाफ प्रशासनिक नाकामी को उजागर करती हैं। बलरामपुर (2025) और मुरैना (2012) जैसी घटनाएँ विशेष रूप से गंभीर हैं, क्योंकि इनमें अधिकारियों की जान गई। इन घटनाओं से यह भी स्पष्ट है कि रेत माफिया केवल आर्थिक अपराध तक सीमित नहीं है बल्कि हिंसक और संगठित अपराधों में भी लिप्त हैं।
जहां तक नदियों के सूखी नदी में तब्दील होने की बात है तो प्रसंगवश मुझे दुष्यंत कुमार की गज़ल का ये शेर याद आता है –
यहां तक आते, आते सूख जाती है सैकड़ों नदियाँ
मै जानता हूँ कि पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
नदियों का पता और रेत की नदी में तब्दील होने की वजह यह भी है कि हमारी नदियों पर बड़े पैमाने पर बांध बनाए गए हैं, जैसे सरदार सरोवर बांध (नर्मदा), टिहरी बांध (गंगा) और अन्य। ये बांध बिजली उत्पादन, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इनके कारण नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हुआ है। नदी के निचले हिस्सों में पानी की कमी हो रही है, जिससे नदी का पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो रहा है। अनियमित मानसून, कम वर्षा और बढ़ता तापमान नदियों के जलस्तर को प्रभावित कर रहे हैं। ग्लेशियर जो हिमालयी नदियों (जैसे गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र) का स्रोत हैं, तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे भविष्य में जल संकट और गहरा सकता है। औद्योगिक कचरा, घरेलू अपशिष्ट और उर्वरकों का नदियों में प्रवाह नदियों को जहरीला बना रहा है। गंगा, यमुना, और गोदावरी जैसी नदियाँ कई जगहों पर प्रदूषण के कारण जीवनदायिनी कम, नाले ज्यादा नजर आती हैं।
रेत, जिसे नदी का सोना भी कहा जाता है, निर्माण उद्योग में भारी मांग में है। नदियों से रेत का बेतहाशा उत्खनन हो रहा है, जिसके गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं। रेत नदियों के तल का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका अत्यधिक उत्खनन नदी के तल को गहरा करता है जिससे भूजल स्तर नीचे जाता है और नदी का प्राकृतिक प्रवाह बदल जाता है। इससे जलीय जीव-जंतुओं का आवास नष्ट हो रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रेत माफिया सक्रिय हैं। ये माफिया स्थानीय प्रशासन और नेताओं की मिलीभगत से अवैध खनन करते हैं। कई बार हिंसा, हत्या, और धमकियों की खबरें भी सामने आती हैं। रेत खनन को नियंत्रित करने के लिए पर्यावरण मंत्रालय और राज्य सरकारों के नियम हैं, लेकिन इनका पालन कम होता है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कई बार अवैध खनन पर रोक लगाने के आदेश दिए, लेकिन जमीनी स्तर पर स्थिति में सुधार कम हुआ है।
भारत में भूजल पर अत्यधिक निर्भरता है, खासकर कृषि और पेयजल के लिए। लेकिन भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, भारत के 17 प्रतिशत भूजल ब्लॉक अति-दोहित श्रेणी में हैं। तालाब, कुएँ, और हैंडपंप सूख रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पानी के लिए मीलों पैदल चलने को मजबूर हैं। शहरी क्षेत्रों में भी टैंकरों पर निर्भरता बढ़ रही है। समुद्र के खारे पानी का रिसाव तटीय क्षेत्रों (जैसे तमिलनाडु और गुजरात) में भूजल के अत्यधिक दोहन से समुद्र का खारा पानी भूजल में मिल रहा है, जिससे वह उपयोग के लिए अनुपयुक्त हो रहा है।
जल संरक्षण के लिए भारत में कई योजनाएं और नीतियाँ हैं, लेकिन उनके कार्यान्वयन में कमी है वर्षा जल संचय। वर्षा जल संचय (रेनवाटर हार्वेस्टिंग) को बढ़ावा देने के लिए कई राज्यों में नियम बनाए गए हैं, लेकिन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग सीमित है। सरकार ने नदियों को जोडऩे की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी, ताकि पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जल पहुँचाया जा सके। लेकिन यह परियोजना पर्यावरणीय और आर्थिक कारणों से विवादों में है। 2019 में बने जल शक्ति मंत्रालय ने जल जीवन मिशन शुरू किया, जिसका लक्ष्य 2024 तक हर घर में नल से जल पहुँचाना था। हालाँकि, कई क्षेत्रों में यह लक्ष्य अभी अधूरा है। भारत में तालाब, बावड़ी और जोहड़ जैसी पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियाँ थीं, लेकिन आधुनिक विकास और उपेक्षा के कारण ये नष्ट हो रही हैं।
नदियों और जल संसाधनों का संकट केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक समस्या भी है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो जल संकट भारत और विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है। सरकार, समाज, और व्यक्तियों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा। जल संरक्षण, अवैध खनन पर रोक और नदियों के पुनर्जनन जैसे कदम न केवल नदियों को पुनर्जनन देंगे, बल्कि भावी पीढिय़ों के लिए जल सुरक्षा भी सुनिश्चित करेंगे।