-सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ में चिटफ़ंड कंपनियों के फ्रॉड का मामला हो, चाहे बैंकों में फर्ज़ी नाम या थोड़ी लालच देकर खोले गये म्यूल एकाउंट की बात हो, दोनों ही मामले में गरीब बेरोजग़ार ही ज़्यादा फंसे हैं। म्यूल फंड प्रकरण में पिछले 6 माह से बहुत से गरीब युवक जेल की सलाख़ों के पीछे हैं। ऑनलाइन सट्टेबाजी और म्यूचुअल फंड के नाम पर ठगी के मामलों में भी स्थिति गंभीर है। इनमें छोटे-छोटे लालच देकर लोगों से बड़े पैमाने पर पैसा जमा करवाया गया। कई निर्दोष और गरीब लोग जो इन योजनाओं में शामिल थे या निवेशक थे, जेल में हैं या ठगे गए हैं। इन मामलों में प्रभावी कार्रवाई की कमी और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं के कारण पीडि़तों को न्याय मिलना मुश्किल हो रहा है। सरकार, रिजर्व बैंक बहुत से मीडिया चैनलों, प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिए वित्तीय धोखाधड़ी से सचेत रहने की बार-बार हिदायत देती है किन्तु जमीनी स्तर पर यह चिटिंग बदस्तूर जारी है। सरकार किसी भी पार्टी की हो, वह चाहकर भी मेन कल्पिट को नहीं पकड़ पा रही है। जो लोग इस तरह के वित्तीय फ्रॉड में शमिल हैं, वे पहले ही क़ानूनी कमज़ोरियों का फ़ायदा उठाकर अपने बचने का रास्ता निकाल लेते हैं। थोड़ी लालच, लोगों पर विश्वास और अज्ञानता, बेरोजगारी के चलते स्थानीय बेरोजगार, गरीब लोग इसमें दोनों ओर से फंस रहे हैं। पैसा लगाने वाले और पैसा इक्कठा करने वाले दोनों स्थानीय हैं पर जिस कंपनी, व्यक्ति को यह पैसा मिल रहा है वह कहीं दूर अदृश्य सा है और पुलिस की पकड़ से उसी तरह दूर है जैसे मोस्ट वांडेड डी कंपनी का दाऊद इब्राहिम या महादेव सट्टा एप चलाने वाले सौरभ चंद्राकर।
छत्तीसगढ़ में चिटफंड घोटाले और ऑनलाइन सट्टेबाजी के जरिए हुए वित्तीय अपराधों ने हजारों लोगों को प्रभावित किया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, रायपुर के आसपास के 29 गांवों में चिटफंड कंपनियों ने 10,000 लोगों से लगभग 200 करोड़ रुपये की ठगी की। इन कंपनियों ने बेरोजगार युवाओं को एजेंट बनाकर और आकर्षक रिटर्न का लालच देकर लोगों से पैसा जमा करवाया। उदाहरण के तौर पर, विनायक होम्स एंड रियल स्टेट प्राइवेट लिमिटेड ने 54.38 करोड़ रुपये की ठगी की, जिसके डायरेक्टर जितेंद्र बीसे को 2025 में इंदौर से गिरफ्तार किया गया। 2023 में छत्तीसगढ़ सरकार ने 655 लोगों को गिरफ्तार किया, 76 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति कुर्क की और 30 करोड़ रुपये से ज्यादा निवेशकों को लौटाए। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 81,204 पीडि़तों को 37.92 करोड़ रुपये लौटाने का दावा किया था।
चिटफ़ंड कंपनियों से रकम वापसी के लिए जब पीडि़तों से आवेदन मंगाए गए थे तो 1.93 लाख अर्जियां जमा हुई थी। जिला प्रशासन इसमें से केवल 20 हजार लोगों को ही रकम वापस कर पाया है। एक व्यक्ति को 10 से 50 हजार रुपए तक ही वापस मिले।
छत्तीसगढ़ और भारत में चिटफंड, म्यूचुअल फंड और वित्तीय घोटालों की वर्तमान स्थिति क्या है यह भी एक अहम सवाल है। भारत में वित्तीय घोटाले, विशेष रूप से चिटफंड और अन्य अनियमित निवेश योजनाओं के माध्यम से, दशकों से आम लोगों, विशेषकर निम्न और मध्यम वर्ग को प्रभावित करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में जहां आर्थिक जागरूकता और वित्तीय साक्षरता कम है, चिटफंड कंपनियों और फर्जी निवेश योजनाओं ने लाखों लोगों को ठगा है। म्यूचुअल फंड, जो एक विनियमित निवेश साधन है, को भी कई बार फर्जी योजनाओं के साथ जोड़कर लोगों को गुमराह किया जाता है।
छत्तीसगढ़ में चिटफंड घोटाले पिछले दो दशकों में एक गंभीर समस्या बन चुके हैं। ये कंपनियां उच्च रिटर्न का वादा करके बेरोजगार युवाओं को एजेंट बनाती हैं और गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों से पैसा जमा करवाती हैं। यदि हम भारत में चिटफंड और वित्तीय घोटाले की बात करें तो चिटफंड और अन्य अनियमित निवेश योजनाएं भारत के कई राज्यों में फैली हुई हैं, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और उत्तर प्रदेश में। ये घोटाले सामान्यत: पोंजी स्कीम के रूप में संचालित होते हैं, जहां नए निवेशकों के पैसे से पुराने निवेशकों को रिटर्न दिया जाता है। पश्चिम बंगाल के सारदा घोटाले में बहुत सारे नेताओं के खिलाफ कार्यवाही हुई। यह मामला केंद्र और राज्य सरकार के बीच तनाव का कारण भी बना। सारदा चिटफंड घोटाला 2013 में सामने आया। यह घोटाला 20,000-30,000 करोड़ रुपये का था। लाखों निवेशकों को ठगा गया और कई राजनीतिक कनेक्शन उजागर हुए। सीबीआई और ईडी ने जांच की, लेकिन पीडि़तों को पूरी राशि वापस नहीं मिली। पश्चिम बंगाल का रोज वैली घोटाला 17,000 करोड़ रुपये की ठगी का था। कंपनी ने होटल और रियल एस्टेट के नाम पर निवेशकों से पैसा जमा करवाया। पल्र्स ग्रुप उत्तर भारत ने 45,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया, जिसमें 5.5 करोड़ निवेशक प्रभावित हुए। कंपनी ने कृषि और रियल एस्टेट योजनाओं के नाम पर ठगी की। आईकोर ग्रुप (ओडिशा) ने 600 करोड़ रुपये की ठगी की, जिसमें छोटे निवेशकों को निशाना बनाया गया। इस तरह के घोटालों से निपटने के लिए 2019 में संसद ने बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स एक्ट पारित किया जो ऐसी योजनाओं पर प्रतिबंध लगाता है। इसके तहत 7 साल तक की सजा और 10 लाख से 25 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया।
2024 में, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कई फर्जी चिटफंड और क्रिप्टो-आधारित पोंजी स्कीम सामने आईं। मध्य प्रदेश में एक क्रिप्टो स्कीम ने 50,000 लोगों से 1,000 करोड़ रुपये ठगे। म्यूचुअल फंड एक विनियमित निवेश साधन है, जिसे सेबी (सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया) नियंत्रित करता है। हालांकि, कई फर्जी कंपनियां म्यूचुअल फंड के नाम का दुरुपयोग करके लोगों को ठगती हैं। वास्तविक म्यूचुअल फंड के मामले में भारत में म्यूचुअल फंड उद्योग 2024 तक 50 लाख करोड़ रुपये से अधिक का हो चुका है। यह निवेशकों के लिए सुरक्षित माना जाता है, बशर्ते सेबी-पंजीकृत फंड हाउस से निवेश किया जाए।
वित्तीय साक्षरता की कमी एक बड़ा कारण है। ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोग सेबी-पंजीकृत योजनाओं और फर्जी योजनाओं में अंतर नहीं समझ पाते। सेबी और आरबीआई के पास संसाधनों की कमी है, जिससे छोटे स्तर की स्कीमों पर नजर रखना मुश्किल है। ऑनलाइन धोखाधड़ी के प्रकरण भी इधर के सालों में बढ़े हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फर्जी योजनाओं का प्रचार बढ़ रहा है, जिसे रोकना चुनौतीपूर्ण है। छत्तीसगढ़ में ऑनलाइन सट्टेबाजी और फर्जी निवेश योजनाओं ने हाल के वर्षों में नई चुनौती पेश की है। ये योजनाएं छोटे लालच (जैसे बोनस या गारंटीड रिटर्न) देकर लोगों को आकर्षित करती हैं। मोडस ऑपरेंडी: स्कैमर टेलीग्राम, व्हाट्सएप और फर्जी वेबसाइट्स के जरिए ऑनलाइन सट्टेबाजी, क्रिप्टो ट्रेडिंग या फर्जी स्टॉक मार्केट योजनाओं का प्रचार करते हैं। लोग छोटी राशि निवेश करते हैं और शुरुआती रिटर्न मिलने पर बड़ा निवेश करते हैं, जिसके बाद कंपनी गायब हो जाती है।
2024 में, भारत में साइबर अपराधों की संख्या 2.5 लाख से अधिक हो गई, जिनमें से 30 फीसदी वित्तीय घोटालों से संबंधित थे। महादेव बेटिंग ऐप घोटाला 6,000 करोड़ रुपये से अधिक का था। इसने ऑनलाइन सट्टेबाजी और मनी लॉन्ड्रिंग का जाल फैलाया। ईडी ने 2023-24 में कई गिरफ्तारियां कीं, लेकिन पीडि़तों को राहत नहीं मिली। तमाम राजनैतिक बयानबाजी और गिरफ्तारियों के बाद भी महादेव एप का संचालन जारी है। इसी तरह 2024 में दिल्ली और मुंबई में कई क्रिप्टो-आधारित पोंजी स्कीम सामने आईं, जिन्होंने 500-1,000 करोड़ रुपये की ठगी की।
छत्तीसगढ़ सरकार ने पीडि़तों को राहत देने के लिए चिटफंड निवेशक संरक्षण कोष स्थापित किया, लेकिन धन की कमी और प्रशासनिक निष्क्रियता के कारण प्रभाव सीमित रहा। अभी तक 150 से अधिक फर्जी चिटफंड कंपनियों के डायरेक्टरों की गिरफ्तारी हुई और 615 करोड़ रुपये लौटाने की योजना बनाई गई। छत्तीसगढ़ और भारत में चिटफंड और अन्य वित्तीय घोटाले एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्या हैं। छत्तीसगढ़ में 500 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी और प्रशासनिक निष्क्रियता ने पीडि़तों का भरोसा तोड़ा है। राष्ट्रीय स्तर पर सारदा, रोज वैली और महादेव बेटिंग जैसे घोटालों ने लाखों लोगों को प्रभावित किया है। म्यूचुअल फंड जैसे विनियमित साधनों का दुरुपयोग और ऑनलाइन सट्टेबाजी स्कीमों का बढ़ता जोखिम स्थिति को और जटिल बनाता है।
सरकार, नियामक और नागरिकों को मिलकर काम करने की जरूरत है। वित्तीय साक्षरता, तेज कार्रवाई और मजबूत कानूनी ढांचा इस समस्या का समाधान कर सकता है। निवेशकों को सलाह है कि वे सेबी/आरबीआई-पंजीकृत योजनाओं में ही निवेश करें और किसी भी उच्च रिटर्न के वादे से सावधान रहें।