Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से-अंधविश्वास की बलि चढ़ती मासूमियत

अंधविश्वास की बलि चढ़ती मासूमियत

-सुभाष मिश्र

भारत एक ऐसा देश है जहां प्रगति और पतन एक साथ सांस लेते हैं। एक ओर हम चंद्रमा और मंगल पर पहुंच रहे हैं, अंतरिक्ष में झंडा गाड़ रहे हैं, तो दूसरी ओर आज भी गांवों में अंधविश्वास की जड़ें इतनी गहरी हैं कि तंत्र-मंत्र के नाम पर मासूम बच्चों और निर्दोष महिलाओं की बलि चढ़ाई जा रही है। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जि़ले के लोरमी ब्लॉक के कोसाबाड़ी गांव में हाल ही में हुई एक दिल दहला देने वाली घटना इस दोहरे चेहरे की सबसे निर्मम मिसाल है। 12 अप्रैल की पूर्णिमा की रात सात वर्षीय मासूम बच्ची लाली गोस्वामी (या लाली माहेश्वरी गोस्वामी) का अपहरण उसके ही रिश्तेदारों ने किया। तंत्र-मंत्र के ज़रिए गढ़े खजाने की प्राप्ति के लिए उसे श्मशान घाट ले जाकर नरबलि दे दी गई।

एक महीने बाद श्मशान में मिले नरकंकाल की डीएनए जांच ने इस अपराध की पुष्टि की और चार महीने की जांच के बाद मुंगेली पुलिस ने पांच आरोपियों – बच्ची के चचेरे भाई, भाभी, एक तांत्रिक और दो अन्य लोगों को गिरफ्तार किया। ब्रेन मैपिंग और नार्को टेस्ट से अपराध की भयावह सच्चाई सामने आई। घटना को लेकर छत्तीसगढ़ की राजनीति भी गरमा गई। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के नेतृत्व में ‘बेटी बचाओ न्याय यात्रा’ कोसाबाड़ी से लोरमी तक निकाली गई।

यह पहली घटना बिल्कुल नहीं है। छत्तीसगढ़ और भारत के अन्य राज्यों में जादू-टोना, टोनही, भूत-प्रेत, और तंत्र-मंत्र के नाम पर हत्या, प्रताडऩा और सामाजिक बहिष्कार की घटनाएं बार-बार सामने आती रही हैं। दुर्ग, रायगढ़, बस्तर, सरगुजा में पिछले कुछ सप्ताहों में महिलाओं को टोनही बताकर मारने या सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की खबरें आई हैं। 2010-2020 के बीच राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 200 से अधिक लोगों की हत्या अंधविश्वास के कारण हुई। इनमें से बड़ी संख्या महिलाओं की थी जिन्हें ‘डायन’ या ‘टोनही’ बताया गया। अकेले छत्तीसगढ़ में पिछले 10 वर्षों में 250 से अधिक महिलाएं टोनही के शक में प्रताडि़त हुईं और इनमें से 100 से ज्यादा की हत्या कर दी गई। 2023 में छत्तीसगढ़ में ऐसी 17 घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें अंधविश्वास के कारण हत्या, हमला या सामाजिक बहिष्कार हुआ।

छत्तीसगढ़ में डॉ. दिनेश मिश्र जैसे सामाजिक कार्यकर्ता अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के जरिए वर्षों से जागरूकता अभियान चला रहे हैं। हाल ही में हरेली अमावस्या की रात समिति ने अमलेश्वर, मोहदा, पिरदा, हरदी, कंडारका समेत 10 से अधिक गांवों में रात्रि भ्रमण कर लोगों से संवाद किया। ग्रामीणों ने कहीं-कहीं टोनही और तांत्रिक गतिविधियों में विश्वास होने की बात स्वीकारी, लेकिन कोई चमत्कारिक घटना नहीं देखी गई। डॉ. मिश्र स्पष्ट करते हैं कि सावन माह में बरसात, नमी और उमस के कारण बीमारियाँ (जैसे मलेरिया, डेंगू, वायरल फीवर) तेजी से फैलती हैं। पर अज्ञानवश इन बीमारियों को जादू-टोना या टोनही से जोडक़र देखा जाता है, जिससे निर्दोष महिलाओं को निशाना बनाया जाता है।

महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में अंधविश्वास विरोधी कानून लागू हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में इस दिशा में सख्त क़ानून अब तक नहीं बना है। मौजूदा कानूनों की ढील और सामाजिक चुप्पी अंधविश्वास को बढ़ावा देती है। नरेंद्र दाभोलकर जैसे तर्कशील विचारक, जिन्होंने अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, उनकी 2013 में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
कब तक भारत जैसा विज्ञान और तकनीक में अग्रणी देश लाली जैसी मासूमों की बलि देता रहेगा? सिर्फ राजनीतिक यात्राओं और बयानों से काम नहीं चलेगा। ज़रूरत है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को शिक्षा में शामिल किया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और सूचना का आधार मजबूत हो। तांत्रिकों और ढोंगियों पर कठोर कार्रवाई की जाए। अंधविश्वास विरोधी कानून लाकर सख्ती से लागू किया जाए।
यदि हम समाज के इन अंधेरे कोनों को रोशन नहीं कर पाए, तो अंतरिक्ष में चांद की धरती पर चलने की हमारी कामयाबी सिर्फ एक झूठा चमकता चेहरा बनकर रह जाएगी।

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