Editor-in-chief सुभाष मिश्र की कलम से – छत्तीसगढ़ में धान खरीदी अहम मुद्दा

Editor-in-chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़, जिसे ‘धान का कटोरा कहा जाता है, भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां की अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना में धान की खेती का विशेष स्थान है। चाहे कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में हो, धान खरीदी नीति राज्य की प्राथमिकता रही है। वर्तमान में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार ने धान खरीदी को न केवल किसानों की आर्थिक समृद्धि से जोड़ा है, बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में स्थापित किया है। 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदी और कृषक उन्नति योजना के तहत किए गए प्रयासों ने छत्तीसगढ़ को देश में एक अग्रणी राज्य बना दिया है। हालांकि, इस नीति के आर्थिक प्रभाव और दीर्घकालिक स्थिरता पर भी विचार करना आवश्यक है।
छत्तीसगढ़ देश का एकमात्र राज्य है जो किसानों से 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीद रहा है। खरीफ विपणन वर्ष 2024-25 में राज्य ने 25.72 लाख किसानों से 149.25 लाख मीट्रिक टन धान खरीदकर देश में सर्वाधिक धान खरीदी का रिकॉर्ड बनाया। प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान की खरीदी की सीमा निर्धारित कर किसानों को अधिक लाभ सुनिश्चित किया गया।
कृषक उन्नति योजना के तहत 24.75 लाख किसानों को धान की अंतर राशि (केंद्र सरकार के समर्थन मूल्य 2300 रुपये और राज्य के 3100 रुपये के बीच का अंतर) के रूप में 13,320 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। केंद्र सरकार के समर्थन मूल्य में 67 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि के साथ राज्य सरकार ने अंतर राशि (800 रुपये प्रति क्विंटल) का भुगतान 7-11 फरवरी 2025 के बीच किया। 13 लाख किसानों को पिछले दो वर्षों का बकाया धान बोनस 3716 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। 72 घंटे के भीतर भुगतान की व्यवस्था ने किसानों का भरोसा बढ़ाया।
छत्तीसगढ़ केंद्रीय कोटे में धान के योगदान में देश में दूसरे स्थान पर है। 2739 खरीदी केंद्रों के माध्यम से धान खरीदी को सुगम बनाया गया। धान खरीदी पर राज्य का बड़ा राजस्व खर्च हो रहा है, जिससे आर्थिक घाटे की चिंता उठ रही है। 149.25 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी और बोनस भुगतान के लिए हजारों करोड़ रुपये का बजट आबंटन हुआ है।
छत्तीसगढ़ सरकार की धान खरीदी नीति और कृषक उन्नति योजना ने निस्संदेह किसानों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाया है। 3100 रुपये प्रति क्विंटल का समर्थन मूल्य और 21 क्विंटल प्रति एकड़ की खरीदी सीमा ने खेती को लाभकारी बनाया है। 25.72 लाख किसानों की भागीदारी इस नीति की लोकप्रियता और विश्वसनीयता को दर्शाती है। बकाया बोनस और अंतर राशि के भुगतान ने किसानों के बीच सरकार के प्रति भरोसा बढ़ाया है, जिसे मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने मोदी की गारंटी के रूप में प्रचारित किया।
हालांकि, इस नीति के कुछ दीर्घकालिक चुनौतियां भी हैं। धान खरीदी पर भारी राजस्व व्यय से राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर खरीदी और भंडारण की लागत, साथ ही कस्टम मिलिंग और वितरण की प्रक्रिया, राज्य को आर्थिक घाटे की ओर ले जा सकती है। इसके अलावा केंद्र सरकार के समर्थन मूल्य (2300 रुपये) और राज्य के समर्थन मूल्य (3100 रुपये) के बीच की अंतर राशि का बोझ राज्य सरकार को ही उठाना पड़ता है जो दीर्घकाल में टिकाऊ नहीं हो सकता।
धान के अतिरिक्त अन्य फसलों को प्रोत्साहन देकर किसानों की आय में विविधता लाई जा सकती है, जिससे एकमात्र फसल पर निर्भरता कम होगी। धान के भंडारण और कस्टम मिलिंग की प्रक्रिया को और कुशल बनाने के लिए तकनीकी नवाचार और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाई जाए। अंतर राशि के भुगतान के लिए केंद्र सरकार के साथ समन्वय बढ़ाकर राज्य के वित्तीय बोझ को कम किया जा सकता है। साथ ही किसानों को उन्नत कृषि तकनीकों और बाजार-आधारित दृष्टिकोण के लिए प्रशिक्षित कर उनकी आय को और बढ़ाया जा सकता है।
सीएम विष्णुदेव साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ की धान खरीदी नीति और कृषक उन्नति योजना ने किसानों के लिए एक नया अध्याय शुरू किया है। किसान सम्मान निधि के 6000 रुपए किसानों को मिल रहे हैं, इससे वो खाद-बीज खरीद रहे हैं। छत्तीसगढ़ में 26 लाख किसानों को इसका लाभ मिल रहा है। 3100 रुपये प्रति क्विंटल की दर और रिकॉर्ड खरीदी ने न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत किया, बल्कि छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय स्तर पर एक मॉडल राज्य के रूप में स्थापित किया।
फिर भी इस नीति की दीर्घकालिक सफलता के लिए आर्थिक स्थिरता और कृषि विविधीकरण पर ध्यान देना होगा। यदि सरकार इन चुनौतियों का समाधान कर लेती है, तो छत्तीसगढ़ न केवल ‘धान का कटोराÓ रहेगा, बल्कि किसानों की समृद्धि का प्रतीक भी बनेगा।