-सुभाष मिश्र
हमारे अंतरिक्ष, ब्रह्मांड को लेकर बहुत सी जिज्ञासाएँ हैं, बहुत सी मिथक कथाएं और धार्मिक कर्मकांड हैं किन्तु विज्ञान ने मनुष्य को चन्द्रमा पर, अंतरिक्ष पर भेजकर बहुत सी धारणाओं को तोड़ा है। शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष से वापसी एक नये तरह के वैज्ञानिक अध्ययन और निष्कर्षो को जन्म देगी। भारत के गगनयान मिशन की तैयारी में यह यात्रा बहुत मददगार साबित होगी। शुभांशु पहले भारतीय हैं जो आईएसएस पर पायलट बने। यह अनुभव 2026 के गगनयान मिशन के लिए ट्रेनिंग का हिस्सा है, जहां भारत खुद का मानवयुक्त मिशन भेजेगा। वे 7 भारत-संबंधित प्रयोग किए, जैसे माइक्रोग्रैविटी में पौधों की ग्रोथ और स्वास्थ्य अध्ययन। इससे इसरो को डाटा मिलेगा। यह अंतरिक्ष यात्रा अंतरराष्ट्रीय सहयोग की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। मिशन नासा और इसरो के बीच साझेदारी का नतीजा है। प्राइवेट कंपनी होने के बावजूद, यह भारत को स्पेस टेक्नोलॉजी में मजबूत बनाता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इससे भारत की आकांक्षाएं नई ऊंचाइयों पर पहुंचीं। यह भारतवासियों के लिए राष्ट्रीय गौरव का विषय है। 1984 में राकेश शर्मा के बाद दूसरा भारतीय आईएसएस पर गया। शुभांशु ने अंतरिक्ष से सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा कहा, जो देशभक्ति को बढ़ावा देता है। यह भारत को स्पेस पावर के रूप में स्थापित करता है। कुल मिलाकर, यह मिशन भारत की वैज्ञानिक क्षमता को दुनिया में दिखाता है और युवाओं को स्पेस साइंस की ओर आकर्षित करता है।
शुभांशु और उनके साथियों की इस यात्रा और हौसले को देखकर प्रसंगवश यह शेर याद आता है –
गर देखना चाहते हो मेरी उड़ान को
तो पहले जाकर थोड़ा ऊँचा करो आसमान को ।
शुभांशु शुक्ला ने 15 जुलाई 2025 को स्पेसएक्स ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट से कैलिफोर्निया तट पर स्प्लैशडाउन (पानी में उतरना) के साथ सफल वापसी की। वे और उनकी टीम ने 18 दिन अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर बिताए। यह एक्सियम-4 मिशन का हिस्सा था, जो एक प्राइवेट कंपनी (एक्सियम स्पेस) द्वारा चलाया गया। यह मिशन प्राइवेट कंपनी एक्सियम स्पेस और स्पेस-4 द्वारा चलाया गया, लेकिन उत्साह के कई कारण हैं, जिनमें भारतीय प्रतिनिधित्व शुभांशु भारतीय वायुसेना के अधिकारी हैं, और इसरो ने उन्हें चुना। यह भारत का आधिकारिक मिशन जैसा लगता है। लोग इसे इंडिया इन स्पेस कहते हैं। सोशल मीडिया और मीडिया कवरेज में शुभांशु छाये हुए हैं। एक्स पर शुभांशु शुक्ला और एक्सियम मिशन ट्रेंड कर रहे हैं। लोग वीडियो शेयर कर रहे हैं । एक्स शुभांशु की स्माइल वाली फोटोज, परिवार की खुशी, और वेलकम बैक हीरो जैसे मैसेज। प्रधानमंत्री मोदी और मंत्री भी बधाई दे रहे हैं। युवा इसे सपनों की उड़ान मानते हैं। स्कूलों और साइंस सेंटर्स में कार्यक्रम हो रहे हैं, जैसे रॉकेट लॉन्च डेमो। लोग कहते हैं कि यह गरीब देश से स्पेस पावर बनने की कहानी है। हमारे देश सहित दुनिया के बड़े भूभाग में अंतरिक्ष और ब्रह्मांड से जुड़े मिथक जैसे अंतरिक्ष में भूत या ग्रहों का प्रभाव प्रचलित हैं। यह सही है कि
विज्ञान की सफलताएं अंधविश्वास कम करती हैं। शुभांशु की यात्रा दिखाती है कि अंतरिक्ष वास्तविक है, न कि सिर्फ कथाएं। युवा अब साइंस चुनेंगे, जैसे गगनयान से प्रेरित होकर। इतिहास में चंद्रयान ने चंद्रमा पर पानी जैसे मिथकों को तोड़ा। अंधविश्वास गहरे सांस्कृतिक हैं। जैसे ज्योतिष अभी भी लोकप्रिय है। विज्ञान शिक्षा बढ़ाने से धीरे-धीरे बदलाव आएगा, लेकिन मिथक कहानियों के रूप में बने रहेंगे। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसे मिशन जिज्ञासा बढ़ाते हैं, लेकिन सामाजिक बदलाव समय लेता है। गगनयान जैसे मिशन से स्कूलों में स्पेस एजुकेशन बढ़ेगा, जो अंधविश्वास कम करेगा। लेकिन पूर्ण समाप्ति के लिए समाजिक जागरूकता जरूरी है।
इस संबंध में वैज्ञानिक कवि, चिंतक गौहर रज़ा ने अपनी किताब मिथकों से विज्ञान तक, ब्रम्हाांड के विकास की बदलती कहानी में बहुत सारी धारणाओं को तोड़ा है फिर भी अपनी किताब में शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टि शीर्षक से कहते हैं कि आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे (1861-1944) को आधुनिक भारतीय रसायन विज्ञान का पिता भी कहा जाता है। अपने एक बांग्ला लेख सत्येर संधान (सत्य की तलाश) में वह लिखते हैं मैं आधी सदी से पढ़ा रहा है। इस अवधि में मैंने हज़ारों छात्रों को बताया है कि सूर्य और चंद्र ग्रहण राहू और केतु राक्षसों द्वारा सूर्य और चंद्रमा को खाने के कारण नहीं होते हैं। और यह कि सूर्य और चंद्रमा तथा मनुष्यों और राक्षसों की प्रार्थनाओं के कारण ग्रहण समाप्त नहीं होते हैं। ये विश्वास झूठे हैं और कल्पना के उत्पाद हैं। यह मैं आधी सदी से छात्नों को बता रहा हूँ। उन्होंने सुना और मान गए। लेकिन ग्रहण के दौरान जैसे ही घरों में शंख बजाया जाता है, सड़कों पर प्रार्थना जुलूस निकलते हैं ये पढ़े-लिखे लोग भी जुलूस में शामिल हो जाते हैं और अपना खाना फेंक देते हैं। यदि लोग इस प्रकार के पाखंड में लिप्त हैं, और सत्य को खुले तौर पर स्वीकार नहीं करते तो देश की मुक्ति असंभव है। (बांग्ला से अंग्रेज़ी में अनुवाद: सौमित्र बनर्जी, अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद: गौहर रज़ा द्वारा)।
पी. सी. रे की कही इस बात का आज भी हमें सामना करना पड़ता है। वे आम नागरिकों को क्या कहें, जब वैज्ञानिक और विज्ञान के शोधकर्ता अंधविश्वास के रास्ते पर चलते हुए दिखाई देते हैं। आज भी ऐसे वैज्ञानिक जो ग्रहण के वक्त खाना नहीं खाते, अपने यंत्नों पर प्रयोग शुरू करने से पहले नारियल फोड़ते हैं, दुआएँ पढ़ते हैं, स्वस्तिक का निशान बनाते हैं। इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनिज़शन) आज भी रॉकेट और सैटेलाइट के मॉडल को, प्रक्षेपण से पहले, तिरुपति भेजता है।
शुभांशु की पृथ्वी पर सकुशल वापसी भारत को मजबूत बनाती है। वैज्ञानिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से शुभांशु हीरो हैं!