Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – भारत में अश्लीलता का बढ़ता बाजार

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - भारत में अश्लीलता का बढ़ता बाजार

-सुभाष मिश्र

अश्लीलता के पक्षधर एक तर्क दिया करते हैं कि जहां बहुत वर्जनाएं होती हैं, सेक्स को लेकर परहेज पाला जाता है, हद से ज्यादा गोपनीय रखा जाता है तो वहां इसके लिए उत्सुकता बढ़ती है। उसे देखने सुनने की प्रवृत्ति और लालसा बढ़ती है। लेकिन यह काफी हद तक भ्रम है। पोर्न साहित्य, पोर्न फिल्म वालों का ही प्रचार का एक हिस्सा है। पश्चिमी देशों में तो बहुत खुलापन है। भारत से ज्यादा वहां की फिल्में, वहां का साहित्य, मीडिया यहां तक की समाज में भी बहुत खुलापन है लेकिन पश्चिम के समाज में भी अश्लीलता और बच्चों में कम उम्र में सेक्स को लेकर जिज्ञासा और लालसा बढऩे लगी है। स्कूली बच्चों के न सिर्फ दैहिक संबंध बनने लगे हैं बल्कि पश्चिमी समाज के लिए चिंता इसलिए बढ़ गई है कि स्कूली लड़कियां अवैध बच्चों की मां बनने लगी हैं। पश्चिम में को-एजुकेशन को बंद करने पर विचार किया जा रहा है। अश्लील फिल्में, सीरीज, पुस्तकें इन सबके लिए एशिया भी एक बड़ा बाजार है। इन सब में मुनाफा बेहिसाब है और लागत बहुत कम। ऐसी फिल्मों और सीरीज के लिए आउटडोर शूटिंग की जरूरत नहीं पड़ती है। बहुत कम फीस में कलाकार मिल जाते हैं। कम लागत में फि़ल्में और सीरीज बन जाती है। ऐसी फिल्मों और सीरीज के दर्शक उतावले रहते हैं। इस कमजोरी को इस व्यवसाय में लगे लोगों ने समझ लिया है। कुछ समय पहले तो शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा पर भी ऐसी फिल्मों को बनाने के आरोप लगे थे।

भारत, जहां सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिकता की जड़ें गहरी हैं, वहां डिजिटल युग ने एक नई चुनौती पेश की है—अश्लीलता का अनियंत्रित प्रसार। भारत और पश्चिम के अनेक ओटीटी प्लेटफॉम्र्स पर प्रतिबंध के लिए मांग लंबे समय से की जा रही है। हाल ही में भारत सरकार द्वारा 25 ओटीटी प्लेटफॉम्र्स को अश्लील कंटेंट के आरोप में प्रतिबंधित किए जाने की कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन यह मात्र एक शुरुआत है। ऑल्ट, उल्लू, बिग शॉट्स, डेसिफ्लिक्स जैसे प्लेटफॉम्र्स जो मुख्य रूप से सॉफ्ट पोर्न और अशोभनीय वेब सीरीज परोसते थे, अब ब्लॉक हैं। इनका कंटेंट न केवल महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाता था, बल्कि युवा पीढ़ी को विकृत धारणाओं से भर रहा था। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह प्रतिबंध पर्याप्त है? यूट्यूब पर सैकड़ों दो अर्थी वीडियो, शॉर्ट्स और गाने और अश्लील क्लिप्स बेरोकटोक चल रहे हैं जो अश्लीलता की सीमा छूते हैं। क्या इन्हें भी इसी कड़ी नजर से देखा जाएगा? क्या इन पर भी कोई कार्रवाई संभव है?

कानूनी प्रावधान स्पष्ट हैं। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 292 और 294, आईटी एक्ट की धारा 67 तथा महिलाओं की अशोभनीय प्रतिनिधित्व निषेध अधिनियम 1986 अश्लील सामग्री को सख्ती से नियंत्रित करते हैं। आईटी रूल्स 2021 के तहत ओटीटटी प्लेटफॉम्र्स को सेल्फ रेगुलेशन की जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन उल्लंघन पर ब्लॉकिंग का प्रावधान है। फिर भी समस्या जड़ में है अश्लीलता का व्यापार फल-फूल रहा है। पोर्नोग्राफी का बाजार बढ़ रहा है। जहां ओटीटटी प्लेटफॉम्र्स लाखों यूजर्स को आकर्षित कर रहे थे। 2025 में डिजिटल पोर्न की खपत में 20-30फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जो युवाओं के बीच विशेष रूप से चिंताजनक है। यह न केवल अवैध है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है। बच्चों से लेकर युवाओं में भी नैतिकता के बंधन टूट रहे हैं। रिश्ते बिगड़ रहे हैं और बलात्कार की घटनाओं के पीछे भी इसको एक कारण माना जा रहा है।

सरकार का क्रैकडाउन जारी रहना चाहिए। ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल 2025 जैसे प्रस्ताव ओटीटी को और सख्ती से बांध सकते हैं। लेकिन केवल कानून काफी नहीं। यूट्यूब जैसे प्लेटफॉम्र्स पर मॉडरेशन को मजबूत करने की जरूरत है, जहां शिकायत पर कार्रवाई तो होती है, लेकिन सक्रिय निगरानी की कमी है। छोटे प्लेटफॉम्र्स नए डोमेन पर वापस आ सकते हैं, इसलिए इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को ब्लॉकिंग में सहयोग बढ़ाना होगा। सर्वे बताते हैं कि 18-25 आयु वर्ग में 40 फीसदी से अधिक लोग पोर्न देखते हैं, इसे सामान्य मानते हुए। लेकिन यह स्वीकृति खतरनाक है। यह महिलाओं की छबि को बिगाड़ता है और उन्हें वस्तु की तरह देखने का नजरिया दे रहा है। पॉर्न कल्चर जेंडर असमानता बढ़ाती है और यौन हिंसा जैसे अपराधों को प्रोत्साहित करती है। पारंपरिक भारतीय समाज, जहां सेक्स एक टैबू है, अब सांस्कृतिक संघर्ष का सामना कर रहा है। परिवार टूट रहे हैं, नैतिक मूल्य कमजोर हो रहे हैं।

मनोवैज्ञानिक रूप से, अश्लील कंटेंट व्यसन का कारण बनता है। यह युवाओं में सेक्स की विकृत धारणा पैदा करता है, जिससे रिलेशनशिप में असंतोष, डिप्रेशन और संवेदनहीनता बढ़ती है। लंबे समय में यह मानसिक स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकता है। विवाह और एक ही स्त्री का रिश्ता पुरुषों में ऊब पैदा कर रहा है। उसे मनोवैज्ञानिक रूप से बीमार कर रहा है। अधिकांश पुरुषों में स्त्रियों के बदलाव की इच्छा पैदा कर रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह सब अनियंत्रित रहा, तो समाज की नींव हिल जाएगी।

समय आ गया है कि हम केवल सरकार पर निर्भर न रहें। माता-पिता, शिक्षक और समाज को जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। डिजिटल साक्षरता बढ़ाएं, पैरेंटल कंट्रोल का इस्तेमाल करें। अश्लीलता का बाजार तभी रुकेगा जब मांग कम होगी। भारत को अपनी सांस्कृतिक विरासत बचानी है, न कि पश्चिमी प्रभाव में बह जाना। यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है—क्या हम इसके लिए तैयार हैं?

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