-सुभाष मिश्र
आज की दुनिया, जिसे हम ग्लोबल विलेज कहते हैं, कई क्षेत्रीय और वैश्विक संघर्षों के दौर से गुजर रही है। ईरान-इजरायल, रूस-यूक्रेन, भारत-पाकिस्तान जैसे तनावों के साथ-साथ अमेरिका और चीन के बीच बढ़ता वैचारिक और सामरिक टकराव वैश्विक शांति के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर रहा है।
यदि हम वर्तमान समय में चल रहे ईरान-इजरायल युद्ध की बात करें तो हाल के समाचारों के अनुसार, इजरायल ने ईरान के परमाणु, मिसाइल और सैन्य ठिकानों पर ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयनÓ के तहत बड़े पैमाने पर हमले किए हैं। जवाब में ईरान ने तेल अवीव पर बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं। रूस, चीन और पाकिस्तान ने ईरान को समर्थन देने का दावा किया है, जबकि अमेरिका और नाटो इजरायल के पक्ष में हैं। यह स्थिति क्षेत्रीय युद्ध को वैश्विक संघर्ष में बदलने की आशंका पैदा कर रही है। वहीं भारत ने इस संघर्ष में शांति की अपील की है, लेकिन रूस ने इजरायल के हमले को अवैध ठहराया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध की बात की जाए तो यह युद्ध 2022 में शुरू हुआ। यह युद्ध अब तीसरे वर्ष में है। रूस ने यूक्रेन के कई शहरों पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन यूक्रेन ने नाटो और अमेरिका के समर्थन से कड़ा प्रतिरोध दिखाया है। रूस ने हाल ही में यूक्रेन के खिलाफ नए हथियारों और रणनीतियों का उपयोग शुरू किया है, जिससे युद्ध और जटिल हो गया है। इस युद्ध ने ऊर्जा संकट, खाद्य असुरक्षा और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान पैदा किया है। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव बहुत पुराना है और यह तनाव युद्ध के साथ-साथ सीमा पर आंतरिक तनाव और आतंकी गतिविधियों के रूप में अक्सर दिखाई देता है। भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर तनाव बना रहता है। हाल ही में पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम उल्लंघन की घटनाएं सामने आईं, जिनका भारत ने कड़ा जवाब दिया। भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध के हालात से दक्षिण एशिया में स्थिरता प्रभावित होती है और दोनों देशों के संसाधनों को विकास के बजाय रक्षा पर केंद्रित करता है। इसी तरह अमेरिका और चीन के बीच ताइवान, दक्षिण चीन सागर और व्यापार को लेकर तनाव बढ़ रहा है। दोनों देश सैन्य और तकनीकी श्रेष्ठता के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे है। चीन ने हाल ही में ताइवान के आसपास सैन्य अभ्यास तेज किए हैं, जबकि अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ प्रशांत क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति बढ़ाई है। यह तनाव वैश्विक अर्थव्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है। खासकर सेमीकंडक्टर और तकनीकी क्षेत्रों में।
यदि हम युद्ध और तनाव के कारण की पड़ताल करें तो इसमें राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं दिखाई देती हैं। रूस, यूक्रेन पर नियंत्रण चाहता है ताकि नाटो का विस्तार रोका जा सके। इसी तरह ईरान और इजरायल के बीच तनाव मध्य पूर्व में प्रभुत्व की लड़ाई का हिस्सा है। चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है, जबकि अमेरिका ताइवान को समर्थन देकर चीन की बढ़ती शक्ति को संतुलित करना चाहता है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने तेल और गैस की वैश्विक आपूर्ति को प्रभावित किया है। ईरान और इजरायल के बीच युद्ध से तेल की कीमतों में और उछाल आ सकता है। भारत-पाकिस्तान तनाव में जल संसाधन (जैसे सिंधु नदी समझौता) एक प्रमुख मुद्दा है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर इजरायल और अमेरिका चिंतित हैं, जिसके कारण सैन्य कार्रवाइयां बढ़ी हैं। रूस और चीन अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन कर वैश्विक मंच पर प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। कुछ हद तक इस तरह के युद्ध में वैचारिक और धार्मिक मतभेद भी कारण होते हैं। ईरान और इजरायल के बीच धार्मिक और वैचारिक मतभेद (शिया-सुन्नी, यहूदी-इस्लाम) तनाव को बढ़ाते हैं। भारत-पाकिस्तान तनाव में ऐतिहासिक और धार्मिक मुद्दे, जैसे कश्मीर, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
युद्धों के परिणाम और संभावित परिणति की बात की जाए तो सबसे ज़्यादा इसमें मानवीय क्षति होती है जिसकी भरपाई मुश्किल है। रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक लाखों लोग मारे जा चुके हैं और लाखों विस्थापित हुए हैं। ईरान-इजरायल युद्ध में भी नागरिकों की जान जोखिम में है, क्योंकि दोनों देश घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हमले कर रहे हैं। भारत-पाकिस्तान तनाव बढऩे पर दक्षिण एशिया में बड़े पैमाने पर मानवीय संकट पैदा हो सकता है। इसके अलावा युद्ध का आर्थिक प्रभाव भी गहरा होता है। इन युद्धों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर किया है। तेल और गैस की कीमतें बढऩे से मुद्रास्फीति बढ़ी है, जो गरीब देशों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। भारत जैसे विकासशील देशों को रक्षा बजट बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, जिससे सामाजिक विकास पर असर पड़ता है। युद्ध से वैश्विक अस्थिरता भी पैदा होती है। ईरान-इजरायल युद्ध में रूस और चीन के शामिल होने की आशंका से तीसरे विश्व युद्ध की चर्चा शुरू हो गई है। अमेरिका और नाटो के बढ़ते हस्तक्षेप से वैश्विक शक्ति संतुलन बिगड़ सकता है। हिरोशिमा और नागासाकी की तस्वीर हमें आज भी परेशान करती है। युद्ध से पर्यावरणीय नुकसान होता है। युद्धों में प्रयुक्त हथियार और बम विस्फोट पर्यावरण को नष्ट करते हैं। यूक्रेन में हुए हमलों से मिट्टी और जल संसाधन दूषित हुए हैं। ईरान के तेल क्षेत्रों पर हमले से तेल रिसाव का खतरा है, जो खाड़ी क्षेत्र के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है।
वर्तमान वैश्विक युद्ध और तनाव भू-राजनीति, संसाधन, सैन्य श्रेष्ठता और वैचारिक मतभेदों का परिणाम हैं। इनका सबसे बड़ा प्रभाव निर्दोष नागरिकों, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर पड़ता है। वर्तमान दौर में युध्द के हालात को कूटनीति और संवाद के ज़रिए टाला जा सकता है। भारत जैसे तटस्थ देश शांति वार्ता को बढ़ावा दे सकते हैं, जैसा कि उसने ईरान-इजरायल मामले में किया। संयुक्त राष्ट्र और अन्य संगठनों को युद्धविराम और मानवीय सहायता के लिए सक्रिय होना चाहिए। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को स्थिर करने के लिए देशों को व्यापार और संसाधन साझा करने पर ध्यान देना चाहिए। ग्लोबल विलेज के नागरिकों को युद्ध के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक करना होगा ताकि शांति के लिए दबाव बनाया जा सके।
युद्ध मानवता के लिए सबसे बड़ी त्रासदी है। यदि विश्व समुदाय एकजुट होकर कूटनीति और सहयोग पर ध्यान दें तो ग्लोबल विलेज का सपना साकार हो सकता है। अन्यथा यह अस्थिरता और विनाश की ओर बढ़ता रहेगा।
प्रसंगवश-अच्युतानंद मिश्र की युद्घ पर लिखी गई 13 कविताओं की श्रृंखला में से दो कविताएं-
एक
धृतराष्ट्र की तरह तुम तो
अंधे नहीं थे अर्जुन
फिर क्यों देखते रहे सिफऱ्
मछली की आँख में?
दो
अर्जुन न्याय के लिए लड़ता है
अठारह अक्षौहिणी सेना खड़ी हैं
अन्याय की तरफ
सैनिक नहीं लडऩा चाहते थे युद्ध
उन्हें याद दिलाया गया
कर्तव्य सैनिक का
कहा गया कर्तव्य से विमुख होना
अन्याय है
अर्जुन पूछता है कृष्ण से
क्या हर बार जीत न्याय की होती है
हारता है अन्याय?
नहीं! कृष्ण ठीक करते हुए कहते हैं :
जहां जीत है
वहीं न्याय है
हारना अन्याय
अठारह अक्षौहिणी सेना खड़ी है
अन्याय की तरफ़
अर्जुन जीत के लिए नहीं
न्याय के लिए लड़ता है।।