Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- प्रयागराज में आस्था का महाकुंभ संपन्न

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

0 नासिक, उज्जैन में कुंभ की तैयारी

-सुभाष मिश्र

महाशिवरात्रि के साथ प्रयागराज का महाकुंभ संपन्न हुआ। इस महाकुंभ में चीन को छोड़कर पूरी दुनिया के लगभग दो सौ देशों की अलग-अलग आबादी से ज़्यादा लोगों ने गंगा स्नान कर लिया। यह अपने आप में विश्व रिकॉर्ड है। अभी व्यवस्था, मैनेजमेंट को लेकर भी बहुत से रिकॉर्ड सामने आयेंगे। इस महाकुंभ की छाया उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ में और नासिक के कुंभ में भी दिखाई देगी। दोनों ही जगह बीजेपी की सरकार है, वहाँ के मुख्यमंत्रियों को योगी आदित्यनाथ की तरह मैनेजमेंट करना होगा। पार्टी और सरकार से लेकर खुद मुख्यमंत्री तक की छवि ऐसे धार्मिक आयोजनों से चमकने लगती है, यह प्रयागराज के कुंभ ने प्रमाणित कर दिया है।
विदेशी मीडिया संस्थान वॉल स्ट्रीट जर्नल ने महाकुंभ की तारीफ करते हुए कहा, महाकुंभ में अमेरिका की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा श्रद्धालु आए। कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की गिनती के लिए यूपी सरकार ने हाईटेक उपकरणों का सहारा लिया है और इस बार एआई बेस्ड कैमरे की मदद से लोगों की गिनती की जा रही है।
यदि हम अपने देश की बात करें तो इस महाकुंभ के साथ देश की हिन्दू आबादी दो भागों में पहचानी जायेगी। एक वो जिन्होंने सनातनी परंपरा का सम्मान कर कुंभ में स्नान किया दूसरे जिन्होंने 144 साल बाद आये इस महापुण्य के अवसर को गँवा दिया। कुछ मध्यमार्गी भी थे जिन्होंने आस पड़ोस, रिश्तेदारों, सरकार की पहल से घर में ही गंगा के जल को टंकियों, बाल्टी में मिलाकर स्नान कर पुण्य प्राप्त किया। ऐसे लोग नेकी कर सोशल मीडिया पर डालने में विश्वास करते हैं। बहुत से लोग घर में मॉं-बाप को नहलाते हुए रील बनाकर पोस्ट कर रहे हैं। यह सारे कार्य और कर्मकांड महज आस्था का मामला नहीं है बल्कि आस्था को प्रचारित करके खुद को बड़ा धार्मिक प्रमाणित करने का संतोष हासिल करना भी है। पहले जमाने में भी कुंभ का मेला लगता था, लोग जाते थे, स्नान करते थे लेकिन लोग इस तरह जताते नहीं थे। यह बात जरूर है कि सोशल मीडिया के आने से इस बात के प्रचार को बड़ा माध्यम मिल गया। लेकिन पहले जमाने में लोग कुंभ स्नान करके आते थे तो गांव या शहर में तो दूर पड़ोस में भी जल्दी पता नहीं चल पाता था। यह आस्था का बिल्कुल निजी मामला था। जो कुंभ स्नान करके आ गया उसे पुण्यात्मा और जो स्नान करके नहीं आया उसे पापी समझने की मंशा और प्रचार का उत्साह नहीं था।
इस बात पर गंभीरता पर विचार होना चाहिए कि क्या सिर्फ कुंभ के अवसर पर गंगा में स्नान कर लेने से सारे पाप धुल जाएंगे? जिनके पास अवसर, साधन और पैसा नहीं हैं क्या वे सारे पापी ही रह जाएंगे? मैं यह बात कहने का आशय यह बिल्कुल नहीं है कि कुंभ में स्नान करना अच्छी बात नहीं है। कुंभ में स्नान करना धर्म और आस्था का मामला है और जिनके पास अवसर और साधन हैं उन्हें बिल्कुल जाना चाहिए। लेकिन कुंभ स्नान को लेकर सोशल मीडिया पर नासमझ लोग जिस तरह का प्रचार कर रहे हैं, उससे यह संदेश जाता है कि कुंभ के अवसर पर स्नान कर लेने से पाप धुल जाएंगे, चाहे वह कितना भी बड़ा पापी हो। जबकि सच्चाई तो यह है कि यदि आप कुंभ के बाद भी गंगा स्नान करते हैं तब भी गंगा आपके पाप धोने से इनकार नहीं करेगी। गंगा मां है वह हमेशा सब के प्रति एक जैसा प्रेम और ममता रखती है।
यह बात भी स्पष्ट होनी चाहिए कि गंगा बहुत निश्छल और पवित्र है। अब जरूरी यह है की गंगा स्नान पूरी आस्था और श्रद्धा से होना चाहिए। जो लोग गंगा स्नान के फोटो सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं क्या वे लोग यह भी बताएंगे कि अब वे पूरी तरह से धार्मिक, सहिष्णु और उदार होकर कभी ना झूठ बोलने वाले व्यक्ति में तब्दील हो चुके हैं? वे अब जीवन भर सदाचारी रहेंगे और झूठ बोलने वाले और अपराध करने वालों का साथ नहीं देंगे। क्योंकि इस हिसाब से तो करोड़ों लोगों के कुंभ स्नान कर लेने के बाद तो देश में सत्यवादी और सदाचारी लोगों की संख्या करोड़ों में हो गई है। दरअसल आवश्यक तो यह है की गंगा स्नान के समय डुबकी लगाते ही गंगा मां के सामने यह प्रण करें कि आज के बाद किसी भी तरह के अनाचार, कदाचार और झूठ में शामिल नहीं होंगे। लेकिन सभी जानते हैं कि ऐसा एक या दो प्रतिशत भी संभव नहीं है। कुंभ में गंगा स्नान एक किस्म की धार्मिक औपचारिकता हो गई है। लोगों के सामने गर्व से कहने का यह अवसर उनके पास है कि वे कुंभ स्नान कर आए हैं।
अधिकांश हिन्दू गंगा, यमुना सहित अपने आसपास की नदियों में अपने परिवार जनो की मृत्यु पर जाकर अस्थि विसर्जन करते हैं, मुंडन करके गंगास्नान करते हैं क्योंकि यह हमारी परंपरा और धार्मिक रीतिरिवाजों का हिस्सा है। जो कुछ लोग ऐसा नहीं करते वे परिवारजनों के बीच संदिग्ध हो जाते हैं, भले ही उन्होंने ताजिंदगी माँ-बाप, बड़े भाई-बहन की सेवा की हो। आपकी निष्ठा का आकलन धार्मिक कर्मकाण्डों से आँकने का रिवाज इन दोनों बढ़ गया है।
हमारे देश में पहले साकार और निराकार और अलग-अलग तरीके से ईश्वर को मानने वाले लोग थे। आदिवासी समुदाय तो अभी भी प्रकृति से जुड़ी चीजों को अपने देवी देवता मानते हैं।
महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने यूँ ही नहीं लिखा था
‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखांई तिन तैसी
संत कबीर ने तो खूब लिखा है उनका एक दोहा है
‘मोको कहाँ ढूंढें बन्दे,मैं तो तेरे पास में।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में॥
नहीं प्राण में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड आकाश में।
ना मैं त्रिकुटी भवर में, सब स्वांसो के स्वास में॥
खोजी होए तुरत मिल जाऊं एक पल की ही तलाश में।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विशवास में॥
हमारे देश में ऐसे बहुत से संत महात्मा, औलिया हुए हैं जिन्होंने अलग-अलग मार्ग दिखाए हैं। गांधीजी अपने आप को सच्चा हिन्दू कहते हुए ईश्वरवादी थे। उनकी दैनिक पूजा में नरसी मेहता लिखित भजन जो गाया जाता था
वैष्णव जन तो तेने कहिये,
जे पीड परायी जाणे रे।
पर दु:खे उपकार करे तो ये,
मन अभिमान न आणे रे॥
अभी लोग पैसे से पुण्य कमा रहे हैं। पहले जमाने में तीर्थ यात्रा पैदल होती थी इसलिए लोग पैदल तीर्थ यात्रियों को पानी पिलाने से लेकर स्वल्पाहार और फलों का रस देते थे। अब इसकी जगह भंडारों ने ले ली है। लगभग प्रत्येक शहर में साल में एक दो धार्मिक अवसरों पर भंडारा करके गऱीबों , राह चलते लोगों को भोजन करा देते हैं। बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर यह संदेश देते हैं कि वे कितने बड़े दानी है, कितने धार्मिक हैं। जबकि सच्चा धार्मिक या दान पुण्य करने वाला प्रचार-प्रसार से दूर रहता है। गरीबों को भोजन कराना अच्छी बात है लेकिन भंडारे में हजारों-लाखों रुपए लगाकर समर्थ और समृद्ध लोगों को भी भोजन कराने का कोई सामाजिक औचित्य नहीं है। ऐसा सभी लोग नहीं हैं लेकिन अधिकांश लोगों ने इसे राजनीति में दाखिल होने का और प्रचार पाने का शॉर्टकट समझ लिया है। संभवत: इसीलिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर धर्म और राजनीति को पृथक रखने का आग्रह किया था।
जब हमारे देश में कोरोना काल आया था तब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ताली-थाली बजाकर घर में रौशनी करने का आव्हान किया था। बहुसंख्य हिन्दुओं ने ऐसा किया भी लेकिन एक बड़ी संख्या ऐसे तार्किक हिन्दुओं की भी थी जो वैज्ञानिक सोच के थे और उन्होंने ऐसा नहीं किया। बहुत लोगों ने उन्हें गरियाया और राष्ट्र विरोधी बताया। अब धर्म और कर्मकांड को राष्ट्रीयता से जोड़ कर देखा जाने लगा है।
अभी कुछ लोग सोशल मीडिया के ज़रिए ये पूछ रहे हैं की बात हो रही थी कि इलाहाबाद कुंभ के पूरे आयोजन में सार्वजनिक क्षेत्र की क्या भूमिका रही? रेल, बिजली, पानी, से लेकर बाकी इंतजाम तक? यदि हम प्रयागराज महाकुंभ की बात करें तो प्रयागराज महाकुंभ 2025 में श्रद्धालुओं की अभूतपूर्व संख्या और विभिन्न नवाचारों ने इसे ऐतिहासिक बना दिया है।
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में उमड़ी भारी भीड़ को देखते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने नासिक-त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ महाकुंभ 2027 की तैयारियाँ अभी से शुरू कर दी हैं। प्रयागराज संगम में स्नान के लिए गये महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फणनवीस ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे इस महाकुंभ को भव्य और सुव्यवस्थित बनाने के लिए विस्तृत योजना तैयार करें। इसमें गोदावरी नदी के किनारे के विकास, कुंभ मेले की ब्रांडिंग और एक बड़े कन्वेंशन सेंटर की स्थापना शामिल है, जिससे श्रद्धालुओं को राज्य के अन्य धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का भी दर्शन कराया जा सके।
वही मध्यप्रदेश के उज्जैन में 2028 में होने वाले सिंहस्थ को लेकर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भोपाल में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में महाकाल की नगरी उज्जैन में 3300 हेक्टेयर जमीन पर धार्मिक सिटी बनाने का ऐलान किया। इस सिटी में साधु-संतों, महंतों, महामंडलेश्वरों, शंकराचार्य को स्थायी जगह मिलेगी। व्यवसायियों को होटल, धर्मशाला अस्पताल, स्कूल बनाने के लिए भी जगह दी जायेगी।
उज्जैन में हर 12 साल में लगने वाला कुंभ मेला, सिंहस्थ कुंभ मेला के नाम से जाना जाता है। यह मेला शिप्रा नदी के घाट पर लगता है। साल 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ कुंभ मेला 27 मार्च से 27 मई तक चलेगा। इस मेले में 9 अप्रैल से 8 मई के बीच तीन शाही स्नान और सात पर्व स्नान होंगे। यह मेला हिंदू ज्योतिष के मुताबिक, बृहस्पति ग्रह के सिंह राशि में प्रवेश करने के उत्सव पर लगता है। उज्जैन में पिछला कुंभ मेला साल 2016 में लगा था। उज्जैन में कुंभ मेले का आयोजन 1732 में शुरू हुआ था।
यदि हम प्रयागराज महाकुंभ 2025 की बात करें तो यहां कई नए रिकॉर्ड स्थापित किए हैं। गंगा में आस्था की डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 70 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है। महाकुंभ मेले के दौरान 15,000 सफाईकर्मियों ने एक साथ घाटों की सफाई करके एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया है। कुंभ में प्रतिदिन लगभग 20,000 लोग मुफ्त भोजन का आनंद ले रहे हैं, और 25,000 नए राशन कार्ड बनाए गए हैं।
35,000 से अधिक गैस सिलेंडर रीफिल किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं की कुंभ के ज़रिये राजस्व में तीन लाख करोड़ की बढ़ौतरी होगी। प्रयागराज राज पहुँचने वाले श्रद्धालुओं ने अयोध्या, काशी, मथुरा पहुंचकर वहाँ भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। भविष्य में यह एक धार्मिक कॉरिडोर बनेगा। धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से बनारस काशी में बाबा विश्वनाथ ,अयोध्या में राममंदिर की स्थापना के बाद प्रयागराज कुंभ के ज़रिए उत्तर प्रदेश ने धार्मिक पर्यटन के क्षेत्र में पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई है।

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